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सवाल रोटी के इंतजाम का ...?? |
शादी विवाहों और ख़ुशी के अवसरों पर, अकसर मनचाहे पैसे न मिलने पर जबान चलाते किन्नर (हिजड़े - एक गाली ) आपको अवश्य याद होंगे ! हर ५-१० वर्षों में इन अवसरों पर अक्सर इनके द्वारा की गयी बेहूदगियों से आपका मन भी अवश्य खराब हुआ होगा ! मगर क्या आपने कभी इनके बारे में सोचने के लिए अपना वक्त दिया है ?
परमपिता परमात्मा से भी उपेक्षित, शारीरिक विकलांगता से ग्रसित यह इंसान ,पुरुष और महिला वर्ग में न होने के कारण, जानवरों से भी बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर है ! शायद यही एक वर्ग ऐसा है जिसे परिवार से लेकर, बाज़ार तक भी कहीं कार्य नहीं दिया जाता ! पूरा समाज इन इंसानों की जो मज़ाक उड़ाता है वैसा जानवरों के साथ भी नहीं होता ! क्या आपने कभी सोचा हैं कि .....
- इन्हें हम घर में नहीं घुसने देते और इनसे बिना दोष,सिर्फ शारीरिक विकलांगता के कारण नफरत करते हैं ! भिखारियों को खाना देते समय तक , हम इन्हें खिलाने की कल्पना तक नहीं करते ! समाज में गरीबों और भूखों को खाना खिलाने में , पुण्य मिलने की बात कही गयी है ! मगर हिजड़ों को खाना खिलाते, आपने किसी को नहीं देखा होगा !
- इन्हें व्यावसायिक प्रतिष्ठानों , दुकानों आदि में मजदूरी का कार्य भी नहीं मिलता अतः आपने किसी दुकान , माल में भी इन अभागे इंसानों को काम करते नहीं देखा होगा !
- शरीर के अस्वस्थ होने की स्थिति में, इनका इलाज़ कौन करेगा ? समाज में हिकारत की द्रष्टि से देखे जाते यह लोग , बीमारी की स्थिति में, अच्छे प्राइवेट डाक्टर की सुविधा से लगभग वंचित हैं ?
- मानसिक अवसाद में जीते इन बच्चों के लिए, किसी इंस्टीटयूशन में पढाई हेतु दाखिला, एक दिवा स्वप्न ही है ? अच्छे परिवार के बच्चों के मध्य यह मानसिक विकलांग बच्चे, किसी कालेज में शिक्षा ले सकें, आधुनिक भारत में अभी यह केवल एक कल्पना मात्र ही है !
- किसी मंदिर में इनके लिए विधिवत पूजा का कोई प्रावधान नहीं है ! अतः अक्सर इनकी ईश आराधना एवं पूजा कार्य, अपने घर में ही सीमित होती है शायद इसीलिए इनकी प्रथाएं एवं अनुष्ठान लगभग गोपनीय होते हैं !
- अपने खुद के परिवार में इनका स्थान बेहद दयनीय है ! अक्सर परिवार के लोग, यह बताते हुए शर्मिंदा महसूस करते हैं कि यह उनके परिवार में पैदा हुए हैं ! अतः जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने परिवार , एवं समाज से लगभग कटे रहने के लिए विवश हैं !
- सामाजिक स्थल जैसे पार्क,रेस्टोरेंट, कम्यूनिटी सेंटर, स्टेडियम, आदि में, आम व्यक्तियों के साथ इन्हें हिस्सा नहीं लेने दिया जाता ? सामान्य जन के लिए बनाए पब्लिक स्वीमिंग पूल में कोई हिजड़ा स्नान करने की सोंच ही नहीं सकता !

