Friday, July 30, 2010

विश्व की सबसे अधिक कष्टकारक और ह्रदय विदारक मूर्ति " -सतीश सक्सेना



जिस शिल्पकार ने यह बुरी तरह घायल कर, मारे गए शेर की यह प्रतिकृति बनाई है, वह वन्दनीय है ! अपने वर्ग में ऐसी कला, कम से कम मेरी निगाह से  आज तक नहीं गुज़री  !  
लायन आफ लयूजर्न  के नाम से मशहूर यह कलाकृति , अपनी जीवंत बनावट  के कारण , पूरे विश्व में सर्वाधिक पसंद की जाने वाली, शिल्प कला का बेहतरीन उदाहरण है ! अगर आपने बोलती हुई शिल्पकला को महसूस करना है तो चारो तरफ से घेर कर मारे गए, इस घायल शहीद शेर के चेहरे और शरीर के भाव पढ़ें !  
घेर कर मारे गए स्विस सैनिकों की याद दिलाता ,यह शेर ,बुरी तरह से घायल होने के बावजूद , अपनी पूरी शक्ति के साथ, दुश्मनों से, लड़ता हुआ शहीद हुआ है ! 
इसकी पीठ में गहरा घुपा हुआ, टूटा भाला होने के बाद भी, राजघराने के चिन्ह की रक्षा करते ,इसके चेहरे पर कष्ट की कोई शिकन नहीं है !   
उपरोक्त शीर्षक मार्क ट्वैन का दिया हुआ है जिसमें उन्होंने इस शहीद घायल शेर की मूर्ति को "विश्व की सबसे अधिक कष्टकारक और ह्रदय विदारक  मूर्ति "कहा था !  
यह मृत शेर उन स्विस सैनिकों की याद में बनाया गया है जिनको फ्रेंच रेवोलयूशन  के दौरान  १७९२ में  घेर कर मार दिया गया था ! यह स्मारक स्वित्ज़रलैंड के लयूसर्न शहर में ,स्विस सैनिकों की बहादुरी और वफादारी याद  दिलाने के लिए बनाया गया है  !  

Thursday, July 29, 2010

यह खतरनाक खिलौने और तीन टांग की कुर्सी -सतीश सक्सेना

जिनेवा में, यू एन स्कुआयर पर, हाल ऑफ़ नेशंस  के सामने एक विशाल कुर्सी जिसकी एक टांग टूटी हुई है , लोगों के स्वाभाविक आकर्षक का केंद्र है ! ५.५ टन वजनी और ३९ फीट ऊंची यह विशाल टूटी टांग  वाली लकड़ी की कुर्सी , विरोध करती है विभिन्न देशों में, जमीन में छिपी लैंड माइंस और खतरनाक क्लस्टर बमों का ,जो सैनिकों और बच्चों में भेद नहीं करते ! इन गंदे बमों से विश्व में हर साल सैकड़ों बच्चे अपाहिज हो जाते हैं !
विश्व में  ९० देश लैंड माइंस से प्रभावित माने  जाते हैं जिनमे से २५ बेहद संवेदनशील बताये गए हैं ! २३ मिलियन माइंस के साथ मिश्र सबसे आगे है ,उसके बाद इरान ,अंगोला, इराक, अफगानिस्तान, कम्बोडिया, बोस्निया  तथा  क्रोशिया आते हैं, जहाँ हर ३३४ आदमियों में से १ इंसान अपाहिज है ! !



  एक क्लस्टर बम के अन्दर लगभग १५० रंगीन चमकीले खिलौने नुमा बम होते हैं जो बम के गिरते ही चारो और बिखर जाते हैं , यह बिना फटे रंगीन टुकड़े बरसों बाद भी जीवित एवं विनाश लीला के लिए प्रभावी होते हैं ! ये रंगीन, छोटे खिलौने नुमा, आकर्षक आकार जो सोफ्ट ड्रिंक केन जैसे लगते हैं , बच्चों को स्वभावतः ही आकर्षित करते हैं ! अधिकतर, युद्ध के बरसों बाद भी , मासूम बच्चे  इनके शिकार होते हैं ! यह मानवता की क्रूरतम छवि है जिसका विरोध इस कुर्सी के द्वारा किया गया है ! 

जमीन के अन्दर छिपे हुए यह घातक लैंड माइंस और खिलौने की भांति लगते यह क्लस्टर बम मानवता के प्रति अपराध है ! अधिकतर नागरिकों को और बच्चों को निशाना बनाते यह छिपे हुए बम बरसों बाद भी अपना कहर बरपाते रहते हैं ! 


