Wednesday, June 30, 2010

रिटायर होते, आपके घर के यह मुखिया - सतीश सक्सेना

ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने, कुछ समय पहले प्रवीण पाण्डेय के रूप में एक बेहतरीन सोच और समझ रखने वाले लेख़क का परिचय कराया था , उनके पहले ही लेख से यह महसूस हुआ कि ब्लागजगत में एक ईमानदार ब्लाग जन्म लेने जा रहा है जो समय के साथ सही सिद्ध हुआ ! 
आज उन्होंने अपनी माँ के रिटायर होने के अवसर पर एक पुत्र की ओर से एक भावुक पोस्ट लिखी है ! अधिकतर हम लोग देखते हैं कि रिटायर होते ही, देर सवेर घर के अन्य सदस्य , उन्हें घर के मुखिया पोस्ट से भी रिटायर करने की तैयारी करने लगते हैं ! बेहद पीड़ा दायक यह स्थिति, आज सामान्यतः अधिकतर घरों में देखी जा सकती है ! "रिटायर" शब्द का प्रभाव, प्रभावित व्यक्ति पर तथा समाज पर  इतना गहरा पड़ता है कि रिटायरमेंट के  बाद अक्सर उन्हें बुद्धि हीन, धनहीन और हर प्रकार से अयोग्य समझ लिया जाता है ! छोटे बच्चे को खिलाने घुमाने के अलावा, दूध सब्जी लाना और घर की चौकीदारी जैसे कार्य  आम तौर पर उनके लिए सही और उचित मान लिए जाते हैं ! प्रवीण जी को मेरे द्वारा दी गयी  सप्रेम प्रतिक्रिया निम्न है....

"अपने बच्चों को मजबूत बना कर, सेवानिवृत्त होतीं वे आज अपने आपको शक्तिशाली मान रहीं होंगी प्रवीण जी ! उनकी पूरी जीवन की मेहनत का फल, आप तीनों के रूप में, उनके सामने  है ! उन्होंने अपना काम पूरा कर लिया ! 

अब आप लोगों की बारी है ...
आप तीनों साथ बैठकर कुछ अभूतपूर्व निर्णय आज लें .....
कि यह भावनाएं जो आपने व्यक्त कीं हैं पूरे जीवन नहीं भूलेंगे ......
कि उन्हें कभी यह महसूस नहीं होने देंगे कि वे अब बेकार हैं .......
कि उन्हें कभी यह महसूस नहीं होने देंगे कि वे अब रिटायर हो चुकी हैं ...
कि अब इस घर में उनकी सलाह की जरूरत नहीं है ... 
और अंत में जो सुख़ वे न देख सकीं हों या उन्हें न मिल पाया हो उसके लिए कुछ प्रयत्न कर वह उपलब्ध कराने की चेष्टा ...
मैं अगर अपनी सीमा लांघ गया होऊं तो आप लोग क्षमा करें आशा है बुरा नहीं मानेंगे ! आपकी माँ को भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनायें !"

Tuesday, June 29, 2010

अपनों से अलगाव का दर्द - सतीश सक्सेना

                इस लेख को शायद सबसे अधिक वे महसूस करेंगे  जिनके अपने कभी बिछड़ गए  ! आज खुशदीप सहगल   ने  मजबूर का दिया इस लेख को लिखने को ! कितना दर्द महसूस किया होगा  उन लोगों ने  
  • जिनके परिवार के आधे  लोगों ने पाकिस्तान जाकर रहने का फैसला किया था और जो खुद अपनी मिटटी को नहीं छोड़ पाए ..वे यहीं रहे !  उन्होंने कैसा महसूस किया होगा जब उनके किसी अपने की ख़ुशी और रंज में , वे सरहद पार नहीं जा सके !
  • जिनकी बेटी,बहिन और बड़े बूढ़े जिनकी गोद में वे खेले थे , सरहद पार चली गयी और वे उसे देखने को भी तडपते हैं !
  • बहुत से हिन्दू और मुसलमान आज भी दोनों तरफ स्थिति, अपने जन्मस्थान की याद में तड़प रहे हैं  !
                         अफ़सोस है कि जिन्होंने इस दर्द को महसूस नहीं किया वे इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और लोग बिना इस तकलीफ को समझे नफरत के शोलों को ही हवा देते रहते हैं  ! काश दोनों देशों में अंसार बर्नी  और पैदा हों  तो शायद दिलों का दर्द महसूस कर और प्यार से हम गले मिल सकें ! इस दर्द को समझने के लिए सरबजीत सिंह की बहिन और अंसार बर्नी  के इस फोटो को देखें जिसमें एक बहिन अपने भाई की जान बचाने के लिए किये गए प्रयत्नों के लिए, अपने पाकिस्तानी भाई को शुक्रिया दे रही हैं  ! चित्र में सरबजीत सिंह की बहिन दलबीर कौर और अंसार बर्नी 
       
                          वास्तव में जब तक दोनों देशो की जनता के मध्य खड़ी दीवारें  नहीं हटतीं तब तक यह तनाव कम होना बहुत मुश्किल है  ! ३५ साल से पाकिस्तानी जेलों में बंद  कश्मीर सिंह की रिहाई के लिए जितनी भागदौड़, बिना बदनामी की परवाह किये , एक पाकिस्तानी वकील अंसार बर्नी  ने की, वह आम सोच से परे की चीज है ! इनकी पाकिस्तानी कोर्ट में की गयी बार बार अपीलें  और पाकिस्तानी सरकार से लगाईं गुहार अंततः रंग लाई जब जनरल मुशर्रफ ने इस पर अपनी मुहर लगा दी !  पाकिस्तान को हम जितना कट्टर मानते हैं अगर यही वास्तविकता होती तो शायद यह रिहाई कभी संभव ही न होती !


