उर्मिला दीदी |
कुसुम दीदी |
उन्हें एक चिंता रहती थी कि वे बच नहीं पायेंगे और इस लाइलाज बीमारी के लिए वे अपनी पैतृक जमीन बेचना नहीं चाहते थे ! वे अंतिम समय, अपनी चिंता न कर, मेरे भविष्य के लिए अधिक चिंतित थे ! इस चिंता को वे अपनी दोनों विवाहित पुत्रियों से , व्यक्त किया करते थे ! माँ के जाने के कुछ ही समय बाद , पिता ने नानी के घर में अपनी अंतिम सांस लीं , अंतिम दिनों वे अपनी तकिये के नीचे , अपने ४ वर्षीय बेटे के लिए, खोये की गुझिया छिपा कर, अवश्य रखते थे !
अंततः पिता के न रहने पर, बड़ी दीदी (कुसुम ) मुझे अपने साथ ले आयीं उसके बाद की मेरी परिवरिश बड़ी दीदी ने की, जिन्होंने अपने सात बच्चों के होते हुए भी, मुझे माँ की कमी महसूस नहीं होने दी ! अगर वे न होतीं तो शायद मेरा अस्तित्व ही न होता !
अक्सर अकेला होता हूँ तो मन में, अपनी माँ का चित्र बनाने का प्रयत्न अवश्य करता हूँ ! बिलकुल अकेले में याद करता हूँ , जहाँ हम माँ बेटा दो ही हों , बंद कमरे में ....
भगवान् से अक्सर कहता हूँ कि मुझ से सब कुछ ले ले... पर माँ का चेहरा केवल एक बार दिखा भर दे...बस एक बार उन्हें प्यार करने का दिल करता है, केवल एक बार ...कैसी होती है माँ ...??
मुझे खिलाने की चिंता में
खुद भूखी रह जाती होगी
बरसों मन्नत मांग गरीबों को,
भोजन करवाती होंगी !
मेरी तकलीफों में अम्मा, सारी रात, जागती होगी !
रात रात भर ,सो गीले में ,
मुझको गले लगाती होगी
अपनी अंतिम बीमारी में ,
मुझको लेकर चिंतित होंगी
बच्चा कैसे जी पायेगा ,
वे निश्चित ही रोई होंगी !
सबको प्यार बांटने वाली, अपना कष्ट छिपाती होंगी !
मुझको गले लगाती होगी
अपनी अंतिम बीमारी में ,
मुझको लेकर चिंतित होंगी
बच्चा कैसे जी पायेगा ,
वे निश्चित ही रोई होंगी !
सबको प्यार बांटने वाली, अपना कष्ट छिपाती होंगी !
अपनी बीमारी में, चिंता
सिर्फ लाडले ,की ही होगी !
गहन कष्ट में भी , वे ऑंखें
मेरे कारण चिंतित होंगी !
अपने अंत समय में अम्मा ,
मुझको गले लगाये होंगी !
मेरे नन्हें हाथ पकड़ कर ,फफक फफक कर रोई होंगी !
माँ ! यह एक ऐसा शब्द है जो मैंने कभी किसी के लिए नही बोला, मुझे अपने बचपन में ऐसा कोई चेहरा याद ही नही, जिसके लिए मैं यह प्यारा सा शब्द बोलता ! अपने बचपन की यादों में उस चेहरे को ढूँढने का बहुत प्रयत्न करता हूँ मगर हमेशा असफल रहा मैं अभागा !मुझे कुछ धुंधली यादें हैं उनकी... वही आज पहली बार लिख रहा हूँ ....
जो कभी नही लिखना चाहता था !
-लोहे की करछुली (कड़छी) पर छोटी सी एक रोटी, केवल अपने इकलौते बेटे के लिए, आग पर सेकती माँ....
-बुखार में तपते, अपने बच्चे के चेचक भरे हाथ, को सहलाती हुई माँ ....
-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँ को मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे सब ले गए मेरी माँ को ....बस यही यादें हैं माँ की .....
माँ के न होने की तड़प अक्सर महसूस होती रही है ...