हॉल ऑफ़ नेशंस के सामने स्थापित इस टूटी कुर्सी का मकसद, संयुक्त राष्ट्र संघ में आने वाले ,विश्व के पोलिटिकल नेताओं और और अन्य सम्मानित लोगों को लैंड माइंस और क्लस्टर बमों को उपयोग में न लाने का अनुरोध है ! लैंड माइंस द्वारा निर्दोष अपाहिजों की याद दिलाती यह कुर्सी क्या अपने मकसद में कामयाब हो पायेगी ..

Thursday, July 22, 2010

पता नहीं मां सावन में, यह ऑंखें क्यों भर आती हैं - सतीश सक्सेना

जिस दिन एक बेटी अपने घर से, अपने परिवार से, अपने भाई, मां तथा पिता से जुदा होकर अपनी ससुराल को जाने के लिए अपने घर से विदाई लेती है, उस समय उस किशोर मन की त्रासदी, वर्णन करने के लिए कवि को भी शब्द नही मिलते ! जिस पिता की उंगली पकड़ कर वह बड़ी हुई, उन्हें छोड़ने का कष्ट, जिस भाई के साथ सुख और दुःख भरी यादें और प्यार बांटा, और वह अपना घर जिसमें  बचपन की सब यादें बसी थी.....
इस तकलीफ का वर्णन किसी के लिए भी असंभव जैसा ही है !और उसके बाद रह जातीं हैं सिर्फ़ बचपन की यादें, ताउम्र बेटी अपने पिता का घर नही भूल पाती ! पता नहीं किस दिन, उसका अपना घर, मायके में बदल जाता है !  
और "अपने घर" में रहते, पूरे जीवन वह अपने भाई और पिता की ओर देखती रहती है !
राखी और सावन में तीज, ये दो त्यौहार, पुत्रियों को समर्पित हैं, इन दिनों का इंतज़ार रहता है बेटियों को कि मुझे बाबुल का या भइया का बुलावा आएगा , उम्मीद करती है उसको, उसके घर पर याद किया जा रहा होगा !

पकड़ के उंगली  पापा की
जब चलना मैंने सीखा था !
पास लेटकर उनके मैंने
चंदा मामा जाना था !

बड़े दिनों के बाद याद
पापा की गोदी आती है !
पता नहीं माँ सावन में, यह ऑंखें क्यों भर आती हैं !

पता नहीं जाने क्यों मेरा
मन , रोने को करता है !
न जाने , क्यों आज मुझे
सब सूना सूना लगता है !
बड़े दिनों के बाद रात ,
पापा सपने में आए थे !
आज सुबह से बार बार बचपन की यादें आतीं हैं !

क्यों लगता अम्मा मुझको
इकला पन मेरे जीवन में ,
क्यों लगता जैसे कोई 
गलती की माँ लड़की बनके,
न जाने क्यों तड़प उठीं ये
आँखें , झर झर आती हैं !
अक्सर ही हर सावन में माँ, ऑंखें क्यों भर आती हैं !

एक बात बतलाओ माँ ,
मैं किस घर को अपना मानूँ 
जिसे मायका बना दिया ,

या इस घर को अपना मानूं !
कितनी बार तड़प कर माँ
भाई  की , यादें आतीं हैं !
पायल, झुमका, बिंदी संग , माँ तेरी यादें आती हैं !

आज बाग़ में बच्चों को
जब मैंने देखा, झूले में ,
खुलके हंसना याद आ गया 
जो मैं भुला चुकी कब से
नानी,मामा औ मौसी की
चंचल यादें ,आती हैं !
सोते वक्त तेरे संग छत की याद वे रातें आती हैं !

तुम सब भले भुला दो ,
लेकिन मैं वह घर कैसे भूलूँ 
तुम सब भूल गए मुझको 
पर मैं वे दिन कैसे भूलूँ ?
छीना सबने , आज मुझे
उस घर की यादें आती हैं,
बाजे गाजे के संग, बिसरे घर की यादें आती है !

Monday, July 19, 2010

क्या आपका घर बरसात झेलने के लिए तैयार है - सतीश सक्सेना

बरसात के दिनों में पहली वारिश के दिन ही , तुरंत छत पर अवश्य जाना पड़ता है ताकि पानी निकास के, पाइपों के मूंह पर जमा, पत्ता, कागज  और मिटटी आदि  हटा दूं अन्यथा आधा घंटे की तेज वारिश में पूरी छत पर ४ से ६ इंच पानी इकट्ठा होते, देर नहीं लगती ! नतीजा अक्सर ड्राइंग रूम और कमरों की छत पर सीलन के बड़े बड़े धब्बे दीखने लगते हैं  !

