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उर्मिला दीदी |
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कुसुम दीदी |
उन्हें एक चिंता रहती थी कि वे बच नहीं पायेंगे और इस लाइलाज बीमारी के लिए वे अपनी पैतृक जमीन बेचना नहीं चाहते थे ! वे अंतिम समय, अपनी चिंता न कर, मेरे भविष्य के लिए अधिक चिंतित थे ! इस चिंता को वे अपनी दोनों विवाहित पुत्रियों से , व्यक्त किया करते थे ! माँ के जाने के कुछ ही समय बाद , पिता ने नानी के घर में अपनी अंतिम सांस लीं , अंतिम दिनों वे अपनी तकिये के नीचे , अपने ४ वर्षीय बेटे के लिए, खोये की गुझिया छिपा कर, अवश्य रखते थे !
अंततः पिता के न रहने पर, बड़ी दीदी (कुसुम ) मुझे अपने साथ ले आयीं उसके बाद की मेरी परिवरिश बड़ी दीदी ने की, जिन्होंने अपने सात बच्चों के होते हुए भी, मुझे माँ की कमी महसूस नहीं होने दी ! अगर वे न होतीं तो शायद मेरा अस्तित्व ही न होता !
अक्सर अकेला होता हूँ तो मन में, अपनी माँ का चित्र बनाने का प्रयत्न अवश्य करता हूँ ! बिलकुल अकेले में याद करता हूँ , जहाँ हम माँ बेटा दो ही हों , बंद कमरे में ....
भगवान् से अक्सर कहता हूँ कि मुझ से सब कुछ ले ले... पर माँ का चेहरा केवल एक बार दिखा भर दे...बस एक बार उन्हें प्यार करने का दिल करता है, केवल एक बार ...कैसी होती है माँ ...??
मुझे खिलाने की चिंता में
खुद भूखी रह जाती होगी
बरसों मन्नत मांग गरीबों को,
भोजन करवाती होंगी !
मेरी तकलीफों में अम्मा, सारी रात, जागती होगी !
रात रात भर ,सो गीले में ,
मुझको गले लगाती होगी
अपनी अंतिम बीमारी में ,
मुझको लेकर चिंतित होंगी
बच्चा कैसे जी पायेगा ,
वे निश्चित ही रोई होंगी !
सबको प्यार बांटने वाली, अपना कष्ट छिपाती होंगी !
मुझको गले लगाती होगी
अपनी अंतिम बीमारी में ,
मुझको लेकर चिंतित होंगी
बच्चा कैसे जी पायेगा ,
वे निश्चित ही रोई होंगी !
सबको प्यार बांटने वाली, अपना कष्ट छिपाती होंगी !
अपनी बीमारी में, चिंता
सिर्फ लाडले ,की ही होगी !
गहन कष्ट में भी , वे ऑंखें
मेरे कारण चिंतित होंगी !
अपने अंत समय में अम्मा ,
मुझको गले लगाये होंगी !
मेरे नन्हें हाथ पकड़ कर ,फफक फफक कर रोई होंगी !
माँ ! यह एक ऐसा शब्द है जो मैंने कभी किसी के लिए नही बोला, मुझे अपने बचपन में ऐसा कोई चेहरा याद ही नही, जिसके लिए मैं यह प्यारा सा शब्द बोलता ! अपने बचपन की यादों में उस चेहरे को ढूँढने का बहुत प्रयत्न करता हूँ मगर हमेशा असफल रहा मैं अभागा !मुझे कुछ धुंधली यादें हैं उनकी... वही आज पहली बार लिख रहा हूँ ....
जो कभी नही लिखना चाहता था !
-लोहे की करछुली (कड़छी) पर छोटी सी एक रोटी, केवल अपने इकलौते बेटे के लिए, आग पर सेकती माँ....
-बुखार में तपते, अपने बच्चे के चेचक भरे हाथ, को सहलाती हुई माँ ....