इक दिन सपने में तुम जैसी,
कुछ देर बैठ कर चली गयी !
हम पूरी रात जाग कर माँ ,
इस दुनिया से लड़ते लड़ते ,
तेरा बेटा थक कर चूर हुआ !
तेरी गोद में सर रख सो जाएँ, इस चाह को लेकर बैठे हैं !
जब से होश संभाला, दुनिया में अपने आपको अकेला पाया, शायद इसीलिये दुनिया के लिए अधिक संवेदनशील हूँ ! कोई भी व्यक्ति अपने आपको अकेला महसूस न करे इस ध्येय की पूर्ति के लिए कुछ भी , करने के लिए तैयार रहता हूँ !
आज के समय में परस्पर स्नेह, जैसे परिवार से मिटता जा रहा है !असुरक्षित पुरानी पीढ़ी,अपने ही बच्चों से , अपने संसाधन, छिपाने में लगे रहते हैं ! अपने ही खून से,झूठ बोल, सहयोग व सेवा की उम्मीद, परिवार शब्द का मज़ाक बनाने के लिए काफी है ! बदकिस्मती से आज समाज में हर रिश्ता, एक दूसरे के प्रति अविश्वास के लिए अपराधी है !
किसी से भी आदर पाने के लिए निश्छल स्नेह और आदर देना आवश्यक होता है ! और यही मजबूत घर की बुनियाद होती है !हमारे होते , अपनों की आँख से आंसू नहीं गिरने चाहिए ,इन आँखों से गिरता हर आंसू , स्नेहमाला के टूटते हुए मोती हैं ....
गंभीर और कष्टकारक स्थितियों में, हमें अपने बड़ों का साथ देना चाहिए न कि हम उनका उपहास करें और उनकी कमियां गिनाते हुए उपदेश दें , ऐसे उदाहरण, मात्र क्रूरता माना जायेंगे ! ममता भरे आंसुओं को न पहचान सकने वाले अभागे हैं , भविष्य और इतिहास ऐसे लोगों को कभी प्यार नहीं करेगा !
सारा जीवन कटा भागते
तुमको नर्म बिछौना लाते
नींद तुम्हारी ना खुल जाए
पंखा झलते थे , सिरहाने
आज तुम्हारे कटु वचनों से,
मन कुछ डांवाडोल हुआ है !
अब लगता तेरे बिन मुझको, चलने का अभ्यास चाहिए !
पुरानी पीढ़ी, अपने जमाने की सीखी सारी परम्पराएं, इन घबराई हुई लड़कियों(नव वधुओं) पर निर्ममता के साथ लादने की दोषी है ! मैंने कई जगह प्रतिष्ठित ओहदों पर बैठे लोगों के सामने भी यह परम्पराएं होती देखीं ! इन परम्पराओं के जरिये बहू को "शालीनता" के साथ बड़ों का "सम्मान" करना सिखाया जाता है ! कॉन्वेंट एजुकेटेड इंजिनियर और मैनेजर बहू, घूंघट काढ कर, बैठी रहे ...थकी होने पर भी सास ननद को काम न करने दे आदि आदि...
और अफ़सोस यह है कि शालीनता के पाठ को पढ़ाने में, उस घर की महिलायें सबसे आगे होती हैं ऐसा करते समय उन्हें अपनी बेटी की याद नहीं रहती जिसे यही पाठ जबरदस्ती दूसरे घर पढाया जाना है !
अपनी बच्ची के आंसू और घुटन महसूस होते हैं मगर दूसरों की बच्ची के आंसू हमें अपने नहीं लगते, २० साल बाद इसी गैर बच्ची(नव वधु) से,जो उस समय,घर की शासक होती है, हम प्यार और सहारे की उम्मीद करते हैं ! हमें अन्याय का विरोध, सड़क पर जाने से पहले,अपने घर से शुरू करना चाहिए !
गृहस्वामिनी को,ससुराल में बेटी की चिंता करने से पहले, अपनी बहू का ध्यान रखना होगा ! समाज में बदलाव लाने के लिए हमें हिम्मत भरे काम करने होंगे ...
