बचपन में प्रायमरी पाठशाला की वह कविता मुझे बेहद अच्छी लगती है .... अर्चना चावजी जी की मधुर आवाज में आपके समक्ष है !
" वह शक्ति मुझे दो दयानिधि , कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ !
पर सेवा कर उपकार मुझे, निज जीवन सफल बना जावें !
आज भी कहीं न कहीं एक ही आत्मविश्वास की कमी से ग्रसित हो जाता हूँ कि मरते समय तक इतना धन और शारीरिक शक्ति अवश्य बनाए रखे कि कोई दरवाजे से खाली न जा पाए ! किसी वास्तविक ज़रूरतमंद की मदद करने से जो सुख मिलता है वह दोस्तों के साथ किसी भी दुर्लभ स्थान पर मौज करने से अधिक बेहतर है !
अक्सर जीवन रक्षा के लिए आवश्यकता पड़ने पर, लोग शरीर के अंगों अथवा खून को खरीदने के प्रयत्न में भागते देखे जाते हैं ! अपने प्यारों को भयानक, मरणासन्न अवस्था में पाकर , लोग खुद को ना देख, इधर उधर देखते हैं कि कोई मदद कर दे या कोई जरूरत मंद, पैसे के लालच में उनके काम आ जाये ! जिन्होनें खुद किसी को प्यार नहीं किया वे इस हालत में प्यार को खरीदने निकलते हैं , और अक्सर उनका काम यहाँ भी हो जाता है जब कोई शारीरिक तौर पर निकम्मा अथवा बेहद गरीब मजबूर व्यक्ति अपने शरीर का कोई अंग अथवा खून बेचने पर मजबूर हो जाता है ! और अपना अंग अथवा खून न देना पड़ा , इस ख़ुशी में झूमते ये लोग , एक बीमार कमज़ोर से खरीदा हुआ अंग या खून, खुशी खुशी स्वीकार करके जश्न मनाते हैं !
मैं एक नियमित खून दाता ( ओ प्लस ) हूँ और दिल्ली के कई हास्पिटल में अपना नाम लिखवा रखा है कि अगर किसी को मेरे खून की जरूरत पड़े तो मुझे किसी भी समय बुलाया जाए, मैं उपलब्द्ध रहूँगा ! बीसियों मौकों पर जब मैं अनजान लोगों को खून देने पंहुचा तो भरे पूरे परिवार के लोग कृतार्थ भाव से हाथ जोड़े खड़े पाए जाते हैं , कि चलो एक यूनिट मुर्गा तो फंसा ! और रक्तदान के बाद मैं अक्सर इन स्वार्थी ,डरपोक रिश्तेदारों और तथाकथित दोस्तों पर हँसता हुआ ब्लड बैंक से बाहर आता हूँ !
३५० एम् एल खून देने के बाद मुझे कभी कमजोरी महसूस नहीं हुई , और अक्सर मेरे साधारण शरीर ने इस खून भरपाई २-३ दिनों में, और हिमोग्लोबिन की कमी एक सप्ताह में पूरी कर ली !
ऐसे ही सोच के चलते एक दिन अपोलो हास्पिटल में अपनी मृत्यु के बाद शरीर के सारे अंग दान करने की इच्छा प्रकट की जिसे हास्पिटल अथोरिटी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया , शायद यह कार्य मेरे जीवन के सबसे अच्छे कार्यों में से यह एक है !
" वह शक्ति मुझे दो दयानिधि , कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ !
पर सेवा कर उपकार मुझे, निज जीवन सफल बना जावें !
आज भी कहीं न कहीं एक ही आत्मविश्वास की कमी से ग्रसित हो जाता हूँ कि मरते समय तक इतना धन और शारीरिक शक्ति अवश्य बनाए रखे कि कोई दरवाजे से खाली न जा पाए ! किसी वास्तविक ज़रूरतमंद की मदद करने से जो सुख मिलता है वह दोस्तों के साथ किसी भी दुर्लभ स्थान पर मौज करने से अधिक बेहतर है !
