Monday, September 29, 2008

लिख सतीश तू बिना सहारे ! गाने वाले मिल जायेंगे -सतीश सक्सेना

रमजान के मुबारक महीने पर, इस देश की एक बच्ची रख्शंदा Pretty woman ने, बेहद दर्द के साथ एक ऐसी पोस्ट, आई है ईद, लेकर उदासियाँ कितनी... लिखी ! जिसने दिल को झकझोर सा दिया ! हमारे विशाल ह्रदय वाले देश में, पूरी कौम को बदनाम करने की कोशिश बुरी तरह नाकामयाब होगी, इसमे हमें बताना होगा कि हम दोनों एक दूसरे धर्मों का तहे दिल से सम्मान करते हैं ! धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करने वालों को एक प्यार का संदेश पढाना होगा !

चल उठा कलम कुछ ऐसा लिख,
जिससे घर का सम्मान बढ़े ,
कुछ कागज काले कर ऐसे,
जिससे आपस में प्यार बढ़े
रहमत चाचा से गले मिलें , 

होली और ईद साथ आकर !
तो रक्त पिपासु दरिंदों को,नरसिंह बहुत मिल जायेंगे !


अनजान शहर सुनसान डगर
कोई साथी नज़र नही आए
पर शक्ति एक दे रही साथ
हो विजय सदा सच्चाई की
कुछ नयी कहानी ऐसी लिख,

जिससे अंगारे ठन्डे हों !
मानवता के मतवाले को, हमदर्द बहुत मिल जायेंगे !

कुछ तान नयी छेड़ो ऐसी
झंकार उठे, सारा मंज़र,
कुछ ऐसी परम्परा जन्में ,
हम ईद मनाएँ खुश होकर
होली पर,मोहिद रंग खेलें,

गौरव हों दुखी,मुहर्रम पर !
इस धर्मयुद्ध में , संग देने , सारथी बहुत मिल जायेंगे !


वह दिन आएगा बहुत जल्द
नफरत के सौदागर ! सुनलें ,
जब माहे मुबारक के मौके,
जगमग होगा बुतखाना भी
मुस्लिम बच्चे , प्रसाद लेते , 

मन्दिर में , देखे जायेंगे !
मंदिर मस्ज़िद में फर्क नहीं,हमराह बहुत मिल जायेंगे !

ये जहर उगलते लोग तुम्हे
आपस में, लड़वा डालेंगे ,
ना हिन्दू हैं,ना मुसलमान
ये मानवता के दुश्मन हैं
चौकस रहना शैतानों से ,

जो हम दोनों के बीच रहें !
तू आँख खोल पहचान इन्हें,जयचंद बहुत दिख जायेंगे !


आतंकवाद के खिलाफ लड़ता हमारा देश, आपस में फूट डालने के प्रयास में लगे कुछ कम अक्ल लोग,और उन्हें हौसला देते उनके मूर्ख अनुयायी, जो अनजाने में जयचंदों के हाथ मजबूत कर रहे हैं ! देश के दुश्मनों द्बारा जगह जगह होते बम विस्फोट ! ऐसे शक और माहौल में ज़रूरत है अपने परिवार के ज़ख्मों पर मलहम लगाने की और उग्रवादियों के हौसले कमज़ोर करने की ! ऐसे में श्रद्धेय राकेश खंडेलवाल ने अपनी कलम से, इस गीत को एक और आशीर्वाद भेजा है !

यों सदा बादलों सा हमने,
अपना मन स्वच्छ रखा साथी 
ले गिरते पंख कबूतर के
दी हमने दीपक को बाती
पर सहनशक्ति को यदि तुमने 
कोई कमजोरी समझा तो
इस अंगनाई के गुलमोहर , अंगारों में ढल जायेंगे !

Saturday, September 20, 2008

वे नफरत बाँटें इस जग में हम प्यार लुटाने बैठे हैं - सतीश सक्सेना

साजिश है आग लगाने की
कोई रंजिश, हमें लड़ाने की
वह रंज लिए, बैठे दिल में
हम प्यार, बांटने निकले हैं!
चाहें कितना भी रंज रखो 
दिखते भी नहीं संवाद नहीं, 
फिर भी तुमसे आशाएं हैं !
जीवन में बड़ी अपेक्षा से , उम्मीद लगाए बैठे हैं !