                           पाकिस्तानी मीडिया में इस घटना को खूब उछाला और अंसार बर्नी और मुशर्रफ साहब को भारत का हमदर्द तक बताया गया ! मैं सोचता हूँ कि अंसार बर्नी के परिवार को और खुद अंसार बर्नी को अपने परिवार में क्या नहीं सुनना पड़ा होगा ! मगर कुछ लोग भीड़ का हिस्सा नहीं होते वे अपने नज़रिए से ही सोचते हैं ऐसे ही लोग भीड़ का नेतृत्व करते हैं !   

Wednesday, June 23, 2010

वह शक्ति मुझे दो दयानिधि - सतीश सक्सेना

बचपन में प्रायमरी पाठशाला की वह कविता मुझे बेहद अच्छी लगती है  .... अर्चना चावजी जी की मधुर आवाज में  आपके समक्ष है !  

" वह शक्ति मुझे दो दयानिधि , कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ  !
  पर सेवा कर उपकार मुझे, निज जीवन सफल बना जावें !

आज भी  कहीं न कहीं एक ही आत्मविश्वास की कमी से ग्रसित हो जाता हूँ कि मरते समय तक इतना धन और शारीरिक शक्ति अवश्य बनाए रखे कि कोई दरवाजे से खाली न जा पाए ! किसी वास्तविक ज़रूरतमंद की मदद करने से जो सुख मिलता है वह दोस्तों के साथ किसी भी दुर्लभ स्थान पर मौज करने से अधिक बेहतर है !

अक्सर जीवन रक्षा के लिए आवश्यकता पड़ने पर, लोग शरीर के अंगों अथवा खून को खरीदने के प्रयत्न में भागते देखे जाते हैं ! अपने प्यारों को भयानक, मरणासन्न अवस्था में पाकर , लोग खुद को ना देख, इधर उधर देखते हैं कि कोई मदद कर दे या कोई जरूरत मंद, पैसे  के लालच में उनके काम आ जाये ! जिन्होनें खुद किसी को प्यार नहीं किया वे इस हालत में प्यार को खरीदने निकलते हैं , और अक्सर उनका काम यहाँ भी हो जाता है जब कोई शारीरिक तौर पर निकम्मा अथवा बेहद गरीब मजबूर व्यक्ति अपने शरीर का कोई अंग अथवा खून बेचने पर मजबूर हो जाता है ! और अपना अंग अथवा खून न देना पड़ा , इस ख़ुशी में झूमते ये लोग , एक बीमार कमज़ोर से खरीदा हुआ अंग या खून, खुशी खुशी स्वीकार करके जश्न मनाते हैं !

मैं एक नियमित खून दाता ( ओ प्लस ) हूँ और दिल्ली के कई हास्पिटल में अपना नाम लिखवा रखा है कि अगर किसी को मेरे खून की जरूरत पड़े तो मुझे किसी भी समय बुलाया जाए, मैं उपलब्द्ध रहूँगा ! बीसियों मौकों पर जब मैं अनजान लोगों को खून देने पंहुचा तो भरे पूरे परिवार के लोग कृतार्थ भाव से हाथ जोड़े खड़े पाए जाते हैं , कि चलो एक यूनिट मुर्गा तो फंसा ! और रक्तदान के बाद मैं अक्सर इन स्वार्थी ,डरपोक रिश्तेदारों और तथाकथित दोस्तों पर हँसता हुआ ब्लड बैंक से बाहर आता हूँ !

३५० एम् एल  खून देने के बाद मुझे कभी कमजोरी महसूस नहीं हुई , और अक्सर मेरे साधारण शरीर ने इस खून  भरपाई २-३ दिनों में, और हिमोग्लोबिन की कमी एक सप्ताह में पूरी कर ली !

ऐसे ही सोच के चलते एक दिन अपोलो हास्पिटल में अपनी मृत्यु के बाद शरीर के सारे अंग दान करने की इच्छा प्रकट की जिसे हास्पिटल अथोरिटी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया , शायद यह कार्य  मेरे जीवन के सबसे अच्छे कार्यों में से यह एक है !  

