Sunday, May 10, 2015

कोई माँ न झरे ऐसे जैसे,आंसू से भरी बदली जैसी !-सतीश सक्सेना

यह एक संपन्न भरेपूरे घर की वृद्धा का शब्द चित्र है , जो कहीं दूर से भटकती एक बरगद की छाँव में अकेली रहती हुई ,अंतिम दशा को प्राप्त  हुई ! भारतीय समाज के गिरते हुए मूल्य हमें क्या क्या दिन दिखलायेंगे ? 

अच्छा है बुढ़िया चली गयी,थी थकी हुई बदली जैसी
दर्दीली रेखाएं लेकर, निर्जल, निशक्त, कजली  जैसी !

बरगद के नीचे ठंडक में कुछ दिन से थी बीमार बड़ी !
धीमे धीमे बड़बड़ करते,भूखी प्यासी कुम्हलायी सी !   

कुछ  बातें करती रहती थी, सिन्दूर,महावर, बिंदी से  
इक टूटा सा विश्वास लिए,रहती कुछ दर्द भरी जैसी !

भूखी पूरे दिन रहकर भी, वह हाथ नहीं फैलाती थी,
आँखों में पानी भरे हुए,दिखती थी अभिमानी जैसी ! 

कहती थी, उसके मैके से,कोई लेने,आने वाला है ! 
पगली कुछ बड़ी बड़ी बातें,करती थीं महारानी जैसी !

अपनी किस्मत को कोस रहीं, अम्मा रोयीं सन्नाटे में  
कुछ प्रश्न अधूरे से छोड़े,बहती ही रही पानी जैसी !

कल रात हवा की ठंडक में,कांपती रहीं वे आवाजें !
कोई माँ न झरे ऐसे जैसे,आंसू से भरी बदली जैसी !

35 comments:

  1. जिसकी होती है
    उसे कुछ नहीं होता
    और कोई कुछ
    ऐसा लिख देता है
    जैसे सारा दर्द
    हर माँ का खुद
    शिव बन कर
    पी लेता है !

    लाजवाब !

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  2. अपनी किस्मत को कोस रहीं,अम्मा रोई सन्नाटे में
    कुछ प्रश्न अधूरे से छोड़े ,बहती ही रही पानी जैसी !

    अत्यंत ही मार्मिक और सशक्त रचना.

    रामराम.

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  3. कल रात हवा की ठंडक में,कांपती रहीं वे आवाजें !
    कोई माँ न झरे ऐसे जैसे,आंसू से भरी बदली जैसी !
    हृदयस्पर्शी भाव ...!!मार्मिक!!

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  4. बहुत सुन्दर आपको वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं

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  5. " अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी ।
    ऑचल में है दूध और ऑखों में पानी । "
    मैथिली शरण गुप्त

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  6. अपनी किस्मत को कोस रहीं,अम्मा रोई सन्नाटे में
    कुछ प्रश्न अधूरे से छोड़े ,बहती ही रही पानी जैसी ! marmik ......har jagah yahi hal hai ...

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  7. शब्द, भाव इतने मार्मिक है तो जिसपर बिती उसका क्या हाल रहा होगा :( ?

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  8. प्रभावी .... मार्मिक ... अंतस को छूने वाली रचना ...

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  9. आते जाते ऐसे किरदार दीखते हैं पर हम उनकी ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते..कोई अपने आप से बातें करता हुआ फटेहाल वृद्ध कभी कोई पागल सी लगती औरत...कभी वे भी अपनों के साथ रहे होंगे कभी उन्होंने भी सपने देखे होंगे..आपकी कविता ने कई किरदारों को सामने लाकर खड़ा कर दिया

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  10. जाने क्यों इन सबमें अक्सर अपना भी अक्स नज़र आने लगता है. जीवन की कहानी ...

    अपनी किस्मत को कोस रहीं,अम्मा रोई सन्नाटे में
    कुछ प्रश्न अधूरे से छोड़े ,बहती ही रही पानी जैसी !

    बेहद मर्मस्पर्शी.

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  11. सपने थे, अपने थे
    विश्वास के रुपहले बादल थे
    भरा था स्वाभिमान
    उम्मीदें थीं बेशुमार
    कोई आया तो - मौत ही सही !

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  12. speechless...
    having teary eyes...
    sad and bad...