अधिकतर ऐसे मौकों पर यह लोग धन की मांग करने के लिए घेरा बंदी करते हैं ! इनकी दलील रहती है कि और किसी मौकों पर, उन्हें किसी प्रकार का धन नहीं दिया जाता अतः शादी अथवा बच्चा पैदा होने की ख़ुशी में ही दानस्वरूप उचित पैसा मिलना ही चाहिए जिससे कि वे अंत समय तक के लिए, कुछ आवश्यक धन बचा सकें ! और अक्सर इसी कारण लोग इन्हें और भी हिकारत की नज़र से देखते हैं !
अफ़सोस है कि सरकार ने भी इनके पुनर्वासन के लिए अभी तक समुचित ध्यान नहीं दिया है !
कृपया बताएं , यह रोटी कहाँ से खाएं ??
( उपरोक्त यू वीडियो - आभार यथार्थ पिक्चर )
सच कहा आपने। वैसे इनकी समस्याओं पर लिखता ही कौन है? वैसे एक लक्ष्मी जी है जो इनके लिए काफी कुछ कर रही हैं। पर उतना काफी नहीं है सरकारों को सोचना चाहिए इनकी समस्याओं पर। वैसे सुना है दिल्ली में इन्हें पैंशन मिलने लगेगी। कभी ऐसे ही विचलित होकर कुछ लिखा था अपने ब्लोग पर।
ReplyDeleteसर, आपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है ,लेकिन मुझे लगता है कि इस मुल्क में प्राकृतिक हिजड़े बहुत कम होते है ,बल्कि ये जबरदस्ती बनाये जाते है . बहुत सारे जगहों पर ये समाज विरोधी कार्यों में लिप्त रहते है . और गैरकानूनी कामों में लिप्त पाए जाते है. मेरा मानना है कि पैदायशी हिजड़े कम होते है , बल्कि अपने व्यवसाय में लाने ले लिए ये बनाये जाते है. इनके साथ वही व्यवहार होना चाहिए जैसा की एक अपराधी के साथ होता है.
ReplyDelete@अनाम ,
ReplyDeleteमुझे बेहद अफ़सोस है कि शायद आपने बिना पढ़े ही, अपने विचार व्यक्त कर दिए हैं, आपको इसलिए छाप रहा हूँ कि यह मानसिकता भी लोग जान पायें !
Aapne bahut achha mudda utaya h SATISH JI ye log bahut pareshan hote h apne jivan se mujhe ptta h kyon Ki m in logo k sath jata hu Dolak bjata hu in logo k sath badhai par
DeleteBahut se log inse batmiji karte h magar inke dil Ki halat koi nhi samjhta
bhai sahab aapne bahut hi achcha mudda uthaya.mujhe ek din in logon ne chakit hi kar diya.unka ek blog bhi hai.aadha sach ke nam se.lekin maine hamzabaan ardhnarishvar shirshak se poora sach k nam se uska link diya hai.
ReplyDeletereally inke dard ki kalpna hi nahin ki ja sakti.
गुरुवार, २५ फरवरी २०१०
ReplyDeleteलैंगिक विकलांगों को सेक्स का खिलौना बनाने के बौद्धिक प्रयास
http://adhasach.blogspot.com/
अच्छा विषय उठाया है आपने सतीस जी ! इनका दर्द शायद ही कोई समझ सके ! किसी शुभ कार्य या दिन पर ही इन्हें अपनी आमदनी और पेत्भारने के जुगाड़ पर निर्भर रहना पड़ता है !
ReplyDeleteविषय से हटकर एक गुस्ताखी करूंगा;
मैं तो इनकी हरकतों को देखने के लिए रोज संसद समाचार सुनता हूँ :)
आपका सवाल व्यथित करता है. इस समस्या पर ध्यान दिया जाना अति आवश्यक है.
ReplyDeleteरामराम.
सतीश जी आपका कहना सही है ... पर कभी कभी इनके व्यवहार से दुख भी होता है .. पैसा वसूलने के नाम पर पर ये कुछ भी करते हैं और पैसे की डिमांड कभी कभी इतनी ज़्यादा होती है की आम आदमी के बस में नही होता ... मैने देखा है शादी ब्याहॉं पर १०-१५,००० तक की माँग करते हुवे ... अब पता नही ये कहाँ तक जायज़ है ...