छत पर जाकर पेरापेट और टैरेस के जोड़ में अगर दरारें आ गयी हों तो बेहतरी इसी में हैं कि पूरे जोड़ को खुलवा कर वाटर प्रूफिंग कम्पाउंड  मिलाकर, सीमेंट कंक्रीट का गोला बनवा कर, उसे अच्छी तरह से फिनिशिंग दी जाये  अन्यथा बरसातों के बाद, उत्पन्न हुई सीपेज के कारण,आपको पूरे घर का पेंट कराना पड़ सकता है !

छत पर किये गए मड -फसका ट्रीटमेंट की दरारों में से अक्सर चींटिया अपना घर बना लेती है ! अगर आपकी छत पर यह खतरा है तो तुरंत उस स्थान पर से टाइलों को हटवा कर, सही तरह से दरारों को जलरोधी उपचार कराएं ! अगर आपने छत खराब हालत में है तो टैरेस ट्रीटमेंट कराना ही ठीक होगा ! जिससे कि बरसातों में किसी भी हालत में पानी, मड फसका अथवा टाइलों के नीचे न जाए !    

इसके अलावा यह आवश्यक है कि पूरे साल बंद पड़े रेन-वाटर मेनहोल के ढक्कनों को ठोक पीट कर खोल  लिए जाएँ और उनके अन्दर भरा कचरा साफ़ करवा लिया जाये !     

बेटी का जन्मदिन कभी नहीं भूलते, बहू का याद नहीं रहता ? -सतीश सक्सेना

                         "हमारे घर में, हर जन्मदिन पर तरुणी भाभी हँसते हँसते खाना खिला कर जाती हैं और हमें इनका जन्मदिन भी याद नहीं रहता पापा ! हम कितने सेल्फिश हैं ?? "
  
                     सुबह सुबह मेरी बेटी ने जब मुझे याद दिलाया तो लगा कि आज के समय में ऐसी आत्म स्वीकारोक्ति , घर में सबको जोड़े रहने में अच्छी भूमिका बनाये रखेगी !
                     
                    आज तरुणी का जन्मदिन है , ५ वर्ष पहले जब वह व्याह कर आई थी तो मेरे बड़े परिवार में लगा कि यह लडकी एडजस्ट होने में अधिक समय लगाएगी , मगर बहुत कम समय में , इसने अपने आपको, सबके साथ ऐसे ढाल लिया, जिसका अंदाज़ किसी को नहीं था ! 
                    
                    और उसने बड़े आराम से निशी ( बड़ी बहू ) की जगह कब ले ली, पता ही नहीं चला ! अब जब तरुणी घर में होती है तो निशी की याद किसी को नहीं आती !



Wednesday, July 14, 2010

दर्द दिया है तुमने मुझको, दवा न तुमसे मांगूंगा - सतीश सक्सेना

आहत स्वाभिमानी मन का छलकता गर्व, महसूस करें ! लगभग 25 साल पहले लिखी यह रचना आपकी नज़र है !   

समझ प्यार की नही जिन्हें 
है,समझ नही मानवता की !
जिनकी अपनी ही इच्छाएँ
तृप्त , नही हो पाती हैं  !
दुनिया चाहे कुछ भी सोंचे ,

कभी न हाथ पसारूंगा ?
दर्द दिया है तुमने मुझको , दवा न तुमसे मांगूंगा !

चिडियों का भी छोटा मन है

फिर भी वह कुछ देती हैं !
चीं,चीं करती दाना चुंगती
मन को , हर्षित करती हैं !
राजहंस का जीवन पाकर,

क्या भिक्षुक से मांगूंगा ?
दर्द दिया है तुमने मुझको , दवा न तुमसे मांगूंगा !

विस्तृत ह्रदय मिला ईश्वर से
सारी दुनिया ही, घर लगती
प्यार,नेह,करुणा औ ममता
मुझको दिए , विधाता ने  !
यह विशाल धनराशि प्राण !

अब क्या में तुमसे मांगूंगा ?
दर्द दिया है  तुमने मुझको , दवा  न  तुमसे  मांगूंगा  !

