बहुत कुछ दिया है ब्लाग जगत ने हमें ! अजनबी मगर आपस में समान रूचि वाले लोगों में जो अपनापन और प्यार इस आभासी जगत में पाया जाता है अन्यंत्र शायद दुर्लभ है ! ब्लाग जगत ही एक ऐसा स्थान है जहाँ एक छोटे से कसबे में रहने वाला ब्लागर, आसानी से उच्च पदस्थ अधिकारियों , पत्रकारों, कलाकारों और विदेशों में बसे भारतीयों से आसानी से बेहद अपनापन और घनिष्टता के सम्बन्ध बना सकता है !स्वाभाविक है कि एक सामान्य लेख़क भी बहुत शीघ्र अपने आपको , इन संबंधों के कारण शक्तिशाली महसूस करने लगता है !
उदाहरण के लिए इन्हीं मधुर संबंधों के चलते मुझे विदेश यात्रा के दौरान श्री राज भाटिया और श्री दिगम्बर नासवा ने क्रमशः जर्मनी और दुबई आने का न्योता दिया था !
शायद इसी कारण , ब्लाग जगत में आपसी प्रतिस्पर्द्धा और फलस्वरूप ईर्ष्या के कारण अक्सर घमासान मचा रहता है ! लोग आगे आने के लिए क्या नहीं करते ,हर आदमी इस बढ़ती हुई भीड़ से अपना चेहरा दिखाने के लिए सब कुछ करना चाहता है, जिससे उसे सार्वजनिक मान्यता मिल जाए ! फलस्वरूप ब्लागजगत में बेहतरीन कलम के धनी लोग, जो यकीनन श्रद्धा के लायक हैं, आपस में विभिन्न खेमों में बट गए हैं !
विभिन्न क्षेत्रों में समर्पित विद्वान् ब्लागरों में व्याप्त यह असहिष्णुता, जो हमें आपस में लड़ा रही है, का विरोध करने की हिम्मत कम ही लोग कर पा रहे हैं ! जो कोशिश करता है उस पर दूसरे पक्ष का साथ देने का आरोप लग जाता है, सो धीरे धीरे ऐसे प्रयास भी दम तोड़ते जायेंगे ! अफ़सोस है कि लोग विश्वास की जगह को अविश्वास अधिक आराम से अपनाते हैं ! ये हम जैसे तमाम लोगों की पीड़ा है...जो किसी गुट में नहीं जाना चाहते !
"तंग-जाहिद नज़र ने मुझे काफिर समझा
और काफिर ये समझता है मुसलमाँ हूँ मैं"
अंत में अनूप शुक्ल को, नमन करते हुए उनके "ब्लागर छत्तीसा " पैरा २८ के अनुसार "किसी बेसिर पैर की बात को जितने अधिक विश्वास से कह सकता है वह उतना ही सफल ब्लागर होता है ! "
kya kahe...?
ReplyDeleteshavdheen anubhav kar rahee hoo...........
mai to apane bare me itna jantee hoo ki apane anubhavo ko batora aur blog ke madhym se abhivykt kiya.......socha jab khalee hath janm liya tha in anubhavo se jo seekha hai sath kyo lejae.......bhoole bhatke agar koi aae to shayad kahee sambal mil jae......mera blog comments ka mohtaz nahee......
nakaratmakata ka ravaiya kisee bhee drashtikon se Satish jee theek nahee........
सतीश जी ... दरअसल खुद का खुला व्यक्तित्व भी दूसरे को आकर्षित करने वाला होना चाहिए तभी आपसी संबंध बनते हैं और फिर हम तो मानते हैं .. जैसी रही भावना जिसकी .... अतिथि में देव को देखने की परंपरा के वारिस हैं हम तो ... आप का खुला व्यवहार ने ही प्रेरित किया मुझे भी आपको दुबई का न्योत देने को ... वैसे ये जीवन अगर आपसी प्यार में कट जाए तो इससे अच्छा क्या .... आपसी गुटबाजी में कुछ नज़र नही आता मुझे तो
ReplyDeleteमुझे तो फोटो कमाल के लगे..