-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँ को मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे सब ले गए मेरी माँ को ....बस यही यादें हैं माँ की .....
माँ के न होने की तड़प अक्सर महसूस होती रही है ...
इक दिन सपने में तुम जैसी,
कुछ देर बैठ कर चली गयी !
हम पूरी रात जाग कर माँ ,
इस दुनिया से लड़ते लड़ते ,
तेरा बेटा थक कर चूर हुआ !
तेरी गोद में सर रख सो जाएँ, इस चाह को लेकर बैठे हैं !
जब से होश संभाला, दुनिया में अपने आपको अकेला पाया, शायद इसीलिये दुनिया के लिए अधिक संवेदनशील हूँ ! कोई भी व्यक्ति अपने आपको अकेला महसूस न करे इस ध्येय की पूर्ति के लिए कुछ भी , करने के लिए तैयार रहता हूँ !
आज के समय में परस्पर स्नेह, जैसे परिवार से मिटता जा रहा है !असुरक्षित पुरानी पीढ़ी,अपने ही बच्चों से , अपने संसाधन, छिपाने में लगे रहते हैं ! अपने ही खून से,झूठ बोल, सहयोग व सेवा की उम्मीद, परिवार शब्द का मज़ाक बनाने के लिए काफी है ! बदकिस्मती से आज समाज में हर रिश्ता, एक दूसरे के प्रति अविश्वास के लिए अपराधी है !
किसी से भी आदर पाने के लिए निश्छल स्नेह और आदर देना आवश्यक होता है ! और यही मजबूत घर की बुनियाद होती है !हमारे होते , अपनों की आँख से आंसू नहीं गिरने चाहिए ,इन आँखों से गिरता हर आंसू , स्नेहमाला के टूटते हुए मोती हैं ....
गंभीर और कष्टकारक स्थितियों में, हमें अपने बड़ों का साथ देना चाहिए न कि हम उनका उपहास करें और उनकी कमियां गिनाते हुए उपदेश दें , ऐसे उदाहरण, मात्र क्रूरता माना जायेंगे ! ममता भरे आंसुओं को न पहचान सकने वाले अभागे हैं , भविष्य और इतिहास ऐसे लोगों को कभी प्यार नहीं करेगा !
सारा जीवन कटा भागते
तुमको नर्म बिछौना लाते
नींद तुम्हारी ना खुल जाए
पंखा झलते थे , सिरहाने
आज तुम्हारे कटु वचनों से,
मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !

पुरानी पीढ़ी, अपने जमाने की सीखी सारी परम्पराएं, इन घबराई हुई लड़कियों(नव वधुओं) पर निर्ममता के साथ लादने की दोषी है ! मैंने कई जगह प्रतिष्ठित ओहदों पर बैठे लोगों के सामने भी यह परम्पराएं होती देखीं ! इन परम्पराओं के जरिये बहू को "शालीनता" के साथ बड़ों का "सम्मान" करना सिखाया जाता है ! कॉन्वेंट एजुकेटेड इंजिनियर और मैनेजर बहू, घूंघट काढ कर, बैठी रहे ...थकी होने पर भी सास ननद को काम न करने दे आदि आदि...
और अफ़सोस यह है कि शालीनता के पाठ को पढ़ाने में, उस घर की महिलायें सबसे आगे होती हैं ऐसा करते समय उन्हें अपनी बेटी की याद नहीं रहती जिसे यही पाठ जबरदस्ती दूसरे घर पढाया जाना है !

गृहस्वामिनी को,ससुराल में बेटी की चिंता करने से पहले, अपनी बहू का ध्यान रखना होगा ! समाज में बदलाव लाने के लिए हमें हिम्मत भरे काम करने होंगे ...
इस बार पकड़ना हाथ जरा, मजबूती से साथी मेरे !
घनघोर अँधेरी रात मध्य,मैं चाँद को लाने निकला हूँ !
