नीचे लिखा पत्र ,डॉ गीता कदायप्रथ ( कैंसर कंसल्टेंट ) का है, जिसमें उन्होंने ब्रेस्ट कैंसर के खतरे के लिए , महिलाओं को जागरूक करने हेतु , एक रचना का अनुरोध किया है ! डॉ गीता, मैक्स हॉस्पिटल, साकेत , दिल्ली में, कैंसर सर्जन के रूप में कार्यरत हैं !
Dear Mr Saxena,
It was really good talking to you and am glad you are also enthusiastic about writing a few lines for creating breast cancer awareness.
1. Breast cancer is on the rise, and actually can be defeated just by early detection / screening.2. Health consciousness in terms of lifestyle: tobacco, food, exercise.3. pink and breast cancer should remain the main theme, touching indirectly on lifestyle and screening.
The central idea is to make women realise they are all important to their families and the society at large.They need to take care of themselves and put their health as a priority.We all need her, as a mother,a sister, a daughter, a wife etc.For her to be able to do justice to all these roles, she has to look after herself.She has to listen to her body, she has to be familiar with her body, because she knows her body best. She has to come forth herself if she finds a problem and not postpone it for another day.The urgency to ensure her fitness should not diminish ever.This mindset that no disease can touch her has to go and her vulnerability should make her more aware and forthcoming in reporting a problem at the earliest
She lights up everyone's lives. She is an enigma,a pillar of strength- she is the sunshine, the rainbow, the gentle breeze,the earth, all enduring, selfless and patient.She gives endlessly.Let us care for her, nurture her and keep her healthy because our existence is inextricably linked to her.She means the world to us, so let us paint her canvas in pink and ensure she is aware of her own self and submits herself to a check even if she is ostensibly well.'
Sent from BlackBerry® on Airtel
Dr Geeta kadayaprath
MS, FRCS Senior Consultant (Breast Surgeon)
यदि तुम्हीं अस्वस्थ हो
कैसे उठें, किलकारियाँ
अगर तुम ,भूखी रहीं ,
कैसे जमेंगी , बाज़ियाँ ,
अगर तुम चाहो कि हम भी,
Dear Mr Saxena,
It was really good talking to you and am glad you are also enthusiastic about writing a few lines for creating breast cancer awareness.
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The central idea is to make women realise they are all important to their families and the society at large.They need to take care of themselves and put their health as a priority.We all need her, as a mother,a sister, a daughter, a wife etc.For her to be able to do justice to all these roles, she has to look after herself.She has to listen to her body, she has to be familiar with her body, because she knows her body best. She has to come forth herself if she finds a problem and not postpone it for another day.The urgency to ensure her fitness should not diminish ever.This mindset that no disease can touch her has to go and her vulnerability should make her more aware and forthcoming in reporting a problem at the earliest
She lights up everyone's lives. She is an enigma,a pillar of strength- she is the sunshine, the rainbow, the gentle breeze,the earth, all enduring, selfless and patient.She gives endlessly.Let us care for her, nurture her and keep her healthy because our existence is inextricably linked to her.She means the world to us, so let us paint her canvas in pink and ensure she is aware of her own self and submits herself to a check even if she is ostensibly well.'
Sent from BlackBerry® on Airtel
Dr Geeta kadayaprath
MS, FRCS Senior Consultant (Breast Surgeon)
यदि तुम्हीं अस्वस्थ हो
कैसे उठें, किलकारियाँ
अगर तुम ,भूखी रहीं ,
कैसे जमेंगी , बाज़ियाँ ,
अगर तुम चाहो कि हम भी,
छू सकें वह आसमां !
माँ तुम्हें भी स्वयं का कुछ ध्यान रखना चाहिए !
माँ तुम्हें भी स्वयं का कुछ ध्यान रखना चाहिए !
याद रख , तेरी हँसी ,
जीवंत रखती है, हमें !
तेरी सेहत में कमी ,
बेचैन करती है, हमें !