अक्सर जीवन रक्षा के लिए आवश्यकता पड़ने पर, लोग शरीर के अंगों अथवा खून को खरीदने के प्रयत्न में भागते देखे जाते हैं ! अपने प्यारों को भयानक, मरणासन्न अवस्था में पाकर , लोग खुद को ना देख, इधर उधर देखते हैं कि कोई मदद कर दे या कोई जरूरत मंद, पैसे के लालच में उनके काम आ जाये ! जिन्होनें खुद किसी को प्यार नहीं किया वे इस हालत में प्यार को खरीदने निकलते हैं , और अक्सर उनका काम यहाँ भी हो जाता है जब कोई शारीरिक तौर पर निकम्मा अथवा बेहद गरीब मजबूर व्यक्ति अपने शरीर का कोई अंग अथवा खून बेचने पर मजबूर हो जाता है ! और अपना अंग अथवा खून न देना पड़ा , इस ख़ुशी में झूमते ये लोग , एक बीमार कमज़ोर से खरीदा हुआ अंग या खून, खुशी खुशी स्वीकार करके जश्न मनाते हैं !
मैं एक नियमित खून दाता ( ओ प्लस ) हूँ और दिल्ली के कई हास्पिटल में अपना नाम लिखवा रखा है कि अगर किसी को मेरे खून की जरूरत पड़े तो मुझे किसी भी समय बुलाया जाए, मैं उपलब्द्ध रहूँगा ! बीसियों मौकों पर जब मैं अनजान लोगों को खून देने पंहुचा तो भरे पूरे परिवार के लोग कृतार्थ भाव से हाथ जोड़े खड़े पाए जाते हैं , कि चलो एक यूनिट मुर्गा तो फंसा ! और रक्तदान के बाद मैं अक्सर इन स्वार्थी ,डरपोक रिश्तेदारों और तथाकथित दोस्तों पर हँसता हुआ ब्लड बैंक से बाहर आता हूँ !
३५० एम् एल खून देने के बाद मुझे कभी कमजोरी महसूस नहीं हुई , और अक्सर मेरे साधारण शरीर ने इस खून भरपाई २-३ दिनों में, और हिमोग्लोबिन की कमी एक सप्ताह में पूरी कर ली !
ऐसे ही सोच के चलते एक दिन अपोलो हास्पिटल में अपनी मृत्यु के बाद शरीर के सारे अंग दान करने की इच्छा प्रकट की जिसे हास्पिटल अथोरिटी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया , शायद यह कार्य मेरे जीवन के सबसे अच्छे कार्यों में से यह एक है !
Sir!! aap jaiso ke karan hi manvta abhi bhi jinda hai, beshak karah rahi hai.....lekin mari nahi hai!!
ReplyDeleteHats off to you!!
मैं भी ०+ हूं.. नियमित रक्तदान करता हूं..
ReplyDeleteसही कहा..कई बार ऐसे लोग भी मिले जो कई कई दिन ढूंढते रहते है रक्तदाता को.. पर खुद अपना रक्त नहीं देना चाहते..
ab ise umr me ise layak nahee rahe.
ReplyDeletevishvas hai ise post se kai prerana lenge.garv hai hum sabhee bloggers ko aapko apane beech pakar .
आपके प्रयास अनुकरणीय हैं. साधुवाद!
ReplyDeleteमै भी रक्तदान करता हूं . आन्खे भी मरणोपरान्त दान कर दी है . और हा 0+ हू
ReplyDeleteमै भी रक्तदान करता हूं . आन्खे भी मरणोपरान्त दान कर दी है . और हा 0+ हू
ReplyDeleteआपको नमन.
ReplyDelete0+ तो हम भी हैं मगर रक्तदान कर सकने जैसे खुशकिस्मत नहीं हैं ...
ReplyDeleteबहुत नेक कार्य किया है आपने ...!!
किसी वास्तविक ज़रूरतमंद की मदद करने से जो सुख मिलता है वह दोस्तों के साथ किसी भी दुर्लभ स्थान पर मौज करने से अधिक बेहतर है !
ReplyDelete...
आपकी यह बात मुझे सबसे अच्छी लगी। मानवता से परिपूर्ण।
सतीश भाई,
ReplyDeleteआपके प्रयास अनुकरणीय हैं, आपको बहुत बहुत साधुवाद और नमन !
