कहीं क्षितिज में देख रही है
जाने क्या क्या सोच रही है
किसको हंसी बेंच दी इसने
किस चिंतन में पड़ी हुई है
जाने क्या क्या सोच रही है
किसको हंसी बेंच दी इसने
किस चिंतन में पड़ी हुई है
नारी व्यथा किसे समझाएं,
गीत और कविताई में !
गीत और कविताई में !
कौन समझ पाया है उसको, तुलसी की चौपाई में !
उसे पता है, पुरुष बेचारा
पीड़ा नहीं समझ पायेगा
पीड़ा नहीं समझ पायेगा
दीवारों में रहा सुरक्षित
कैसे दर्द, समझ पायेगा
पौरुष कब से वर्णन करता,
आयी मोच कलाई में !
आयी मोच कलाई में !
जगजननी मुस्कान ढूंढती , पुरुषों की प्रभुताई में !
पीड़ा, व्यथा, वेदना कैसे
संग निभाएं बचपन का
कैसे माली को समझाएं
सबसे कोमल शाखा झुलसी,
अनजानी गहराई में !
अनजानी गहराई में !
कितना फूट फूट कर रोयी , इक बच्ची तनहाई में !
बेघर के दुःख कौन सुनेगा ,
कैसे उसको समझ सकेगा ?
अपने रोने से फुरसत कब
जो नारी को समझ सकेगा ?
कैसे छिपा सके तकलीफें,
इतनी साफ़ ललाई में !
कैसे छिपा सके तकलीफें,
इतनी साफ़ ललाई में !
भरा दूध आँचल में लायी, आंसू मुंह दिखलाई में !
कैसे सबने उसके घर को
सिर्फ, मायका बना दिया
और पराये घर को सबने
उसका मंदिर बना दिया
कवि कैसे वर्णन कर पाए ,
इतना दर्द लिखाई में !
कैसी व्यथा लिखा के लायी ,अपनी मांगभराई में !
इतना दर्द लिखाई में !
कैसी व्यथा लिखा के लायी ,अपनी मांगभराई में !
बेहद की सशक्त रचना।
ReplyDeleteदिल को बहुत गहरे से छू गयी है। आपकी इस कविता की तारीफ के लिए शब्द नहीं मेरे पास। Sharing on facebook.
ReplyDeleteबेटी के मर्म से जुड़े हर पल,रिश्तों को बहुत अच्छे से रखा - आँखें भर आईं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 22/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 39 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर दिल से निकली कविता ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ...दिल से निकली कविता ।
ReplyDeleteआज भी नारी इस दर्द से मुक्त नहीं है । चंद शिखर पर पहुँच गयीं तो भी उसका इतिहास वहीं से शुरू होकर वहीं खत्म होता है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteअति मार्मिक !
ReplyDeleteबेहतरीन , सर धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सब कुछ उड़ेल देता है
ReplyDeleteकवि दर्द के प्याले से
दिखता नहीं है
सभी को सभी कुछ
देखने के ढंग अपने
अपने निराले से
बहुत सुंदर रचना
सब कह तो दिया :)
बहुत प्रभावी ... नारी मन और उसकी स्थिति और उसकी क्षमता ... सभी कुछ लिख दिया ...
ReplyDeleteप्रकाश पर्व की मंगल कामनाएं ...
बहुत मर्मस्पर्शी।
ReplyDeleteऔर दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत भावभीनी रचना...नये घर को अपना घर बना लेना...जो कल तक गैर थे उन्हें अपना मान अपनों से बढकर प्रेम और सम्मान देना...नारी ही यह कर सकती है...
ReplyDeleteबेहद सशक्त और मार्मिक रचना। सच में उन भावनाओं को शब्दों में ढालना कितना मुश्किल है,पर आपने किया है ---साधुवाद आपको।
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ReplyDeleteसबसे कोमल शाखा झुलसी,अनजानी गहराई में !
कितना फूट फूट कर रोयी,इक बच्ची तनहाई में !
मर्म को स्पर्श करती सुरचना ।
दीपावली की अशेष शुभकामनाएं !
गढ़वाली गीत, संगीत व गायन में अद्भुत पकड़ रखने वाले है हमारे गढ़वाल के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं भाई नरेन्द्र सिंह नेगी जी। उनकी एक बेहतरीन रचना है जिसकी दो पंक्तियां इस प्रकार है;
ReplyDelete‘कैमा छ लोळा तु खैरी लगाणी,
कैका मनै की कैन नि जाणी। कैमा छ लोळा.........
पूष जडों मां निठाणंेन्द घिण्डु़ड़ी,
स्वीली पिड़ा मां बिबलान्द घुघुति।
कैन नि पूछि दुख्यारि हिलांस गीत खुदेड़ किलै रान्दी गाणी।
कैका मनै की कैन नि जाणी।......
अभिप्राय है कि ‘हे नादान! तू किसके सामने अपनी व्यथा उड़ेल रहा है। किसी के मन की कोई जान पाया है क्या।
पूष के जाड़ों में ठण्ड से कांपते हुये गौरेया की पीड़ा कौन समझा है।
कोई भी प्रसव वेदना में तड़प् रही फाख्ते की चीख को नहीं सुनता है।
किसी ने भी यह नहीं पूछा कि दुःखी मन से हिलांस(चातक) क्यों विरह गीत गाता रहता है......
आपकी कविता भी कुछ ऐसे ही भाव पैदा करती है। बहुत सुन्दर रचना है यह। आभार।
अनुपम रचना.....आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं
रचना के भाव मन को छू गए बहुत सुन्दर रचना है !
ReplyDeleteपरिवार सहित आप सभी को मंगलमय हो दीपावली !
Very Beautiful creation come out from heart. Only a poetic heart can realise others' pains. Regards.
ReplyDeleteBahut marmsparshi...aansu aa gaye ..socha tha diwali ki badhaayi dungi..par in shabdo ka dard antas tak utar aaya... Yahi naari jiven ki niyati hai... Shashakt rachna... Diwali ki badhayi sweekar karein...mangalkamnaayein !!
ReplyDeleteBahut marmsparshi...aansu aa gaye ..socha tha diwali ki badhaayi dungi..par in shabdo ka dard antas tak utar aaya... Yahi naari jiven ki niyati hai... Shashakt rachna... Diwali ki badhayi sweekar karein...mangalkamnaayein !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....एक बेटी या बेटी का पिता ही इसे लिख और समझ सकता है....
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी....
सादर
अनु
प्रभावशाली रचना, बधाई आदरणीय
ReplyDeleteनवाकार
नारी व्यथा किसे समझाएं, गीत और कविताई में !
ReplyDeleteकौन समझ पाया है उसको, तुलसी की चौपाई में !
आपका काव्य मंदिर इसकी अनोखी सीढ़ियां, माननीय सतीश जी, आपकी कवितायेँ और आप जिस तरह से जीवन को स्पर्श करते हैं, वो जीवन की समीक्षा है,
आपके भावों को मेरी अंजलि।
आपका
स्वागत है आपका विवेकजी !
Deleteकाव्य के प्रति आपका स्नेही अनुराग आपकी संवेदनशीलता का परिचायक है , आप जैसे विद्वान के यह शब्द, निस्संदेह मेरी रचनाओं को और प्रभावी बनाने में मददगार होंगे !!
आभार आपका !!
अच्छी रचना!
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