अपने लेखों में, विभिन्न रिश्तों के मध्य तकलीफें बयान की हैं जो अगर हम सब महसूस करलें तो इन गीतों का लिखना सफल मानूंगा !
कवि ह्रदय की विशालता रचनाओं में अक्सर चर्चित रही है , एक निश्छल मन से बड़ा कोई नहीं , यह परमहंस सरीखा मन, समझना हर किसी के बस का नहीं ..
सारी दुनिया ही, घर लगती
प्यार नेह करुणा और ममता
मुझको दिए , विधाता ने !
यह विशाल धनराशि प्राण,
अब क्या में तुमसे मांगूंगा !
दर्द दिया है, तुमने मुझको , दवा न तुमसे मांगूंगा !
जिसको कहीं न आश्रय मिलता
मेरे दिल में , रहने आये !
हर निर्बल की रक्षा करने
का वर मिला , विधाता से
दुनिया भर में प्यार लुटाऊं,
क्या निर्धन से मांगूंगा !
दर्द दिया है तुमने मुझको , दवा न तुमसे मांगूंगा !
मेरे दिल में , रहने आये !
हर निर्बल की रक्षा करने
का वर मिला , विधाता से
दुनिया भर में प्यार लुटाऊं,
क्या निर्धन से मांगूंगा !
दर्द दिया है तुमने मुझको , दवा न तुमसे मांगूंगा !
जब तक जियेंगे, हम भी जलाये रहें दिया !कब आसमान रो पड़े ?हमको पता नहीं !
गीत पढ़ते समय पाठक अपनी मनस्थिति के अनुसार उस गीत को परिभाषित करता है , कई बार अर्थ का अनर्थ भी महसूस किया जाता है, आशा है पाठक गण कवि ह्रदय की अनंत और असीम भावनाओं का आदर करेगा !
जो शब्द ह्रदय से निकले हैं
उन पर न कोई संशय आये
वाक्यों के अर्थ बहुत से हैं ,
मन के भावों से पहचानें !
मैंने तो अपनी रचना की,
हर पंक्ति तुम्हारे नाम लिखी
क्या जाने अर्थ निकालेगी, इन छंदों का, दुनिया सारी !
जो शब्द ह्रदय से निकले हैं
उन पर न कोई संशय आये
वाक्यों के अर्थ बहुत से हैं ,
मन के भावों से पहचानें !
मैंने तो अपनी रचना की,
हर पंक्ति तुम्हारे नाम लिखी
क्या जाने अर्थ निकालेगी, इन छंदों का, दुनिया सारी !
एक फ़िल्मी गीत, जो बचपन से सबसे अधिक पसंद है, "सदियों जहान में हो चर्चा हमारा" अक्सर गुनगुनाता हूँ ! जीवन में कुछ ऐसा करने की तमन्ना रही है जो कोई और न कर सका हो , कुछ ऐसा, जो दूसरों के लिए किया जाए , मानवता के लिए उदाहरण बनें ! अपने लिए भरपूर जीना ,और खुश रहना, कोई जीना नहीं हुआ !
मृत्यु बाद, गैर भी रोयें और कहें कि इस इंसान की अभी आवश्यकता थी , तब जीना सफल माना जाये !
आहटें पैरों की सुनकर,साज़ भी थम जाएँ जब,
देखकर हमको वहां , कुछ ढोल बजने चाहिए !
मेरे गीत लिखने का उद्देश्य , लोग पढ़ कर तारीफ़ करें ,या प्रकाशित हों, पुरस्कृत हों, कभी न रहा ! यह रचनाएं , अपने मन में उठी इच्छाएं और विचारों को एक आकार प्रदान करने का प्रयत्न हैं !पूरे जीवन जो खुद भोगा या मित्रों से महसूस किया , कवि ह्रदय ने उन्हें ईमानदारी के साथ, कागज़ पर लिख दिया !
