मैं चाहूँ भी , सिद्धार्थ नहीं बन सकता हूँ
राहुल यशोधरा को कैसे खो सकता हूँ !
जग जाने कब से गीत,युद्ध के गाता है
क्या गीतों से विद्वेष रोज धो सकता हूँ !
यूँ आसानी से, हमको भुला न पाओगे !
आशाओं के मधुगीत रोज बो सकता हूँ !
जी करता आग लगा दूँ,निष्ठुर दुनियां में
माँ आकर मुझे मनाये, तो रो सकता हूँ !
बरसों से नींद न आयी मुझको रातों में ,
कोई आकर लोरी गाये,तो सो सकता हूँ !
राहुल यशोधरा को कैसे खो सकता हूँ !
जग जाने कब से गीत,युद्ध के गाता है
क्या गीतों से विद्वेष रोज धो सकता हूँ !
यूँ आसानी से, हमको भुला न पाओगे !
आशाओं के मधुगीत रोज बो सकता हूँ !
जी करता आग लगा दूँ,निष्ठुर दुनियां में
माँ आकर मुझे मनाये, तो रो सकता हूँ !
बरसों से नींद न आयी मुझको रातों में ,
कोई आकर लोरी गाये,तो सो सकता हूँ !
sahi bat ma ki thapki sari chintaayen har leti hai ,,,,,sundat abhwayakti .....
ReplyDeleteबरसों से नींद न आयी , जग की चिंता में
ReplyDeleteतुम माँ बन मुझे सुलाओ तो,सो सकता हूँ
क्या बात है, भावमय करते शब्दों का संगम ....
जग की चिन्ता, माँ की थपकी,
ReplyDeleteदोनों मन को घेरे रहते,
एक गयी, दूजी आ जाती,
हर पल स्वप्न घनेरे रहते।
सुन्दर गीत !!
ReplyDeleteबधाई
जब से मैंने तुझको खोया
ReplyDeleteचैन से फिर मैं कभी न सोया ......
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
सशक्त सारगर्भित रचना ....!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : उत्सवधर्मिता और हमारा समाज
मर्मस्पर्शी .......
ReplyDeletesundar rachana prastuti...abhaar
ReplyDelete" मातृदेवोभव ।"
ReplyDeletebahut sundar bhav !
ReplyDeletebahut sundar bhav !
ReplyDeleteतुम गाते गाते साथ मेरे , थक जाओगी
ReplyDeleteमैं दर्द गीत के रोज , नए गा सकता हूँ !
बहुत सुन्दर रचना !
माँ तो माँ है ..जिसके जेसा कोई नही,,..
ReplyDeleteमाँ तो माँ होती ..जिसके जेसा कोई नहीं ,,
ReplyDeleteकोमल भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteकोई गाता मैं सो जाता -गुनगुनाने का अवसर दिया आपने -आभार!
ReplyDeleteमैं जल जाउंगी
ReplyDeleteमां भी बस
मैं ही बन पाउंगी
तुम सोच नहीं सकते जो
मैं वो भी कर जाउंगी
ना कहूंगी ना ही लिखूंगी
मुझे आता है
अपना धर्म निभाना
इशारा कर के तो देखो
तुम्हारे सोचने तक
तो मैं मिट जाउंगी !
चिर संचित अभिलाषाओं को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया गया है।
ReplyDeleteबरसों से नींद न आई ,जग की चिंता में
ReplyDeleteतुम माँ बन मुझे सुलाओ, तो सो सकता हूँ -
सतीश सक्सेना
सुन्दरम मनोहरं
बहुत खुबसूरत रचना ....
ReplyDeleteनिश्छल दिल लेकर इस बस्ती में जन्मा हूँ
ReplyDeleteतुम प्यार के गीत सुनाओ, तो रो सकता हूँ
बहुत खूब ,,,,,
साभार !
जीवट ग़ज़ब की चीज है
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुती
ReplyDeleteबहुत शानदार रचना अतिसुन्दर वाह्ह्ह
ReplyDeleteनितांत मार्मिक और सशक्त रचना.
ReplyDeleteरामराम.
बेहतरीन और लाजवाब |
ReplyDeletekhubsurat abhiwyakti...
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