आज के माहौल में कुछ लिखने का मन नहीं हो रहा है , समझ नहीं आ रहा कि अपने ही घर में क्यों चेतावनी प्रसारित की जा रही है ! बेहद तकलीफदेह है यह महसूस करना कि इसी देश की संतानों को आपस में ही, एक दूसरे से ही खतरा है ! शायद हमारे इतिहास को कलंकित करने वाले कारणों में से सबसे बड़ा कारण यही है !
आज देश के जाने माने शायर और एक बेहतरीन इंसान भाई सरवत जमाल साहब की ग़ज़ल आपके सामने पेश कर रहा हूँ ...मेहरवानी करके एक एक शेर को ध्यान से पढ़ें और महसूस करें ! शायद यही दर्द आप महसूस करेंगे !मैं भी इस दौर के बशर सा हूँ
आँखें होते हुए भी अँधा हूँ !
मेरी हालत भी धान जैसी है
पक रहा हूँ, नमी में डूबा हूँ !
जब मैं सहरा था, तब ही बेहतर था
आज दरिया हूँ और प्यासा हूँ !
जबकि सुकरात भी नहीं हूँ मैं
फिर भी हर रोज़ जहर पीता हूँ
आप के भक्त हार जाएंगे
आप भगवान हैं, मैं पैसा हूँ
मेरे हमराह मेरा साया है
और तुम कह रहे हो, तन्हा हूँ
मैं ने सिर्फ एक सच कहा लेकिन
यूं लगा जैसे इक तमाशा हूँ
मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ !