आज की उनकी ताज़ी पोस्ट ब्लागर लापता , ढूंढ कर लाने वाले को ५०० टिप्पणियां ईनाम ! पढ़ने से ही अंदाजा लग गया ! अजय झा की अनकही व्यथा इन्होने महसूस की और पाठकों के सामने रखा है , मेरी प्रतिक्रिया निम्न है !
एक बहुत संवेदनशील, ईमानदार, नेक ह्रदय, सबको साथ लेकर चलने में यकीन करने वाले इन सज्जन का नाम है अजय कुमार झा ! मुझे इनके द्वारा बुलाये गए लक्ष्मी नगर ब्लॉग सम्मलेन में जाने का अवसर मिला था, यह मिलन मेरे घर के पास ही था अतः मैंने अजय को पहली बार फ़ोन कर उसमें आने की इच्छा प्रकट की थी, और जब मैंने उनका इस परोपकार पर खर्चा देख, आधा पैसा शेयर करना चाहा तो उन्होंने हाथ जोड़ कर मना कर दिया था ! बाद में मैंने कहीं पढ़ा था कि उन पर पैसा इकट्ठा करने के इलज़ाम भी लगाये गए ! यह अफ़सोस जनक बात है कि अगर खुद , आगे बढ़कर मदद करने वालों की ओर शंकित साथी ऊँगली उठाते हैं तो यकीनन समाज में अच्छे लोगों को प्रताड़ित होना पड़ेगा !
मुझे लगता है कि कम से कम जिसे हम भलीभांति जानते ही नहीं , उसके विरुद्ध कोई बात कहने, लिखने से पहले, कम से कम एक बार मिलकर अपने संशय को दूर तो कर लें ! अगर हम किसी का सम्मान करना नहीं जानते हैं तो कम से कम उसका अपमान करने का प्रयत्न तो न करें ! अगर फिर भी आपको भले और संवेदनशील लोगों का अपमान करने में ही आनंद आता है तो भी जान लें कि आपके खराब समय में जब आपका अपना कोई न हो उस समय भी खुशदीप और अजय झा जैसे लोग आपके पास खड़े होंगे !
अतः ऐसे लोगों को , अगर वे सौभाग्य से, आपके समाज और परिवार में हैं, उन्हें कम से कम इज्ज़त जरूर देते रहें, जिससे आपके बुरे समय में, आपके धूल धूसरित गर्व पर कोई तालियाँ न बजा रहा हो तो कुछ मित्र आपका साथ देने उस समय भी आपके पास हों ! याद रखियेगा बुरा समय हर इंसान के जीवन में एक बार अवश्य आता है !
मगर अजय का लेखन कम होना, अजय की कमजोरी दिखा रहा है जो ऐसे जीवट वाले इंसान के लिए ठीक नहीं है ! उन्हें लिखना चाहिए ......
जिन मुश्किलों में मुस्कराना हो मना
उब मुश्किलों में मुस्कराना धर्म है !
जब हाथ से टूटे न अपनी हथकड़ी
तब मांग लो ताकत स्वयं जंजीर से
जिस दम न थमती हो नयन सावन झडी
उस दम हंसी ले लो , किसी तस्वीर से !
जब गीत गाना गुनगुनाना जुर्म हो ,
तब गीत गाना गुनगुनाना धर्म है ! -नीरज
dard dard hota hai paraya ya apna............
ReplyDeletekash ye insaan ke palle pad jae ................
keechad uchalne wale ke pahile swayam ke hath keechad me sante hai..................
क्या नाराजी हो गई भाई ...झा जी को जल्दी बुलाओ
ReplyDeleteअजय झा जी,
ReplyDeleteदेखिए यह खामोशी है, अजय जी वापस ज़रुर आयेंगे। बहुत धमाकेदार वापसी होगी भाई उनकी. :)
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ReplyDelete@सतीश भाईसाहब,
ReplyDeleteआपने भी खामख्वाह बैठे बिठाए क्यों हमारे चाहने वालों (?) से पंगा ले लिया...
वैसे जब आप जैसे बड़े भाई का हाथ हमारे सिर पर है तो कौन हमारा क्या बिगाड़ सकता है...अब अजय भाई से भी गुहार है कि चंद लोगों की वजह से पूरे ब्लॉगवुड के प्यार को नज़रअंदाज़ न करें और जल्दी से झा स्टाइल कोई फड़कती पोस्ट लिखें...
@अनाम,
ReplyDeleteआप खुद ही अनाम नाम से कमेन्ट दे रहे हैं , क्या आप इसे उचित मानेंगे ? क्या आप अपने आरोप जानने के लिए अजय झा से मिले थे ? किसी के कहने पर अथवा एक पक्षीय सोच के आधार पर किया गया फैसला सच कैसे माना जाये ! मैं अजय से सिर्फ एक बार मिला हूँ मगर जो प्रभाव मेरे ऊपर है वह आपकी कथनी से मेल नहीं खाता ! सुनी सुनायी या किसी के कहने पर मैं अपने विचार बदल लूं , इसे मैं ठीक नहीं मानता ! बेहतर है जब मैं खुद देख लूँगा तभी ऐसे किसी निर्णय पर पंहुचना चाहिए !
सर जी!
ReplyDeleteहमारी दृष्टि में तो इंटरनैट के अनंत आकाश में फैला यह ब्लोग जगत का आभासी संसार अपने आप में एक खूबसूरत स्थान है...सभी तरह के विचारों को इसमें जगह है..आपको जो पंसद है वो कहें जिसे सुनना होगा सुनेगा..जिसे नहीं वो नही... moderation का विकल्प भी है..और किसी को अपना रोष व्यक्त करने का अधिकार भी...
ऐसी असीम स्वतंत्रता मानव इतिहास में पहले कभी न थी....इस स्वंत्रता के सम्मान की हम वकालत करते हैं...वरना ब्लोग के इस आभासी जगत के बाहर तो फिर उसी आपाधापी वाली दुनिया से दो चार हम सभी को रोज़-रोज़ होना ही होता है....
खुशदीप सहगल और अजय कुमार झा भी इस ब्लोग बगिया के पुष्प हैं...अजय जी!बारिशों का बेताबी से इंतज़ार है....चलो अब प्रकट भी हो जाओ!!
आप कैसे हैं भैया...दूर रही हूँ तो क्या हुआ, मैं आपको कभी भूल नहीं पायी...आप इसी तरह ईमान दरी से लिखते रहें , यही दुआ है...
ReplyDelete@ रख्शंदा ,
ReplyDeleteतुम्हे दुबारा देख बहुत अच्छा लगा , काफी दिन से गायब हो शायद पारिवारिक समस्याओं की वजह से , मगर हम सबने, जिन्होंने तुम्हे पढ़ा है, बहुत मिस किया है ! यहाँ तुम्हारे जैसे लिखने वालों की कमी है लडकी, तुम्हारा कलम की घर समाज को बहुत आवश्यकता है ! आशा है दुबारा शुरू करोगी , हार्दिक शुभकामनायें !
आज के ज़माने में भावनाओं के लिए कहीं कोई जगह बची ही नहीं.सो जिसको जो कहना कहने दो और ईमानदारी से अपना काम करते राहें किस किस को सफाई दें और क्यों?
ReplyDeleteमुझे लगता है कि कम से कम जिसे हम भलीभांति जानते ही नहीं , उसके विरुद्ध कोई बात कहने, लिखने से पहले, कम से कम एक बार मिलकर अपने संशय को दूर तो कर लें ! अगर हम किसी का सम्मान करना नहीं जानते हैं तो कम से कम उसका अपमान करने का प्रयत्न तो न करें !
ReplyDeleteअरे काहे चिंता करते है सतीश जी । अजय भाई बिहार गए हैं गर्मियों की छुट्टी में । आते ही लिखेंगे ।
ReplyDeleteवैसे रचना जी की बात से सहमत हूँ ।
अजय जी और खुशदीप जी के बारे मे आपकी भावनाओं से शत प्रतिशत सहमत।
ReplyDeleteयह बात तो हरेक पर लागू होनी चाहिए कि अगर हम किसी का सम्मान करना नहीं जानते हैं तो कम से कम उसका अपमान करने का प्रयत्न तो न करें!
वैसे, अजय झा अपनी वेबसाईट में व्यस्त हैं तथा सामाजिक-पारिवारिक-आजीविका व पत्र-पत्रिकाओं के कॉलम लिखने के बाद बचे समय में रूपरेखा, ब्लॉगों का ट्रांसफ़र, रंग-संयोजन में उनका समय बीत रहा है।
वे जल्द ही सक्रिय होंगे नई ऊर्जा के साथ www.AjayKumarJha.com पर
June 15, 2010 9:02 PM
rakhshanda को भी पुन: सक्रिय देख प्रसन्नता हुई
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteआज बहुत बढ़िया पोस्ट लगाई है आपने ! यह दोनों के दोनों बन्दे बेहद उम्दा मिजाज के है | मेरी अक्सर फ़ोन पर बाते होती है इन से ............कभी ऐसा नहीं लगा कि हम लोग कभी मिले नहीं है | दोनों ही बहुत ही सहज स्वभाव के है ! मेरी शुभकामनाएं आपको,खुशदीप भाई को और अजय भाई के लिए !
@ पाबला जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अजय भाई के विषय में दी गयी इस नयी जानकारी के लिए !
सतीश साहब, मैं तो इन दोनो को नही जानता...मगर जब आपने इनका ज़िक्र ख़ैर किया है तो दोनो के बारे मैं जानने की तमन्ना जाग उठी है.
ReplyDeleteवो कहते हैं ना
'' सच्चे लोग सच्चा आनंद''
मेरा होसला बढांने के लिए शुक्रिया.
http://sahespuriya.blogspot.com/
दादा आपकी टिप्पणी किस संदर्भ में थी समझा नहीं। जहां तक सौभाग्यशाली होने का है तो मुझे नहीं लगता कि हमारे जैसे नालायक औलाद के होने से माता-पिता कैसे भाग्यशाली हुए।
ReplyDeleteजिन मुश्किलों में मुस्कराना हो मना
ReplyDeleteउब मुश्किलों में मुस्कराना धर्म है ...
सच है ... मेरा तो मानना है ऐसी अवस्था में आत्मिक बाल इकट्ठा कर के और तेज़ी से आगे आना चाहिए...
इहां ब्लागजगत मा कुछ बहुते गंदे लोग घुस गये हैं जो अपनी मठाधीशी चलाने का लिये किसी भी हद तक गिर सकते हैं. अब उन लोगन को कोई और नाही मिला तो ई छोटका लोगन का कांधा पर धरके बंदूक चला रहे हैं. झा जी भी आखिर इंसान हैं कोनू पत्थर नाही. उनको भी कष्ट हुआ है. समय के साथ सब ठीक हो जायेगा. मौज करिये मजा मा रहिये अऊर अब टंगडीमार को इजाजत दिजिये.
ReplyDeleteआप इसी तरह ईमान दरी से लिखते रहें , यही दुआ है...
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