शायद नहीं , निश्चित ही सबसे अच्छे कार्यों में से एक है ।
ReplyDeleteरक्त दान एक नेक कार्य है जिसे अक्सर लोग डरते रहते हैं ।
शरीर दान करना तो और भी भला काम है।
आपके ज़ज्बे को सलाम सतीश जी ।
आप जैसे लोगों से प्रेरणा मिलती है ।
ReplyDeleteहम लोग प्यार तो बहुत दिखते है, जब करने का समय आता है तो पीछे हट जाते है, आप की बात से सहमत हुं, मै भी सोच रहा हुं कि अपना शरीर दान कर दुं, लेकिन बीबी ओर बच्चे अभी नही मानते , लेकिन इन्हे मना ही लुंगा कभी ना कभी
ReplyDeleteभगवान करे, आप जैसा वैचारिक सारल्य जीवन में सबको मिले ।
ReplyDeleteमानवता की मिसाल
ReplyDeleteवह शक्ति मुझे दो दयानिधि , कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ !
ReplyDeleteपर सेवा कर उपकार मुझे, निज जीवन सफल बना जावें ! "
मुझको यह पंक्तियाँ हमेशा से पसंद है.
naman satish ji
ReplyDeletejaipur shift ho gayaa hoo
abhee ghar par computer nahee hai
ये काम तो कभी कभी हम भी कर लेते हैं, सतीश साहब। और सच में यह अनुभव बहुत आनन्ददायक होता है।
ReplyDeleteमेरे एक दोस्त के पिताजी को AB+ रक्त की आवश्यकता थी... मेरा शरीर देखकर डॉक्टर ने मना कर दिया.. फिर भी मैं डटा रहा... मैंने कहा कि इमरजेंसी में मेरा ले लेना... नौबत नहीं आई... वैसे मुझे अपने बदन पर इंजेक्शन से भी डर लगता है... इतनी उम्र में भी गिन सकता हूँ कितने इंजेक्शन लिए होंगे...
ReplyDeleteआप तो मानवता की मिसाल हैं... आप से जुड़कर, ख़ुद को सौभाग्यशाली मानता हूँ...
ReplyDeleteउत्तम सोच, और उत्तम निर्णय !
मैं अकिंचन आपका अभिनँदन करता हूँ !
गुरुदेव! आज आपका चरन स्पर्श करने का मन हो रहा है...
ReplyDelete@ श्री अरविन्द मिश्र एवं डॉ अमर कुमार,
ReplyDeleteयकीन मानिए आप लोगों से सीखने का प्रयत्न करता रहता हूँ , आप लोग समाज अग्रज हैं और आप में दूसरों से स्वाभाविक श्रद्धा लेने की क्षमता है ! डॉ अमर कुमार का कम लिखना कभी कभी खलता है !
@विवेक सिंह बहुत दिन बाद आये, बहुत अच्छा लगा ! लगता है नाराज थे.....
@ एच पी शर्मा ,
उम्मीद है आपका लेखन जल्दी मिलेगा ! शुभकामनायें !
@ चला बिहारी ब्लागर बनने,
अगली बार मिलते हैं तो फैसला हो जाए , पहले पैर मैं ही छूऊंगा ....जो कुश्ती में जीतेगा वही छुएगा ! मुझे ५५ साल में भी अपनी जीतने की उम्मीद है !
अच्छी दुआ नेक अमल ।प्रेरणास्पद पोस्ट
ReplyDeletebahut hi nek kary kr rhe hai aap .
ReplyDeleteshubhkamnaye .
आप से प्रेरणा मिलती है । आपको नमन.