ReplyDeleteजी हां सतीश जी, उनके दर्द की कल्पना नहीं की जा सकती. वैसे मेरा-तेरा से करने से हमें फ़ुरसत मिले तब न हम किसी मानवीय मुद्दे पर सोचें?
ReplyDeleteये सही है, कि इस वर्ग पर बच्चों को अपहृत कर उन्हें किन्नर बनाने के आरोप हैं, अपराधों में लिप्त होने के भी आरोप हैं, लेकिन इन अपराधियों की सामान्य वर्ग के अपराधियों के सामने क्या औकात है? सारे स्तरीय अपराध तो सामान्य वर्ग ही कर रहा है.
ये तो व्यक्तिगत और सामाजिक कुंठा और मिलने वाली हिकारत , दुत्कार के चलते अपराध की ओर प्रवृत्त होते हैं, सामन्य वर्ग क्यों अपराध कर रहा है?
saksena ji...aapki lekhni k prasang apki samvedensheelta batate hai...
ReplyDeleteaur ye prasand...is mudde par kabhi itni gehrayi se maine bhi kabhi nahi socha tha...bas inke chehro ki musukurahat meri socho ko inke ander k dard tak kabhi le hi nahi ja payi.
sach me aapne prashn jo uthaya he sochne par mazboor kar raha he..ab sochungi aur tab bataungi..
सतीश जी , पता नहीं पर ज्यादातर तो मस्त ही नज़र आते हैं।
ReplyDeleteवैसे मैंने कभी इन्हें किसी भी ओ पी डी में इलाज़ के लिए खड़े नहीं देखा ।
पता नहीं बीमार नहीं पड़ते क्या।
लेकिन एक जगह इनकी भीड़ लगी रहती है --ए आर टी क्लिनिक में -- जहाँ एड्स का इलाज़ किया जाता है ।
अब इसे क्या कहें। शायद हालात की मजबूरी या फिर बेहतर इंसानों की दरिंदगी।
@ सतीश सक्सेना
ReplyDeleteसर, मैंने आपके लेख को पूरी तरह से ध्यान से पढ़ा है. आप भावनात्मक रूप में बात कर रहे है . तथ्यों में नहीं . आप क्या यह बता सकते है कि पैदायशी हिजड़े कितने होते है , और कितने मात्र बनाये जाते है . आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में मात्र १००० हिजड़े पैदायशी है , १५ लाख हिजड़े बनाये गए है . आप मात्र भावना में बह कर बात कर रहे है. इनके साथ वही व्यवहार होना चाहिए जैसा कि एक अपराधी के साथ होता है. आप क्या यह नहीं जानते कि वैश्यावृति में इनका बहुत बड़ा हाथ होता है , अवैध वसूली ,चोरी और लूट में ये लिप्त रहते है.
mr / miss/ mrs anonymous - where did you get this data ? assumed ? discussed over a teacup with a gossipy friend ? why - the government census collectors don't even ask about the transgender .. they have only columns for "boys / girls" then how would they get the authentic data ? the parents are too scared of society to reveal - they oft discard the newborn child to the community of hijdas - then ?
DeleteEven if they were FORCEFULLY MADE - then ? how does it make them eligible for prosecution ? if someone kidnaps a small kid and does a surgery to convert the child to that state, we should punish the child for it ???
satish ji - thanks for this pot. i often think the same as you are saying . but don't find much i can do to change the situation .. :(
Thank you Er shilpa ...
Deleteu r welcome sir - i am thanking u for having written this post at all - how many people would do it ?
Deletehijade banaye kaise jate hai
Deleteनिश्चित ही आपने एक अहम मसला उठाया है. तकलीफ होती है जब इस दृष्टिकोण से सोचिये किन्तु फिर जब इनके द्वारा अपने अधिकारों और मांगों के लिए ज्यादति की जाती है, जैसे शादी विवाह आदि अवसरों पर बेहिसाब अनुचित माँग (हम तो २१००० से कम में नहीं मानेंगे) और इसे पूरा कराने के लिए धमकी से लेकर बेइज्जत तक करने वाली बातों को देखकर अफसोस भी होता है.
