सुख और दुख जीवन के दो पहलू हैं जो हम सबको भोगने पड़ते हैं ! ऐसे ही एक अपार कष्ट के समय रोते हुए एक कविता लिखी गई, जो उस अभिशप्त दिन (१० नवम्बर १९८९ ) के बाद, मैं कभी पूरी पढ़ नहीं पाता !
उस दिन ऐसा लगा था कि अब हम कैसे जी पाएंगे, मगर दुनिया किसी के जाने के बाद कभी नही रूकती और हम आज भी सब जी रहें हैं ! शायद यही जीवन की रीति है !
तड़पते याद तुम्हारी में !
कहाँ हो माली आ जाओ ....
पशु कबूतर पक्षी पौधे
सब कुम्हलाये हैं !
तड़प कर तुम्हे बुलाते हैं !
चले न मुख मे कौर ,
तुम्हारी याद सताये रे !
जितने पेड़ लगाये तुमने,
झूम रहे थे सब मस्ती में
इस हरियल बगिया में ,
किसने आग लगाई रे !
सबसे ऊँचा पेड़ गिरा !
सन्नाटा छाया रे......
इस बगिया में जान तुम्हारी
फिर क्यों रूठे इस उपवन से
किस पौधे से भूल हुई ,
कुछ तो बतलाओ रे !
सारे प्यासे खड़े !
कहीं से माली आओ रे
तुमने सबसे प्यार किया था
तन मन धन सब दान दिया था
बदला चाहा नहीं किसी से !
फिर क्यों रूठे इस आँगन से
सबसे प्यारी बेटी सिसके !
याद तुम्हारी में .....
हर आँगन से तुम्हे प्यार था
भूले बिसरे रिश्ते जोड़े !
कई घरों में खुशिया बांटी
अपने दुःख का ध्यान नहीं था
कल्पवृक्ष अवतार ! यहाँ दावानल आई रे ....
उस दिन ऐसा लगा था कि अब हम कैसे जी पाएंगे, मगर दुनिया किसी के जाने के बाद कभी नही रूकती और हम आज भी सब जी रहें हैं ! शायद यही जीवन की रीति है !
ज्यों ज्यों बीते समय
तुम्हारी याद सताती रे !
इस बगिया के पेड़ तड़पते याद तुम्हारी में !
कहाँ हो माली आ जाओ ....
पशु कबूतर पक्षी पौधे
सब कुम्हलाये हैं !
तड़प कर तुम्हे बुलाते हैं !
चले न मुख मे कौर ,
तुम्हारी याद सताये रे !
जितने पेड़ लगाये तुमने,
झूम रहे थे सब मस्ती में
इस हरियल बगिया में ,
किसने आग लगाई रे !
सबसे ऊँचा पेड़ गिरा !
सन्नाटा छाया रे......
इस बगिया में जान तुम्हारी
फिर क्यों रूठे इस उपवन से
किस पौधे से भूल हुई ,
कुछ तो बतलाओ रे !
सारे प्यासे खड़े !
कहीं से माली आओ रे
तुमने सबसे प्यार किया था
तन मन धन सब दान दिया था
बदला चाहा नहीं किसी से !
फिर क्यों रूठे इस आँगन से
सबसे प्यारी बेटी सिसके !
याद तुम्हारी में .....
हर आँगन से तुम्हे प्यार था
भूले बिसरे रिश्ते जोड़े !
कई घरों में खुशिया बांटी
अपने दुःख का ध्यान नहीं था
कल्पवृक्ष अवतार ! यहाँ दावानल आई रे ....