इस बार पकड़ना हाथ जरा, मजबूती से साथी मेरे !
घनघोर अँधेरी रात मध्य,मैं चाँद को लाने निकला हूँ !
अपने लेखों में, विभिन्न रिश्तों के मध्य तकलीफें बयान की हैं जो अगर हम सब महसूस करलें तो इन गीतों का लिखना सफल मानूंगा !
कवि ह्रदय की विशालता रचनाओं में अक्सर चर्चित रही है , एक निश्छल मन से बड़ा कोई नहीं , यह परमहंस सरीखा मन, समझना हर किसी के बस का नहीं ..
सारी दुनिया ही, घर लगती
प्यार नेह करुणा और ममता
मुझको दिए , विधाता ने !
यह विशाल धनराशि प्राण,
अब क्या में तुमसे मांगूंगा !
दर्द दिया है, तुमने मुझको , दवा न तुमसे मांगूंगा !
जिसको कहीं न आश्रय मिलता
मेरे दिल में , रहने आये !
हर निर्बल की रक्षा करने
का वर मिला , विधाता से
दुनिया भर में प्यार लुटाऊं,
क्या निर्धन से मांगूंगा !
दर्द दिया है तुमने मुझको , दवा न तुमसे मांगूंगा !
मेरे दिल में , रहने आये !
हर निर्बल की रक्षा करने
का वर मिला , विधाता से
दुनिया भर में प्यार लुटाऊं,
क्या निर्धन से मांगूंगा !
दर्द दिया है तुमने मुझको , दवा न तुमसे मांगूंगा !
जब तक जियेंगे, हम भी जलाये रहें दिया !कब आसमान रो पड़े ?हमको पता नहीं !
गीत पढ़ते समय पाठक अपनी मनस्थिति के अनुसार उस गीत को परिभाषित करता है , कई बार अर्थ का अनर्थ भी महसूस किया जाता है, आशा है पाठक गण कवि ह्रदय की अनंत और असीम भावनाओं का आदर करेगा !
जो शब्द ह्रदय से निकले हैं
उन पर न कोई संशय आये
वाक्यों के अर्थ बहुत से हैं ,
मन के भावों से पहचानें !
मैंने तो अपनी रचना की,
हर पंक्ति तुम्हारे नाम लिखी
क्या जाने अर्थ निकालेगी, इन छंदों का, दुनिया सारी !
जो शब्द ह्रदय से निकले हैं
उन पर न कोई संशय आये
वाक्यों के अर्थ बहुत से हैं ,
मन के भावों से पहचानें !
मैंने तो अपनी रचना की,
हर पंक्ति तुम्हारे नाम लिखी
क्या जाने अर्थ निकालेगी, इन छंदों का, दुनिया सारी !
एक फ़िल्मी गीत, जो बचपन से सबसे अधिक पसंद है, "सदियों जहान में हो चर्चा हमारा" अक्सर गुनगुनाता हूँ ! जीवन में कुछ ऐसा करने की तमन्ना रही है जो कोई और न कर सका हो , कुछ ऐसा, जो दूसरों के लिए किया जाए , मानवता के लिए उदाहरण बनें ! अपने लिए भरपूर जीना ,और खुश रहना, कोई जीना नहीं हुआ !
मृत्यु बाद, गैर भी रोयें और कहें कि इस इंसान की अभी आवश्यकता थी , तब जीना सफल माना जाये !
आहटें पैरों की सुनकर,साज़ भी थम जाएँ जब,
देखकर हमको वहां , कुछ ढोल बजने चाहिए !
मेरे गीत लिखने का उद्देश्य , लोग पढ़ कर तारीफ़ करें ,या प्रकाशित हों, पुरस्कृत हों, कभी न रहा ! यह रचनाएं , अपने मन में उठी इच्छाएं और विचारों को एक आकार प्रदान करने का प्रयत्न हैं !पूरे जीवन जो खुद भोगा या मित्रों से महसूस किया , कवि ह्रदय ने उन्हें ईमानदारी के साथ, कागज़ पर लिख दिया !