ReplyDeleteइसके बावजूद भी इनकी विकलांगता और मजबूरी निश्चित ही दिल दुखाती है.
सामाजिक विसंगति है । जगह सबकी होनी चाहिये समाज में ।
ReplyDeletemain jo kahna chahti thi bhatiya ji ne kah dia..akhir kyon ham inhen samany jeevan ke haq nahi de sakte.
ReplyDeleteसतीश जी, वैसे तो तमन्ना जैसी फ़िल्में कुछ-कुछ बताती हैं इन बदकिस्मत लोगों के बारे में.. लेकिन अभी कुछ दिन पहले कुछ दोस्तों द्वारा बनाया गया एक ड्रामा काफी चर्चित रहा जो कि इनकी निजी जिंदगी में झांकता हुआ सा था और उसमे कई दृश्य रुला देने वाले थे. कैसे पैदा होने पर इन्हें घर से निकाल कर किसी किन्नर समुदाय को दे दिया जाता है और कैसे मर जाने पर इनकी लाश को पीटा जाता है कि दोबारा इस रूप में ना जनम लेवें. ये भी सोचनीय है कि मरने पर इन्हें जलाते हैं या दफनाते क्योंकि कभी किसी किन्नर को मरते या उसे जलाते या दफनाते ना देखा ना सुना सिवाय उस नाटक के. अभी नाम नहीं याद आ रहा.. याद आने पर ब्बतौंगा जरूर क्योंकि किन्नरों के जीवन पर बनाया गया वो नाटक कई सवाल क्खाड़े करता है और कईयों के जवाब भी देता है.. अफ़सोस कि इनके नाम को ही एक गाली बना दिया गया है.
ReplyDeleteआपने मुद्दा तो अच्छा उठाया है लेकिन समाज में परिवर्तन लाना यह भी एक समस्या है। अक्सर देखने में आता है कि परिवर्तन वहीं होता हैं जब पीड़ित व्यक्ति के द्वारा क्रांति का सूत्रपात होता है। पूर्व में इनकी संख्या इतनी कम थी कि इनका पोषण गाँव वाले कर देते थे। लेकिन आज ये भी संगठित हैं और केवल पैसा कमाने के तरीकों पर ही काम करते हैं। जिस दिन इनमें स्वयं ही इच्छा शक्ति जागृत नहीं होगी तब तक ये समाज की मुख्यधारा में नहीं मिल सकेंगे। ये भी भिखारियों की तरह ही संगठित व्यवसायी हो गए हैं। यह भी अंदेशा है कि ये भी अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए बच्चों का अपहरण कर उन्हें अपने जैसा बनाते हैं। इसलिए भिखारी को पैसा नहीं देना और इन्हें देना कुछ समझ नहीं आता है।?
ReplyDeleteआपने मुद्दा बहुत सही उठाया है...पर अब तो ये चुनाव में निर्वाचित हो कर भी आ रहे हैं...लेकिन आवश्यकता है समाज में इनको सामान्य इंसान समझने की...लेकिन बदलाव आसानी से नहीं होता...उसके लिए इन जैसे लोगों की इच्छा शक्ति और संवेदनशील व्यक्तियों को मिल कर ही कुछ करना होगा ..
ReplyDeleteजिन बातों पर आपने ध्यान दिलाया है वो नि:संदेह विचारणीय हैं
bilku sach,
ReplyDeletejahan kisi ka dhyan nahi jata.
सतीश साहब ,
ReplyDeleteसादर नमन ,
आज ही मैं कोशिश करती हूँ कि इस बिरादरी के लिए कुछ करूँ ,खोजना पड़ेगा कि ये कहाँ रहते हैं?