जिसको कहीं न आश्रय 
मिलता, 
मेरे दिल में रहने आये !
हर निर्बल की रक्षा करने
का वर मिला , विधाता से !
दुनिया भर में प्यार लुटाऊं, 

क्या लोभी से मांगूंगा ?
दर्द दिया है तुमने मुझको , दवा न तुमसे मांगूंगा !


परपीड़ा देने को अक्सर 
करता ह्रदय,निष्ठुरों का,
जंजीरों से ह्रदय और मन
बंधा रहे ,  गर्वीलों  का  ,
मैं हूँ फक्कड़ मस्त कवि, 

क्या गर्वीलों से मांगूंगा ?
दर्द दिया है तुमने मुझको, दवा न तुमसे मांगूंगा !

Sunday, July 11, 2010

सड़क के किनारे का यूरोप, मेरे कैमरे की नज़र से -सतीश सक्सेना

जब भी मैं चित्रों में यूरोप के खींचे हुए फोटो देखता हूँ , मशहूर स्मारकों  के खींचे गए फोटो ही नज़र आते हैं  , मैंने कोशिश की है कि सड़क किनारे का आम माहौल ,रहनसहन और वहां की संस्कृति की झलक आप को दिखा सकूं  ! 
लेफ्ट साइड में, रोम में हमारा अमेरिकेन गाइड ,माइकेल जब  भारतीय तिरंगा हाथ में लेकर, अपनी प्रभावशाली आवाज़ में रोमन साम्राज्य और संस्कृति के बारे में समझाता था तो हम लोग मंत्रमुग्ध से उसकी गहरी आवाज के साथ रोम साम्राज्य में खो जाते थे ! दाहिनी ओर का चित्र रोमन सिपाही के कपडे पहने, पैसे लेकर फोटो खिंचवाने का प्रयत्न करते, इस रोम वासी को देख, मुझे अपने यहाँ के मदारी याद आ गए  !
   
 
बायीं तरफ रोम का मशहूर कोलीज़ियम है , जो रोमन लोगों की उत्कृष्ट  भवन एवं वास्तुकला  की, सैकड़ों सालों बाद आज भी याद दिलाता है ! विश्वप्रसिद्द ग्लेदिएतर लड़ाके यहीं अपने जौहर दिखाते थे ! दीवारों से चोरों द्वारा उखाड़े गए, कॉपरपिन होल, इन विश्व धरोहरों की बर्वादी के सबूत के रूप में , हमारे देश की तरह यहाँ भी  उपस्थित थे  !
"दिल खुश हुआ मस्जिदे वीरान देख कर 
  मेरी तरह खुदा का भी खाना खराब है "
रास्ते में कोच में बैठे हुए घरों के फोटो खींचने का लोभ नहीं रोक पाया मैं !अपने घर के लान में खेलते ये बच्चों को देखना बहुत मन भावन था ! आसपास सूखते कपडे , और घर का फालतू समान कुछ कुछ अपने घर जैसा ही लगा  !
काफी हद तक इटली अपने देश जैसी  नज़र आई ! घरों में बंधे डोरी पर सूखते कपडे, पूरे यूरोप में सिर्फ यही देखने को मिले !
 दिल्ली के जनपथ मार्केट की तरह फूटपाथ पर सामान बेचते लोग, हमारे यहाँ के मुकाबले अधिक सभ्य नज़र आये !
कोई खींचा तानी या सामान बेचने की आपाधापी  नहीं दिखी  दुकान में खड़े होते ही हमारा मुस्कान के साथ स्वागत अवश्य किया जाता था !
 इटालियन पत्थर पूरे विश्व में अपनी सुन्दरता के लिए मशहूर रहा है ! जगह जगह रोड साइड पर लगी हुई इटालियन ग्रेनाईट की फैक्ट्रियां , और कटी हुई पत्थर की सिल्लियाँ , भवन निर्मातों की मांग बता रही थीं ! इटालियन ओनेक्स अपने कलर और खूबसूरती के लिए धनवानों के घर में अक्सर शोभा बढाता आया है ! परन्तु यह महंगा होने के कारण आम आदमी की पंहुच से बाहर है !


इटली में करारा नामक जगह का महत्व वही है जो भारत में मकराना का ! ऊपर दिया गया फोटो उसी स्थान का है ! मगर पहाड़ों का बेतरतीब खनन, हमने वहाँ भी बहुतायत में देखा, जैसा हमारे देश में है ! प्रकृति का दोहन, मानव  बहुत क्रूरता से करता रहा है , इसके दूरगामी परिणामों , के बारे में हम सोचने का प्रयत्न ही नहीं करते  ! करारा  (तस्किनी ), में जगह जगह,  बेदर्दी से काटे गए नंगे पहाड़, अपनी दुर्दशा सुना रहे थे !