Monday, June 21, 2010

आश्चर्यजनक डिवाइस मेरे मोबाईल में - सतीश सक्सेना

                        यूरोप भ्रमण में, हमारी कोच जो कि इंग्लॅण्ड की थी, अलग अलग देशों में विभिन्न स्थानों, होटलों आदि पर ड्राईवर ,बिना रूट पहचाने ,कैसे पंहुच पाता है ? यह प्रश्न कौतूहल का था , ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम से लैस ड्राईवर को सिर्फ जगह का पता , शहर और देश का नाम देना होता था ! उसके बाद बस को रास्ता दिखाने का काम अन्तरिक्ष में घूमते और नीचे इस बस को देखते, सैटेलाईट करते थे ! 
                         मन में आया कि इस बार दिल्ली पंहुच कर इस औजार का उपयोग करके देखना है कि शाहदरा  और नॉएडा की गलियों के बारे में यह सैटेलाईट कितना जानते हैं ! अतः दिल्ली गाज़ियाबाद  सीमा पर  बसे शालीमार गार्डन एक्सटेंशन में अपने विस्तृत परिवार की  एक लडकी  टिन्नी से मिलने का फैसला किया और हम सपरिवार निकल पड़े घर से ! गौरव के नोकिया ई ७२ मोबाइल में यह सुविधा, नोकिया कनेक्ट ( कई आधुनिक तकनीकी सुविधा देने के लिए ) के जरिये फ्री मिली हुई थी  ! 
                     गौरव ने डेस्टिनेशन, जीपीएस में  लिख दिया और विस्तृत मैप में उसे मार्क कर दिया था  ! गाड़ी में बैठते ही , रंगीन सड़क  और उस पर लगा तीर दिखाई देने लगा ! मेरे द्वारा गाड़ी स्टार्ट करते ही वोयस कमांड के जरिये सुनाई पड़ा " आफ्टर ३०० मीटर, टर्न लेफ्ट " आश्चर्य चकित मैं ड्राइविंग व्हील  पर यंत्रचालित, इसका आदेश मानता हुआ अत्यंत शीघ्र  नॉएडा से बाहर, एन एच  २४ पर पंहुच चुका था ! कुछ जगह जान बूझकर मैंने विपरीत दिशा  में गाडी मोड़ दी  ! गलत दिशा में पंहुचते ही  स्क्रीन पर  " कैल्कुलेटिंग"  के साथ कम्पयूटर पुनः ठीक दिशा निर्धारण कर चुका था ! और वाकई हमने इतनी लम्बी दूरी तय करने में कोई गलती नहीं की ! इस मध्य स्क्रीन पर मेरी गाडी की चलती हुई वास्तविक स्पीड , और  अपनी मंजिल की बची हुई दूरी साफ़ साफ़ बताई जा रही थी  ! ऐसा लग रहा था कि हमारे हाथ का मोबाइल फ़ोन, चलती हुई कार में फिट कोई मशीन हो , जो इस कार के अभिन्न अंग की तरह  ही कार्य कर रहा था ! 
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम ( GPS) एक प्रकार  का रेडिओ नेविगेशन सिस्टम है , जो सारे विश्व में  फैले हुए २४  उपग्रहों  और उनके जमीन पर स्थिति कंट्रोल स्टेशनों की सहायता से कार्य करता है  ! इस स्थिति में हमारे हाथ में मोबाइल फोन या गाड़ियों में फिक्स हार्डवेयर डिवाइस , जीपीएस  रिसीवर का कार्य करने लगता है ! और इन उपग्रहों की सहायता से हमारी लोकेशन , अंतर्राष्ट्रीय WGS-84 कोओर्डिनेट्स सिस्टम्स के जरिये बेहद बारीकी से जानी जा सकती है ! ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम की सुविधा अमेरिकेन सरकार द्वारा दी जाती है  और वे ही इसकी ठीक चलने और सही कार्य करने के प्रति उत्तरदायी हैं ! 

                       नोकिया के कई माडल (५२३०,५२३५,५८००,E-52,E-66,E-71,E-72,N86, N97, और  X6) में इसकी सुविधा है तथा नोकिया से आप इसका मैप डाउनलोड कर सकते हैं ! नोकिया कोंनेक्ट की सुविधा मात्र १९९  रुपये प्रति माह पर उपलब्ध है ! अन्य कोई खर्चा नहीं है !   सुखद आश्चर्य , और अपनी बेवकूफी पर गुस्सा कि मैंने इससे पहले इसका उपयोग क्यों नहीं किया ...शायद हमें यहाँ भरोसा ही नहीं था कि हम भी इतने आगे निकल चुके हैं  !




        
      

Sunday, June 20, 2010

मेरे भविष्य के लिए पिता ने अपना इलाज नहीं कराया - सतीश सक्सेना

                   आज नॉएडा स्थिति अपने घर को देखता हूँ जो मैंने अपने पिता द्वारा छोड़ी जमीन बेचकर मिले पैसों से बनाया था  ! वही जमीन, जो उन्होंने अपनी जान देकर भी मेरे लिए बचा कर रखी थी, अपने वयस्क होने पर, नॉएडा स्थिति अपने घर में लगाकर मैंने उनकी इच्छा पूर्ति कर दी ! यह घर मुझे हमेशा उनके प्यार की याद दिलाता है !
                   काश वे अपने इलाज़ के लिए जमीन बेच देते तो शायद आज मेरे पास,उनके रूप में ,मेरे जीवन की सबसे बहुमूल्य अमानत होती !                    
                  माँ  के असामयिक चले जाने के बाद  , पिता शायद बहुत टूट गए थे ! ४ वर्षीय पुत्र के साथ कभी नानी के घर और कभी मेरी बहिन के घर में ,मुझे छोड़ जाते थे ! माँ के न रहने के कारण खाने की बुरी व्यवस्था और पेट के बीमार  पिता को उन दिनों संग्रहणी नामक एक लाइलाज बीमारी  हो गयी थी जिसके कारण उनका स्वास्थ्य बहुत ख़राब होता चला गया ! लोगो के लाख कहने ने बावजूद उन्होंने अपने इलाज़ के लिए बरेली जाने से मना कर दिया था ! उन्हें एक चिंता रहती थी कि वे बच नहीं पायेंगे और इस लाइलाज बीमारी के लिए वे अपनी जमीन बेचना नहीं चाहते थे ! उनकी अंतिम समय अपनी चिंता न होकर, अपने 6 वर्षीय पुत्र  के भविष्य सुरक्षित करने की अधिक थी जो वे अपनी दोनों विवाहित पुत्रियों से ,व्यक्त किया करते थे !
                  और अंतिम समय, अपनी बेहद कमजोरी की हालत में, मुझे साथ लेकर, वे नानी के घर जाकर रहे थे ! प्यार से अपने बेटे को, अपनी तकिया के नीचे, लिफाफे में रखे पेडे,अपने कांपते हाथों से खिलाते, उनकी मनोदशा आज समझने में समर्थ हुआ हूँ !  
                  और अगले दिन सुबह जब मैंने ,रोती हुई नानी के सामने, अपने पिता को जमीन पर लिटाते हुए देखा तो छोटा होने के बावजूद, मैं  कुछ कुछ समझ चुका था कि मेरे साथ दुबारा क्या घटना घटी है ! 
                 