अगर अरुण चन्द्र रॉय ( प्रकाशक ) न मिले होते तो यकीनन इस पुस्तक के छपने की मैं सोंच भी नहीं पाता ! यह नौजवान, हिम्मती प्रकाशक, अपना सर्वस्व दाव पर लगाकर, हम जैसे नवोदितों को प्रकाश में लाकर , अपने आपको, शर्तिया जोखिम में डाल रहा है ! ईश्वर से, मैं उनकी सफलता की कामना करूंगा !
इस गीतखंड के छपने के अवसर पर, अपने परिवार के साथ मैं , आज याद करना चाहता हूँ अपने उन प्यारों को,जिन्होंने मुझे खड़ा करने में मदद की !
सबसे पहले उन्हें, जिन्होंने मुझे उंगली पकड़ के चलना सिखाया , अगर वे हाथ मुझे सहारा न देते तो शायद मेरा अस्तित्व और यह भरा पूरा परिवार और मुझे चाहने वाले , कोई भी न होते ! उनमें से कुछ हैं और कुछ मेरी अथवा परिवार की लापरवाही के कारण, समय से पहले, छोड़ कर चले गए ! शायद उस समय उनकी अस्वस्थता पर मैंने उचित ध्यान दिया होता तो वे अभी मेरे साथ होते ! इन बड़ों के साथ, मैं अपने आपको हमेशा स्वार्थी महसूस करता हूँ , उनके साथ ही मैं सबसे कम कर पाया जिनके साथ सबसे अधिक करना चाहिए, हमेशा उनका ऋणी ही रहूँगा , उनका कर्जा लेकर मरना मेरी नियति होगी ...
इसके बाद वे, जो मेरे अपने नहीं थे , जिनसे कोई रिश्ता नहीं था उसके बावजूद इन "गैरों " ने, जब जब मुझे अकेलापन और अँधेरा महसूस हुआ , मेरा साथ नहीं छोड़ा ! मुझे लगता है, पिछले जन्म का कोई रिश्ता रहा होगा, जिसका बदला उन्होंने इस जन्म के कष्टों में, साथ देकर पूरा किया ! निस्वार्थ प्यार और स्नेह का कोई मोल नहीं होता ! जब भी अकेले में, मैं इन प्यारों का दिया संग याद करता हूँ तो आँखों में आंसू छलक आते हैं बस यही कीमत अदा कर सकता हूँ इन अपनों की ! और मेरे पास इन्हें देने को कुछ नहीं है , शायद आभार भी इनके प्यार का अपमान होगा !
विधि गौरव, ईशान गरिमा यह दोनों जोड़े बेहद मेहनती एवं कुशाग्र बुद्धि हैं , निश्छल मन के साथ मेरे यह बच्चे आसमान की ऊंचाइयां छुएंगे, ऐसा मुझे विश्वास है !
अंत में आभारी हूँ ,गृहस्वामिनी दिव्या का जिनके सहयोग बिना मेरे गीत ही नहीं, परिवार भी अधूरा होता ,शायद पत्नी की अपेक्षाओं पर उतरना बेहद मुश्किल होता है और मैं भी अपवाद नहीं रहा ! जहाँ मैं उन्हें सहयोग नहीं दे पाया उसके लिए अपनी अयोग्यता को दोषी ठहराता हूँ...
रुचियाँ -जिनका कोई न हो उनकी मदद करना, "आँचल" ट्रस्ट का संस्थापक , सर्विस संगठन में कार्य करना, फोटोग्राफी , होमिओपैथी पढना और लिखना, जीवन को हँसना सिखाना ...
मेरी रचनाएं मौलिक व अनपढ़ हैं , इनका बाज़ार में बताई गयी किसी साहित्य शिल्प, विधा और शैली से कोई लेना देना नहीं ये उन्मुक्त है और उन्मुक्त मन से इनका आनंद लें !
मार डाला इस भूमिका ने ही...निचोड़ कर रख दिया....उफ्फ!!