ReplyDeleteham to iske sukhd paksh ko hi dekhe
ReplyDeleteachha aalekh aisi bato ko jitna sochege nkaratmkta hi dikhai degi .ham to likhte rhe aur aps me sneh bantte rahe .
घबराईये नहीं अब आ गयी है जूनियर्स ब्लागर्स की जबड़ा तोडू फ़ौज ! सावधान हो जाईये !
ReplyDeleteसतीश शेरमा साहब में अनूप शुक्ल जी से सहमत हूँ की किसी बेसिर पैर की बात को जितने अधिक विश्वास से कह सकता है वह उतना ही सफल ब्लागर होता है ! मेरा जारी तजरबा यह है की अगेर आप सच बयान करें, हक की बात करें तोह एक कामयाब ब्लॉगर नहीं बन सकते. सच में ज़रा झूट मिला दें, नाम हक का और बात नाहक करीं तोह बड़े कामयाब ब्लॉगर बन सकते हैं.
ReplyDeletegood introspection
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ReplyDeleteपहला पैरा बिल्कुल सही । अनजाने दोस्त बन जाते हैं ।
ReplyDeleteलेकिन बे सर पैर की लिखने वाले ही सफल होते हैं यह ठीक नहीं ।
कुछ सार्थक लेखन भी हो रहा है यहाँ ।
सतीश भाई,
ReplyDeleteऔर किसी को ब्लॉगवुड से क्या मिला, क्या नहीं मिला, नहीं जानता...हां इतना ज़रूर जानता हूं कि आप जैसा बड़ा भाई मुझे दे दिया, जिसका दिल हर किसी के दर्द के लिए धड़कता है...
जय हिंद...
bahut se naye rishte diye blog jagat ne..bahut badhiya baat kahi chacha ji apne...
ReplyDelete"तंग-जाहिद नज़र ने मुझे काफिर समझा
ReplyDeleteऔर काफिर ये समझता है मुसलमाँ हूँ मैं"
बहुत खूब सतीश भाई !
यहाँ खुशदीप भाई से १००% सहमत हूँ | आप से जब भी बात करी यही लगा अपने दिल बात अपने बड़े भाई से कह रहा हूँ ! अपना आशीष बनाये रखियेगा !
Bae bhai ko namaskar,
ReplyDeletemain aap se kitne dino se milna chahta hun magar aap hain ki itna jyada busy rahte hain kya batain.
Khair kaise rahi Videsh yatra
बहुत सही आकलन किया है आपने सतीश साहब। आपने पिछले दिनो अपनी कोशिशो से ब्लागजगत मे जो अच्छा माहौल बनाया आपकी वो कोशिशे काबिल ए क़द्र है
ReplyDeleteसक्सेना साहब,
ReplyDeleteशेर बहुत अच्छा लगा,
"तंग-जाहिद नज़र ने मुझे काफिर समझा
और काफिर ये समझता है मुसलमाँ हूँ मैं"
ये ब्लॉग जगत भी तो उसी दुनिया का हिस्सा है, जिसमें हम आप रहते हैं। हर तरह के लोग हैं यहां भी, लेकिन अनुभव अपने भी अच्छे ही रहे हैं यहां पर, अभी तक। कभी कभी बुरा भी लगता है पर सब अच्छा ही अच्छा तो अपने घर, ऑफ़िस में भी नहीं होता।
फ़िर कहता हूं, शेर बहुत अच्छा और कैनूं है।
आभार।
खुशदीपजी जैसा कह रहे है तो यही सबसे बड़ी बात है। मुझे भी अपना ही समझे। अच्छे लोगों से मिलकर भला किसे अच्छा नहीं लगता।
ReplyDeleteसतीश जी आप जैसे स्नेही को कौन नही सुनना चाहेगा.
ReplyDeleteदिगंबर जी के कथन को मेरा भी कथन माना जाये.