Friday, June 18, 2010

पानी में डूबे वेनिस को महसूस करें - सतीश सक्सेना

११७ छोटे छोटे द्वीपों से बने शहर वेनिस या वेनेज़िया को देखने की तमन्ना बचपन से ही थी , जो मेरे योग्य
बच्चों ने समय से पहले ही पूरी कर दी ! काफी लोगों का अनुरोध था कि मैं कुछ चित्र प्रकाशित करुँ ! सो पानी में डूबे इस बिचित्र शहर वेनिस की कुछ झलकियाँ देखिये ! मुझे उम्मीद है इसे देख कर आपको ऐसा लगेगा जैसे हम अपने यहाँ के किसी बाढ़ग्रस्त शहर में बचाव कार्य कर रहे हैं !
इस खूबसूरत शहर को घूमने की तमन्ना थी जहाँ सड़कों की जगह पानी और टेक्सी ट्रेन की जगह सिर्फ नाव थीं ! जहां पर किसी तरह के प्रदूषण का नाम नहीं ! मेन लैंड से कटा यह द्वीप समूह    स्वप्न में आयी कोई जगह लग रही थी ! गंडोला राइड  के नाम से मशहूर गलियों में घुमाने वाली नाव के चार्जेस १०० यूरो  आधा घंटे के लिए ( ६ आदमियों के लिए )देकर यह अनुभव बहुत सुखद रहा ! लोग बहुत मिलनसार और हंसमुख थे,हालांकि हमें बताया गया था कि यहाँ पर अपने सामान की सावधानी रखें ! पूरे यूरोप में सिर्फ इटली आकर ही यह चेतावनी कुछ बिचित्र अवश्य लगी ! एक और बात में कुछ हमारे यहाँ का सा माहौल लगा और वह थी  वहां की अस्तव्यस्तता , कुछ कुछ हमारे नगर निगम से मिलता जुलता हाल या कुछ बेहतर ! कुछ संतोष हुआ :-), ऐसे भी बुरे नहीं हैं हम ! पूरे यूरोप में जहाँ अन्य देश और नगर बेहद साफ़ सुथरे लगे वहीं इटली में आकर गंदे खुले नाले, इटालियन     पत्थरों की फैक्ट्री , रोड साइड में झाड़ियाँ आदि देख अपने  जैसा जाना पहचाना माहौल लगा ! :-) 
कई प्रश्न ,समय की कमी के कारण मन में रह गए कि यहाँ के लोगों का आपस में मिलना जुलना, बिना खुली जगह और मैदानों के कैसे होता होगा !पडुआ -वेनिस पास पास एक ही प्रशासन में आते हैं ,हमारा होटल पडुआ में था , सुबह ग्रुप के साथ गए भारतीय कुक के कारण , शुद्ध भारतीय शाकाहारी नाश्ता करके , अपनी इंग्लिश कोच में, वेनिस के लिए रवाना हुए थे ! हमें बताया गया था कि कोच वेनिस शहर में नहीं जा सकती अतः कोच को पोर्ट पर, पार्क कर आगे हमें स्टीमर से वेनिस शहर के दरवाजे पंहुचना  था ! सेंट मार्क्स
स्कुआयर, वेनिस में सबसे मशहूर स्थल है,पंहुचने में हमें लगभग २० मिनट लगे होंगे ! और विश्व में सर्वाधिक आश्चर्यचकित करने वाली जगह हमारे सामने थी ! वेनिस शहर में जाती गहरी गलियाँ ,लबालब समुद्री पानी में, दरवाजों तक डूबी हमारे सामने थीं !              
वेनिस के लोग बहुत सम्रद्ध थे और आज भी माने जाते हैं !सबसे बड़ा आश्चर्य वेनिस में मकान बनने की कला है , लकड़ी की गहरी पाइल्स गहरे पानी में ठोकी जाती हैं जब तक ठोस जमीन  न छू ले ! गहरे पानी में लकड़ी का क्षरण नहीं होता और यह पत्थर जैसी मजबूत नीव का काम करती हैं !सैकड़ों बरसों से समुद्र के गहरे पानी में , लकड़ी की नीव पर बने पत्थरों और ईंटों के यह कई मंजिला भवन, अच्छे अच्छे सिविल इंजिनियर को विस्मय में डालने के लिए काफी हैं ! एक इंजिनियर के नाते मेरे लिए यह समझना और साक्षात् देखना बहुत विस्मयकारी और सुखद रहा ! वेनिस के स्ट्रक्चर को समझना आसान नहीं है जिस प्रकार वेनिस वासियों ने इस शहर को बनाने में मेन लैंड की नदियों को मोड़ा और समुद्री ज्वार भाटा से बचाव किया है वह किसी भी अभियंता के लिए सीखने और रिसर्च का विषय है ! और हाँ वेनिस में कोई सीवर सिस्टम नहीं है , घरों का वेस्ट सीधा कैनाल में बहाया जाता है , पूरे शहर में मुश्किल से २० प्लंबर हैं ! 
बहरहाल वेनिस पोर्ट पर अपने ग्रुप लीडर नानू सेठना के सौजन्य से ,बीयर के साथ इटालियन पीज़ा  के टुकड़े खाना शायद ही कभी भूल पायें ! वहाँ पोर्ट के किनारे किनारे ,लगी सजी हुईं दुकाने दिल्ली के जनपथ या मुंबई के चौपाटी की  रंगीनियाँ बिखेरती लग रहीं थी ! 
  

Wednesday, June 16, 2010

मुझे ब्लाग जगत ने क्या क्या दिया -सतीश सक्सेना




                     बहुत कुछ दिया है ब्लाग जगत ने हमें ! अजनबी मगर आपस में समान रूचि वाले लोगों में जो अपनापन और प्यार इस आभासी जगत में पाया जाता है अन्यंत्र शायद दुर्लभ है ! ब्लाग जगत ही एक ऐसा स्थान है जहाँ एक छोटे से कसबे में रहने वाला ब्लागर, आसानी से उच्च पदस्थ अधिकारियों , पत्रकारों, कलाकारों और विदेशों में बसे भारतीयों से आसानी से बेहद अपनापन और घनिष्टता के सम्बन्ध बना सकता है !स्वाभाविक है कि एक सामान्य लेख़क भी बहुत शीघ्र अपने आपको , इन संबंधों के कारण शक्तिशाली महसूस करने लगता है !