ReplyDeleteकिताब छपते ही भेजो...न इन्तजार कर पायेंगे ज्यादा....आदेश सा ही मान लो इसे भाई!!
सर माथे भाई ...
Deleteपहली खेप उड़नतश्तरी के जरिये हो, इससे अच्छा क्या होगा !
मार्मिक प्रारब्ध ।
ReplyDeleteशुभकामनायें ।।
दीदी जैसा मुखड़ा मेरा, माथा तेरे जैसा ।
थोड़ी सी झुर्री भी डालो, दो चिंता की रेखा ।
पैरों में चक्कर थे मेरे, आँचल भीगा भीगा -
असमय तुझको छोड़ी बौआ,था किस्मत का लेखा ।
माएं तो सब एक सरीखी, बच्चों को तुम देखो-
उठा कूचिका चित्र बना लो, जो उन आँखों में देखा ।।
उठा कूचिका चित्र बना लो, जो आँखों में देखा ।।
Deleteआप दिल जीतने की कला जानते हैं रविकर भाई ,
Deleteइस प्यारी रचना( कमेन्ट ) के लिए आभारी हूँ ! !
सतीश जी, यह सरासर नाइंसाफ़ी है। जब आम आदमी (हम) टिप्पणी करने आये तब यहाँ दरवाज़ा बन्द था और दो बड़े कवि (समीर जी और दिनेश जी) आये तो टिप्पणी बक्सा खुल गया। खैर, पोस्ट बहुत मार्मिक है। जिन्होने अब तक न जाना हो उन्हें आपको पहचानने का अवसर भी मिलेगा।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी उदगार, भीगी आँखें! नव-प्रकाशन की हार्दिक बधाई!
बक्से का ताला खुला, पूरे तीन प्रयास |
Deleteभाई जी क्यूँ कर रहे, बड़े बड़े परिहास ||
@ अनुराग शर्मा
Delete@ रविकर भाई ,
उपरोक्त पोस्ट किताब की भूमिका है :)
सक्षिप्त भूमिका में अरुण रॉय को आनंद नहीं आया सो उनके अनुरोध पर यह लम्बी भूमिका लिखी गयी ! लम्बे लेख अथवा पोस्ट लिखने की मेरी आदत नहीं रही, लोगों को असुविधा न हो अतः कमेन्ट सुविधा बंद कर दी थी , मगर संजय तनेजा की बुलंद आवाज ..
बहुत नाइंसाफी है ठाकुर .....
तुरंत बक्सा खोल दिया , मेरे बस का नहीं है मों सम कौन.. की तीखी धार को झेलना
:-)
achha hua ke 'tikhi dhar ke maar se dar gaye varna vinmrata
Deleteke war se kahan bach pate'........
sankalan ke samiksha hetu 'post' ka bara hona sahi hai.
aap ke kai achhi rachnaon me bahut hi achhi panktiya bhut
bure tarike se 'rulati' hai......
pranam.
@ संजय झा ,
Deleteतीव्र कुशाग्र बुद्धि के साथ, बहुत बढ़िया पाठक हैं आप ....शुभकामनायें भविष्य के लिए !
एक बात हमेशा कचोटती है कि विचारों का ऐसा धनी व्यक्तित्व, लिखता क्यों नहीं ??
:(
...बड़ा भावुक कर गए आप...!
ReplyDeleteमाँ की याद से ज़्यादा कुछ नहीं.आपने तो पूरा जीवन-वृत्तान्त निचोड़ दिया !
एक जैसे हालात किसी को तोड़ देते हैं और कोई हिम्मत से उठ खड़ा होता है| जिन परिस्थितियों का आपने जिक्र किया है, किसी की मनोस्थिति हिला देने के लिए बहुत है| बड़ी बहन हम जैसों के लिए मां से कम नहीं होती, संयुक्त परिवार का महत्त्व और पारिवारिक मूल्य आप न समझेंगे तो कौन समझेगा? आपके बहुत सारे शेड्स देखने को मिले, और भी जान जायेंगे धीरे धीरे|
ReplyDeleteआप को बधाई, अरुण जी को साधुवाद और समीक्षा के लिए किसे किसे अग्रिम धन्यवाद देना है, सोचता हूँ :)
उपरोक्त पोस्ट किताब की भूमिका है :
Deleteसक्षिप्त भूमिका में अरुण रॉय को आनंद नहीं आया सो उनके अनुरोध पर यह लम्बी भूमिका लिखी गयी ! लम्बे लेख अथवा पोस्ट लिखने की मेरी आदत नहीं रही, लोगों को असुविधा न हो अतः कमेन्ट सुविधा बंद कर दी थी , मगर संजय तनेजा की बुलंद आवाज ..