वे शंकित, कुंठित मन लेकर,
कुछ पत्थर हम पर फ़ेंक गए
हम समझ नही पाए, हमको
क्यों मारा ? इस बेदर्दी से ,
बेदर्दों को तकलीफ  नहीं, 
केवल कठोर, क्षमताएं हैं !
हम चोटें लेकर भी दिल पर, अरमान लगाये बैठे हैं !

फिर जायेंगे, उनके दर पर,
हम हाथ जोड़ अपने पन से,
इक बालहृदय को क्यूँ ऐसे  
भेदा अपने , तीखेपन से  !
शब्दों में शक्ति प्रभावी है 
लेकिन कठोर प्रतिभाएं हैं !
हम घायल होकर भी सजनी कुछ आस जगाये बैठे हैं !

हम जी न सकेंगे दुनिया में
माँ जन्में  कोख तुम्हारी से !
जो कुछ भी ताकत आयी है 
पाये हैं, शक्ति तुम्हारी से !
गंगा ,गौरी, दुर्गा, लक्ष्मी , 
सब तेरी  ही आभाएँ  हैं ! 
हम अब भी आंसू भरे तुझे , टकटकी लगाए बैठे हैं !

जन्मे दोनों इस घर में हम
और साथ खेल कर बड़े हुए
घर में पहले अधिकार तेरा,
मैं, केवल रक्षक इस घर का
भाई बहनों  का प्यार सदा 
जीवन की  अभिलाषायें हैं !
अब रक्षा बंधन के दिन पर,  घर के दरवाजे बैठे हैं !

क्या शिकवा है क्या हुआ तुम्हे
क्यों आँख पे पट्टी बाँध रखी,
क्यों नफरत लेकर, तुम दिल में
रिश्ते, परिभाषित करती हो,
कहने सुनने से होगा क्या 
मन में पलतीं, आशाएं हैं ! 
हम पुरूष ह्रदय,सम्मान सहित,कुछ याद दिलाने बैठे हैं !

श्री राकेश खंडेलवाल (http://geetkalash.blogspot.com/ मेरे अधूरे गीत को इस प्रकार पूरा किया ...उनका आभारी हूँ कि वे मेरी वेदना को अपने शब्दों में व्यक्त करने में सफल रहे !
जब भी कुछ फ़ूटा अधरों से
तब तब ही उंगली उठी यहाँ
जो भाव शब्द के परे रहे
वे कभी किसी को दिखे कहाँ
यह वाद नहीं प्रतिवाद नहीं
मन की उठती धारायें हैं,
ले जाये नाव दूसरे तट, हम पाल चढ़ाये बैठे हैं !

Thursday, September 18, 2008

हमारे संस्कृति सारथी -राज भाटिया !



राज भाटिया जो प्रचार से दूर, पराये देश में रहते हुए भी भारतीय संस्कृति नन्हे-मुन्हे बच्चों को सिखाने के प्रयत्न में लगे हुए हैं ! नन्हे मुन्नों को अपने पास बैठा कर यह भारतीय कल्चर की कहानिया सुनाते हैं, इनकी इस वेब साईट पर जायेंगे तो किसी भी हिंदू का सर श्रद्धा से झुक जाएगा ! महसूस हो जाएगा की हम एक पावन स्थान पर आ गए हैं और वहाँ दिखाई पड़ेंगे बच्चों से घिरे हुए मधुर आचरण की कहानिया सुनाते राज !
और आश्रम भी ऐसा जहाँ गुरुवर नानक, माँ शारदा, ख़ुद केशव विराजमान हैं, वहां एक योगी राज भाटिया अपनी सुगन्धित धूनी रमाये बैठे नज़र आयेंगे !

ब्लाग जगत पर जिन लोगों को अब तक मैं जान पाया उनमे राज भाई ! विदेश में बसे ऋषि प्रतीत होते हैं, ! भारतीय कल्चर को बढ़ाने का ऐसा प्रयत्न और लगाव अब तक मैं और कहीं नही देख पाया ! अचानक पहली बार कोई व्यक्ति इस ब्लॉग पर आएगा तो लगेगा कि जैसे यह स्थान किसी धार्मिक हिंदू का है, मगर कुछ देर में इस संत के विचार जान कर आप समझ जायेंगे कि यह जगह एक विशाल दिल वाले इंसान की है जो मानवता से प्यार करता है , अपने देश से प्यार करता है अपनी संस्कृति से प्यार करने के साथ साथ, हर मज़हब की भी उतनी ही इज्ज़त करता है जितनी हिंदू धर्म की !

