भरी आँखें रुलायेंगी तेरी, ताजिन्दगी मुझको ,
तुम्हारी याद के संग आयेगी शर्मिंदगी मुझको !
सहज रहने नहीं देगी, तेरी मौजूदगी मुझको !
न मिलने की तमन्ना शेष न दीदार की ख्वाहिश
बहुत तकलीफ ही देगी,तुम्हारी बंदगी मुझको !
जमाने भर से लड़ने में कभी नज़रें न नीची कीं
कहीं मज़बूर न कर दे, तेरी बेपर्दगी मुझको !
खुदा के सहज बन्दे को, दिखावे ही नहीं आते,
न जाने क्यों लगे अच्छी मेरी आवारगी मुझको !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 12 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteकिरण आर्य जी ने आज से ब्लॉग बुलेटिन पर अपनी पारी की शुरुआत की है ... पढ़ें उन के द्वारा तैयार की गई ...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "मन की बात के साथ नया आगाज" , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह एक और नायाब कृति ।
ReplyDeleteखुदा के सहज बन्दे को, दिखावे ही नहीं आते,
ReplyDeleteन जाने क्यों लगे अच्छी मेरी आवारगी मुझको !
एक से एक सभी नायाब शेर !
जमाने भर से लड़ने में कभी नज़रें न नीची कीं
ReplyDeleteकहीं मज़बूर न कर दे, तेरी बेपर्दगी मुझको !
वाह! वाह!
सतीश जी ,बहुत बढ़िया लगी यह रचना आपकी.
जमाने भर से लड़ने में कभी नज़रें न नीची कीं
ReplyDeleteकहीं मज़बूर न कर दे, तेरी बेपर्दगी मुझको !
वाह वाह बहुत शानदार प्रस्तुति दिली दाद हाजिर है
हमें अरसा हुआ दुनियां के मेलों में नहीं जाते
ReplyDeleteसहज रहने नहीं देगी, तेरी मौजूदगी मुझको !
..वाह! बहुत सुन्दर ...
अद्भुत भाव के साथ सुन्दर रचना है आपकी ,जहाँ हर पंक्तियाँ अनेकों अर्थ दे रही है।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना ।
Deleteबहुत सुंदर रचना ।
Deleteसादगी भरी आवारगी, हम तो तरस गये।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 28 जनवरी 2016 को में शामिल किया गया है।
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
खूबसूरत ग़ज़ल । लेकिन याद के साथ शर्मिंदगी भला क्यों ?
ReplyDeleteAwesome...
ReplyDeleteAwesome..
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