बहुत नाइंसाफी है ठाकुर .....
तुरंत बक्सा खोल दिया , मेरे बस का नहीं है, मों सम कौन.. की तीखी धार को झेलना :)
:-)
अपनी तरफ से पूरी मोहब्बत दिखाता हूँ फिर भी किसी को लगता है तल्ख़ टिप्पणी कर दी, गुस्से में आकर पता नहीं क्या कर दिया, तीखी धार वगैरह वगैरह|
Deleteकोइ बात नहीं जी, बड़े हो आप लोग तो पंचायत का कहा सर मत्थे, .......... :)
तुम्हारे स्नेह पर कोई शक नहीं यार ...
Deleteबात संजय कलम की धार की है , उसमें कोई शक ??
:)
यह भूमिका सार है , जीवन दर्शन की पूर्णता के साथ . पौधे से वृक्ष तक के संशय्राहित अनुभवों से भरा दर्शन .... ढेरों शुभकामनायें इस गीत की धुन के लिए . . . इंतज़ार है ....
ReplyDeleteस्वागत है आपका ...
Deleteझलक मिल गयी है, आँखें नम हैं..
ReplyDeleteआभार प्रवीण भाई !
Deleteशुरू के ही प्रस्तरों में लग गया था कि यह परिवार सतीश जी के प्रथम काव्य संकलन की प्रस्तावना भर है ..
ReplyDeleteभाई इंतज़ार रहेगा इस कालजयी कृति का ......
अग्रिम बधाईयाँ !
यू आर जस्ट आसम भाई !
आपसे प्रेरणा मिलती है डॉ अरविन्द मिश्र ..
Deleteआभार आपके स्नेह के लिए !
आपके गीत बहुत बार पढ़े हैं आज उनके पीछे की दास्तां भी जान ली, बहुत बहुत शुभकामनायें...बहुत सार्थक पोस्ट !
ReplyDeleteमां तो है मां, मां तो है मां...
ReplyDeleteमां जैसा है कोई और कहां...
और इंतज़ार कालजयी रचना का...
लख लख बधाइयां...
जय हिंद...
बचपन से लेकर ज़वानी तक के संस्मरण --उफ़ ! निशब्द करने वाला अनुभव .
ReplyDeleteआपके गीतों में आपके जीवन के अनुभवों से उत्पन्न संवेदनाएं साफ झलकती हैं .
काश सभी ऐसा ही सोचें और अनुसरण करें .
पुस्तक तो आनी ही चाहिए . शुभकामनायें आपको .
आप जैसे विद्वानों की संगति में अगर कुछ भी निखार आया है तो मैं खुशकिस्मत हूँ डॉ दराल !
Deleteशब्द - शब्द यूँ जैसे भावनाओं के संगम पे खड़े हों हम जिधर नज़र जाती उधर एक भाव स्नेह का ...
ReplyDeleteशुक्रिया ध्यान देने के लिए .....
Deleteबेहद ख़ुशी हुई संकलन के प्रकाशन की.लेकिन गालों पर बेतहाशा गिरते अश्क में आपकी इस पोस्ट का मर्म भी है.
ReplyDeleteशहरोज़, आपका अनुज
आभारी हूँ शहरोज़ ...
Deleteआपके यह दो शब्द मेरे लिए अमूल्य हैं ! और शहरोज़ जैसे अनुज, मैं गदगद हूँ ! अपना फोन नंबर भेजो बात करनी है !
