Sunday, March 21, 2010

यमुना मैय्या मैली सी !

दिल्ली में यमुना एक नाले के रूप में बहती है , आर्ट ऑफ़ लिविंग  के द्वारा १७ मार्च से एक सामूहिक  प्रयास शुरू किया गया है , बहुत प्रसंशनीय कार्य मानते हुए लोगों ने इसमें योगदान किया है  ! "मेरी दिल्ली मेरी यमुना " अभियान में बिसिनेस स्कूल और अन्य कालेज के विद्यार्थी बढ़ चढ़ के हिस्सा लेते देखे गए यह एक अच्छा शकुन है !
अगर यमुना के आस पास रहने वाले लोग ही, कमर कस कर निकल पड़ें तो मुझे विश्वास है कि हमारे माथे लगा यह गन्दा टीका साफ़ होते देर नहीं लगेगी !    

17 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  2. अभी मैंने समाचार पत्रों में, वर्तमान यमुना के चित्रों का दीदार किया,बहुत ही बुरी स्थिति है.

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  3. सतीश जी यमुना को साफ़ करने के लिए सबसे जरूरी है इसमें गिराए जा रहे बडे नालों को रोकना ....और उन उद्योग धंधों को बंद करना जो इसमें अपना अवशिष्ट फ़ेंक/बहा रहे हैं ..आम जनता को ही अब आगे आना होगा
    अजय कुमार झा

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  4. मिल जुल कर एक पहल करने की ज़रूरत है...यमुना को स्वच्छ होने में देर नही लगेगी हाँ एक बात और है उन्हे भी जागरूक होना पड़ेगा जो जाने अंजाने में यमुना को मैली करने पर तुले है....बढ़िया सार्थक प्रयास...

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  5. जी हाँ, यमुना को साफ़ करने से ज्यादा ज़रूरी है उसे गन्दा होने से रोकना ।
    जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलेंगे , कुछ नहीं होने वाला ।

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  6. ये तो एक बहुत ही बढ़िया और नेक प्रयास है! बेहतरीन प्रस्तुती!

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  7. कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के संपन्‍न होने के बाद
    नोमैनवेल्‍थ गेम्‍स रह जाएगी
    यमुना कितनी ही साफ कर लो
    फिर से मैली हो जाएगी
    जब तक नहीं करेंगे मनों को साफ
    कोई गंदगी कभी नहीं हो सकती साफ
    हम चाहते ही नहीं हैं
    कि कोई करे हमें माफ
    इसलिए तो बिगड़ रहा है
    पर्यावरण का ग्राफ।

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  8. shubhkamnae..........

    sathee hath badana..........hum than le to kya nahee kar sakte.......

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  9. सतीश भाई,
    पिछले कई साल से करोड़ों रुपये यमुना की सफ़ाई पर बहाए जा चुके हैं...शीला मैडम कुछ मौकों पर खुद हाथ में झाड़ू लेकर यमुना के तटों पर सफ़ाई की औपचारिकता निभाते भी दिखी हैं...लेकिन नतीजा क्या निकला ढाक के तीन पात...

    दिल्ली का ज़रूर कायापलट हो गया है लेकिन यमुना नाले की शक्ल में तब्दील हो चुकी है...मैंने कहीं पढ़ा है कि कभी टेम्स नदी भी जब तक उसमें स्टीमर चलते थे, काफी प्रदूषित हो चुकी थी...लेकिन लंदन में टेम्स को जीवित करने की दोबारा योजना बनी...और आज टेम्स लंदन की खूबसूरती में चार चांद लगाती है...सरकार को यमुना के लिए ऐसी ही कोई क्रांतिकारी योजना लानी चाहिए...

    वैसे यमुना को इस हाल में पहुंचाने के लिए सरकार से भी कहीं ज़्यादा दोषी हैं हम खुद यानि दिल्ली के बाशिंदे...सीवर की तो बात छोड़ें, कोई भी तीज़ त्यौहार आता है यमुना में पोलीथीन की थैलियों में पूजा की सामग्री विसर्जित की जाती है कि यमुना पूरी तरह चोक हो गई है...यमुना सांस ले भी तो कैसे ले...

    जय हिंद...

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  10. सच है. नदी वो चाहे यमुना हो या गंगा, यदि उस शहर ए लोग ही उसे साफ़ करना/ रखना चाह लें तो नदियों को दूषित होने और समाप्त होने से बचाया जा सकता है. पिछले दिनों मैं चित्रकूत गई थी, वहां मंदाकिनी की दुर्दशा देख मन रोने-रोने को हो आया. मंदाकिनी भी अब वहां गन्दे नाले का रूप ले चुकी है.

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  11. आपने एक गाना सुना होगा

    गंगा मैया मैं जब ये पानी रहे, मेरे सजना तेरी जिंदगानी रहे....

    इसमें गीतकार की महानता दूरदृष्टि देखिए
    अगर गंगा मैया की जगह यमुना मैया लिखा होता....

    तो गायिका, जाने कब की विधवा हो गयी होती...

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  12. बहुत सार्थक पोस्ट. केवल यमुना के आस पास ही क्यों उधर से गुजरने वाले हर इन्सान को योगदान देना होगा

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  13. बहुत ही सार्थक प्रयास ,
    अब तो बस यही दुआ है कि ये कोशिशें कामयाब हों और हमारी नदियां प्रदूषणरहित हो जाएं

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  14. बहुत सार्थक प्रयास जी। अलख जगती रहे।

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  15. सतीश जी!
    संसार का इतिहास उठा कर देख लीजिए। जितने भी प्राचीन शहर हैं वे सब नदियों के तटों पर बसे हैं। ‘जल’ का एक पर्यायवाची शब्द ‘जीवन’ भी है। नदियाँ जल- दायनी ही नहीं जीवन-दायनी भी है। इनका संरक्षण करना हम सब का कर्तव्य है। अब्दुल रहीम खानखाना बड़े अनुभवशील व्यक्ति थे। उन्होंने पाँच सौ वर्ष पूर्व चेताया था-‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरै, मानुष, मोती, चून।’’। आप अब चेता रहे हैं। हांका लगाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!

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  16. जागरूक होने में इतनी देरी क्योकर हो गयी मैने गंगा को प्रदुषण से रोकने के लिए जितना हो सकता था प्रयास किया यदि एेसी जागरूकता यमुना क्या सभी नदियों के लिए हो तो कितना अच्छा हो जीवन को बचाये यह जल ही तो जीवन है फिर नदियों पर हमारी कितनी निर्भरता है यह सभी जानते है मै फिर कहती हूं हमारी नदियों को, प्रकृति को पहाडों ग्लेशियरों को पृथ्वी को हमे ही बचाना ताकि हमें जीवन कही न तलाशना पडे इस सुन्दर ग्रह का हम बचा सकें ।

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  17. ये एक बहुत ही अच्छा प्रयास है .... सभी शहर ऐसा करें तो नदियों के पर्यावरण की समस्या आसानी से सुलझ सकती है ...

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एक निवेदन !
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- सतीश सक्सेना

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