                     उदाहरण के लिए इन्हीं मधुर संबंधों के चलते मुझे विदेश यात्रा के दौरान श्री राज भाटिया और श्री दिगम्बर नासवा ने क्रमशः जर्मनी और दुबई आने का न्योता दिया था !



शायद इसी कारण , ब्लाग जगत में आपसी प्रतिस्पर्द्धा और फलस्वरूप ईर्ष्या  के कारण अक्सर घमासान मचा रहता है ! लोग आगे आने के लिए क्या नहीं करते ,हर आदमी इस बढ़ती हुई भीड़ से अपना चेहरा दिखाने के लिए सब कुछ करना चाहता है, जिससे उसे सार्वजनिक मान्यता मिल जाए ! फलस्वरूप ब्लागजगत में बेहतरीन कलम के धनी  लोग, जो यकीनन श्रद्धा के लायक हैं, आपस में विभिन्न खेमों में बट गए हैं ! 

                        विभिन्न क्षेत्रों में समर्पित विद्वान् ब्लागरों में व्याप्त यह असहिष्णुता, जो हमें आपस में लड़ा रही है, का विरोध करने की हिम्मत कम ही लोग कर पा रहे हैं  ! जो कोशिश करता है उस पर दूसरे पक्ष का साथ देने का आरोप लग जाता है, सो धीरे धीरे ऐसे प्रयास भी दम तोड़ते जायेंगे ! अफ़सोस है कि लोग विश्वास की जगह को अविश्वास अधिक आराम से अपनाते हैं ! ये हम जैसे तमाम लोगों की पीड़ा है...जो किसी गुट में नहीं जाना चाहते  !  
"तंग-जाहिद नज़र ने मुझे काफिर समझा
और काफिर ये समझता है मुसलमाँ हूँ मैं"

                              अंत में अनूप शुक्ल को, नमन करते हुए उनके "ब्लागर छत्तीसा " पैरा २८ के अनुसार "किसी बेसिर पैर की बात को जितने अधिक विश्वास से कह सकता है वह उतना ही सफल ब्लागर होता है ! "

Tuesday, June 15, 2010

खुशमिजाज़ ब्लोगर - सतीश सक्सेना

खुशदीप सहगल को पढना हमेशा सुखद ही होता है , अपने मक्खन की तरह मस्त रहने वाले, जी टीवी में सीनियर  प्रोडयूसर ,खुशदीप सहगल पर ईश्वर की ख़ास मेहरवानी है कि गर्व उनके आस पास कहीं  नज़र ही नहीं आता ! हर एक  के साथ खड़े खुशदीप भाई, आज की दुनिया में, अजीव चीज़  लगते हैं  :-)
आज की उनकी ताज़ी पोस्ट  ब्लागर लापता , ढूंढ कर लाने वाले को ५०० टिप्पणियां ईनाम  ! पढ़ने से ही अंदाजा लग गया  ! अजय झा की अनकही व्यथा इन्होने महसूस की और पाठकों के सामने रखा है , मेरी प्रतिक्रिया निम्न  है ! 
एक बहुत संवेदनशील, ईमानदार, नेक ह्रदय, सबको साथ लेकर चलने में यकीन करने वाले इन सज्जन का नाम है अजय कुमार झा ! मुझे इनके द्वारा बुलाये गए लक्ष्मी नगर ब्लॉग सम्मलेन में जाने का अवसर मिला था, यह मिलन मेरे घर के पास ही था अतः मैंने अजय को पहली बार फ़ोन कर उसमें आने की इच्छा प्रकट की थी, और जब मैंने उनका इस परोपकार पर खर्चा देख, आधा पैसा शेयर करना चाहा तो उन्होंने हाथ जोड़ कर मना कर दिया था ! बाद में मैंने कहीं पढ़ा था कि उन पर पैसा इकट्ठा करने के इलज़ाम भी लगाये गए ! यह अफ़सोस जनक बात है कि अगर खुद , आगे बढ़कर मदद करने वालों की ओर शंकित साथी ऊँगली उठाते हैं तो यकीनन समाज में अच्छे लोगों को प्रताड़ित होना पड़ेगा !

मुझे लगता है कि कम से कम जिसे हम भलीभांति जानते ही नहीं , उसके विरुद्ध कोई बात कहने, लिखने से पहले, कम से कम एक बार मिलकर अपने संशय को दूर तो कर लें ! अगर हम किसी का सम्मान करना नहीं जानते हैं तो कम से कम उसका अपमान करने का प्रयत्न तो न करें ! अगर फिर भी आपको भले और संवेदनशील लोगों का अपमान करने में ही आनंद आता है तो भी जान लें कि आपके खराब समय में जब आपका अपना कोई न हो उस समय भी खुशदीप और अजय झा जैसे लोग आपके पास खड़े होंगे !

अतः ऐसे लोगों को , अगर वे सौभाग्य से, आपके समाज और परिवार में हैं, उन्हें कम से कम इज्ज़त जरूर देते रहें, जिससे आपके बुरे समय में, आपके धूल धूसरित गर्व पर कोई तालियाँ न बजा रहा हो तो कुछ मित्र आपका साथ देने उस समय भी आपके पास हों ! याद रखियेगा बुरा समय हर इंसान के जीवन में एक बार अवश्य आता है !

मगर अजय का लेखन कम होना, अजय की कमजोरी दिखा रहा है  जो ऐसे जीवट वाले इंसान के लिए ठीक नहीं है ! उन्हें लिखना चाहिए ......