"अनवर भाई अगर गलती से किसी का मन भी दुखा दु तो मुझे सारी रात नीद नही आती, जब तक उस से माफ़ी ना मांग लु,ओर गलत को गलत कहने मे कभी भी परहेज नही किया..."

उपरोक्त शब्द राज ने वेब साईट चाट पर अनवर से कह रहे हैं, जबकि आज फैशन बन चुका है अपने बड़प्पन को सिद्ध करने का, अपने ज्ञान ( ज्ञान भाई माफ़ करें ;-) .. उनसे नही कह रहा ) के प्रचार करने का, कोई मौका हमारे कुछ प्रतिष्ठित ब्लागर हाथ से नही जाने देते ! अपनी विद्वता प्रचार का यह नशा, उनके कुछ स्वयं ज्ञानी चेले चेलियों ने उनकी पीठ थपथपा कर और दुगुना कर दिया ! ऐसे ढोल नगाड़े बजते माहौल में कौन हिम्मत करे प्रश्न करने की ?? हर किसी को अपनी इज्ज़त की चिंता रहती है कि सरे बाज़ार मेरी धोती ना खोल दी जाए ....

मैं कल ब्लॉग जगत में, एक साल पुरानी कुछ पोस्ट पढ़ कर कुछ ब्लाग नायकों को समझने की कोशिश कर रहा था जानकर स्तब्ध रह गया कि किस तरह लोग अपनी धुन में दूसरे पक्ष को समझने का प्रयत्न ही नही करते ! और मजेदार बात यह कि हर पक्ष का ग्रुप उनके पक्षः में दोनों हाथों से तलवारें चला रहा है !
चंद "बेस्ट सैलर" किताबें पढ़ कर, उनके उद्धरण देते विद्वान्, यहाँ ब्लाग जगत में विदुर और केशव को सिखाते देखे जा सकते हैं !
इस माहौल में राज भाई के यह शब्द वन्दनीय हैं !

शहरोज भाई के लिखे "पंडित पुरोहितों के बिना उर्स मुकम्मिल नहीं होता" पर दिए गए उनके कमेंट्स
"कट्टरवाद की बीमारी सबसे खतरनाक बीमारी है, दुसरा आग लगाने ओर भडकाने वालो से भी हमे बचना चाहिये, वेसे जब मेरा दोस्त(पकिस्तान से) इस दुनिया से गया तो मेने उस की रुह को जन्नत मे जगह मिले के लिये नमाज भी अदा की ओर इस से मेरे धर्म को तो कोई हानि नही हुयी, बल्कि मुझे आत्मिक शान्ति मिली.
आप ने बहुत ही सुन्दर लिखा हे काश सारे भारत वाषी आप के ख्याल के हो जाये तो हमारे भारत मे ही नही पुरी दुनिया मे कितनी शान्ति हो।"
धार्मिक जनून के इस माहौल में अगर एक हिंदू, किसी मस्जिद में जाकर मत्था टेकता है, तो हिंदू धर्म की इज्ज़त बढ़ाने में इससे बड़ा योगदान और कुछ नही हो सकता, मेरा यह विश्वास है कि किसी हिंदू को मत्था टेकते देख कर मस्जिद में उपस्थित हर मुस्लिम भाई को एक सुखद आश्चर्य और सुकून की भावना ही नहीं पैदा होगी बल्कि तुंरत उसके दिल में उस व्यक्ति विशेष के प्रति आदर सम्मान देने की भावना भी पैदा होगी !