ReplyDeleteआपके ज़ज्बे को सलाम सतीश जी
ReplyDeleteअल्लाह का शुक्र है रक्तदान तो हमने भी काई बार किया है...कहना तो नही चाहिए फिर भी कई बार तो अपने हिंदू दोस्तो के भी काम आए है. और इक बात आप जैसे लोगो से ही आज इंसानियत ज़िंदा है. और एक सलाम...आपको
ReplyDeleteजनाब सतीश सक्सेना जी! आपने मेरे ब्लॉग पर एक सवाल छोड़ा है। मेरा जवाब यह है कि बेचैनी इस बात की नहीं है कि लोग मेरी मान्यताओं का सम्मान करने लगें बल्कि बेचैनी इस बात की है कि लोग अम्न व अमान से जीना सीख लें। जब किसी घर में एक बन्दा दूसरे बन्दे का हक़ मार लेता है तो उस घर में झगड़ा खड़ा होने का कारण पैदा हो जाता है। ऐसे ही जब एक वर्ग दूसरे वर्गों को उनका वाजिब हक़ नहीं देता तो समाज में संघर्ष और हिंसा का बीज पड़ जाता है। किस का हक़ क्या है ?
ReplyDeleteऔरत का मर्द पर, मर्द का औरत पर, ग़रीब का पूंजीपति पर , पूंजीपति का निर्धन पर, मां-बाप का औलाद पर, औलाद का मां-बाप पर, नागरिकों का हाकिम पर, हाकिम का नागरिकों पर, अनाथों विधवाओं मुसाफ़िरों और अपाहिजों का समाज पर। इसी के साथ यह कि नैतिक नियम क्या हैं और उनका पालन कैसे और क्यों किया जाये ?
इन बातों के निर्धारण का हक़ केवल उस पैदा करने वाले को है । उसे छोड़कर जब भी कोई दार्शनिक यह नियम और सीमाएं तय करने की कोशिश करेगा तो लाज़िमन वह एक ऐसा काम करने की कोशिश करेगा जिसका न तो उसे अधिकार है न ही उसके अन्दर उसकी योग्यता है।
आज सारा समाज दुखी और परेशान है। उसकी परेशानियों का हल सच्चे मालिक के नियमों को जानने मानने में निहित है। लोग दुखी हों और उन्हें देखकर वह आदमी बेचैन न हो जिसके पास उनकी समस्याओं का समाधान है , यह कैसे संभव है ?
इस्लाम मात्र पूजा-पाठ, और माला जपने वाले संप्रदाय का नाम नहीं है। यह लोगों की समस्याओं के हल का नाम है।
समस्या चाहे कन्या के जन्म की हो या दहेज की हो। तिल तिल कर घुट घुट कर जीने वाली औरत की हो या फिर विधवा की । सूद - ब्याज की चक्की में पिस रही जनता की हो या फिर ग़रीबों में पनप रहे आक्रोश से डरने वाले धनवानों की। नशे से जर्जर हो रहे समाज की हो या फिर धन के लिये तन बेचने वाली तवायफ़ों की, हरेक के लिये इज़्ज़तदार तरीके़ से समुचित हल केवल इस्लाम में है। यह कोई दावा नहीं है बल्कि एक हक़ीक़त है। घर में दवा मौजूद हो और लोग मर रहे हों , यह देखकर बेचैन होना तो स्वाभाविक है।
सभी भाइयों को इत्तिला दी जाती है कि आज 2.50 बजे दोपहर डा. कान्ता के नर्सिंग होम में मेरी वाइफ़ ने एक मासूम सी बेटी को अल्लाह के फ़ज़्ल से जन्म दिया है। उसकी कमर पर एक खुला हुआ ज़ख्म है और रीढ़ की हड्डी में पस है। उसकी दोनों टांगों में हरकत भी नहीं है। डिलीवरी नॉर्मल हुई है लेकिन बच्ची को मज़ीद इलाज की ज़रूरत है। मां की हालत ठीक है। अल्लाह का शुक्र है। वही हमारा रब है और उसी पर हम भरोसा करते हैं। अपनी हिकमतों को वही बेहतर जानता है। हमारी ज़िम्मेदारी अपने फ़र्ज़ को बेहतरीन तरीक़े से अदा करना है। सभी दुआगो साहिबान से मज़ीद दुआ की इल्तजा है। अब ब्लॉगिंग शायद नियमित नहीं रह पायेगी। बच्ची के लिये भी दौड़भाग करनी पड़ेगी।
काम तो हकीकत मैं काबिल इ तारीफ है, लेकिन यह काम आपने स्वर्ग पाने के लिए किया या केवल इंसानियत के नाते किया? यह ध्यान आया तो सोंचा पूछ लें?