जाना तो इक दिन सभी को,
जाना तो इक दिन सभी को,
मगर अपनों के लिए
माँ, तुम्हें अपने बदन का , ध्यान रखना चाहिए !
माँ, तुम्हें अपने बदन का , ध्यान रखना चाहिए !
कुछ बुरी बीमारियां
खतरा है नारी के लिए
कैंसर सीने में जकड़े
उम्र , सारी के लिए
वक्त रहते जांच करवा कर,
कैंसर सीने में जकड़े
उम्र , सारी के लिए
वक्त रहते जांच करवा कर,
जियें, सब के लिए !
कुछ तो माँ अपने लिए ,अरमान रखना चाहिए !
तुमसे ही सुंदर लगे
संसार जीने के लिए
तुम नहीं, तो कौन है ?
हँसने, हंसाने के लिए
सिर्फ नारी जगत में ,
कुछ तो माँ अपने लिए ,अरमान रखना चाहिए !
तुमसे ही सुंदर लगे
संसार जीने के लिए
तुम नहीं, तो कौन है ?
हँसने, हंसाने के लिए
सिर्फ नारी जगत में ,
जीती है गैरों के लिए !
माँ, हमें अपने लिए ,इक शक्ति रूपा चाहिए !
मायके में, आंख भर
आयी, तुझे ही याद कर
और मुँह में कौर न जा
पाए तुमको याद कर !
अगर मन में प्यार है ,
माँ, हमें अपने लिए ,इक शक्ति रूपा चाहिए !
मायके में, आंख भर
आयी, तुझे ही याद कर
और मुँह में कौर न जा
पाए तुमको याद कर !
अगर मन में प्यार है ,
परिवार अपने के लिए !
माँ, शारीरिक व्याधियों की, जांच होनी चाहिए !
नारी आँचल में पले हैं ,
गाँठ घातक रोग के !
धीरे धीरे कसते जाते
रेशे , दारुण रोग के !
इनके संकेतों की हमको ,
नारी आँचल में पले हैं ,
गाँठ घातक रोग के !
धीरे धीरे कसते जाते
रेशे , दारुण रोग के !
इनके संकेतों की हमको ,
परख होनी चाहिए !
माँ , बड़ों की बात हमको याद रखना चाहिए !
डॉ गीता कदायप्रथ ने महिलाओं में कैंसर जागरुकता का आह्वान किया है और आपकी पोस्ट इसे चरितार्थ कर रही है -सशक्त कविता!
ReplyDeletenaari ko jagrit karti post.
ReplyDeleteकुछ तो माँ पापा की बातें ,याद रखना चाहिए !
ReplyDeleteबेहद सार्थक प्रयास ...
सादर
बहुत अच्छी सलाह... डॉ गीता और आपका आभार
ReplyDeleteसार्थक रचना...सतीश जी !
ReplyDeleteअक्सर भूल जाती है माँ ...कि वो भी एक इंसान ही है, किसी बीमारी के लिए...अंजान नहीं...!
सादर !
बेहद संवेदनशील और जागरुक करती रचना।
ReplyDeleteइस प्रकार की जागरूकता फैलाना बहुत ज़रूरी है. मेरे नज़दीकी संबंधियों में ऐसे मामले देखे हैं. बहुत उपयोगी पोस्ट.
ReplyDeleteभावो को संजोये रचना......
ReplyDeleteडॉक्टर साहिबा का बहुत ही आत्मीय जागरूक करता पत्र
ReplyDeleteऔर आपकी संवेदनशील कविता ने पोस्ट को महत्वपूर्ण बना दिया है.
इस जागरूकता को आगे बढाने का अनुरोध है...
Deleteनि:शब्द हूँ
ReplyDeleteसतीश जी , गीता जी के आलेख और आपकी कविता ने जो सन्देश दिया है वह बहुत जरूरी है आज के समय में . ये कैंसर कब और कैसे शरीर में पनपने लगता है नहीं जानते हैं . महिलायें खासतौर पर अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होती हैं . वे अपने घर उअर परिवार की चिंता के आगे अपने कष्टों को नजरअंदाज करती रहती हैं जो गलत है. अगर वही स्वस्थ नहीं होती है तो सारा घर तितर बितर हो जाता है.