Thursday, July 8, 2010

शोर प्रदूषण और यूरोप - सतीश सक्सेना

पेरिस से जिनेवा तक का सफ़र हम लोगों ने, विश्व की सबसे तेज रफ़्तार ट्रेन टीजीवी, जिसकी स्पीड ३२० कम प्रति घंटा तक जाती थी, से तय किया था ! इस ट्रेन की यात्रा का हमें बहुत इंतज़ार था ! पेरिस स्टेशन ( पेरिस ल्योन ) पंहुचने पर एक कतार में खड़ीं कई सुपरफास्ट ट्रेन दिखाई दीं ! बीच में एक ऐतिहासिक स्टेशन बेलग्रेड पड़ा जिसकी जीर्ण हालत देख हमें ख़ुशी हुई ! बेलग्रेड हिटलर की एक बदनाम जेल के लिए मशहूर रहा है , जहाँ गेस्टापो का एक महत्वपूर्ण अड्डा था !
ट्रेन में  हम भारतीयों को छोड़, अन्य लोग शांत थे , हम लोगों ने बैठते ही अपना अपना ग्रुप बना लिया और अपनी अपनी कहानियां सुनाने में भूल गए कि यहाँ के लोग तेज आवाज में सुनने के आदी नहीं हैं ! यहाँ तक कि  हाई स्पीड टीजीवी के चलने पर, कुछ भी नहीं महसूस हो रहा था ! पटरियों की धडधड आदि सब गायब , इतनी शांत कि गति भी पता न चले , लगा कि कुछ मज़ा ही नहीं आ रहा  !      
थोड़ी देर में लगभग ७५ वर्षीय एक बुजुर्ग महिला अपनी सीट से उठ कर, मेरे  सामने बैठे, मित्र के पास जाकर बेहद गुस्से में बोली आप इतनी जोर से क्यों चीख रहे हैं !  आपकी तेज आवाज ने मेरे कानों में दर्द कर दिया है ! मेरी तबियत खराब हो रही है ...क्या आपको पब्लिक प्लेस में बोलना नहीं आता है ! 
हमारे भारतीय मित्र , जो एक उच्च अधिकारी रह चुके थे ,अचानक हुए इस हमले को बिलकुल तैयार नहीं थे !  बार बार सॉरी  माँ , कहकर अपनी जान छुटाई ! यह पहला मौका था जब हमारी ख़राब आदत, हमें खुद को महसूस हुई !
दूसरा मौका स्वित्ज़रलैंड में विलार्स नामक बेहद खूबसूरत  जगह  होटल  "ले ब्रिस्टल "  लॉबी का था जहाँ एक काफी बड़ा बोर्ड  लगा हुआ था कि कृपया साइलेंस बनाए रखें !
एक अन्य कोच से  उतरे, एक भारतीय, लॉबी  में  इतनी जोर जोर से बोल रहे थे कि मुझे तक असहनीय हो रहा था  ! इतने में एक होटल अधिकारी ने आकर उन सज्जन को बुला कर यह नोटिस बोर्ड दिखाया उसके बाद ही वे देसी सज्जन खामोश हो पाए !

साधारण शिष्टाचार और अपने देश के सम्मान का ख़याल हमारे जन मानस में , कैसे आएगा ? खास तौर पर तब जबकि शोर को हम प्रदूषण मानते ही नहीं ,उसके खतरों से आगाह होने की चिंता तो तब होगी जब हमें उसके बारे में पता हो !


Wednesday, July 7, 2010

मदद करने की कोशिश - सतीश सक्सेना

मैंने जिन लोगों की मदद करने की कोशिश की , उनमें से बहुत कम हैं जिनको मैंने याद रखा है , लेकिन कुछ को
कभी नहीं भुला पाता क्योंकि उन्हें पहचानने में मैंने गलती की  !  मैंने वहाँ धोखा खाया और गलत आदमी की नकली भावनाओं में बहकर, उसपर विश्वास करने की मूर्खता की !

और यह बेवकूफी करते समय मैं परिपक्व उमर का था , समझ नहीं आता कि दोष, मैं अपनी भावुकता और जल्दवाजी  को दूं अथवा  कुपात्रों की चालबाजी को, जो आसानी से मेरा दिल जीतने में कामयाब हो गए  !