ReplyDeleteडॉ अनवर जमाल !
ReplyDelete" हरेक के लिये इज़्ज़तदार तरीके़ से समुचित हल केवल इस्लाम में है। यह कोई दावा नहीं है बल्कि एक हक़ीक़त है। घर में दवा मौजूद हो और लोग मर रहे हों , यह देखकर बेचैन होना तो स्वाभाविक है।"
आपके इस जवाब से मैं सहमत नहीं हूँ , इस्लाम को मैं बुरा नहीं मानता मगर अपने धर्म को भी किसी धर्म से कम नहीं समझता ! खैर इस बात का जवाब कम से कम मैं अभी नहीं देना चाहता !
अपने धर्म को दूसरों से अच्छा बताने की कोशिश मैं सिर्फ कमअक्ली अथवा संकीर्णता ही मानता हूँ !
आपकी नवजात मासूम बच्ची की हालत जान मन बहुत ख़राब हो गया ! जन्म विकृतियों का इलाज़ एलोपैथिक में कम ही पाया जाता है, ईश्वर से मेरी हार्दिक प्रार्थना है कि बच्ची को इस मुसीबत से निजात दिलाएं ! जितना आप को मैं आपके लेखों के द्वारा जानता हूँ आप एक नेक इंसान हैं सो परमपिता आपका मददगार होगा ! हाँ एक बात और ...
अगर इस भाई के लायक कोई जरूरत पड़े तो रात को भी याद करने से सकुचाना नहीं , मैं अमीर नहीं हूँ मगर इश्वर ने दिल बड़ा दिया है इसका यकीन रखियेगा ! अगर अकेलापन महसूस करें तो मुझे याद अवश्य करियेगा !
आदर सहित
अभी तो फ़िलहाल डा. नरेश सैनी ने ड्रेसिंग कर दी है लेकिन उसे न्यूरोसर्जन को दिखाना होगा। आप सही कहते हैं , पैदाइशी विकृतियों में एलोपैथी कम कारगर है। पस के लिये तो साइलीशिया वग़ैरह भी तीर बहदफ़ हैं। लेकिन इस समय मैं खुद ही अपने घर, अपने शहर से दूर हूं। अपनी वाइफ़ की छाती की गांठ को मैंने ब्रायोनिया 30 की मात्र दो बूंद की एक खुराक से घुलते हुए, ग़ायब होते हुये देखा है। रात के समय गांठ थी और सुबह के समय गांठ ग़ायब। मज़े की बात यह है कि इस दवा के बारे में मैंने ग़ाज़ियाबाद के रेलवे स्टेशन के बाहर रद्दी पत्रिकाओं में से किसी में बस यूं ही पढ़ लिया था। घर पर आया तो वालिदा साहिबा के बुख़ार की वजह से ब्रायोनिया रखी हुई थी।
ReplyDeleteबहरहाल एक भाई ने कहा भी है कि मालिक ने हरेक बीमारी के लिये दवा बनाई है लेकिन कभी कभी पूंजीपति दवासाज़ों और कमीशनख़ोर डाक्टरों की वजह से वह दवा आदमी की पहुंच से बाहर हो जाती है। इस्लाम यहां न तो सिस्टम में है और न ही अधिसंख्या के जीवन में। परलोक को भूलकर लोग जी रहे हैं और अपनी और दूसरों की समस्याएं बढ़ा रहे हैं।
आपका और मेरा ईश्वर एक ही है और धर्म भी। मेरी नज़र में तो दुई है नहीं। इस पर फिर कभी बात करेंगे, इन्शा अल्लाह।
आप चाहे बड़े आदमी न हों लेकिन मेरे लिये बड़े ही हैं। मैं आपसे प्यार करता हूं, बहुत प्यार। इतना प्यार कि आपके लिये अपने जज़्बात का इज़्हार करते हुए हमेशा की तरह मेरी आंखों में नमी तैरने लगी है जबकि अपनी बच्ची की बीमारी की ख़बर फ़ोन पर सुनकर भी ऐसा न हुआ था। आपके अच्छे मश्विरों का हमेशा सम्मान करता रहूंगा।
आदर सहित
होमिओपैथी का मैं भक्त हूँ अनवर भाई ! मुझे बहुत अच्छा लगा कि आपको इस पर यकीन है ! मुझे ख़ुशी है कि आपने एक बूँद ब्रायोनिया का चमत्कार खुद देखा है ! जब तक आप इसका एलोपैथिक इलाज़ करवा रहे हैं, तब तक इस बच्ची को तुरंत साइलीशिया, कल्केरिया सल्फ़ तथा कल्केरिया फ्लोर ६ एक्स में पीस कर देना शुरू करें ! और किसी अच्छे होमिओपैथ से सलाह लें !