इलाज तो कर ही सकती हूँ ,वो भी नफरत से नहीं पूरे प्रेम से
bahut achha ...aap dil se bahut bhauk ho gaye ha. bahut se logon ne ise bhi bijnes bana liya ha. aaye din khabro ma ata hi rahta ha ki farji hijde pakde gaye .. is liye jara dhyan rakhna ki kabhi koi aapka dil na tod de.
ReplyDelete@अनाम भाई !
ReplyDeleteआपने रूचि लेते हुए दुबारा कमेंट्स दिया , अच्छा लगा ! अपने जा डाटा दिए हैं उसके बारे में मुझे अधिक ज्ञात नहीं की यह सर्वे कितना ठीक हुआ होगा ! मगर मैंने इनका सिर्फ मानवीय पक्ष उजागर करने का प्रयत्न किया है जिसपर ध्यान देने की जरूरत है , परिस्थितियों वश जो कार्य यह करने को मजबूर हैं उनकी बात मैंने यहाँ नहीं उठाई है ! आप अगर मेरे नज़रिए से इस लेख को पढेंगे तो लेख के साथ न्याय होगा ऐसा मेरा मानना है !
आपने इस टिप्पणी में ऐसी कोई बात नहीं राखी जो आपतिजनक हो फिर अनाम क्यों ??
आप अगर अपने नाम से आते तो मुझे बेहद अच्छा लगता , ९८११०७६४५१ पर आप मुझसे बात कर सकते हैं !
सादर
अरे वाह सतीश जी.. आपने बहुत गंभीर मुद्दे पर कलम चलाई है... वाकई इनकी हालत बहुत सोचने लायक है.. अब तक हमने कभी इस तरह से सोचा ही नहीं.. आपके जज्बे को सलाम.. लेकिन ये भी सच है, कि शादी-ब्याहों में कई बार ये ज़रूरत से ज्यादा मजबूर कर देते हैं.. वैसे मानवीय पक्ष बहुत बढ़िया है...
ReplyDeletesatish sir aapki bhavnao ki izzat karta hu par ye sari baatein kehne sunne me hi achhi lagti he vyavhaar me nahi sach to ye hai ki koi aisa apradh nahi he jo inse bacha hua ho,sirf rape ko chad kar kyun ki iske liye vo bane nahi he,in the current time trains me inke dwara ki jane wali wasooli se adhiktar passengers pareshan rehte hain,shadi me ye itni demand karte he ki itna paisa dena bhari pade,so moral of story that aapne achha mudda uthaya par ye log itni daya ke haqdar nahi jitna aapna likha he, plz dont mind,this is my personal openion i didnt mean to heart anybody.
ReplyDeletehello sir, abhi to mai jyada kuch nhi bol paunga kyunki mai prepare nhi hu bt mai apni tip jrur dunga, ye ek aisa mudda hai jo kafi sensitive hai,aur kuch logo k liye incurable bhi shayad.....
ReplyDeletesir me inke lie kuch kam karina chita hi...
ReplyDeleteple.con.number.9922961847
पंजाबी भाषा की एक नामचीन लेखिका ने अपने घर में एक किन्नर को डोमेस्टिक हेल्प के रूप में अपने परिवार के सदस्य की तरह ही रखा था और उनका अनुभव बहुत अच्छा रहा था|
ReplyDeleteवैसे 'अनाम' के नाम से जो कमेंट्स हैं, वो भी मेरी नजर में गलत नहीं है|
great sir g great.....
ReplyDeletegreat sir g graet....
ReplyDeleteDear sathis ji
ReplyDeletethat is worldwide probelams shoude be government handel this problams
आपके लेख के साथ साथ बहुत सी अन्य टिप्पणियां भी पढी ।
ReplyDeleteएक बात पर अफसोस हुआ, आपका प्रश्न लगभग अनुत्त्रित ही रहा ...
कृपया बताएं , यह रोटी कहाँ से खाएं ??