ऐसी घटनाओं से यह चालबाज लोग यह नहीं सोचते कि इन घटनाओं के होते, लोगों का किसी की मदद करने से ही भरोसा न उठ जाए ! आपने एक बार धोखा दे कर, अपना मामूली फायदा उठा लिया अगर ऐसा न करते तो शायद किसी बड़ी मुसीबत के समय यह नाचीज़ तुम्हे भयानक मुसीबत से बचाने में कामयाब हो जाता !

एक डर और, इन कुपात्रों के कारण ऐसा न हो कि लोगों का जरूरतमंदों की मदद करने से भरोसा ही उठ जाये  !
डॉ अमर ज्योति  का एक शेर, एक चेतावनी के तौर पर याद आ रहा है !

"  आप बोलें तो फूल झरते हैं 
    आपका ऐतबार कैसे हो  !"
( यह वाकयात मेरे कडवे अहसासों का एक हिस्सा हैं इसका किसी व्यक्तिविशेष से सम्बन्ध नहीं है !)

Monday, July 5, 2010

मानवता के लिए प्रकृति की एक महान भेंट होमिओपैथी -सतीश सक्सेना



                          सन २००८ में मेडिसिन क्षेत्र में फ्रेंच नोबल पुरस्कार विजेता  डॉ लिउक मोंतान्येये   ने  अंततः यह स्वीकार किया है कि होमिओपैथी की मान्यताओं का मज़बूत साइंटिफिक  आधार है ! जिन होमिओपैथिक सिद्धांतों को अब तक एलोपैथिक मान्यताओं  के आधार पर  क्वेकरी करार दिया जाता रहा है , अब इस महान साइंटिस्ट के द्वारा यह नया रहस्योदघाटन होमिओपैथी के अविश्वासियों के लिए एक गहरा झटका है ! 
                          एक होमिओपैथी के जानकार के लिए यह कोई अचरज की बात  नहीं है इससे पहले भी अनगिनत एलोपैथिक डॉ ,  एलोपैथी  को त्याग कर होमिओपैथी की प्रैक्टिस शुरू करते रहे हैं  !
                          १७५५ में जन्में , डॉ फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन एम्. डी. जर्मनी के बेहद प्रतिभाशाली एलोपैथिक डाक्टर थे  ! बचपन से ही विलक्षण प्रतिभाशाली हैनिमन ने एक सिद्धांत की नीव रखी कि स्वस्थ शरीर में अधिक मात्रा में जिस औषधि को खाने से  जो लक्षण पैदा होते हैं ,चाहे उस रोग या लक्षण का नाम कुछ भी क्यों न हो , वे लक्षण इसी दवा की न्यूनतम मात्रा देने से ठीक होने चाहिए ! जितनी दवा की मात्रा  कम  करते जायेंगे  दवा के कार्य करने की शक्ति उतनी ही बढती जायेगे ! 
                           उदाहरण के लिए आर्सेनिक अल्बम  दवा का एक बूँद टिंक्चर लेकर ९९ भाग एल्कोहल में मिलाने पर, यह  आर्सेनिक अल्बम १ बन जाता है ! अब इस आर्सेनिक अल्बम १ नामक दवा से एक बूँद लेकर ९९ भाग एल्कोहल में मिलाने से नयी दवा आर्सेनिक एल्बम २ कहलाएगी ! आर्सेनिक एल्बम २ से एक बूँद लेकर ९९ भाग एल्कोहल में मिलाने के बाद आर्सेनिक अल्बम -३ नामक दवा तैयार होती है ! इस प्रकार आर्सेनिक अल्बम ३ में एक बूँद आर्सेनिक टिंक्चर का १० लाखवा भाग पाया जाएगा  ! निश्चित तौर पर इस तरह बनायी गयी आर्सेनिक ३० अथवा आर्सेनिक २०० या आर्सेनिक १००००० में एक बूँद का कौन सा परमाणु होगा , गिनती लगाना असंभव होगा ! किसी भी एलोपैथिक लैब में, ३ पोटेंसी के बाद की दवा चाहे उस पर कोई नाम क्यों न लिखा हो, रिजल्ट शुद्ध एल्कोहल ही आता है ! यही कारण है कि एलोपैथिक सिस्टम ने इसे कभी मान्यता नहीं दी , और दवा के रिजल्ट को वे आस्था और विश्वास के कारण ठीक होने की बात कह कर अमान्य ठहराते रहे !
                              डॉ जगदीश चन्द्र बसु ने यह साबित किया था कि पौधों में जीवन है और उनमें संवेदनशीलता ठीक जीवों की संवेदन शीलता से मिलती है  ! पौधों का व्यवहार भी इंसानों की तरह मृदु ,स्नेही और क्रूर होता है ! इनसे बनायी गयी दवाओं का असर, उनके व्यवहार से मिलते जुलते इंसानों पर सबसे अच्छा होगा ! 
                                अगर आप अपने व्यवहार से मिलते हुए पौधे को ढूंढ निकालें तो यकीनन उससे बनायी गयी औषधि  आपके लिए संजीवनी बूटी का कार्य करेगी ! एक बार अगर आपने अपनी संजीवनी बूटी किसी होमिओपैथ की सहायता से ढूँढ ली तो शरीर में चाहें कोई भयंकर बीमारी क्यों न हो यह संजीवनी की तरह ही कार्य करेगी !और आपकी संजीवनी ढूँढने का यह कार्य होमिओपैथी रिपर्टरी करती है ! मानवीय गुण और शारीरिक लक्षणों के लाखो लक्षण लिखे हैं इस किताब में , यह किताब नहीं हज़ारों होमिओपैथ, जिनमें अधिकतर एलोपैथिक डाक्टर थे , की दिन रात की लगन और परिश्रम का नतीजा है जो बीसियों वर्षों और एलोपैथिक डाक्टरों के विरोध के बाद भी इस संसार में  आई  ! 
                                 भयानक और असाध्य बीमारियाँ को समाप्त करने के लिए आपको एक बार होमिओपैथी की इस गीता की शरण में जाना पड़ेगा , किसी विद्वान् डाक्टर के १-२ घंटे के परिश्रम के बाद आपकी संजीवनी बूटी या उससे मिलती जुलती कुछ दवाये आपके सामने आ जाएँगी ! अगर आप मैटिरिया मेडिका में, इन दवाओं के चरित्र के बारे में पढेंगे तो आपको लगेगा कि आप अपने चरित्र के बारे में ही पढ़ रहे हैं ! और यकीन रखिये इस सेलेक्टेड  औषधि की एक बूँद आपको आपरेशन टेबल पर जाने से आसानी से रोक देगी !  