ReplyDeleteमैं आपसे दुबारा कह रहा हूँ कि अगर मेरी किसी भी हाल में जरूरत हो तो भूलियेगा नहीं ! इस तकलीफ में मैं आपके साथ हूँ !
आदर सहित
@ dr anwar jamaal ,
ReplyDeleteplease check this link also.
http://www.marchofdimes.com/pnhec/4439_1224.asp#head4
ReplyDelete@ सतीश जी,
मेरे हिसाब से हर वह व्यक्ति जो अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को एक इकाई के रूप में निःस्वार्थ सम्पादित कर रहा है, वह स्वलोभी, आत्मकेन्द्रित व्यक्ति से तुलनात्मक रूप में अग्रज़ ही कहलायेगा ।
यह पोस्ट पढ़ने के बाद मुझे अपने में कुछ ख़ामियाँ दिखी, सो इसे स्वीकार करते हुये अपने को अकिंचन मान लेना एक ईमानदार अभिप्राय है, न कि वक्रोक्ति !
@ डा. अरविन्द,
वैचारिक मतभेद या दृष्टि विभेद अपनी जगह पर, किन्तु मैं आपके लेख विज्ञान-प्रगति में अक्सर पढ़ता रहता हूँ.. और आपके अध्ययन की गहनता जितना भी आँक सका हूँ... उसको नकार देना अन्याय होगा । मै ज्ञानार्जन को जीवन में निष्ठा का प्रतीक मान कर सतत विद्यार्थी बने रहने में विश्वास करता हूँ । इस नाते मैं अपने सम्पर्क में आये हर व्यक्ति से कुछ न कुछ झटक ही लेता हूँ, जबकि उसे इसका भान भी नहीं होता । क्या एकलव्य की परिभाषा इससे इतर कुछ और भी है, तो बतायें ।
प्राचीन साहित्य ऎसे दृष्टाँतो से भरा पड़ा है, जहाँ रँक ने राजा का भ्रम तोड़ा है, उनके अभिमान को खँडित किया है.. इस नाते आपका रँक होना एक चिर-नवीन उपलब्धि है !
@ Voice Of The People,
ReplyDelete"काम तो हकीकत मैं काबिल इ तारीफ है, लेकिन यह काम आपने स्वर्ग पाने के लिए किया या केवल इंसानियत के नाते किया? यह ध्यान आया तो सोंचा पूछ लें? "
आपके प्रश्न ने तो मुझे निरुत्तर कर दिया ! आपका शुक्रिया , आपका प्रश्न स्पष्ट है मगर मंतव्य मुझे नहीं मालुम !
किसी के बारे में जानना हो तो उसके कुछ लेख पढ़ना काफी होता है ! आपका प्रश्न धार्मिक है और मैं अपने ब्लाग पर धर्म की बहस छेड़ना नहीं चाहता हूँ ...यह आप लोगों को मुबारक हो ! आप मेरे बारे में अपने विचार बनाने के लिए स्वतंत्र हैं ! बहुत से साथी यह भी जानते हैं कि ऐसे लेख अपनी तारीफ करने और करवाने के लिए लिखे जाते हैं, उनको भी जवाब देना पड़ेगा ....??
सादर
आपके प्रयास अनुकरणीय हैं, Its our fortune that simple and loving people like you are with us.
ReplyDeleteYour timely decisions and the posts are so motivating.
