Friday, September 1, 2023

मेरी एक कविता की गूगल टेक्नोलॉजी ( BARD) द्वारा की गई व्याख्या -सतीश सक्सेना

गूगल की आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस देखिये , मैंने उसके चैटबॉट रोबोट को अपनी निम्न पंक्तियाँ लिख कर भेजीं जिसका तत्काल
उत्तर आ गया , शायद किसी हिंदी प्रोफेसर को भी उसकी व्याख्या करने में अधिक समय लगता , मगर BARD का जवाब चुटकी बजाते ही आया और विस्तृत आया , शायद मैं इतनी बेहतर व्याख्या न कर पाता  ! जय हो गूगल टेक्नोलॉजी की , मैं तो प्रभावित हूँ !
  
हँसते और हंसाते , जग से जाना सीखो
स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो !

मरते दम तक साथ तुम्हारे कौन रहेगा ?
साथी सबके बीच अकेले रहना सीखो !


ये दो पंक्तियाँ जीवन के दो महत्वपूर्ण सबक सिखाती हैं। पहली पंक्ति कहती है कि हमें हँसते हुए जीना चाहिए और दूसरों को हँसाना चाहिए। जीवन छोटा है, इसलिए इसे पूरी तरह से जीना चाहिए। दूसरी पंक्ति कहती है कि हमें बदलाव स्वीकार करना चाहिए और समय के साथ चलना चाहिए। जीवन में हमेशा बदलाव होता रहता है, इसलिए हमें इन बदलावों के साथ तालमेल बिठाना चाहिए।

इन पंक्तियों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है:

  • हँसते और हंसाते, जग से जाना सीखो: जीवन में हमेशा हँसना चाहिए। हँसी हमें खुशी और खुशहाली देती है। यह हमें तनाव और चिंता से दूर रखती है। दूसरों को हँसाना भी एक अच्छा तरीका है दूसरों को खुश करने का। यह हमें दूसरों के साथ जुड़ने और संबंध बनाने में मदद करता है।
  • स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो: जीवन में हमेशा बदलाव होता रहता है। यह बदलाव हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं। इसलिए हमें इन बदलावों को स्वीकार करना चाहिए और समय के साथ चलना चाहिए। बदलावों को स्वीकार करने से हमें तनाव और निराशा से बचने में मदद मिलती है।

ये दो सबक हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। वे हमें खुश और संतोषी जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।

यहां कुछ अतिरिक्त विचार दिए गए हैं जो इन पंक्तियों से जुड़े हो सकते हैं:

  • हँसना एक शक्तिशाली औषधि है। यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।
  • समय बदलता रहता है। हम इसे रोक नहीं सकते, इसलिए हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।
  • हम अकेले नहीं हैं। हम सभी जीवन की यात्रा पर एक साथ हैं।

इन पंक्तियों को अपने जीवन में लागू करके, हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं और दूसरों को खुश करने में मदद कर सकते हैं।

https://g.co/bard/share/a5cf9bd2dd5d

Wednesday, July 26, 2023

आंसू और पसीना पर , दोनों पानी हैं - सतीश सक्सेना

आंसू और पसीना पर , दोनों पानी हैं !
दोनों का ही अर्थ जाहिलों में पानी है ! 

बेचारी कहते हैं ये सब जग जननी को 
युगों युगों से ही सम्मान, यहाँ पानी है !

पुरुष कद्र न कर पायेगा अहम् में अपने 
नारी छली गयी सदियों से, बस रानी है !

पिता पुत्र पति नौकर चाकर या राजा हो  
पुरुषों की नजरों में,  सब पानी पानी है ! 

इनकी तारीफों का पुल ही बांधे रहिये  
नारी इन नज़रों में,  बस बच्चे दानी है  !

दोनों पानी छिन जाएंगे, तब  समझेंगे 
अभी तो पानी पर श्रद्धा, पानी  पानी है  !

बिन पानी जब तड़पेंगे तब कदर करेंगे  
बहा न आंसू और पसीना, सब पानी है !