Monday, September 15, 2008

भारतीय महिला जागरण लेखन और ब्लाग प्रतिक्रियाएं -सतीश सक्सेना


हिन्दी ब्लाग जगत में महिलाओं से जुडी हुई समस्यायें पढ़ते समय हमेशा मैंने एक चुभन सी महसूस की जैसे कुछ छुट गया हो या कि इन लेखों में पुरुषों के प्रति कुछ अधिक कड़वाहट है जो कि सच प्रतीत नहीं होती ! पारिवारिक समस्याओं में, घर टूटने की अवस्थाओं में दोषी जितना पुरूष है, स्त्री का आचरण उससे कम दोषी नही है ! इस आपसी कलह में जहाँ पुरूष, पत्नी के प्रति लापरवाही का दोषी माना जाएगा वहीं स्त्री दोषी है, अपने ही परिवार में, अपेक्षाओं को पूरा न होने के कारण, घुट घुट कर रहने के लिए ! इस विषय पर मेरा विचार है कि कुछ लेखक या लेखिकाएं दुराग्रह से ग्रसित होकर होकर लिखते है ! ऐसे लेख और विचार, समाज के साथ कभी न्याय नहीं कर पाते बल्कि उसको पथभ्रष्ट करने में एक भूमिका ही निभाते हैं ! हमारा भारतीय समाज और संस्कार आज भी विश्व में अमूल्य हैं ! अतिथि देवो भवः एवं हमारी स्नेह भावना आज भी विश्व के सामने बेमिसाल हैं ! प्यार और ममता की यही विशेषता, भारतीय स्त्री को विश्व की अन्य महिलाओं से बहुत आगे ले जाती है !

शादी व्यवस्था के फेल होने में एक महत्वपूर्ण कारण, अपनी पुत्रियों को प्यार और पारस्परिक समझ की सही शिक्षा न देना ही है ! मैं यहाँ पर बहू और पुत्री में कोई भेद नही कर रहा ये सिर्फ़ नारी के दो रूप हैं! माता पिता या सास ससुर हम लोग हैं ! मेरा यह भी मानना है कि पुत्र (दामाद) और पुत्री (बहू ) दोनों ही एक दूसरे को सम्मान दें ! परन्तु पुत्री उम्र में छोटी होने के कारण, पहले सम्मान देने की जिम्मेदारी उठाये ! तो कोई घर अपूर्ण नही हो सकता है ! समय है पति पत्नी के संबंधों में, तल्खी कम कराने का प्रयत्न करने का,  न कि जिस आग में हम झुलसे हैं उसमें अपनी बेटियों और बेटों को भी झोंकने का प्रयत्न करें ! हमें अनुभव है तो इस अनुभव का लाभ अपनी बच्चियों को दें जिससे वे नए घर में जाकर एक नए जीवन का संचार करें जिससे दोनों घरों के रिश्ते और मज़बूत बन सकें और सुख दुःख में साथ खड़े होकर एक दूसरे को ताकत दें !

विवाह के बाद पुत्री अपने घर से विदाई लेकर जब नए घर जाती है तो शायद ही कोई निकृष्ट परिवार ऐसा होगा जहाँ

उसका खुशियों भरे वातावरण में स्वागत न किया जाए ! उस वक्त पुत्री के इस नए घर में, हर व्यक्ति अपने बेहतरीन
रूप को, उसके सामने प्रस्तुत करने का प्रयत्न करता है और प्यार जैसे न्योछावर किया जाता है ! इस खुशनुमा माहौल में, नववधू के मन में किसी प्रकार की शंका न होकर सिर्फ़ अपने नए घर में रमने की तमन्ना हो तो मेरा यह विश्वास है कि कोई ताकत इस माहौल में कटुता नही घोल सकती ! जरूरत है कि इस समय मेरी बेटी अपनी शंकाएँ हटा कर नए उत्साह से अपना घर बसाना शुरू करे !
आजकल कुछ लेख इस प्रकार लिखे जा रहे हैं जिससे प्रतीत होता है कि पुरूष नारी को निरीह और कमज़ोर मान कर अत्याचार करता है, मैं अपने परिवेश में एक भी ऐसे परिवार को नही जानता जिसमे नारी को परेशान करने की हिम्मत भी पुरूष कर सके, इसका अर्थ यह बिल्कुल नही कि नारियों को सताया नही जाता ! परन्तु इतनी अधिक घटनाएँ घटीं हो कि हम नव वधुओं को डरा ही दें, यह अतिशयोक्ति लगती है ! मेरा यह विचार है कि अगर अत्याचारों और विचारों के शोषण की बात करें तो यह ५० - ५० प्रतिशत है ! चूँकि यह विषय हमारे बच्चों से सम्बंधित है अतः बहुत नाज़ुक है, तीक्ष्ण सोच और पूर्वाग्रह ग्रस्त लेखनी अनर्थ कर सकती है अतः इस प्रकार के लेखों पर कमेंट्स बिना भली भांति विचारे नहीं देने चाहिए , मगर आदरणीय लेखिकाओं के इन लेखों पर, हमारे प्रबुद्ध साथियों ने, खुले दिल से, बिना गौर किए, मुक्तभाव कमेंट्स देने में कोई कोताही नही की ! ऐसे लेख जिसमें महिला को शोषित एवं पुरूष को शोषक घोषित किया जाए, हमारे बच्चों के मन में गहरा नकारात्मक प्रभाव डालेंगे मगर फिर भी हम (ब्लागर ) अभिभूत हैं, और खुले मन से तारीफ़ ........ वाह! वाह! और जोरदार तालियाँ........ ......मुझे भय है कि यह तालियाँ हमारी बच्चियों का अधिक नुक्सान करेंगी अतः तारीफ़, विषय देख कर की जाए तो अच्छा होगा !