वैसे दिगंबर जी जैसे नेक दिल साथी का साथ मुझे मिलता रहा है और भाटिया जी वो शख्स हैं जिनकी टिप्पणी मुझे ब्लॉगजगत में तब मिलती थी जब मेरा कोई अत पता नही हुआ करता था.
आपका बहुत शुक्रिया अपने अनुभव को बांटा हमसे.
ब्लागर छत्तीसा की जय हो.
ReplyDeleteब्लाग जगत में आपसी प्रतिस्पर्द्धा और फलस्वरूप ईर्ष्या के कारण अक्सर घमासान मचा रहता है !'
ReplyDeleteयह तो ब्लागज़गत की सफलता है.
बहुत सही कहा है ब्लागज़गत ने बहुत कुछ दिया है.
मस्त रहें और देश को आगे बढ़ाएं.
ReplyDeleteमै भी यही विषय उठाना चाहता था . जल्द ही लिखुन्गा मुझे ब्लाग से क्या मिला
ReplyDeleteSatish ji,
ReplyDeleteSurvival of the fittest !
Jo darr gaya wo mar gaya !
kya hum apko nahin mile ? hamara naam bhi le diya hota. khair iski shikayat Bhabhi maa se ki jayegi .
ReplyDeleteविचारणीय पोस्ट
ReplyDelete....फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी!!!
ReplyDeleteसच है, बहुत कुछ मिला है इस ब्लॉग-जगत से.
ReplyDeleteअटल बिहारी जी की कविता याद आ रही है,
ReplyDeleteक्या खोया क्या पाया जग मैं
मिलते और बिछड़ते जग मैं
मुझे किसी से नही शिकायत
यध्पि छला गया पग पग मैं.........
ReplyDeleteसहमत हूँ, बहुत कुछ लिया और दिया जा सकता है,
बशर्ते कि आत्मप्रवँचना के भाव को दूर रखते हुये वास्तविक दुनिया से जुड़ाव कायम रखा जाये !!
यह न भूला जाये कि, लैपटॉप के इस पार भी एक दुनिया है, उसकी व्यवहारिकतायें हैं, और उसकी पुरजोर अपेक्षायें भी हैं ।
मोबाइल फोन के उस पार एक आवाज़ होती है, चेहरा नहीं होता.. सँदेश प्रक्षेपित तो होते हैं, पर सँप्रेषण के सँवेदन को आँक पाना कठिन होता है । ब्लॉगिंग तकनीक ने विचार और सँदेशों के त्वरित आदान प्रदान के यथासुलभ अवसर दिये हैं, पर मानवीय भावनाओं को मशीनी स्तर पर ला खड़ा किया है !
नुक्कड़ के हुल्लड़ का, ड्राइँगरूम की गप्पाश्टक गोष्ठी का, बहस मुसाहिबत की गर्मजोशी के लुत्फ़ को एक आभासी चरित्र गढ़ कर नहीं जिया जा सकता ! बड़े बड़े मतभेद चाय की एक प्याली के ज़ुर्माने मात्र से सुलट जाते थे.. अब ? हाँ, इस मुई ब्लॉगिंग ने अपने को ’ मुझसा न दूजा कोई ’ लगातार साबित करते रहने का एक वैश्विक मँच अनायास ही घर-बैठे मुहैय्या करवा दिया है ! इस उपलब्धि की सहजता और आसानी ने कितनों का हाज़मा खराब किया है, क्या यह बताने की आवश्यकता है ? मुझे ( हिन्दी ब्लॉगिंग में ) कोई ऎसी नज़ीर नहीं मिलती कि किसी ब्लॉगर ने इस माध्यम को तृप्त होकर छोड़ा हो न कि तिक्त होकर ?