जिन मुश्किलों में मुस्कराना हो मना
उब मुश्किलों में मुस्कराना धर्म है !
जब हाथ से टूटे न अपनी हथकड़ी
तब मांग लो ताकत स्वयं जंजीर से
जिस दम न थमती हो नयन सावन झडी
उस दम हंसी ले लो , किसी तस्वीर से !
जब गीत गाना गुनगुनाना जुर्म हो ,

तब गीत गाना गुनगुनाना  धर्म है !  -नीरज 

Monday, June 14, 2010

क्या इस टिप्पणी को हम कुछ समय याद रख पायेंगे ?? - सतीश सक्सेना

गिरिजेश राव का  यह कमेंट्स अपने आप में पूरी पोस्ट है जो उन्होंने श्रीमती डॉ अजीत गुप्ता की एक पोस्ट   बताओ भारतीयों तुम्हारे पास क्या है ?  पर किया है, जिसमें वे देशवासियों से दुखित मन से एक सवाल करते   हैं  !  
"हमारे पास है:
मानव मल से गंधाते सड़क , गलियाँ
धूल धक्कड़ कूड़ा
बजबजाती नालियां
उफनते सीवर
सीवर बगल में बीच सड़क मंदिर मस्जिद
सीवर के ढक्कन पर छनती पकौड़ी
जितने साफ घर उतना ही गन्दा बाहर
सारा देश सड़क किनारे
अनुशासन लापता
किसी की इज्ज़त नहीं
भ्रष्टाचार :
चपरासी से मंत्री तक
ठेकेदार से मज़दूर तक
मास्टर से दरोगा तक
शिष्य से शिक्षक तक
सबकी रगों में खून बन दौड़ता
किस भारत की बात ?
हम सनातन कीड़े हैं
नाली के .
बायो डायवर्सिटी हमीं से बची है.
संवेदना ? कौन परवाह करता है ?
नीम ?
घर के आगे लगाओ तो कमीने
पूरा पौधा ही तोड़ ले जाते हैं
(दातुन से दांत साफ़ रहते हैं)
ज़रा सी तमीज बची है क्या?
यह देश सौ वर्षों में होगा
फिर टुकड़े टुकड़े.
क्षमा कीजिएगा अगर कटु लगूँ
लेकिन हम लोग आत्ममुग्ध
- पशु से भी गए बीते हैं -"   
गिरिजेश राव का जवाब हमारे यहाँ गली गली में बिखरी वास्तविकता है ,जिसमें हमने अपने आपको आत्मसात कर लिया है, फिर भी हम रोज अपनी संस्कृति की तारीफ में कसीदे पढ़ते नज़र आते हैं ! अभी हाल में आदतवश,  विएंना में चिक्लेट्स को थूकते हुए, मुझे घूरते २-३ लोग निकले तो शायद पहली बार शर्मिन्दगी  का अनुभव हुआ कि मैंने यह क्या किया ? मुझे याद है दुकान से निकलते हुए बिल को तुरंत फाड़ कर फेकने की आदत वाला मैं, वहाँ बिल और कागज के टुकड़ों को जेब में रखकर, डस्टबिन ढूँढता था  ! धूल का पूरे शहर में नामों निशान ही नहीं था !
क्या हम आज इस कमेन्ट पर सोचने की जहमत उठाएंगे  ?? या  हमेशा की तरह, मेरी दोस्ती के कारण ,यहाँ एक टिप्पणी देकर  आगे बढ़ जायेंगे  ??    

Saturday, June 12, 2010

एक विश्वास यह भी - सतीश सक्सेना

डिस्नेलैंड  पेरिस के अन्दर ही एक होटल ,मैजिक सर्कस में ठहरना हुआ था , नाश्ते के समय साथ एक यूरोपियन दम्पति भी अपने लगभग डेढ़ साल के बच्चे के साथ नाश्ता कर रहे थे  ! नाश्ते के दौरान माँ ने अपने बच्चे की कोई मदद नहीं की और मैं अपना नाश्ता भूल उस नन्हे स्मार्ट का नाश्ता करते हुए देखता रहा ! वाकायदा चाकू छुरी  का समुचित उपयोग करते , इस आत्मविश्वासी शिशु  का यह फोटो  मुझे डिस्ने लैंड की हमेशा याद दिलाएगा !


          मुझे आपने परिवार में, इसी की हमउम्र टिन्नी की याद आ गयी जो हम सबकी लाडली और अधिक केयर रखने की बदौलत  आज भी शायद  इस प्रकार खाना नहीं सीख पायी है !
          क्या अधिक संरक्षण और अपने बच्चे की बुद्धि पर भरोसा न करते हुए हम लोग, उसका आत्मविश्वास  तोड़ने के अपराधी नहीं हैं  ?

Friday, June 11, 2010

जीना इसी का नाम है - सतीश सक्सेना

आज सुबह मोहल्ले में एक स्वर्गीय मित्र के बेटे को काफी दिन बाद देखा तो रुक गया , लगा कि अस्वस्थ है तो स्नेहवश पूछ बैठा, क्या बात है ?

"अब उमर भी तो हो चली है " यह जवाब था उस ४१-४२ वर्षीय जवान का , सुनकर मैं काफी देर तक सोच रहा था कि यह धीर गंभीर लड़का,अपने पिता के जाने के बाद ,बरसों से हँसना छोड़, अपने घर का बुजुर्ग बन चुका था ! मुझे लगता है, इस प्रकार अपने आप को, अनजाने में दी गयी आत्मसलाह, हमारा मस्तिष्क बहुत गंभीरता से लेता है और शरीर उसी प्रकार अपने आपको ढालने लग जाता है ! और अगर एक बार आपका अवचेतन मन यह स्वीकार कर ले कि आप अस्वस्थ हैं ,बूढ़े हैं, तो इससे उबरने में बहुत देर हो जाती है ! अधिकतर हम अपना "अच्छा " "अच्छा " बताने में ही अपना जीवन काट देते हैं , "सब लोग क्या कहेंगे " के चक्कर में बहुत सा "सुन्दर" छिपा लेते हैं, जो हमें सबसे अच्छा लगता है !