मेरे मत से हर पुरूष पर उंगली नही उठाई जा सकती और न हर नारी को दोषी कहा जा सकता है ! "नारी को दासता से मुक्ति" "पुरूष के शोषण के खिलाफ आवाज़" जैसे जुमले केवल राजनीति के मंच की शोभा बढ़ाने के लिए ही उचित हैं, इस प्रकार के नारे, घर व्यवस्था में शायद ही कभी आधार पा पायें ? शायद कुछ दिन के लिए नारी को  तथाकथित  "दासत्व " का अहसास होता हो मगर समय के साथ यही नारी घर में एकक्षत्र साम्राज्य की मालकिन भी बनती है और उसकी मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता ! मैं ऐसे कई परिवारों को जानता हूँ जहाँ पुरुषों का महत्व है ही नही शायद वे "दासत्व" का जीवन निर्वाह कर रहे हैं और वेहद खुश भी हैं !

लेखन अमर है और कुलेखन आने वाली पीढी को एक नयी राह पर ले जाएगा, और भूतकाल में ऐसा हो चुका है जिसमें अधकचरे लेखकों ने अच्छे भले इतिहास के आधारभूत तथ्यों की मिटटी पलीद कर के रख दी और बाद में इसी लेखन को इतिहास और ऐसे लेखको को महानायक स्वीकार कर लिया गया ! अफ़सोस इस बात का है कि कुछ महिलाएं ख़ुद नही सोच पातीं कि वे क्या कह रहीं हैं, और इससे, समय के साथ, सबसे अधिक नुक्सान उन्ही का होने जा रहा है ! अपने शानदार प्रभामंडल और इन तालियों की गडगडाहट में उन्हें आने वाले समय तथा पीढी का उन्हें शायद ध्यान ही नहीं रहता ! वे शायद भूल जाती हैं कि इस विकृत संरचना की सबसे बड़ी शिकार वे ख़ुद ही होंगी ! और भारतीय पुरूष उस समय भी सर पर हाथ रखकर किंकर्तव्यविमूढ़ होगा या शायद आवेश में नारियों की इस गलती पर, दुखी मन के साथ, तालियाँ ही बजाये !

एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के समय कोई नही सोचता कि हम दूसरे पक्ष के साथ अन्याय कर रहे हैं और अनजाने में भारतीय समाज की मूलभूत संरचना को बिगाड़ रहे हैं !मैं व्यक्तिगत अनुभव से पूरे संयुक्त परिवार की अच्छाइयों की तरफ़ ध्यान दिलाने का प्रयत्न कर रहा हूँ ! आज के समय में संयुक्त परिवार घटते जा रहे हैं मगर भाई-बहन-माता और पिता के प्यार की आवश्यकता तो सभी को है! जब कोई पुरूष पर उंगली उठाता है तो मुझे लगता है वह मेरे पिता को इंगित कर रहा है और यही बात स्त्री के विषय में हो तो मुझे मां दिखाई देती है ! क्या इन लेखिकाओं को यह महसूस नहीं होता कि जिनपर वे उंगली उठा रही हैं वे उनकी भावना से जुड़े, उनके खून से जुड़े अपने ही अभिन्न अंग हैं ! और भावना प्रधान वर्चस्व की मालकिन होने के कारण सबसे अधिक कीमत उन्हें ही देनी पड़ेगी, क्योंकि परिवार का अगला पुरूष उनका अपना बेटा होगा जिसको शिक्षा देने कि जिम्मेवारी उनकी अपनी ही है !