मै इतने सारे विद्वानों के बीच स्वयं को बहुत अल्प बुद्धि ही समझती हूँ, मगर हाँ फिर भी ऐसा महसूस करती हूँ , कि अशिक्षा भी बहुत बडा कारन होता है, पहले का समय और था, जब मानवता से बडा कोई धर्म नही था, लोगों में यह भावना थी, कि ईश्वर ने उन पर कुच कृपा नही की, तो क्या हुआ हम सबकी इस समाज की जिम्मेदारी है, उनको दो वक्त की रोटी देने की, मगर यह उनको भीख ना लगे, इसलिये जब वो हमारी खुशियों मे शामिल होते तब हम शक्ति के अनुरूप उनको कुच देते थे,
समय बदला, और भावनाये भी बदली, दोनो ही पक्ष बदले, समाज भी, हिजडे भी, और आज ऐसा समय आ गया कि हम उनकी उपस्थिति को बिल्कुल पसंद नही करते।
अब ऐसी स्थिति में, और समाज की मुख्य धारा मे जोडने, उनको भी एक सम्मान का जीवन देने के लिये, हमे ऐसा करना होगा, कि वो अपना पेट भरने के लिये, हमारा मजोरंजन या वसूली (जैसा कि एक टिप्पणीकर्ता ने कहा) के लिये मजबूर ना हो।
वो बुद्धि मे किसी से कम नही । हमे उनहे, शिक्षा और घरेलू रोजगार के अवसर देने होगें।
वाह , शुक्रिया अपर्णा !! आभारी हूँ इस सुझाव के लिए ......
Deleteकितनी बड़ी सामाजिक विषय को आपने मुद्दा बनाया,अच्छा लगा। एक-एक शब्द आपके अक्षरशः सत्य है। हमलोगों के इधर इन्हे धर्म से जोड़ा गया है,जैसे इनकी दुआ फलती है तो लोग इन्हे जरूर 10-20 रुपया देते हैं। मैं भी इन्हें बुला के देती हूँ। कमा तो अच्छा लेते हैं ये लोग,पर ठोस कमाई इनकी होनी चाहिये। सरकार के स्तर पर,समाज के स्तर पे बहुत कुछ होनी चाहिये। इन्हे न सहानभूति चाहिये,ना ही दुत्कार ---बस इन्हे बराबरी का दर्जा चाहिये---इतने अच्छे लेख के लिये साधुवाद।
ReplyDeleteसतीश जी आपका कहना सही है ... पर कभी कभी इनके व्यवहार से दुख भी होता है .. पैसा वसूलने के नाम पर ये कुछ भी करते हैं और पैसे की डिमांड कभी कभी इतनी ज़्यादा होती है कि आम आदमी के बस में नही होता ... मैने देखा है शादी-विवाह में 10-15 हजार रूपये तक की माँग करते हुए ... अब पता नही ये कहाँ तक जायज़ है ...वैसे 'अनाम' के नाम से जो कमेंट्स हैं, वो भी मेरी नजर में गलत नहीं है|
ReplyDeleteआपने शायद ध्यान से नहीं पढ़ा , इनकी दो तीन मौकों को छोड़कर और कोई आम्दानी नहीं है , और समाज से इन्हें एक पैसा भी नहीं मिलता !
Deleteहमारे समुदाय से जुड़ी समस्याओं को उजागर करने
ReplyDeleteवाले प्रस्तुतीकरण के लिए शुक्रिया कह रही हूँ
आपका स्वागत है सबीहा, साथ ही आभारी हूँ आपके आगमन और प्रतिक्रिया के लिए , यह मेरे लिए यकीनन सुखदायी है !
Deleteसतीश जी नमस्कार
ReplyDeleteआप का और अन्य् विद्वानो का लेख पढ़कर अच्छा लगा कि आज भी हमारे समाज मे लोग इतने जागरूक हैं कि बेखौफ अपने विचार प्रकत कर सक्ते हैं. आप लोगो ने किन्नरो को ले के बारे मे जो भी लिखा है मैं सह्मत हूँ. इसलिये मैं भी कुछ कह्ना चाह्ता हूँ.