मुझे याद है लगभग ७५  वर्षीय स्वर्गीय गोपाल गोडसे से, जब मैंने पहली बार, कनाट प्लेस के एक रेस्टोरेंट में, उनसे पूछा था कि आप क्या पीना पसंद करेंगे तो उन्होंने निस्संकोच बीयर पीने की इच्छा व्यक्त की और उनके व्यक्तित्व से अचंभित,प्रभावित मैं, वह मीटिंग कभी नहीं भुला पाया  !

पीसा की झुकी मीनार ,एफिल टावर और माउन्ट टिटलिस  के फोटो जो हजारों बार लोगों ने देखे हैं , ब्लाग पर प्रकाशित कर, क्या नया दे पाऊंगा ? बेहतर समझता हूँ कि ईमानदारी के साथ मैं लोगों को यह बताऊँ कि यूरोप प्रवास के उन्मुक्त वातावरण में जितनी वाइन की चुस्कियां लीं, उतनी शायद पूरे साल में नहीं पी होगी ! अगर इस भावना के साथ, मैं एक भी हताश पाठक को,हँसते हुए जीना सिखा पाया तो यह लेखन सफल हो जायेगा ! बचपन से याद किसी अज्ञात लेख़क की कुछ लाइनें, आपकी नज़र हैं जो सर्वथा सच हैं ...

क्षणभंगुर जीवन की कलिका , कल प्रात को जाने खिली न खिली 
मलयाचल की शुचि शीतल मंद ,  समीर  न  जानें , बही न बही  !
कलि काल कुठार लिए फिरता , तन नम्र से चोट झिली न झिली ,
भजि ले हरि नाम अरी रसना, फिर अंत समय में  हिली न हिली ! 

Monday, June 7, 2010

यूरोप ट्रिप,दिल्ली -फ्रेंकफर्ट -विएंना -सतीश सक्सेना

                गौरव और गरिमा दोनों में होड़ रही कि पापा मेरे एड ऑन कार्ड  ( गौरव का अमेक्स प्लेटिनम और गरिमा का अमेक्स गोल्ड कार्ड ) से ही खर्चा करें ! मेरे इन इंटरनॅशनल कार्ड्स को शीघ्र बनवाने में ,मेरी बेटी द्वारा किये गए प्रयत्नों के फलस्वरूप ,यात्रा से ठीक पहले मेरे दोनों बच्चों के द्वारा दिए गए एड ऑन कार्ड्स मेरे हाथ में थे  !
              शायद यह पहला मौका था जब कभी शांत न बैठने वाला मैं हर तरह से खाली था ! फ्रेंकफर्ट एअरपोर्ट पर रूल  को न जानने की सजा उतरते ही मिली जब कस्टम पर,स्कॉच बोतल जो कि फ्लाईट के दौरान खरीदी गयी थी , जब्त कर ली गयी ! कारण बताया गया कि इस बोतल को सर्टिफिकेट के साथ प्लास्टिक बेग में सील्ड कर के लाना था जो कि एयर स्टाफ ने नहीं किया और पहला नुक्सान हमारा सफ़र में ही हुआ ! शुरुआत में ही शकुन अशकुन से आशंकित भारतीय मन कहीं न कहीं बेचैन हो गया था !
फ्रैंकफर्ट से वियना जाते समय प्लेन से खींची एक फोटो दे रहा हूँ , झील नगरी जैसा सुंदर, यह स्थल बेहद मनोहारी लगा !  यह कौन सी जगह है ? शायद राज भाटिया जी इस पर कुछ प्रकाश डाल सकें !
फ्लाईट में यूरोपियन स्टीवर्ड द्वारा सर्व की गयी मुफ्त रेड वाइन की चुस्कियां लेते  समय कब बीत गया पता ही नहीं चला  ! और प्लेन विएंना में उतरने की तैयारी कर रहा था ! प्रीपेड टेक्सी सर्विस बूथ ने एक लम्बे चौड़े यूरोपियन को हमारा सामान उठाने का निर्देश देते हुए बताया कि यही हमारा ड्राईवर होगा ! ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम युक्त, इस एस यू वी के ड्राईवर को हमारे दिए हुए पते पर पंहुचने के लिए, सिर्फ जीपीएस डिवाइस में इस पते को फीड भर करना था ! हर मोड़ पर मशीन में लगा तीर ड्राईवर को बता रहा था कि अगला मोड़ कितनी दूर और किस दिशा में होगा ! और कुछ ही देर में यह गाड़ी अपने फ्लेट के सामने इंतज़ार करते नवीन के सामने जाकर रुक गयी ! ज्वालामुखी राख से आशंकित, हमें अब जाकर विश्वास हुआ कि अब हम यूरोप पहुँच चुके हैं !

Sunday, June 6, 2010

वजन कम रखने का तरीका -सतीश सक्सेना

पिछले कई सालों से निम्न चतुर्दिवसीय विधि अपनाता  रहा हूँ और मुझे अपना वजन घटाने में हमेशा  कामयाबी मिलती है ! जनरल मोटर्स  का  ७ दिन वाला मशहूर फार्मूला मैं अक्सर ४ दिन में तोड़ देता हूँ ...२-३ किलो कम ! कमाल की कामयाबी मिलती है हर बार ! 

  • पहले दिन केले को छोड़ केवल फल खाता हूँ , पूरे दिन में कम से कम १०-१२ गिलास पानी अवश्य पीना चाहिए, अगर फलों की जगह केवल तरबूज खाया जाया तो पहले ही दिन लगभग डेढ़ किलो वजन घटता है !
  • दूसरे दिन की शुरुआत नाश्ते में एक भुना आलू आधा चम्मच मक्खन के साथ , और पूरे  दिन केवल कच्ची हरी सब्जियां और वेज सूप खाइए ..पानी खूब पीना है !
  • तीसरे दिन फल और सब्जियां ( केला और आलू को छोड़ कर ) बिना उबाले  या गरम किये बिना खाइए , भरपूर पानी पीते रहिये !
  • चौथे दिन सिर्फ ३ गिलास दूध और ६ केला  खाइए , भरपूर पानी पीजिये  !  
  • अगर वजन घटाने के साथ साथ जवान भी बने रहना चाहते हैं तो हँसना सीखिए , और हँसना तब आएगा जब हँसाना सीखेंगे ,खास तौर पर किसी रोते हुए को हंसाइये ! जीवन में अगर आज तक किसी को हंसाने की कोशिश नहीं  की हो तो शुरू कर के देखिये आपको भी हंसी आयेगी !   