अभी कुछेक घँटे पहले ब्लॉगर बँधु श्री राज सिंह के मातृविछोह के त्रयोदशा सँस्कार से प्रतापगढ़ के गाँव दँडूपुर मुफ़रिद से लौटा ही हूँ, सँग में फोटू खींचने वाला मोबाइल भी था.. क्या मुझे अन्यंत्र दुर्लभ इस आभासी जगत के प्यार भरे सँबन्ध से उपजे सामान्य शिष्टाचार निभाने की कवरेज़ देनी चाहिये थी ? प्रथम दृष्टया तो यह स्नेह पगे धौलधप्पे और उनके व्यवहार का खु्लापन इस ऍप्रूवल छद्म से निताँत अलग है, जिससे कि मोटरबाइक की दौड़ाहट से क्लाँत एक टिप्पणीकार अभी रूबरू होने जा रहा है, गो कि यह बेहतरीन पोस्ट है, प्रिय मित्र सतीश सक्सेना साहब की लिखी हुई है, और इस बेला ब्लॉगवाणी की पहली पायदान पर खड़ी है ।
माफ़ करना दोस्त, ब्लॉगिंग ने हमसे हमारी सहजता छीन ली है, हम निजता का हनन, सीमा का अतिक्रमण, मर्यादाओं की मर्यादा जैसे शब्दों से अपने को घेर कर, सड़ाँध को इत्र से ढक कर रखने की पवित्रता के अहँ को जीने लगे हैं !
Q. दिव्या Divya
आज तक डरने और मरने यहाँ कोई आया है क्या ? सभी पूरे होशो-हवास और सरफ़रोशी के जोश से ही आते देखे गये हैं !
कृपया अपने को स्पष्ट करें, क्या कोई जिज्ञासा, विमर्श या विचार परस्पर एक दूसरे को डराने के लिये ही ठेले जाते हैं ?
आपके कमेन्ट कोने में मुझे आज कुछ अँधेरा दिख रहा है, कृपया रोशनी डालें.. Light डालने से भी चलेगा !
अभिवादन !
ReplyDeleteऑब्ज़ेक्शन ओवर-रूल करके यदि मेरी उपरोक्त टिप्पणी प्रकाशित हुई भी हो,
तो इस पर आगामी पाठकों की त्वरित प्रतिक्रिया तो आने से रही... विमर्श के सँवाद तो ओझल हैं
क्योंकि अपने से पिछले टिप्पणीकार का मत जाने बिना, वह बेखबर अपना कीबोर्ड खटखटा रहे होंगे ?
@ अरविन्द मिश्र ,
ReplyDeleteएसोसियेशन कोई भी बने, मैं हमेशा समर्थन करता रहा हूँ , उससे पारस्परिक विचारविमर्श का एक मंच तैयार मिलता है , निस्संदेह युवा लोगों को बढ़ावा देना चाहिए और मेरे ख़याल से कुछ युवा साथियों में गज़ब की प्रतिभा है ...
हाँ, इस युवा जोश का फायदा उठाने का प्रयत्न न किया जाये जो अक्सर गुरुजन स्वभाव वश करते हैं, तो सब ठीक ही रहेगा !
@भाई तारकेश्वर गिरी,
दिल के आइनें में है तस्वीर आपकी
जब जरा गर्दन झुकाई , देखली !
आपका स्वागत है, जब भी जहां भी ! इस प्यार से तो आप जहां चाहें बुला लें ....
@ डॉ अयाज अहमद साहब ,
उन कोशिशों में आपने मुझे प्रमुखता दी है,श्रेय देने के लिए आपका धन्यवाद मगर मुझे ऐसा नहीं लगता कि इसमें मैंने कुछ अधिक किया है ! अगर आप खुद , सहसपुरिया साहब , कैरानवी साहब और खुद डॉ अनवर जमाल साहब साथ न देते तो मेरी क्या बिसात ! आप लोगों की समझ और विद्वता पर मुझे कोई संशय नहीं और ईमानदारी से कहूं तो विषय विशेष पर मुझे आप लोगों से कम समझ है, यह मैं जानता हूँ ! डॉ अनवर जमाल विद्वान् हैं जब वह सामान्य मूड में होते हैं तो उनके जवाब देखते बनते हैं !