मैं एक प्राइवेत कम्पनी में State Coordinator के रूप मे कार्यरत हूँ. यह कम्पनी कौशल विकास (Skill Development) पर काम करती है. जिसमें युवाओ को उनके इच्छा अनुसार हुनर प्रदान कर जोब / काम के लायक बनाया जा सके. सरकार भी आजकल कौशल विकास (Skill Development) पर बहुत ज़ोर दे रही है.
हम लोग जब भी किसी युवा या युवती का नामांकन करते हैं तो उसमें लिंग के लिये तीन ओप्श्न दिये होते हैं: 1) पुरुष 2) स्त्री 3) किन्नर (1) Male 2) Female 3) Transgender)
मैं यह कह्ना चाह्ता हूँ कि सरकार भी चाहती है कि ये किन्नर भीख मांगना छोड़कर अपने जीवन यापन के लिये कुछ काम करे. लेकिन कोई मुझे ये बता सकता है कि :
1) अगर हम इन्हे हुनर सिखाने की कोशिश करे, तो क्या ये सीखेंगे?
2) अगर ये सीख गये तो क्या इन्हे नौकरी मिलेगी ?
3) सीखने के बाद क्या ये लोग नौकरी करेंगे ?
4) क्या कोई आफिस इन्हे नौकरी देगा ?
5) यदि ये लोग अपना व्यवसाय भी शुरु करे तो क्या आम आदमी (जो किन्नर नही है) इनके साथ लेन-देन करेगा ?
मुझे आप विद्वानो से जवाब की आशा हैं. क्रिपया अपने विचार ज़रूर दे. तो शायद मै इनके लिये कुछ कर सकू.
सतीश जी नमस्कार
ReplyDeleteआप का और अन्य् विद्वानो का लेख पढ़कर अच्छा लगा कि आज भी हमारे समाज मे लोग इतने जागरूक हैं कि बेखौफ अपने विचार प्रकत कर सक्ते हैं. आप लोगो ने किन्नरो को ले के बारे मे जो भी लिखा है मैं सह्मत हूँ. इसलिये मैं भी कुछ कह्ना चाह्ता हूँ.
मैं एक प्राइवेत कम्पनी में State Coordinator के रूप मे कार्यरत हूँ. यह कम्पनी कौशल विकास (Skill Development) पर काम करती है. जिसमें युवाओ को उनके इच्छा अनुसार हुनर प्रदान कर जोब / काम के लायक बनाया जा सके. सरकार भी आजकल कौशल विकास (Skill Development) पर बहुत ज़ोर दे रही है.
हम लोग जब भी किसी युवा या युवती का नामांकन करते हैं तो उसमें लिंग के लिये तीन ओप्श्न दिये होते हैं: 1) पुरुष 2) स्त्री 3) किन्नर (1) Male 2) Female 3) Transgender)
मैं यह कह्ना चाह्ता हूँ कि सरकार भी चाहती है कि ये किन्नर भीख मांगना छोड़कर अपने जीवन यापन के लिये कुछ काम करे. लेकिन कोई मुझे ये बता सकता है कि :
1) अगर हम इन्हे हुनर सिखाने की कोशिश करे, तो क्या ये सीखेंगे?
2) अगर ये सीख गये तो क्या इन्हे नौकरी मिलेगी ?
3) सीखने के बाद क्या ये लोग नौकरी करेंगे ?
4) क्या कोई आफिस इन्हे नौकरी देगा ?
5) यदि ये लोग अपना व्यवसाय भी शुरु करे तो क्या आम आदमी (जो किन्नर नही है) इनके साथ लेन-देन करेगा ?
मुझे आप विद्वानो से जवाब की आशा हैं. क्रिपया अपने विचार ज़रूर दे. तो शायद मै इनके लिये कुछ कर सकू.