Regards,
सतीश जी। "दान" देवत्व का प्रतीक है। यह भाव
ReplyDeleteजिनमें प्रबल रहता है; निराशा उनके निकट नहीं
आती है। आपका सदैव मंगल हो। धर्म और जातियाँ
पूर्वजों के राजनैतिक संघर्ष की उपज हैं।
इस प्रसंग में अपनी काव्य कृति "बड़े वही इंसान"
की कुछ पंक्तियाँ निवेदित हैं---
---------------------------------------------------------------
हम सब एक तरह के पंछी जग करते गुलजार हैं।
जाति, धर्म, नफ़रत की बातें, प्रेम नहीं, दीवार हैं॥
--------------------------------------------------------------------
बलशाली होने से कोई, बड़ा नहीं बन जाता,
धन-दौलत से नहीं बड़प्पन का किंचित भी नाता,
बडे़ वही इंसान कि जो करते जग पर उपकार हैं॥
हम सब एक तरह के पंछी जग करते गुलजार हैं।
-------------------------------- सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
' एक दिन अपोलो हास्पिटल में अपनी मृत्यु के बाद शरीर के सारे अंग दान करने की इच्छा प्रकट की जिसे हास्पिटल अथोरिटी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया , शायद मेरे जीवन के सबसे अच्छे कार्यों में से यह एक है ! '
ReplyDelete- अनुकरणीय.
आप हमारे ब्लॉग पर आये , शुक्रिया ! हमारा तो मन्ना ये है कि
ReplyDeleteइन्सान को चाहिए कि वह इन्सानियत को जाने पहचाने और माने । इन्सानियत सिखाने के लिए ही अल्लाह पाक ने पाक पैग़म्बर भेजे। उन्होंने लागों की गालियां और पत्थर खाए लेकिन सच का रास्ता उनके सामने अयां करते रहे आखि़कार किसी नबी को लोगों ने क़त्ल कर दिया और बहुतों को झुठला दिया । मानने वाले भी इस दुनिया से चले गए और उन्हें झुठलाने वाले भी। जब हरेक इन्सान को मरना ही है तो दुनिया में दुनिया के लिए झगड़ना क्यों ?
अनवर साहब के लिए मैंने अपने एक अच्छे homoeopath को बुलाया है .
सतीश जी कोई इंसान अगर नास्तिक ना हो तो या तो वोह नेक काम स्वर्ग पाने के लिए करता है या दुनिया की वाहवाही के लिए. और अगर समझदार है तो इननियत के नाते करता है. यही जान ना चाहता था, इसमें धर्म कहां से आ गया?
ReplyDeleteआपका तजवीज़ करदा नुस्ख़ा मैंने अनवर साहब तक पहुँचा दिया है इस्तेमाल आज से शुरू कर दिया जाएगा,ऐसा उन्होने कहा है।शुक्रिया जब कभी इधर से गुज़र हो तो देवबंद तशरीफ़ ज़रूर लाए खुशी होगी।
ReplyDeleteजय भीम क्या आपने दलित साहित्य पढ़ा है
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
ReplyDelete@ जनाब सतीश सक्सेना जी!आपका सजेशन बज़रिये हकीम सऊद साहब मिला और उनके ही मेहरबान बुज़ुर्ग दोस्त जनाब डाक्टर प्रभात अग्रवाल साहब से सलाह भी ली गयी तो उन्होंने ये प्रेस्क्राइब किया . दवा दी जा रही है .
ReplyDeleteSilicea 30 x , Cal. fluor. 12 x ,
Myristica sab. 30
मालिक से उसके फ़ज़ल की उम्मीद रखते हैं . आपके समीम ए क़ल्ब से शुक्रगुज़ार हैं .
हद उम्दा पोस्ट.
ReplyDeleteविषय से हट कर की गयी टिप्पणियों में उलझ गया...जो भाव पढ़ते ही मन में लिखने के लिए आये थे वे इन टिप्पणियों ने खा लिए. मुझे बुरा लगता है जब कोई विषय से हटकर टिप्पणी करता है..फिर चाहे वो कितना ही बड़ा साहित्यकार क्यों न हो.
एक बात आप की पोस्ट पढ़ कर गाँठ बाँध ली कि मुझे भी रक्तदाता बनना है. मेरा ब्लड ग्रुप a+ है. किसी न किसी को तो काम आएगा ही.
आपके जज्बे को शत-शत प्रणाम.