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    1. यही उद्देश्य था इसका पूजा कि लोग इस कष्ट को महसूस करें !

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  13. teary eyes... n so speechless...
    sad and bad :(

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  14. विवश जीवन का ऐसा समापन हृदय दहला देता है !

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  15. सतीश भाई ,
    आपकी कवितायेँ शब्दशः चाहे जैसी भी हों ! काव्य पंडित उनके विन्यास पर जो भी कमेन्ट करें...पर हमें उनमें से एक बेहतर और संवेदनशीन इंसान नमूदार होता दिखाई देता है ! अगर आप सृजन कर्म नही करते तो हम आपश्री के व्यक्तित्व को परखने में भूल भी कर सकते थे ! कवितायें आप लिखते हैं ऐसा लोग सोचते होंगें पर हमारे लिये ये कवितायें आपको लिख लिख जाया करती हैं !

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    1. आभार गुरु देव ,
      आपकी इस टिप्पणी से मैं अपने आपको सफल हुआ मानता हूँ , यही सोंचा था कि मेरे द्वारा जो भी लिखा जाए उसका उद्देश्य यश प्राप्ति न होकर अगर लोगों के दिल को स्पर्श कर जाये तो शायद वे इसे याद रखें और समाज की विषमताओं को कम करने में कुछ योगदान कर सकूं !
      मुझे पता है कि ब्लॉग जगत में लिखते हुए मुझे बहुत कम पाठक मिलेंगे मगर यह लेखन मेरे बाद भी मिटेगा नहीं यहीं संतोष रहेगा ! :)

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  16. हम कितना ही इंकार करें , परिवारों में उजड़ते प्रेम की हकीकत है ये !

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  17. वृद्धाओं के प्रति माँ जैसे सम्मान सा व्यवहार रहे सबका।

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  18. कहा था न मैंने एक बार कि आपकी दूसरी इनिंग ज़बर्दस्त रही है। और आज अअपके इस गीत ने कहाँ छुआ है बता नहीं सकता।प्रणाम आपको।

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    1. शुक्रिया सलिल भाई ,
      बिना पढ़े कमेन्ट देने वाले, ब्लोगरों की इस भीड़ में सलिल जैसे विद्वान् भी मुझे पढ़ते हैं मेरे लिए यह कम गौरवशाली नहीं, आपके शब्द मुझे याद हैं और वे यकीनन प्रेरणा दायक हैं !
      आभार भाई !!

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  19. ह्रदय स्पर्शी सृजन !!!

    अपनी किस्मत को कोस रहीं,अम्मा रोई सन्नाटे में
    कुछ प्रश्न अधूरे से छोड़े ,बहती ही रही पानी जैसी !

    कल रात हवा की ठंडक में,कांपती रहीं वे आवाजें !
    कोई माँ न झरे ऐसे जैसे,आंसू से भरी बदली जैसी !

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  20. samaj ki vasvikta ko darshati hui rachna ,ek karun gatha

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  21. लगता था रूखे हाथों में,कभी कंगन चूड़ी होती थीं !
    विश्वास नहीं होता, लेकिन बातें करती नानी जैसी !

    बहुत सुंदर .... मेरी कविता समय की भी उम्र होती है पर आपका स्वागत है।

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  22. बहुत सुंदर .... मेरी कविता समय की भी उम्र होती है पर आपका स्वागत है।

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  23. बेहद भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी

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  24. बरगद के नीचे ठंडक में कुछ दिन से थी बीमार बड़ी !
    धीमे धीमे बड़बड़ करते,भूखी प्यासी कुम्हलायी सी !

    कुछ बातें करती रहती थी, सिन्दूर,महावर, बिंदी से
    इक टूटा सा विश्वास लिए,रहती कुछ दर्द भरी जैसी !

    भूखी पूरे दिन रहकर भी, वह हाथ नहीं फैलाती थी,
    आँखों में पानी भरे हुए,दिखती थी अभिमानी जैसी !
    बेहतरीन रचना...

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  25. बहुत मार्मिक ... हर शेर दिल को कचोटता है ...

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  26. कल रात हवा की ठंडक में,कांपती रहीं वे आवाजें !
    कोई माँ न झरे ऐसे जैसे,आंसू से भरी बदली जैसी --कितना मार्मिक ,दिल के करुण भाव को शब्द दे दिये हैं।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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