Saturday, June 5, 2010

पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर २०१२ में बनकर तैयार हो जायेगा - सतीश सक्सेना

                         १९७१ की पाकिस्तान वार के समय देश में सनसनी से फ़ैल गयी थी जब अमेरिकन एयरक्राफ्ट कैरियर  "एन्टरप्राइज़ "  के बंगाल की खाड़ी कि तरफ प्रस्थान करने की खबर सुनी थी ! उन दिनों कहा जाता था कि अकेला "एन्टर प्राइज़"  दुनिया के कई छोटे मोटे देशों को  जीतने में समर्थ है !  
                           आजकल नयूक्लियर् पॉवर एयर क्राफ्ट कैरियर जब अपने पूरे फ्लीट के साथ निकलते हैं तो किसी भी दुश्मन का दिल दहला सकने में समर्थ  हैं ! किसी भी देश की शक्ति प्रदर्शन करने के लिए , इस फ्लीट को अपनी सीमाओं से निकल कर प्रस्थान भर करना काफी होता है ! इसके दोनों तरफ चलते हुए ४ विध्वंसक, साथ छिप कर चलती हुई  न्यूक्लीयर वारहेड सुसज्जित क्रूज़ मिज़ाइल से लोडेड , न्यूक्लीयर पॉवर पनडुब्बियाँ , किसी ताकतवर देश का भी  आत्मविश्वास डगमगाने हेतु काफी है ! 
                            आज हमारा देश अंततः २०१२ में, स्व निर्मित एयरक्राफ्ट  कैरियर, सागर में उतार अग्रिम विश्व शक्ति बनने के लिए एक और कदम उठाने जा रहा है ! हमारा देश अभी उन ९ देशों में से एक है ,जिनकी नेवी एयरक्राफ्ट कैरियर से सज्जित है ! आशा है, इस शक्ति पुंज के साथ, सुरक्षा परिषद् में स्थाई सदस्य बनने का हमारा दावा  और मजबूत होगा !
   

Friday, June 4, 2010

यहाँ इतना द्वेष क्यों ? -सतीश सक्सेना

                          ब्लाग पर कुछ लिखने का मन था , सोचता था कि ईमानदारी  से कुछ भी लिखा जाये और उससे किसी का कुछ फायदा हो तो शायद यह प्रयास सार्थक हो सके ! मगर आश्चर्य  कि लोगों ने  इस ईमानदारी पर भी ऊँगली उठाई ! 
                           दूसरों के लिए वैमनस्य और शिकायतें लेकर लिखते हम लोग जब अपने कमजोर दिनों में आते हैं, तब भाग्य को दोषी  बताते हैं  ! 
                          हमारे किशोर बच्चे , ईर्ष्या और वैमनस्य के ये बीज,अपने माँ -बाप के द्वारा, अपने ही घर में बिखेरते, देखते हुए बड़े होते हैं  ! हर कदम, अपनी झूठी बड़ाई में , सराबोर हम लोगों के पास इतना समय कहाँ कि अपने बच्चों को देते इस संस्कार पर ध्यान दे पायें  ! 
                          आज ब्लाग जगत में जो कुछ चल रहा है उसे देख बेहद खिन्नता का भाव मन में है , कुछ साथियों की मांग थी की यूरोप यात्रा के कुछ खुशनुमा संस्मरण बांटने का प्रयत्न करुँ  मगर इस विद्वेष पूर्ण माहौल में क्या लिखें और कौन पढ़ेगा ! 


नवयुवक नीशू के पत्र के जवाब में , एक लाइन का पत्र प्रकाशित  कर रहा हूँ "
यह प्रकरण कम से कम मेरे लिए बेहद दुखद है नीशू !
ऐसा लग रहा है कि हम लोग यहाँ कोई इलेक्शन लड़ने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं ! मेरा आपसे अनुरोध है कि जिस कारण नाराज हैं,उस पर  स्वस्थ विरोध से अधिक न जाएँ ! व्यक्तिगत रंजिश आपके लिए भी उतनी ही खराब होगी जितनी दूसरों के लिए ! "


  


    

Wednesday, June 2, 2010

अपनी माँ को धुंधली यादों में ढूँढता बच्चा - सतीश सक्सेना

"माँ " पर प्रकाशित, एक पुरानी पोस्ट  दुबारा प्रकाशित कर रहा हूँ ...शायद आप मेरी माँ के बारे में वेदना महसूस कर सकें  ....


माँ ! यह एक ऐसा शब्द है जो मैंने कभी किसी के लिए नही बोला, मुझे अपने बचपन में ऐसा कोई चेहरा याद ही नही जिसके लिए मैं यह प्यारा सा शब्द बोलता ! अपने बचपन की यादों में उस चेहरे को ढूँढने का बहुत प्रयत्न करता हूँ मगर हमेशा असफल रहा मैं अभागा ! 
मुझे कुछ धुंधली यादें हैं उनकी... वही आज पहली बार लिख रहा हूँ ....जो कभी नही लिखना चाहता था !
-लोहे की करछुली (कड़छी) पर छोटी सी एक रोटी, केवल अपने इकलौते बेटे के लिए, आग पर सेकती माँ....
-बुखार में तपते, अपने बच्चे के चेचक भरे हाथ, को सहलाती हुई माँ .... 
-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँ को मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे सब ले गए मेरी माँ को ....

बस यही यादें हैं माँ की ......
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