रासलीला मेरी पोस्ट पर देखें
ReplyDelete@हकीम सऊद अनवर खान ,
ReplyDeleteदेववंद आने की इच्छा है , जब कभी भी आया तब आपसे संपर्क करूंगा ! आपका शुक्रिया !
@अनवर भाई ,
भरोसा रखें ...सब ठीक हो जायेगा !
@सत्य गौतम !
दलित साहित्य नहीं पढ़ा , मगर महसूस किया है ! जो कुछ महसूस किया है , उसे अगर आप पढना चाहें तो क्यों लोग मनाते दीवाली ? पढ़ें !
शिकायत मुझे उन ब्लॉगर्स से भी है जो ‘प्यार लुटाने वाले‘ भाई सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग पर अपनी हाज़िरी लगाते रहते हैं।
ReplyDeleteउनकी पोस्ट पर किसी भी समय मर जाने वाली मेरी बेटी का ज़िक्र कई बार आया, सक्सेना जी ने भी उन पर उचित चिंता प्रकट की लेकिन क्या मजाल कि कला, मनोविज्ञान और शिष्टाचार के इन माहिरों में से कोई ज़रा भी विचलित हुआ हो ?
तंगदिल-संगदिल तो ये सब हो नहीं सकते तो फिर इन्हें एक मासूम बीमार बच्ची के हक़ में हमदर्दी के दो बोल बोलने से किस चीज़ ने रोका ?
जबकि ये जिन सतीश जी का लेख पढ़कर उन्हें ‘अनुकरणीय‘ बता रहे हैं वे मेरी बच्ची के बारे में इतने फ़िक्रमंद हो गये कि बोले कि अगर रात में भी बुलाओगे तो मैं आउंगा। ये उनके अनुकरण में इतना भी करने के लिये तैयार न हुये जितना कि ‘इनसान‘ कहलाने के लिये बुनियादी तौर पर ज़रूरी है ।
क्या इन पुरूष बुद्धिजीवियों से मेरी शिकायत वाजिब है या ग़ैर वाजिब है ?
सतीश जी.. आपके जज्बे को सलाम.. आपकी सोच को सलाम..
ReplyDelete@डॉ. जमाल साहब हम आपकी बच्ची की बेहतरी के लिए दुआ करते हैं। सब्र से काम लीजिए.. अल्लाह पर भरोसा रखें.. और अच्छे डॉक्टर से सलाह लेते रहें।
sir, Some photos of newborn baby four you .
ReplyDeletehttp://vedquran.blogspot.com/2010/06/manner.html
कहूँगा तो बड़ी बात होगी पर दिल से कहता हूँ आज की दुनिया में ऐसे लोग आदमी नही महापुरुष होते है..भगवान को तो किसी ने देखा नही पर मौत से जूझते लोगों की सहर्ष मदद कर उन्हे जीवन देना कोई छोटी बात भी नही..
ReplyDeleteप्रणाम चाचा जी..आपके व्यक्तित्व पर नतमस्तक हूँ.....
आप महान हैं. आप महापुरुष हैं. दुनियाँ में कितने लोग रक्तदान करते हैं? रक्तदान ही महादान है. जीवनदान है. रक्त देकर ही किसी का जीवन बचाया जा सकता है. आप जीवन बचाते हैं. आप डॉक्टर से कम नहीं हैं. आपने लाखों लोगों को अपना मुरीद बना लिया है. सक्सेना जी रक्तदान करके भगवान के बराबर का काम कर रहे हैं आप. अपना शरीर दान करके आपने मानवता के लिए एक आदर्श स्थापित किया है. दुनियाँ आप के जैसे लोगों से ही चल रही है. आपको प्रणाम.
ReplyDelete@ anonymous,
ReplyDeleteआप अगर अपने नाम से लिखते तो अच्छा लगता , तारीफ सुनना मुझे भी अच्छा लगता है , मगर आपने मेरी तारीफ की जगह अतिशयोक्ति उपयोग में लाये हैं , परमपिता के सामने मैं एक ज़र्रा भी नहीं हूँ ! रह गया खून देने का कार्य यह एक अत्यंत सामान्य कार्य है !