ReplyDeleteइस सन्देश को जहाँ तक हो पहुंचना चाहिए.
यह सन्देश देने के लिए हम सबको योगदान करना होगा ! आभार आपका
Deleteडॉ गीता और सतीश भैया आपके प्रयास को नमन .....
ReplyDeleteमाँ को वक्त कहाँ है अपना ख़याल रखने का...कोई और उसका ख़याल करे ये बड़ी बात है...
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक रचना...
आभार
सादर
अनु
Dr. geeta thanks..
ReplyDeleteand sateesh ji thanks for writing such a valuable post...
डरावना सच, गांव में आज भी महिलाऐं इसको लेकर जागरूक नहीं होती है और पुरूषों के लाख समझाने पर भी अपने दर्द को भरसक छुपाने का प्रयास करते है जिससे स्थिति बिगड़ जाती है।
ReplyDeleteडॉक्टर साहब का कर्तव्य और आपकी भाव प्रबल रचना ...
ReplyDeleteसभी एहसास मानवता से जुड़े हुए ...!!
आभार इस प्रस्तुति के लिए ....!!
.
ReplyDeleteयाद रख , तेरी हँसी ,
जीवंत रखती है,हमें !
तेरी सेहत में कमी ,
बेचैन करती है,हमें !
जाना तो इक दिन सभी को,
मगर अपनों के लिए
माँ, तुम्हे अपने बदन का ,
ध्यान रखना चाहिए !
संवेदनशील संवेदना जगाती रचना है
आदरणीय सतीश सक्सेना जी
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
आभार आपका राजेंद्र भाई ...
Deleteतुमसे ही सुंदर लगे
ReplyDeleteसंसार जीने के लिए
तुम नहीं,तो कौन है ?
हँसने, हंसाने के लिए
सिर्फ नारी ही जगत में,जीती गैरों के लिए
दूसरों की मदद करने , शक्तिरूपा चाहिए !
Dr Geeta kadayaprath ji thanks SATISH JI SO NICE THANKS
बेहद संवेदनशील और जागरुक करती सार्थ्क रचना सतीश जी..
ReplyDeleteडा0 गीता का लिखा पत्र सच ही नारी को अपने बारे में सोचने पर विवश कर देगा ... उनसे परिचय कराने के लिए आभार ...
ReplyDeleteआपकी रचना सशक्त जागृति संदेश दे रही है और आपने बहुत खूबसूरती से सच्चाई लिखी है कि नारी ही परिवार कि धुरी है .... आभार
यह सच्चाई है , परिवार को इस धुरी का ख़याल रखना चाहिए ..
Deleteडा: गीता और आपका प्रयास जन कल्याणकारी है.कविता के माध्यम से मार्मिक प्रस्तुति .बधाई.
ReplyDeleteअतिसुन्दर !
ReplyDeleteअतिओसुन्दर !
ReplyDeleteयाद रख , तेरी हँसी ,
ReplyDeleteजीवंत रखती है,हमें !
तेरी सेहत में कमी ,
बेचैन करती है,हमें !
जाना तो इक दिन सभी को, मगर अपनों के लिए
माँ, तुम्हे अपने बदन का , ध्यान रखना चाहिए !
सुंदर पंक्तियाँ .....
डॉ गीता कदायप्रथ जी का पत्र और आपकी रचना
दोनों जागरूक करती है ..".precaution is better than cure"
काश सब महिलायें इसे समझ लें ...उन्हें अपना ध्यान रखना चाहिए !
Deleteजानकारी पूर्ण पोस्ट , आभार आपका कि आपने इतनी सशक्त रचना लिखी है. हर पंक्ति में अपनत्व का अहसास, फिक्र और जागरूकता समाहित है ...