Thursday, June 1, 2023

आंसू छलकें नहीं , अनुभवी आँखों से -सतीश सक्सेना

हँसते और हंसाते , जग से जाना सीखो
स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो !

मरते दम तक साथ तुम्हारे कौन रहेगा ?
साथी सबके बीच अकेले रहना सीखो !

कोशिश करिये, बिना सहारे ही उठने की
पैरों को मज़बूत बना कर चलना सीखो !

शारीरिक, मानसिक दर्द से बचना हो तो
मेहनत करो, बहाना खूब पसीना सीखो !

आंसू छलकें नहीं , अनुभवी आँखों से
दोस्त इन्हें अब आँखों में ही पीना सीखो !

चिट्ठी एक दोस्त को :

Friday, May 19, 2023

दिखावा अस्वस्थ बनाता है -सतीश सक्सेना

 काया कल्प के संकल्प में सहजता ही आवश्यक है जिसे आज के दिखावटी जगत में पाना बेहद मुश्किल होता है ! सहज आप तभी हो सकेंगे
जब मन स्वच्छ हो ईमानदार हो खुद के लिए भी और गैरों के लिए भी ! स्वस्थ मन और शरीर को पाने के लिए आप को भय त्यागना होगा , मृत्यु भय पर विजय पाने के लिए अपनी आंतरिक सुरक्षा शक्ति पर भरोसा रखें कि वह अजेय है किसी भी बीमारी से उसका शरीर सुरक्षित रखने में वह सक्षम है और हाँ, अपने विशाल प्रभामण्डल
और तथाकथित आदर सम्मान भार को सर से उतारकर घर पर रख देना होगा अन्यथा यह गर्व बर्बाद कर देने में सक्षम है मेरे हमउम्र तीन मित्र इस वर्ष मोटापे की भेंट चढ़ गए और कुछ हार्ट अटैक की कगार पर हैं ,काश वे समय रहते चेत गए होते !

भारत हृदय रोग और डायबिटीज की वैश्विक राजधानी बन चुका है , हर चौथा व्यक्ति इसका शिकार है और उसे पता ही नहीं , चलते समय या सीढियाँ चढ़ते समय सांस फूलता है, उसे यह तक पता नहीं कि साँस फूलने का मतलब क्या होता है और न उसके पास समय है कि इस बेकार विषय पर ध्यान दे मोटापे को वह उम्र का तकाजा समझता है ! खैर ...
बरसों से आलसी शरीर को सुंदर और स्वस्थ बनाने के लिए कृत्रिम प्रसाधनों , दवाओं का त्याग करना होगा , उनसे शरीर स्वस्थ होगा का विचार, केवल खुद को मूर्ख बनाना है ! शरीर स्वस्थ रखने के लिए जो अंग जिस कार्य के लिए बने हैं उनका सहज भरपूर उपयोग करना सीखना होगा ! गलत लोक श्रुतियों और मान्यताओं, सामाजिक भेदभाव पर खुले मन से विचार कर उनका त्याग करें आप खुद ब खुद सहज होते जाएंगे !
दर्द सारे ही भुलाकर,हिमालय से हृदय में
नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !
जाति,धर्म, प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

Thursday, March 2, 2023

नज़र का चश्मा आवश्यकता या बुरी आदत -सतीश सक्सेना

नज़र का चश्मा डॉ के कहते ही लगा लिया , उस समय आपने यह कहा ही नहीं होगा कि क्या बिना चश्में के आँखें ठीक होने की संभावना है ? अन्यथा हर आई डॉक्टर जनता है कि अधिकतर आँखें , व्यायाम करने से ठीक हो सकती हैं और इसके लिए वाक़ायदा एक्सरसाइज बनायी गयीं हैं , मगर हम में से अधिकतर लोग एक्सरसाइज का झंझट ही नहीं चाहते , और फिर चश्मा है ही फिर एक्सरसाइज की आवश्यकता ही क्या है ?