Thursday, July 1, 2010

ब्लाग जगत का चरित्र बताते कुछ उत्कृष्ट और अनूठे ब्लाग - सतीश सक्सेना

आज सोचा कि कुछ विचित्र ब्लॉगों के बारे में जानकारी लेने का प्रयत्न क्यों न किया जाये जो बिना  "ब्लागरों " के कमेन्ट के भी चल रहे हैं  ! 

  • इसी यात्रा क्रम में , एक विचित्रतम ब्लॉग  पर पंहुचा जहाँ  बी एस पाबला ,प्रिंट मीडिया पर आज किस ब्लाग की चर्चा हो रही है, यह ढूँढ कर लिखते हैं ! अपने उलटे सीधे कर्मों के लिए मशहूर यह सरदार मुझे वाकई विचित्र लगा ! आज के समय में जब लोग अपना अपना नाम मशहूर करने की जुगत में लगे हैं ! यह श्रीमान जी पूरे दिन अखबारों में  ढूँढ कर, एक खबर लगा कर बैठे हैं कि गजरौला टाइम्स ने खुशदीप सहगल को छाप दिया  ! १९ जून २०१० को  छपी इस पोस्ट के बाद, इस धुनी सरदार की  इस मेहनत पर खुद खुशदीप सहगल ने भी आकर धन्यवाद नहीं दिया  ! औरों को तो छोडिये उनको खुशदीप सहगल की तारीफ़ से क्या लेना देना , जो आकर बी एस पावला के इस सरदारी परोपकार को धन्यवाद दें ! इस बेहतरीन काम पर केवल एक कमेंट्स आया  जिसका इस पोस्ट से कुछ भी लेना देना नहीं ! 


मगर वाकई मेरे शेर  ( शेर तो तुसी हो ही ...गुरु का शेर ...हमारी अस्मिता की रक्षा के लिए कटिबद्ध परिवार के बड़े भाई  को लख लख बधाइयां ) तुम्हारा यह काम, तुम्हे मेरी निगाह में बहुत ऊंचे स्थान पर ले गया  है ! तुम्हे हार्दिक शुभकामनायें !      