ReplyDeleteसादर
आभार आपका इंदु जी
Deleteजानकारी पूर्ण पोस्ट , आभार आपका कि आपने इतनी सशक्त रचना लिखी है. हर पंक्ति में अपनत्व का अहसास, फिक्र और जागरूकता समाहित है ...
ReplyDeleteसादर
Dr. Geetaji ke vicharon ki prastuti ke liye abhaar ...
ReplyDeleteसच कहा - नारी का एक मां , बहन , बेटी और पत्नी के रूप में -- सभी के लिए एक अहम् रोल रहता है . उसके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए .
ReplyDeleteएक आवश्यक सन्देश के लिए आप दोनों बधाई के पात्र हैं .
एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर सार्थक और सशक्त अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबधाई और आभार.
शुक्रिया डॉ अमर ..
Deleteसशक्त कविता और आलेख..शुभकामनायें..
ReplyDeleteसुन्दर रचना । किमोथेरेपी और रेडियो थेरेपी का दर्द क्या होता है मैं अच्छी तरह समझता हूं। रचना के लिए साधुवाद आपको
ReplyDeleteसार्थक लेख
ReplyDeleteसंग्रहणीय पोस्ट
एक सार्थक संदेश। जागरूकता वाकई बहुत जरूरी है।
ReplyDeleteडा0 गीता के पत्र का अंतिम पैरा किसी भी संवेनदनशील व्यक्ति को जागरूक करने में समर्थ है।
ReplyDeleteआपने इस पत्र की मूल भावनाओं के साथ न्याय करते हुए बड़े ही सशक्त ढंग से सुंदर गीत की रचना की है। आपने सिद्ध कर दिया कि कवि समाज को बहुत कुछ दे सकता है। कवि धर्म का निर्वाह करना कोई आपसे सीखे।
अविनाश चन्द्र जी (शब्द सम्राट)से कहकर पत्र का हिंदी अनुवाद प्रकाशित कराते तो और भी अच्छा होता। इस अपील को हिंदी और लोक भाषा में लिखने और प्रचारित करने की जरूरत है।
शुक्रिया देवेन्द्र भाई ...
Deleteबढ़िया सुझाव है , अविनाश जी के साथ आपका भी स्वागत है :)
सतीश जी, इस महान सामाजिक दायित्व का निर्वाह कराती रचना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
ReplyDeleteसुना है,कैंसर है होता,गांठ की मन से प्रिये
ReplyDeleteकहो,खोलो आज बंधन,जल उठें मन के दीए
जागृत व भावपूर्ण सन्देश!!
ReplyDeleteसार्थक संदेश देती और लोगों को जागरूक करती एक बेहतर रचना के लिए आप निश्चय ही बधाई के पात्र हैं।
ReplyDeleteरचना नहीं..
ReplyDeleteकविता है ये....कविता....
डॉ.गीता ,और आप दोनो की यह जागरूकता सबको संदेश दे रही है - नारी का स्वस्थ और प्रसन्न रहना सबके लिये आनन्द और मंगल का कारक है ! धन्यवाद .
ReplyDeleteजागरूक करते सशक्त भाव..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteजागरूक करते सशक्त भाव..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद डॉ. गीता जी, सतीश जी.
ReplyDeleteजागरूकता आवश्यक है !
ReplyDeleteआभार !
मुझे तो आपकी इस रचना ने भावनाओं में बहा दिया. पिछले तीन महीनों से माँ के पास ही हूँ. डाक्टर साहिबा को मेरा सलाम.
ReplyDeleteजागरूकता जरूरीहर लेवल पे हर एक को जागरूक होना चाहिए , बहुत अच्छा संदेश
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
स्तन कैंसर के प्रति महिलाओं को जागरूक करती बेहद प्रभावी रचना...
हाँ यह जरूर कहूँगा कि कैंसर जीवाणु (बैक्टीरिया)जनित नहीं होता...