आदर सहित
किताब छपने की बधाई! अब विमोचन उसके बाद समीक्षा का इंतजार है।
ReplyDeleteविमोचन क्या होता है जानता ही नहीं और शौक भी नहीं है ...
Deleteसमीक्षा तो आप ही शुरू करें गुरु मगर उससे पहले पढ़ लेना यार :)
( पांव छू कर अर्ज कह रहा हूँ महा पंडित )
उफ़..रुला दिया आपने ..पूरा पढ़ ही नहीं पाई ..फिर आउंगी.
ReplyDeleteआप जैसी विदुषी के यह शब्द पढ़कर लगता है यह पुस्तक कामयाब होगी ...
Deleteआभार शिखा !
भावुक करने वाली भूमिका। पुस्तक का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteस्वागत है आपका ....
Deleteबहुत ही भावपूर्ण रचना......
ReplyDeletebehad bhawbhini.......
ReplyDeleteशुक्रिया आपके आने का ...
Deletebehad bhawbhini.......
ReplyDeletekitab chapi nahi lekin dararon se chhan kar aati roshni hi itni sukhdayak, utsukta jagane wali hai to ander ka drishy kya hoga...kya mujhe ye pustak padhne ka saubhagy milega ya nahi...sochti hun...
ReplyDeletebahut sunder
स्वागत है आपका ...
Deleteअपना पता भेजिएगा अवश्य भेजेंगे !
dil ko chu gayi aapki ye post....every song has a story :)
ReplyDeleteमत भेद न बने मन भेद - A post for all bloggers
शुक्रिया ...
Deletesundar yadon ki ladiyan .
ReplyDeletebhawon se saji kadiyan.
स्वागत है आपका ...
Deleteकितने भूले-बिसरे पल याद आते गए और आंखों की नमी बूंद-बूंद बन बाहर आती रही।
ReplyDeleteलिखना सफल हो गया मनोज भाई ...
Deleteआभार !
बहुत प्रभावशाली लेखन ,व्यक्तित्व का परिचय कराता हुआ !
ReplyDeleteआपका आशीर्वाद प्रेरक है ...
Deleteभावनाओ के ज्वार पुरे उफान पर पलके भिगो गई . काव्य संग्रह की हार्दिक शुभकामनाये .
ReplyDeleteशुक्रिया आशीष जी ...
Deleteआपकी यादों का जो सिलसिला मन से निकला है बहुत भावनात्मक, मार्मिक और मन को द्रवित करने वाला है.
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDeleteआपके आत्मकथ्य ने द्रवित कर दिया।
काव्य संग्रह के प्रकाशन के लिए बधाई।
शुक्रिया महेंद्र भाई
Deleteबहुत ही भावुक हैं आप.
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति मार्मिक और अति हृदयस्पर्शी है.
भाव और अभावों से हर जीवन गुंथा है.
आपको पढकर आपके बारे में बहुत कुछ जानने को मिला.
ईश्वर की बगिया का एक सुन्दर फूल हैं आप.
यह फूल बगिया को सदा सदा महकाता रहे,
यही दुआ है मेरी.
आपकी शुभकामनायें और विश्वास महत्वपूर्ण हैं, निस्संदेह मुझे बल मिलता है !
Deleteआभार भाई जी !
बहुत बहुत बधाई आपको !
ReplyDeleteआशा करती हूँ पुस्तक की एक प्रति मुझे भी भेज देंगे :}
थोड़ी व्यस्त थी आपकी पोस्ट देरसे पढ़ रही हूँ माफ़ी !
आपकी इतनी प्यारी टिप्पणी के बाद, कोई शिकायत हो ही नहीं सकती! आप हर बार देर से आया करें :)
Deleteसादर
बहुत भावुक भूमिका है... लिफाफे से ख़त का मजमून पता चल रहा है।
ReplyDeleteपुस्तक छपने की बधाई । फुसत्क की एक सशक्त भूमिका लिखी है आपने । यह पुस्तक कहाँ उपलब्ध है ?
ReplyDeleteशीघ्र छप रही है, आपको खबर करूंगा ! आभार आपके आने का !