अधिकतर किन्नर समाज में, अपने आपको हेय अथवा किसी अन्य से नीचे नहीं मानते न वे अपने आपको दया का पात्र समझते हैं ! वे स्वयं को फ़क़ीर मानते हैं और अपनी इस स्थिति को खुश होकर स्वीकार करते हैं , वे अपना पेशा केवल नाच गाना बधाइयां आशीर्वाद देना ही मानते हैं एवं अपनी स्थिति में सरकार अथवा समाज सुधारकों की तरफ से कोई बदलाव नहीं चाहते ! उनकी मांग है कि समाज उनका वैसे ही आदर करे जैसा समाज में फकीरों का किया जाता है , खुशियों और त्यौहार आदि मौकों पर समाज उनकी तरफ मदद का हाथ सम्मान के साथ बढाए !
Deleteइन्हें कोई ट्रेनिंग भी शारीरिक सामर्थ्य और सहूलियत के साथ ही दी जा सकती है मगर ट्रेनिंग के बाद, समाज द्वारा हेय दृष्टि के कारण इन्हें गैर सरकारी क्षेत्र में कोई नौकरी मिलेगी इसमें संदेह है !
व्यवसाय के बारे में भी यही संदेह कार्य करेंगे , जब तक समाज इन्हें मानव नहीं समझता यह सब कागजी बाते हैं !
हाँ कुछ बड़े व्यावसायिक घराने सिर्फ कुछ कार्य क्षेत्र इनके लिए सुरक्षित कर दे तब और बात है !
आदरणीय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteनमस्कार,
आपका ब्लॉग काफी दिनों से पढ़ रहा हूं। मैं विगत दो वर्षों से हिजड़ों पर काम कर रहा हूं। इस यह अालेख भी पढ़ा तथा इंदरव्यू भी पढ़ा।
'विमर्श का तीसरा पक्ष' नाम से पुस्तक प्रकाशित करने जा रहा हूं। क्या अाप मुझे इस वंचित वर्ग की संवेदना को समाज के समझ पुस्तकाकार में लाने हेतु, इस आलेख तथा इंटरव्यू दोनों को उस पुस्तक में श्ाामिल करने की इजाजत देंगे। आशा है आप मेरा सहयोग कर हिजड़ा समुदाय संबंधित संवेदना को आगे लाने में मदद करेंगे।
डॉ. विजेंद्र प्रताप सिंह
सहायक प्रोफेसर (हिंदी)
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,जलेसर
email. vickysingh4675@gmail.com
आपका स्वागत है डॉ विजेंद्र प्रताप सिंह ,
Deleteयकीनन ऐसा करके आप इस रचना को सम्मानित कर रहे हैं ! आज जब इंटरनेट पर प्रकाशित सामग्री के भाव ,शैली में मामूली फेरबदल कर लोग अपने नाम से आसानी से छापकर वाहवाही उठाते हैं वहां आपकी यह विनम्रता, सौजन्यता बेहद सुखद है !
सस्नेह मंगलकामनाएं !
Aap ne Manawta ka Haq ada kar diya hai,,,... jazakallah...
ReplyDeleteAap ne Manawta ka Haq ada kar diya hai,,,... jazakallah...
ReplyDeleteSir, aap sahi kahte hai.
ReplyDeleteMr. satish G Thanks for this. I often think the same as you are saying.
ReplyDeleteThanks sir sabhi ka es or dyan attract krne k liye or hum Sakti somiya serial Ki team ko bhi thanks khna chahenge esse jayda se jayda log es barein Mein sochenge but Mein baat ye h Ki hme kiss's trh phl krni chahiye sirf discussion se change aana muskil hai
ReplyDeleteलोकतंत्र में अपनी बात पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए संगठन बनाना एवं संगठित होना ही पडेगा , उसके बाद कुछ समझदार लोग जो आपके संगठन का दुरुपयोग न करें , उनके जरिये अपनी बात सरकार तथा आम जन को पंहुचानी होगी !
Deleteइसके लिए दृढ निश्चय और मजबूत संकल्प लेना होगा लोग चाहे दो ही क्यों न हों ... चलना शुरू तो करें !