इस गलती को सही करते हुऐ आखरी पैरा कुछ इस तरह का सुझाने का दुस्साहस कर रहा हूँ...आशा है अन्यथा नहीं लेंगे...
"नारी वक्ष में , पल रहे ,
ट्यूमर घातक रोग के
बिन कहे, करते बसेरा
उत्तक, दारुण रोग के !
इनके संकेतों की समय रहते,पहचान करनी चाहिए !
कुछ तो माँ पापा की बातें ,याद रखना चाहिए !"
आभार!
...
@प्रवीण शाह,
Deleteबहुत अच्छा सामयिक सुझाव दिया है आपने, कुछ बदलाव किया है , आशा है अर्थ स्पष्ट हो गया होगा !
आभार आपका...
प्रभावी रचना !
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट......
ReplyDeleteबहुत प्रभावी जानकारीपूर्ण आलेख और किसी भी परिस्थितियों के लिये गीत लिखने में तो आपको महारत है ही.
ReplyDeleteजय हो ...
ReplyDeleteदुर्गा भाभी को शत शत नमन - ब्लॉग बुलेटिन आज दुर्गा भाभी की ११० वीं जयंती पर पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और पूरे ब्लॉग जगत की ओर से हम उनको नमन करते है ... आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !
कविता सुन्दर तो है ही, कारुणिक भी है। पढते-पढते ऑंखें भर आईं।
ReplyDeleteसार्थक रचना
ReplyDeleteबड़े भाई!
ReplyDeleteयह रचना न सिर्फ एक गीत है स्तन कैंसर की जागरूकता के लिए, बल्कि इसे तो इस अभियान के लिए सन्देश के तौर पर प्रयोग किया जाना चाहिए.. डॉक्टर गीता के अनुरोध को आपने जिस रूप में स्वीकार किया और जो सन्देश उभर कर सामने आया वह नमनीय है!!
वाह! बढ़िया सन्देश... भावपूर्ण पंक्तियाँ....
ReplyDelete.....
ReplyDelete.....
pranam.
अलेख तो अच्छा है ही लेकिन गीत भी बहुत सुन्दर है। बधाई।
ReplyDeleteस्रोत हो तुम प्राथमिक आहार का ,
ReplyDeleteक्यों बनो तुम ग्रास कर्के-रोग का ?
(कर्क रोग बोले तो कैंसर ,मुम्बैया में मराठी में कैंसर को कर्क रोग ही कहा जा रहा है )
रौनकें आयद सभी तुमसे यहाँ ,
आंच हो जिस वक्ष में नासूर क्यों ?
आईने के सामने तुम आइए,
वक्ष के अर्बुद से न घबराइए .
राह है आसान अब हर रोग की ,
वक्त से बस बा -खबर हो जाईये .
सतीश जी आपने बहुत सार्थक गीत लिखा है और देखिए हमसे भी कुछ लिखवा लिया आपके इस रागात्मक संचारी गीत ने .आभार .
स्रोत हो तुम प्राथमिक आहार का ,
ReplyDeleteक्यों बनो तुम ग्रास कर्के-रोग का ?
(कर्क रोग बोले तो कैंसर ,मुम्बैया में मराठी में कैंसर को कर्क रोग ही कहा जा रहा है )
रौनकें आयद सभी तुमसे यहाँ ,
आंच हो जिस वक्ष में नासूर क्यों ?
आईने के सामने तुम आइए,
वक्ष के अर्बुद से न घबराइए .
राह है आसान अब हर रोग की ,
वक्त से बस बा -खबर हो जाईये .
सतीश जी आपने बहुत सार्थक गीत लिखा है और देखिए हमसे भी कुछ लिखवा लिया आपके इस रागात्मक संचारी गीत ने .आभार .