अगर अरुण चन्द्र रॉय ( प्रकाशक ) न मिले होते तो यकीनन इस पुस्तक के छपने की मैं सोंच भी नहीं पाता ! यह नौजवान, हिम्मती प्रकाशक, अपना सर्वस्व दाव पर लगाकर, हम जैसे नवोदितों को प्रकाश में लाकर , अपने आपको, शर्तिया जोखिम में डाल रहा है ! ईश्वर से, मैं उनकी सफलता की कामना करूंगा !
इस गीतखंड के छपने के अवसर पर, अपने परिवार के साथ मैं , आज याद करना चाहता हूँ अपने उन प्यारों को,जिन्होंने मुझे खड़ा करने में मदद की !

सबसे पहले उन्हें, जिन्होंने मुझे उंगली पकड़ के चलना सिखाया , अगर वे हाथ मुझे सहारा न देते तो शायद मेरा अस्तित्व और यह भरा पूरा परिवार और मुझे चाहने वाले , कोई भी न होते ! उनमें से कुछ हैं और कुछ मेरी अथवा परिवार की लापरवाही के कारण, समय से पहले, छोड़ कर चले गए ! शायद उस समय उनकी अस्वस्थता पर मैंने उचित ध्यान दिया होता तो वे अभी मेरे साथ होते ! इन बड़ों के साथ, मैं अपने आपको हमेशा स्वार्थी महसूस करता हूँ , उनके साथ ही मैं सबसे कम कर पाया जिनके साथ सबसे अधिक करना चाहिए, हमेशा उनका ऋणी ही रहूँगा , उनका कर्जा लेकर मरना मेरी नियति होगी ...
इसके बाद वे, जो मेरे अपने नहीं थे , जिनसे कोई रिश्ता नहीं था उसके बावजूद इन "गैरों " ने, जब जब मुझे अकेलापन और अँधेरा महसूस हुआ , मेरा साथ नहीं छोड़ा ! मुझे लगता है, पिछले जन्म का कोई रिश्ता रहा होगा, जिसका बदला उन्होंने इस जन्म के कष्टों में, साथ देकर पूरा किया ! निस्वार्थ प्यार और स्नेह का कोई मोल नहीं होता ! जब भी अकेले में, मैं इन प्यारों का दिया संग याद करता हूँ तो आँखों में आंसू छलक आते हैं बस यही कीमत अदा कर सकता हूँ इन अपनों की ! और मेरे पास इन्हें देने को कुछ नहीं है , शायद आभार भी इनके प्यार का अपमान होगा !
विधि गौरव, ईशान गरिमा यह दोनों जोड़े बेहद मेहनती एवं कुशाग्र बुद्धि हैं , निश्छल मन के साथ मेरे यह बच्चे आसमान की ऊंचाइयां छुएंगे, ऐसा मुझे विश्वास है !
अंत में आभारी हूँ ,गृहस्वामिनी दिव्या का जिनके सहयोग बिना मेरे गीत ही नहीं, परिवार भी अधूरा होता ,शायद पत्नी की अपेक्षाओं पर उतरना बेहद मुश्किल होता है और मैं भी अपवाद नहीं रहा ! जहाँ मैं उन्हें सहयोग नहीं दे पाया उसके लिए अपनी अयोग्यता को दोषी ठहराता हूँ...
रुचियाँ -जिनका कोई न हो उनकी मदद करना, "आँचल" ट्रस्ट का संस्थापक , सर्विस संगठन में कार्य करना, फोटोग्राफी , होमिओपैथी पढना और लिखना, जीवन को हँसना सिखाना ...
मेरी रचनाएं मौलिक व अनपढ़ हैं , इनका बाज़ार में बताई गयी किसी साहित्य शिल्प, विधा और शैली से कोई लेना देना नहीं ये उन्मुक्त है और उन्मुक्त मन से इनका आनंद लें !