अंत में ताऊ रामपुरिया का एक वाक्य जो उनके नवीनतम लेख से उडाया गया है, "आशा है कि कृपया सकारात्मक रुप मे ग्रहण करेंगे !" ;-)  

Saturday, September 6, 2008

एक पिता का ख़त पुत्री के नाम ! (पांचवां भाग)

कर्कश भाषा ह्रदय को चुभने वाली, कई वार बेहद गहरे घाव देने वाली होती है ! और अगर यही तीर जैसे शब्द अगर नारी के मुख से निकलें तो उसके स्वभावगत गुणों, स्नेहशीलता, ममता, कोमलता का स्वाभाविक अपमान होगा ! और यह बात ख़ास तौर पर, भारतीय परिवेश में, घर के बड़ों के सामने चाहे मायका हो.या ससुराल, जरूर याद रखना चाहिए ! अपने से बड़ों को दुःख देकर, सुख की इच्छा करना व्यर्थ और बेमानी है !

नारी की पहचान कराये
भाषा उसके मुखमंडल की
अशुभ सदा ही कहलाई है
सुन्दरता कर्कश नारी की !
ऋषि मुनियों की भाषा लेकर,

तपस्विनी सी तुम निखरोगी
पहल करोगी अगर नंदिनी , घर की रानी,  तुम्हीं  रहोगी !


कटुता , मृदुता नामक बेटी
दो देवी हैं, इस जिह्वा पर !
कटुता जिस जिह्वा पर रहती
घर विनाश की हो तैयारी !
कष्टों को आमंत्रित करती, 

गृह पिशाचिनी सदा हँसेगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी 
तुम्हीं रहोगी !

उस घर घोर अमंगल रहता
दुष्ट शक्तियां ! घेरे रहतीं !
जिस घर बोले जायें कटु वचन
कष्ट व्याधियां कम न होतीं !
मधुरभाषिणी बनो लाड़िली,

चहुँदिशि विजय तुम्हारी होगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी , घर की रानी, तुम्हीं  रहोगी  !

घर में मंगल गान गूंजता,
यदि 
जिह्वा पर मृदुता होती
दो मीठे बोलों से बेटी  ,
घर भर में दीवाली होती !

उस घर खुशियाँ रास रचाएं 
कष्ट निवारक तुम्हीं लगोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी ! घर की रानी तुम्हीं रहोगी !

अधिक बोलने वाली नारी
कहीं नही सम्मानित होती
अन्यों को अपमानित करके
वह गर्वीली खुश होती है,
सारी नारी जाति कलंकित, 

इनकी उपमा नहीं मिलेगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी ! घर की रानी तुम्हीं रहोगी !

next : http://satish-saxena.blogspot.in/2008/10/blog-post_14.html

Tuesday, September 2, 2008

हिन्दी ब्लाग और पुरूष मानसिकता !

यह लेख मेरे और एक महिला हिन्दी ब्लॉगर के मध्य हुए पत्राचार का हिस्सा है जो यहाँ प्रदर्शित करना आवश्यक समझता हूँ चूंकि सुझाव बेहद सटीक हैं अतः यहाँ देना मेरे विचार से उचित है , शायद समाज के कुछ कार्य आए ! सम्मानित महिला ब्लागर ने मेरे लिखे एक पिता का ख़त पुत्री को ! (प्रथम भाग ) पर एक आपत्ति प्रकट करते हुए कहा था, कि हर पिता पुत्री को ही शिक्षा क्यों देता है ?

----- Original Message -----
From: सतीश सक्सेना
To: रचना सिंह
Sent: Tuesday, September 02, 2008 10:32 AM
Subject :हिन्दी ब्लाग और पुरूष मानसिकता !
On 9/1/08, Rachna Singh wrote:

" its high time we educated our man folk satish "

पुरूष मानसिकता के बदलने के सवाल पर आप ठीक हैं रचना जी ! भारतीय समाज के पारंपरिक रूप में पुरूष का अस्तित्व विश्व समाज के समक्ष टिक नही पायेगा ! पुरूष मानसिकता, (जिसमें अहम्, पुरुषत्व,शक्ति तथा कमजोर को सुरक्षा देना जैसे तत्व प्रधान हैं,) से यह हटा पाना कि " यह मेरी है " बेहद मुश्किल कार्य है, शिक्षित और समझदार की मानसिकता बदल सकती है मगर अधिकतर भारतीय परिवार इस परिप्रेक्ष्य में शिक्षित हैं ही नहीं, न स्कूल से और न सामजिक परिवेश से !