एक बात और सतीश जी ,यहाँ अमरीका के हरेक राज्य में जब तब पिंक वाल्क का आयोजन होता है .लोग दौड़तें हैं किसी न किसी के लिए ५ -१० -१५ -२० मील .जिसके लिए दौड़ते हैं वह कैंसर कोष के लिए चैक देता है .स्वेच्छा से .तमाम रास्ते दौड़ने वालों के लिए स्वयंसेवी पानी लिए खड़े रहते हैं .इस दिन सब कुछ पिंक होता है .लिबास पिंक ,साइकिल की गद्दी पिंक ,बास्किट पिंक ,पानी पिंक ,पिंक ही पिंक .पिंक रिबन वाली टोपी सब पहने रहते हैं .पिंक ट्रांसफोर्मर ,बम्बिल बी (सभी कार्टून करैक्टर्स ).
याद रख , तेरी हँसी ,
ReplyDeleteजीवंत रखती है,हमें !
तेरी सेहत में कमी ,
बेचैन करती है,हमें !
जाना तो इक दिन सभी को,
मगर अपनों के लिए
माँ, तुम्हे अपने बदन का ,
ध्यान रखना चाहिए !
पढ़कर आँखें भर आई कितना मर्म है इस कविता में छ महीने पहले ही माँ चली गई ब्रेन ट्यूमर से |ये पढ़ कर सब कुछ ताजा हो उठा बहुत अच्छी जागरूक करती हुई इस कविता के लिए हार्दिक बधाई इसकी चर्चा कल के चर्चा मंच पर भी देखिये
याद रख , तेरी हँसी ,
ReplyDeleteजीवंत रखती है,हमें !
तेरी सेहत में कमी ,
बेचैन करती है,हमें !
सार्थक पोस्ट
स्रोत हो तुम प्राथमिक आहार का ,स्रोत हो तुम सम्पूर्ण आहार का ,
ReplyDeleteक्यों बनो तुम ग्रास कर्के-रोग का ?
(कर्क रोग बोले तो कैंसर ,मुम्बैया में मराठी में कैंसर को कर्क रोग ही कहा जा रहा है )
रौनकें आयद सभी तुमसे यहाँ ,
आंच हो जिस वक्ष में नासूर क्यों ?प्यार हो जिस वक्ष में नासूर क्यों ,
आईने के सामने तुम आइए,आईने के सामने खुद आईये
वक्ष के अर्बुद से न घबराइए .
राह है आसान अब हर रोग की ,
वक्त से बस बा -खबर हो जाईये .
सतीश जी आपने बहुत सार्थक गीत लिखा है और देखिए हमसे भी कुछ लिखवा लिया आपके इस रागात्मक संचारी गीत ने .आभार .
एक बात और सतीश जी ,यहाँ अमरीका के हरेक राज्य में जब तब पिंक वाल्क का आयोजन होता है .लोग दौड़तें हैं किसी न किसी के लिए ५ -१० -१५ -२० मील .जिसके लिए दौड़ते हैं वह कैंसर कोष के लिए चैक देता है .स्वेच्छा से .तमाम रास्ते दौड़ने वालों के लिए स्वयंसेवी पानी लिए खड़े रहते हैं .इस दिन सब कुछ पिंक होता है .लिबास पिंक ,साइकिल की गद्दी पिंक ,बास्किट पिंक ,पानी पिंक ,पिंक ही पिंक .पिंक रिबन वाली टोपी सब पहने रहते हैं .पिंक ट्रांसफोर्मर ,बम्बिल बी (सभी कार्टून करैक्टर्स ).
मायके की आंख भर
ReplyDeleteआयी तुझे ही यादकर
और मुंह में कौर न
जा पाए बच्चों के गले !
अगर मन में प्यार है ,परिवार अपने के लिए !
कैंसर बढ़ने से पहले , खुद संभलना चाहिए !
हृदय से लिखी यह रचना अंतस् को प्रभावित करती है।
डॉ गीता जी को और आपको मेरा हार्दिक आभार और नमन.
ReplyDeleteब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता और चेतना जगाने के लिए.
Informative !
ReplyDeleteसाथ साथ आपकी रचना भी बहुत सशक्त लगी !