जहाँ तक कट्टर वादियों का प्रश्न है, उन्हें मैं क्या, कोई नहीं समझा सकता , बिना यह जाने की इसका हश्र उनके परिवार पर क्या पड़ेगा वह अपना ही राग आलापते रहे हैं ! इश्वर ऐसे बुद्धिमानों को समझ प्रदान करे ! "दुसरे पक्ष को आदर तभी मिलेगा जब वह खुद आदर करना सीख ले " इस सार्वभौमिक सत्य को, आज नहीं तो कल मानना पड़ेगा , और यही कहानी सामान्य ब्लाग जगत में भी लागू होती है !
@ राजकुमार सोनी जी ,
आपके इन शब्दों के लिए आपका आभारी हूँ
@ दिव्या जी ,
मेरा ख्याल भी यही है, कि इस महासागर में, जो नित्य बढ़ रहा है, समय के साथ वही बचेगा जो ठीक होगा और इस ठीक का फैसला करने के लिए लाखों जज हैं यहाँ जो बढ़ते ही जा रहे हैं ! डरते कमजोर और बेईमान लोग हैं , ऐसे लोग देर सबेर अपना असली चेहरा लेकर सामने आ ही जाते हैं !
@सहसपुरिया साहब ,
बड़ी प्यारी लाइनें लिखी हैं आदरणीय वाजपेयी जी ने ...पढवाने के लिए शुक्रिया !
@डॉ अमर कुमार,
मैं ब्लागवाणी में मैं यह कभी देखता ही नहीं कि मेरी पोस्ट ने कितने माइनस या प्लस नंबर लिए , आपकी सुचना के लिए शुक्रिया, मगर मुझे विश्वास है कि वहां मुझे माइनस अंक जरूर मिले होंगे ! आपकी टिप्पणी के अधिकांश भाग से सहमत हूँ , जहाँ तक आपके प्रति मेरे भाव का सवाल है आपके प्रति, लिंक्डइन में बड़े स्पष्ट शब्दों में लिखा है ! आपका इन दिनों लेख न लिखना कई बार खलता है कृपया मेरा विरोध दर्ज करें !आपसे अपेक्षाएं हैं भाई जी !
@ डॉ अमर कुमार ,
गुरुदेव, यहाँ आपके विश्वास में नैराश्य क्यों ???
मुझे तो गर्व है कि आपसे दोस्त मिले.
ReplyDeleteब्लाग जगत ही एक ऐसा स्थान है जहाँ एक छोटे से कसबे में रहने वाला ब्लागर, आसानी से उच्च पदस्थ अधिकारियों , पत्रकारों, कलाकारों और विदेशों में बसे भारतीयों से आसानी से बेहद अपनापन और घनिष्टता के सम्बन्ध बना सकता है !
ReplyDelete"आपके इन विचारो से हम भी सहमत हैं,
regards
ब्लागजगत मे जो अच्छा माहौल बनाया आपकी वो कोशिशे काबिल ए क़द्र है
ReplyDelete@--Q. दिव्या Divya
ReplyDeleteआज तक डरने और मरने यहाँ कोई आया है क्या ? सभी पूरे होशो-हवास और सरफ़रोशी के जोश से ही आते देखे गये हैं !
कृपया अपने को स्पष्ट करें, क्या कोई जिज्ञासा, विमर्श या विचार परस्पर एक दूसरे को डराने के लिये ही ठेले जाते हैं ?
आपके कमेन्ट कोने में मुझे आज कुछ अँधेरा दिख रहा है, कृपया रोशनी डालें.. Light डालने से भी चलेगा !
अभिवादन !
Dr. Amar,
First of all i appreciate your sense of humor hidden beautifully behind 'ujala' and 'light'.
Now coming to the point..
I am not sure about others but i surely came here after losing all my hopes. It was the last resort chosen to fight the inner battle.
No one comes here to scare anyone. The bitter truth is that people come here after running away from the harsh realities of life. But unfortunately when they discover that virtual world is no different from the real world, they simply give up. It's kind of escapism in my humble opinion.