"सतीश बहुत जरुरत है कि केवल बेटी को शालीनता की शिक्षा ना दी जाये"

अगर आप मेरे गीत में लिखी मेरी रचना " एक पिता का ख़त पुत्री को ! (प्रथम भाग ) " के सन्दर्भ में कह रही हैं तो यह कविता एक ऐसे पिता का चिंता वर्णित कर रही है जो पारंपरिक रूप से भारतीय समाज और उसी पुरूष समाज का प्रतिनिधित्व कर रहा है इसमे अपनी जान से भी प्यारी पुत्री को पारस्परिक समझ और सामंजस्य के बारे में समझाता है, कि बेटी २४-२५ वर्ष की कच्ची उम्र में नए लोगों के साथ रहकर उनका दिल कैसे जीत पायेगी !

"अगर हम सब बेटो को भी वही पाठ पढाये जो बेटी को तो भारतीयता को बदनाम करने बाले लोग लोग धीरे धीरे समझदार होंगे "

आप इस बात का समर्थन करेंगी कि विवाह के समय, वर पक्ष का, नयी वधू के प्रति जितना उत्साह होता है उतना ही वधू पक्ष अपनी पुत्री के प्रति चिंतित होता है ! अगर ऐसे में पुत्री शंकित मन से न जाकर , नए उत्साह से अपने नए परिवार को अंगीकार के, और दोनों घरों से शंका तथा चिंता का माहौल हटा कर नया उत्साह भरे तो काफ़ी कष्ट प्रद मौकों से छुटकारा मिल सकता है ! इस पूरी कविता में पुत्री को उसकी ताक़त का अहसास दिलाते हुए प्यार से अपने बड़ों का दिल जीतने की बात कही गयी है ! हाँ इसमे, एक और सच्चाई, जिसको बहुत कम नारी लेखिकाओं ने लिखा होगा, को भी स्थान दिया गया है, नवविवाहित पति की मनोदशा को समझना परिवार के सबसे बड़े सुख के अवसर पर, पति सबसे अधिक तनाव ग्रस्त रहता है और उसकी इस मनोदशा को नववधू और उसके अपने परिवार के लोग समझना भी नही चाहते ! पुरूष के इस पक्ष को नारी वादी आन्दोलन के प्रणेता बिल्कुल महत्व नही देते जहाँ नारी के कष्टों पर खूब हाय तौबा रहती है वहीं नवविवाहित लड़के के बारे में कोई सोचता तक नहीं !


"आप की कविता पर भी मेने यही कहा था मै पुरूष जाति के ख़िलाफ़ नहीं लिखती
मै लिखती हूँ उस मानसिकता के ख़िलाफ़ जहाँ स्त्री को शालीन रह कर सब गंदगी सहने की शिक्षा दी जाती हैं "

आज के समय में, स्त्री को शक्तिशाली बनने की आवश्यकता, समय की पुकार है ! इसके अभाव में देश तो पिछ्डेगा ही, अगली पीढियां भी कुछ सीख नहीं पाएंगी ! भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति, कमोवेश पिछडी जनजातियों की भांति ही है, जो अपनी स्थिति को नियति मान कर खुश हैं ! स्त्री दशा में सूधार हेतु, बदनामी के भय से , शिक्षा देने बहुत कम महिलायें आगे आ पाती है समाज की गालियाँ, "बहुत तेज" होने, तथा गंदे आरोप जिससे वह समाज में खड़ी भी न हो पाये, थोपना आम बात है ! और यह सब, सबके समक्ष करते हुए लोग गर्वित होते हैं, तथा ब्लॉग जगत के मशहूर लोग या तो भाग खड़े होते है या इस पर मौन व्रत धारण कर मन ही मन प्रायश्चित्त करते है ! यह और कुछ नहीं सिर्फ़ हमारी कायरता है !

आप का कार्य सराहनीय है, इस हिम्मत के लिए मै आपका अभिनन्दन करता हूँ !

Monday, September 1, 2008

रमजान मुबारक !

सब  भाई बहनों को,

इस माहे मुबारक पर,

मुबारकबाद !
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