Informative !
ReplyDeleteसाथ साथ आपकी रचना भी बहुत सशक्त लगी !
जागरूक करती सार्थक रचना...
ReplyDeleteआप दोनों का आभार..
:-)
भारत की हर नारी की यही कहानी है पर अब महिला जागरूक तो हो रही है पर फिर भी अपनी उपेक्षा एक माँ,पत्नी कर ही देती है ,कई बार परिस्थितियों से मजबूर होकर या कहीं उपेक्षित हो कर |
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर रही है |आभार ,ब्रेस्ट कैंसर के प्रति जागरूकता और चेतना जगाने के लिए.
kavita ke sath sath ek jagruk karya bhi aap ki ye soch bahut bahut prashansha ke kabil hai
ReplyDeletebadhai
rachana
माँ को अपना ख्याल रखने के बच्चों का उससे जुडा रहना अतिआवश्यक है । आपकी कविता यह जागरूकता लाती है । ख्याल रखे तो बीमारी का पता जल्द चले और इलाज भी ठीक से हो ।
ReplyDeleteकवितामयी संवेदनशील और जागरुक करती रचना हेतु आभार ।
ReplyDeleteइस बारे में सोचने पर विवश कर रही है.आभार
ReplyDeleteवाह सतीश्जी...इसे कहते हैं एक पंथ दो काज ....सुन्दर और श्रेष्ठ !!! गीताजी को शत शत आभार !!!!!
ReplyDeleteएक सार्थक संदेश देती बहुत संवेदनशील रचना जो दिल को गहराई तक छू गई...आभार सतीश भाई...
ReplyDeleteप्रेरणादायक रचना निरंतर बिना हारे आगे बढते रहने की प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना |
ReplyDeleteसंवेदनशील और जागरुक करती बढ़िया प्रभावी रचना..
ReplyDeleteतुमसे ही सुंदर लगे
ReplyDeleteसंसार जीने के लिए
तुम नहीं,तो कौन है ?
हँसने, हंसाने के लिए
सिर्फ नारी ही जगत में,जीती गैरों के लिए
दूसरों की मदद करने , शक्तिरूपा चाहिए !
बहुत प्रभावी ह्रदय छूने वाली प्रस्तुति आज फिर दुबारा पढ़ी पहले भी कमेन्ट किया था उसे ना पाकर दुःख हुआ इस लिए आज फिर कर रही हूँ मैं आपकी कोई पोस्ट मिस भी नहीं करना चाहती
बहुत प्रभावी ह्रदय छूने वाली प्रस्तुति आज फिर दुबारा पढ़ी पहले भी कमेन्ट किया था उसे ना पाकर दुःख हुआ इस लिए आज फिर कर रही हूँ मैं आपकी कोई पोस्ट मिस भी नहीं करना चाहती
ReplyDeleteis post ke liye bahut aabahar satish ji - sach hai - ham striyaan , ma / patni / .... role me itne busy rahte hain ki apne aap ko dekhna bhool jaati hain aksar. samay par jaanch avashya honi chaahiye
ReplyDeleteतुमसे ही सुंदर लगे
ReplyDeleteसंसार जीने के लिए
तुम नहीं,तो कौन है ?
हँसने, हंसाने के लिए
सिर्फ नारी ही जगत में,जीती गैरों के लिए
दूसरों की मदद करने , शक्तिरूपा चाहिए !
बहुत सुन्दर ..सुन्दर सन्देश देती दिल को छू गयी ये रचना काश माँ को सब दिल में बसाये रखें
भ्रमर ५
प्रेरणादायक....सार्थक रचना...
ReplyDeleteझझकोर कर जगाती रचना. काश! हर माँ के लिए यही भाव होता .
ReplyDeleteस्वास्थ्य सबसे बड़ी नियामत है..प्रेरणादायक रचना..
ReplyDeleteबेहद प्यारा लेख ..डॉ गीता को बधाई और सतीश जी सुन्दर नारी को अपनी सेहत के प्रति जागरूक करती कविता ...