Koi kisi ko darayega kya? We need to fight our own fears first and that is the battle called LIFE.
for more 'ujala'and'light'..Kindly visit-
zealzen.blogspot.com
regards,
हमरे पोस्ट पर आपका दोबारा टिप्पणी के ऊपरः
ReplyDeleteअब आपसे नराज होकर हम नरक में जाएंगे का!!! हम त दू दिन से मुँह फुलाए हुए थे लेकिन जब आप पुछबे नहीं किए त हारकर बताना पड़ा… ई त ओही बात हो गया कि पड़िए जब बीमार तो कोई न हो तीमारदार... अब 13 का पहाड़ा मत याद करवाइए, 5 का पहाड़ा से काम चलेगा?
ऊ सब सवाल जाने दीजिए – जब गले मिल ही गए, सारा गिला जाता रहा. प्रनाम!!
अब स्पर्धा, ईर्ष्या, घमासान, विरोध का तो मुझे पता नहीं, किंतु इतना अवश्य है कि मैं चमगादड़ हूँ, उल्टा लटका, इण्टरनेट के अंधकार में विचरण करता हूँ, मुँह से एक ख़ास आवाज़ निकालते हुए जिसे आप ब्लॉग कहते हैं... दिखाई तो देता नहीं मुझ चमगादड़ को, लेकिन जहाँ से मेरे स्वर वापस आ जाएं, समझ जाता हूँ कोई है, जिस तक मेरी आवाज़ पहुँची है...
ReplyDeleteआप भी ऐसे ही मिले थे मुझे और दूसरी पहचान उनसे हुई जिनका नाम… न …जो स्वनामधन्य हैं...अपनत्व!!!हमारे उद्गार उन तक पहुँचाने की कृपा करेंगे.
ReplyDelete@ सतीश सक्सेना
सतीश यार, बिगड़ता काहे है ? अब तो दुनिया मुट्ठी में रहा करती है, सो नेटवर्क मिलते ही मोबाइल पर ब्लॉगवाणी की प्रविष्टियाँ देख डालीं । यहाँ पहुँचते ही पोस्ट पढ़ी और मॉडरेशन की परवाह न करते हुये, फ़ौरन टिप्पणी दे डाली.. बस, इतना ही तो ?
ब्लॉगवाणी के प्रविष्टियों के दौड़ में शामिल न सही, पर ब्लॉगिंग गतिविधियों के विहँगम आकलन के लिये इसे देख भी लिया करो !
यही वह समुँद्र है, जहाँ ब्लॉग-मँथन से निकलने वाली ’ पुँजिकास्थला जैसी अप्सराओं ’ को हथियाने के देव नित तिकड़में भिड़ाया करते हैं, और असुर रणभेरी फूँका करते हैं । बिगड़ता काहे है, बस अपना टैगलाइन याद कर, लाइट ले यार !
@ दिव्या Divya
so, you have arrived in blogging arena... Welcome ! May it prove itself Mecca of rationality-mongers.
Solicitiously gone through your front page writing I love my solitude ! But desisted in putting any comment there, lest solicitude of a solitarian may not be disturbed. Bravo..you write well !
प्रेरक एवं मूल्यवान विचार के लिए बधाई स्वीकारें|
ReplyDelete""ब्लागिंग" आधुनिक तकनीकी के माध्यम से अभिव्यक्ति का एक सरल और अच्छा उपाय जनता के हाथ लगा है। इसके द्वारा लोकवाणी अपने वास्तविक रूप में उभर रही है। आम आदमी की आप बीती इसमें मुखर हो रही है। उसकी आकांक्षाएं इसमें जन्म ले रही हैं जिनकी गूंज देश-विदेश सभी जगह पहुँच रही है। लोकवाणी किसी की मोहताज नहीं होती है। वह अपनी राह अपने आप बनाते हुए आगे बढ़ती है। ब्लाग-लेखन जैसे-जैसे गति पकडेगा इसका स्वरूप निर्धारित होता जाएगा।"