  • राकेश खंडेलवाल इस समय हिंदी गीत जगत में बेहद शक्तिशाली हस्ताक्षर है , अगर शब्द सामर्थ्य की बात करें तो गद्य में अजीत वडनेरकर के बाद  पद्य में केवल राकेश खंडेलवाल का नाम ही है जो नियमित सरस्वती साधना में लगे रहते हैं  ! मगर चूंकि राकेश जी  तीखीधारयुक्त  कलम के मालिक और   "टिप्पणी दे टिप्पणी ले " मंत्र के जानकार नहीं हैं अतः इस अद्भुत हिंदी शिल्पकार की टिप्पणी संख्या  १० से ऊपर कभी नहीं होती ! उन दस में भी "उड़नतश्तरी" वाले समीर लाल नियमित है जो उनके परमशिष्य हैं ! समीर लाल को आभार और श्रद्धा अर्पण उनके इस गुरु के लिए! अगर आपने गीतों में झंकार अनुभव करनी है तो गीत कलश ध्यान से पढ़े  ....   
धन्य है राकेश खंडेलवाल , जो बिना किसी सम्मान की इच्छा लिए माँ शारदा की आराधना में लगे हैं ..शारदापुत्र  राकेश खंडेलवाल को मेरी हार्दिक  शुभकामनायें !
  • कैलिफोर्निया में अध्यापन कार्यरत प्रतिभा सक्सेना ब्लाग जगत के लिए शायद अनाम हैं ! पहली बार जब इनका अनजाना सा ब्लाग पढ़ा तो यह प्रतिभा देख भौचक्का सा रह गया , शायद ही कोई उनके ब्लाग को पढता होगा ! शिप्रा की लहरें , यात्रा एक मन की ,स्वर यात्रा , लालित्यम, लोकरंग आदि के द्वारा यह हिंदी सेविका  प्रौढ़ महिला शांत चित्त अपना कार्य कर रही हैं ! इनके ब्लाग शायद किसी एग्रीगेटर से नहीं जुड़े हैं अतः इन्हें कौन जान पायेगा  ?? तकनीकी जानकारों से अनुरोध है कि वे प्रतिभा जी के ब्लाग को आम व्यक्ति और पाठंकों तक पंहुचाने का कष्ट करें ताकि हम इस शक्तिशाली कलम को पहचान सकें !   
मेरा सादर अभिवादन आपके कार्य के लिए ..निस्संदेह आपके प्रतिष्ठित कार्य के लिए हिंदी जगत आपका आभारी रहेगा !

  • डॉ मंजुलता सिंह, ७२ वर्ष की उम्र में जो कार्य कर रही हैं शायद ही कोई महिला सोच पायेगी !स्नेही व्यवहार के कारण, अपने आप ही, सामने वाले की श्रद्धा हासिल करने की क्षमता रखने वाली यह वृद्ध महिला,दिल्ली यूनिवेर्सिटी हिन्दी विभाग से, रीडर पोस्ट से रिटायर,रेकी ग्रैंड मास्टर (My Sparsh Tarang) के रूप में लोगों की सेवा में कार्यरत ! सात किताबें एवं २०० से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं, इस उम्र में भी अपने एरिया में वृद्धों की सेवा में कार्यरत रहती हैं और बहुत लोकप्रिय हैं !हिंदी की सेवा में पूरा जीवन देने वाले इस सशक्त हस्ताक्षर मंजुलता सिंह का लेखन ब्लाग पर कम ही हो पाता है !
आपके द्वारा इस उम्र में भी, वृद्धों के लिए किये गए कार्य  मेरे लिए प्रेरणा दायक हैं  ! आपको सादर प्रणाम  !

  • हिंदी जगत और राष्ट्रभाषा की सेवा में लगे अजीत वडनेरकर का ब्लॉग  बहुतों के लिए प्रेरणादायक है एवं मेरे लिए वे स्वाभाविक माननीय हैं जो बिना किसी सम्मान की चाह में, हिंदी शब्द सामर्थ्य बढ़ाने में लगे रहते हैं ! बहुत कम ऐसा मौका होता है जब इनके ब्लाग पर १० से अधिक प्रतिक्रियाएं आती हों ! खुद मैं ,उनको कम पढने वालों में से हूँ ...परन्तु यह मैं हूँ  आम ब्लागर ( डॉ अमर कुमार के शब्दों में अकिंचन कहूं अपने आपको तो गलत नहीं होगा ) और वे, वे हैं सबके श्रद्धेय  ! 
आपकी सौम्यता को प्रणाम अजीत जी !

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