Sunday, November 30, 2014

मगर हृदय ने पढ़ लीं कैसे, इतनी सदियाँ आँखों में -सतीश सक्सेना

अरसे बाद मिली हैं नज़रें, छलके खुशियां आँखों में !
लगता खड़े खड़े ही होंगी, जीभर बतियाँ आँखों में !

बरसों बाद सामने पाकर, शब्द न जाने कहाँ गए !
मगर हृदय ने पढ़ लीं कैसे इतनी सदियाँ आँखों में ! 

इतना भी आसान न होता, गुमसुम दर्द भुला पाना !
बहतीं और सूखती रहतीं, कितनी नदियां आँखों में !

सावन की हरियाली जाने कब से याद न आयी है ,
तुम्हें देख लहरायीं कैसे, इतनी बगियां आँखों में !

इतना हंस हंस बतलाते हो कितना दर्द छिपाओगे !
कब से आंसू  रोके बैठीं, गीली गलियां आँखों में ! 



24 comments:

  1. दिल को छू आँखों से छलक जाये,ऐसी अभिव्यक्ति ---बेमिशाल

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  2. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल,भावों से लबालब।

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  3. आँखें सब कहने में सक्षम

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  4. बेहतरीन गज़ल । चरैवेति -----

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  5. शब्द भावों का सुन्दर तालमेल सुन्दर गजल !

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  6. वाह ! बिछुड़े हुओं के मिलन की सारी बातें आपने इन पंक्तियों में कितनी खूबसूरती से कह डाली हैं...बधाई !

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  7. इतना हंस हंस बतलाते हो कितना दर्द छिपाओगे !
    कब से आंसू रोके बैठीं , गीली गलियां आँखों में !
    ..सच अंदर दर्द छुपा है तो वह छलक ही जाता है..
    मर्मस्पर्शी रचना ..

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  8. इतना हंस हंस बतलाते हो कितना दर्द छिपाओगे !
    कब से आंसू रोके बैठीं , गीली गलियां आँखों में !
    ..सच अंदर दर्द छुपा है तो वह छलक ही जाता है..
    मर्मस्पर्शी रचना ..

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  9. समझो न आँखों की भाषा पिया...

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  10. इतना हंस हंस बतलाते हो कितना दर्द छिपाओगे !
    कब से आंसू रोके बैठीं , गीली गलियां आँखों में !
    ...वाह...दिल को छूती लाज़वाब प्रस्तुति...

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  11. बेटे पानी जैसे पैसे बहा रहे हैं मदिरा में
    माता लिये हुए बैठी है सूखी नदिया आँखों में!

    दिल को छू लिया आपने भाई साहब और मेरे मुख से भी यह पंक्तियाँ निकल पड़ीं!!

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  12. बहुत सुन्दर


    अरसे बाद मिली हैं नज़रें,छलके खुशियां आँखों में !
    लगता खड़े खड़े ही होंगीं, जीभर बतियाँ आँखों में !

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  13. इतना भी आसान न होता, गुमसुम दर्द भुला पाना !
    बहतीं और सूखती रहतीं,कितनी नदियां आँखों में !
    वाह ... लाजवाब पंक्तियाँ .... सच में दर्द को भुलाना आसान नहीं होता ...

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  14. बहुत बढ़िया ....यादें मरती हैं क्या कभी .....सादर नमस्ते भैया

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  15. तना हंस हंस बतलाते हो कितना दर्द छिपाओगे !
    कब से आंसू रोके बैठीं , गीली गलियां आँखों में !
    bahut sunder
    rachana

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  16. इतना भी आसान न होता, गुमसुम दर्द भुला पाना !
    बहतीं और सूखती रहतीं,कितनी नदियां आँखों में !
    ख़ूबसूरत और भावपूर्ण पंक्तियाँ...बेहद उम्दा, बधाई!!

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  17. आँखें मन का दर्पण हैं - सब कह देती हैं कोई हो अगर झाँकनेवाला !

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    1. इतना हंस हंस बतलाते हो कितना दर्द छिपाओगे !
      कब से आंसू रोके बैठीं , गीली गलियां आँखों में !

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  18. इतना हंस हंस बतलाते हो कितना दर्द छिपाओगे !
    कब से आंसू रोके बैठीं , गीली गलियां आँखों में !
    बेहद मार्मिक.,.,,

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  19. कोई तो देखे उन गीली आँखों को...बहुत बढ़िया...

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  20. इतना भी आसान न होता, गुमसुम दर्द भुला पाना !
    बहतीं और सूखती रहतीं,कितनी नदियां आँखों में !

    सावन में बागों के झूले , कब से याद न आये थे
    तुम्हें देख लहरायीं कैसे, इतनी बगियाँ आँखों में ......Waah !bahut khoobsoorat bhavo s bhari dil ko hole s chu jati h panktiya....

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  21. आँखें पढ़ने और कविता गढ़ने का अवसर होना चाहिए ।
    बहुत खूबसूरत लिखा है ।सुंदर कविता

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  22. रसों बाद सामने पाकर, शब्द न जाने कहाँ गए !
    मगर हृदय ने पढ़ लीं कैसे इतनी सदियाँ आँखों में !
    सावन की हरियाली जाने कबसे याद न आयी है ,
    तुम्हें देख लहरायीं कैसे, इतनी बगियाँ आँखों में !
    मर्म को छूती लाजवाब रचना सतीश जी | क्या कहूं लिखने की क्षमता नहीं मेरी

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- सतीश सक्सेना

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