Deleteसतीश जी ,
ReplyDeleteहर पंक्ति संदेश दे रही है .... पुस्तक भूमिका आपके जीवन दर्शन को बता रही है ... बहुत संवेदनशील और मार्मिक ...
पुस्तक प्रकाशन के लिए बधाई और शुभकामनायें ... पुस्तक पढ़ने की उत्कंठा है ...
माँ ! यह एक ऐसा शब्द है जो मैंने कभी किसी के लिए नही बोला, मुझे अपने बचपन में ऐसा कोई चेहरा याद ही नही, जिसके लिए मैं यह प्यारा सा शब्द बोलता !
ReplyDeleteसमझ सकता हूँ...................? बहरहाल अभी पोस्ट को सरसरी तौर पर ही पढ़ रहा हूँ , एक बार पुन: फुर्सत लेकर आना होगा यकीनन तब टिपण्णी रूप-स्वरूप भिन्न और निर्णायक होगा...............
यहाँ तक उपरोक्त सुंदर प्रस्तुति हेतु आपका आभार.
माँ ! यह एक ऐसा शब्द है जो मैंने कभी किसी के लिए नही बोला, मुझे अपने बचपन में ऐसा कोई चेहरा याद ही नही, जिसके लिए मैं यह प्यारा सा शब्द बोलता !
ReplyDeleteसमझ सकता हूँ...................? बहरहाल अभी पोस्ट को सरसरी तौर पर ही पढ़ रहा हूँ , एक बार पुन: फुर्सत लेकर आना होगा यकीनन तब टिपण्णी का रूप-स्वरूप भिन्न और निर्णायक होगा...............
यहाँ तक उपरोक्त सुंदर प्रस्तुति हेतु आपका आभार.
दद्दा इतना भावुक क्यों कर देते हैं आप.
ReplyDeleteजब जब आपकी ये पोस्ट पढ़ी ...तब तब सोचा कि कुछ बहुत अच्छी सी टिप्पणी लिखूं ...पर नाकाम रही ...क्यूंकि किसी अपने को खोने का दर्द बहुत अच्छे से जानती हूँ ....आपकी पहली किताब (आने वाली )की भूमिका को पढते पढते ...आँखे नम हो गई...शब्द नहीं हैं कुछ और कहने के लिए भाई जी ........बस आने वाला संग्रह कामयाबी के ऊँचे आयाम छु ले ...ये कामना करती हूँ ....
ReplyDeleteबहुत बार इस भूमिका को पढ़ने आया, हर बार नि:शब्द होकर लौट गया.आज भी कहने को कुछ नहीं.
ReplyDeleteभाव , शब्द कैसे बनें ? ये बेचारे मूक
परिभाषित हो किस तरह, कोयलिया की कूक.
सफलता हेतु शुभकामनायें
bdhai
ReplyDeleteकाफी भावुक कर गयी भूमिका...बहुत ही सच्चा और दिल को छु जानेवाला लेखन...
ReplyDeleteSatish ji aapke bare m pura padha .mn k bhav bheeg gye..such ..kya likhu shabd nahi...maa ko bachpan m khona..bahut dardnak h..jo bhav aapne vykt kiye...mene 15 saal pahle apni maa ko khoya Doctors ki galti ki vajah s..ya utni he jindgi thi unki aapke shabdo m apne bhai ki tadap mahsoos ki vo mujhse or meri ek or bahan s chota h ..hr vqt maa ma bolne vala unhe samne dekh jo khamosh hua ki ek aasu uski aankh m nahi aaya meri choti bahan or m dono pregnent the or sabse choti bahan ki shadi ho ke chuki thi..bhai ki shadi us vqt nahi hue thi...vo dard aaj bhi thara h..aapko padh or aapki jinda dili ko mera salam...
ReplyDeleteaapki kitab kha s milegi please bataye..
ReplyDeletehttp://www.amazon.in/Mere-Geet-Satish-Saxsena/dp/9382009140/ref=sr_1_1?s=books&ie=UTF8&qid=1421782635&sr=1-1&keywords=mere+geet
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