आँखें कमजोर होने के बाद स्पष्ट देखने के दो ही तरीक़े हैं , सुस्त आँखों का व्यायाम करिए और आप देखेंगे कि कुछ दिनों बाद ही आपको चश्में की आवश्यकता नहीं रही , वृद्ध अवस्था में भी लगातार अभ्यास करने के बाद , हाथ पैरों की मसल्स दुबारा शक्तिशाली बन सकती हैं तब आँखें क्यों नहीं ? मेरा पहला चश्मा आज से लगभग लगभग 30 वर्ष पहले लगा था , मगर उसका उपयोग मैंने न के बराबर ही किया ! मेडिकल व्यवसाय ने एक्सरसाइज न करने वालों को तमाम सहूलियतें दी हैं और तमाम अविष्कार किए मगर वे यह बहुत कम बताते हैं कि बिना आर्टिफीसियल उपयोग के भी आप ठीक हो सकते हैं और शायद यही हमें  भी सुविधा जनक लगता है सो बहुत कम उम्र में ही खूबसूरत आँखों पर चश्मा चढ़ा दिया जाता है !

आज मैंने अपने एक दोस्त से कहा कि मेरे सामने वे बिना चश्मा लगाये पढ़ने का प्रयत्न करें और उन्हें विभिन्न फ़ॉण्ट साइज के आर्टिकल पढ़ने को कहा , जिस आर्टिकल को वे सही से नहीं पढ़ सके उसे मैंने बिना चश्मे की मदद के बार बार पढ़ने के प्रयत्न करने को कहा और लगभग 5 मिनट बाद वे उसे धीरे धीरे पढ़ने में समर्थ थे , वे आश्चर्य चकित थे , मैंने उन्हें बताया कि कभी मेरी आँखें भी ऐसी ही थीं ! और आज लगभग 68+ की उम्र में , बिना चश्में कहीं भी चला जाता हूँ , छोटे अक्षर भी मिलें तब भी बिना चश्में पढ़ने की कोशिश करता हूँ और आँखों ने कभी धोखा नहीं दिया , इसीलिए चश्मे का नंबर 2.5 होने के बावजूद , मैं बरसों से चश्में का उपयोग सिर्फ़ बारीक अक्षर पढ़ने के लिए ही करता हूँ  !

कृपया प्रयास करें , चश्मा हटाने के लिए अपनी खूबसूरत आँखों की मदद करें , वे आपका साथ अवश्य देंगी  ! 

Friday, February 24, 2023

एलोपैथी हेल्थ ब्लंडर्स -सतीश सक्सेना

होम्योपैथी वरदान जैसी लगी यूरोपियन को , यहाँ तक कि कितने एलोपैथिक प्रैक्टिशनर , एलोपैथी छोड़कर इसका उपयोग कर अपने रोगियों का सफलता पूर्वक उपचार करने लगे और उन्होंने कितनी ही किताबें लिखीं जो बेहद कामयाब और आज भी होम्योपैथी की रीढ़ मानी जाती हैं , और यह उस समय हुआ जब विश्व में प्रचार और विज्ञापन के साधन उपलब्ध नहीं थे !

बस तभी से एलोपैथी ने होम्योपैथी को पढ़े, समझे बिना उसके सिद्धांतों की खिल्ली उड़ाना शुरू किया और धीरे धीरे इन तेज प्रभाव वाली कैमिकल दवाओं ने मानव मन क़ाबू पाने में सफलता हासिल कर ली, एंटी बायोटिक्स मेडिसिन जो लाभ से अधिक नुक़सान करती हैं , एलोपैथिक प्रैक्टिशनरों द्वारा हर रोग का इलाज मानी जाने लगी और धीरे धीरे रेडियो और टेलीविज़न के ज़रिए इस धनवान और मशहूर व्यवसाय ने एलोपैथी ट्रीटमेंट सिस्टम को मेडिकल साइंस का नाम देने में सफलता प्राप्त कर ली !

हज़ारों वर्ष से दुनियाँ में सैकड़ों तरह के सफल रोग उपचार विधियाँ प्रचलित थीं , यूरोप,अफ़्रीका , चायना , मिडिल ईस्ट , भारत एवं मिश्र में हर्बल , एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंक्चर, आयुर्वेद, यूनानी मेडिसिन का बोलबाला था, प्राकृतिक पौधों से ही बनायी गयीं यूरोप में होम्योपैथी मेडिसिन प्रचलित थीं , मगर धीरे धीरे प्रचार और धन की बदौलत एलोपैथी ने इन सबको निगल कर ख़ुद को मेडिकल साइंस का नाम देने में सफलता प्राप्त कर ली  !