ReplyDeletebahut hi sarthak sandesh satish jee .....
ReplyDeleteवाह सतीशजी, ब्लाग पर आपकी सक्रियता देखकर हैरत होती है। मैंे चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाता। बहुत दिनों बाद मित्रों के ब्लाग देखे और अपने ब्लाग पर भी नजर डाली। कैंसर को लेकर डाॅक्टर का पत्र और आपकी कविता दोनों बहुत महत्वपूर्ण हैं। कितनों को ही इस नामुराद बीमारी ने छीना है। मेरी अम्मा, मेरी साली और एक अच्छी दोस्त स्तन कैंसर का शिकार हो चुकी हैं। कितने ही परिचित इससे जूझ रहे हैंे। आपने इस मुद्दे को उठाकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है। इसके लिए बधाई। अपनी निरंतरता बनाए रखें इससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलती है।
ReplyDeleteशुक्रिया सतीश जी इस अर्बुद चेतना के लिए आपकी टिपण्णी के लिए .
ReplyDeleteकैंसर रोग समूह इन दिनों गंगा के किनारे आबाद लोगों को तेज़ी से अपनी चपेट में ले रहा है ,प्रोस्टेट ,लीवर ,कोलन ...कैंसर .
कारुणिक, बहुत सशक्त रचना
ReplyDeleteआदरणीय, जागरूक करती इस पोस्ट के लिए धन्यवाद ! आजकल स्तन कैंसर आम बीमारी बन चुकी है ..असल में महिलाएं संकोचवश इस के बारे में नहीं बताती...पता चलने तक देर हो चुकी होती है...इस बीमारी का कोई भी रूप भयानक है.....मेरे पापा को ओरल और फीड कैनाल में कैंसर था....हमने उन्हें kho दिया ....पर यह भी सच है की 'अर्ली स्टेज' में पहचान हो जाये तो इलाज संभव है ....हम सब यहीं चुक कर जाते है....
ReplyDeleteविजयादशमी की शुभकामनाएं । मेरे नए पोस्ट पर आपका हार्दिक स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteनारी हर रूप में एक छायादार वृक्ष है, उसकी अनुपस्थिति के बिना जीवन की कल्पना भी मुश्किल है. उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखना अपना ही ध्यान रखना. बहुत ही प्रेरणास्पद आलेक. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
याद रख , तेरी हँसी ,
ReplyDeleteजीवंत रखती है,हमें !
तेरी सेहत में कमी ,
बेचैन करती है,हमें !
सार्थक पोस्ट
meri post par aapka intzaar hai
चार दिन ज़िन्दगी के .......
बस यूँ ही चलते जाना है !!
vah kya khoob,jindgi ke kamaks ko alfazo me piroyee gyee behatareen prastuti
ReplyDeleteमाँ तो अपना ख्याल रखे ... उनके बच्चों को भी ख्याल रखना जरूरी है ...
ReplyDeleteचाहे चार दिन बाद ... पर जाना किसी का अच्छा नहीं लगता ...
सतीश भाई साहब आपको मैं बिना नागा पढ़ता हूँ . आप सबसे मैं नित्य प्रति कुछ न कुछ सीख रहा हूँ . HAR BAAR EK NAI ANUBHUTI LIYE BHAW.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रेरक सन्देश ...
ReplyDeleteबहुत सशक्त रचना..एक अति आवश्यक संदेश हर मातृशक्ति के लिए.
ReplyDeleteतुमसे ही सुंदर लगे
ReplyDeleteसंसार जीने के लिए
तुम नहीं,तो कौन है ?
हँसने,हंसाने के लिए
सिर्फ नारी जगत में , जीती है गैरों के लिए !
माँ, हमें अपने लिए ,इक शक्तिरूपा चाहिए !
कोई कवि ना हो तो क्या एक असंवेदनशील व्यक्ति इतनी भावपूर्ण कविता लिख सकता है ?