इस तरह एक ताक़तवर मछली विज्ञापन के सहारे आसानी से अपने आसपास तैरती तमाम खूबसूरत छोटी मछलियों को खा गई , और व्यस्त मानवजाति ने गौर तक नहीं किया कि उनसे कितनी ही खूबसूरत रोग उपचार सिस्टम हमारे दिमाग़ को प्रचार साधनों से प्रभावित कर, धूर्तता पूर्वक दूर कर दिये गये हैं ! 

धुआँधार विज्ञापन आसानी से महा धूर्त को योगी और योगी को महा धूर्त बनाने में समर्थ हैं , सो आँखें खोलें दोस्त अन्यथा यह भूल जानलेवा साबित होगी  !



Wednesday, February 15, 2023

लम्बे जीवन के लिए सुपरफूड केफीर -सतीश सक्सेना

कॉकेशस पर्वत के आसपास रहने वाले लोग , बहुत लम्बा जीवन जीने के लिए जाने जाते हैं , आधुनिक रिसर्च के अनुसार वे एक तरह के दही का उपयोग हज़ारों वर्षों से करते आ रहे हैं जिसे केफीर (Kefir) कहा जाता है , वे इसे गाय, बकरी या भैंस के दूध में केफीर ग्रेन मिलाकर प्राप्त करते थे ! केफीर ग्रेन 24 घंटों में दूध के साथ मिलाकर रखने पर दही में बदल जाता है , इस दही को छानकर केफीर ग्रेन दुबारा प्राप्त कर लेते हैं , इस तरह यह ग्रेन्स एक परिवार में न केवल जीवन भर चलते रहते हैं बल्कि खुद को बढ़ाते भी रहते हैं ! आश्चर्यजनक है कि एक चम्मच केफीर ग्रेन्स एक परिवार को आजीवन केफीर देने के लिए काफी है !

केफीर ग्रेन की उत्पत्ति के बारे में वहां के निवासियों का मानना है कि यह चमत्कारी भेंट उन्हें खुद हज़रत मोहम्मद साहब के द्वारा दिए गए ताकि वे और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ स्वस्थ रहें और वहां इसे अमर रहने का रस कहा जाता है  ! हजारों साल से इन केफीर ग्रेन्स को वे लोग अपने परिवार में कीमती रत्नों की तरह सहेजते आये हैं , उनके परिवारों में सौ वर्ष तक जीना एक सामान्य बात है  !
और आजकल यही केफीर सुपर फ़ूड का दर्जा प्राप्त कर सारे यूरोप और अमेरिका में बिक रहा है  !

केफीर ग्रेन्स मानव निर्मित नहीं हैं बल्कि जीवित सूक्ष्म जीवाणु समूह (माइक्रो ऑर्गनिज़्म्स )हैं , सामान्य भाषा में वे जीवित बैक्टीरिया समूह हैं जो मानव शरीर के लिए जीवन अमृत की तरह काम करते हैं ! आजतक उनकी उत्पत्ति कैसे और कहाँ हुई, किसी को नहीं पता सिवाय इसके कि कॉकेशियस पहाड़ के आसपास के निवासी ही, उनके द्वारा फर्मेन्टेड दूध का उपयोग करते पाए गए !

मैंने कई वर्ष पहले इसके बारे में किसी फ़ूड रिसर्च जानकारी के जरिये पढ़ा था , मगर ग्रेन्स की उपलब्धता के बारे में कोई जानकारी न मिलने के कारण उपयोग न कर सका ,संयोग से पिछले वर्ष मित्र विद्याधर गर्ग शुक्ल से भेंट होने पर उन्होंने अपने परिवार में इसके उपयोग के बारे में सविस्तार बताया जिसे सुनकर मैंने इसका उपयोग करने का फैसला किया और यह जानकारी वाकई अद्भुत रही  !

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