Thursday, September 30, 2010

मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ - सतीश सक्सेना

 आज के माहौल में कुछ लिखने का मन नहीं हो रहा है , समझ नहीं आ रहा कि अपने ही घर में क्यों चेतावनी प्रसारित की जा रही है ! बेहद तकलीफदेह है यह महसूस करना कि इसी देश की संतानों को आपस में ही, एक दूसरे से ही खतरा है  ! शायद हमारे इतिहास को कलंकित करने वाले कारणों में से सबसे बड़ा कारण यही है !
आज देश के जाने माने शायर और एक बेहतरीन इंसान भाई सरवत जमाल साहब की ग़ज़ल आपके सामने पेश कर रहा हूँ ...मेहरवानी करके एक एक शेर को ध्यान से पढ़ें और महसूस करें  ! शायद यही दर्द आप महसूस करेंगे !


मैं भी इस दौर के बशर सा हूँ 
आँखें होते हुए भी अँधा हूँ !
मेरी हालत भी धान जैसी है
पक रहा हूँ, नमी में डूबा हूँ !



जब मैं सहरा था, तब ही बेहतर था 
आज दरिया हूँ और प्यासा हूँ  !
जबकि सुकरात भी नहीं हूँ मैं 
फिर भी हर रोज़ जहर पीता हूँ 


आप के भक्त हार जाएंगे
आप भगवान हैं, मैं पैसा हूँ 
मेरे हमराह मेरा साया है 
और तुम कह रहे हो, तन्हा हूँ 


मैं ने सिर्फ एक सच कहा लेकिन 
यूं लगा जैसे इक तमाशा हूँ
मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख 
सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ  !

Tuesday, September 28, 2010

सैकड़ों देशों के बीच,देश की पगड़ी उछालते यह लोग -सतीश सक्सेना

उदय भाई,
             आज जब हर तरफ देश की कार्यक्षमता पर तथाकथित देशभक्त उंगली उठाते हुए विदेशियों को खुश कर रहे हैं कि " हम भी यही कह रहे हैं " ! इस मानसिकता का विरोध करने कोई सामने आने की हिम्मत नहीं कर रहा है तब आपका यह लेख आशा की ज्योति दिखा रहा है कि चलो अभी कुछ लोग हैं जो इस मानसिकता के विरोध में खड़े होने का जज्बा रखते हैं !
चार सौ एकड़ यमुना की तलहटी से निकला एक पानी का एक सांप "कुछ कमी  ढूँढ़ते इन महान खोजियों" को मिल गया है, और सारे खिलाड़ियों की जान के लिए खतरा बताते हुए पूरे दिन वह खबर ब्राडकास्ट होती रही !


           एक विशाल स्टेडियम की फाल्स सीलिंग से निकली एक टाइल जो अक्सर बिजली के लाइनमैन निकाल कर भूल जाते हैं इन्हें कुछ दिन पहले दिखी और दो दिन तक चिल्ल पों मचती रही कि छत गिर गयी !

           दो डरपोक विदेशी खिलाडियों ने इन ख़बरों से घबराते हुए आने को मना कर दिया ! हमारे न्यूज़ चैनल पूरे दो दिन वह खबर दिखाते रहे जैसे यह हमारी मीडिया की यह बहुत बड़ी जीत हो !
फूट ओवर ब्रिज गिरने का हादसा दुखद था जिसे एक प्राइवेट फर्म कर रही थी मगर इतने विशाल और बड़े स्केल पर होते काम के मध्य, यह दुर्घटना होना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं थी !

             अन्तराष्ट्रीय मापदंडों से होने वाले इन विशाल निर्माण कार्यों में बहुत सावधानी रखी जाती है, मगर मानवीय भूलें सिर्फ हमारे यहाँ ही नहीं बल्कि विदेशों में भी होती रहीं हैं मगर उनकी मीडिया और ब्लागर इतनी जान नहीं निकालते बल्कि उसे प्रयोग और सीखने की एक प्रक्रिया भर मानते हैं !
                             गंदे बाथरूम का फोटो खींचना हो तो किसी फाइव स्टार में जाकर कर्मचारियों का बाथ रूम देखिये यह भी उसी फाइव स्टार होटल का एक भाग माना जाता है ..कर्मचारियों के लिए बाथरूम खेल गाँव में भी हैं !
                             भोजन करने को बुलाये मेहमानों के सामने, अपने घर में कुश्ती ( भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार चिल्लाना ) ठीक नहीं ....
                              भारतीय मीडिया को सकारात्मक रोल अदा करना चाहिए खास तौर पर जब हमें बाहर वाले शक की नज़र से देख रहे हूँ ! रह गयी बात एक्सिडेंट की , तो विश्व में ऐसा कोई देश नहीं जहाँ कार्य होते समय दुर्घटनाएं नहीं घटती हों , आप गूगल पर सर्च कर इमेज देख लें ! जिस पैमाने पर देश में विकास कार्य हो रहे हैं उसमें एक दो एक्सिडेंट होना बेहद स्वाभाविक और मामूली घटना है ! मानवीय गलतियाँ कहाँ नहीं होती ! 
हम बुरे हैं, हम बुरे हैं, कहते रहिये .... पहले से ही भयभीत विदेशी आपके देश में झांकेंगे भी नहीं और आपके दुश्मनों को, आपका मुंह काला करने का मौका आसानी से मिलेगा !

                               भ्रष्टाचार पर निर्ममता से चोट करना चाहिए इस बात का विरोध कौन करेगा ? मगर विदेशियों का इससे क्या लेना !

                               काश इतनी नकारात्मकता से हम अपना दिल भी टटोलें कि हम खुद कितने गंदे हैं ...कितना आसान है किसी अच्छे कार्य में बुराई निकलना अगर यह देखना हो इस समय ब्लाग जगत और मिडिया  की काँव काँव देखिये ! अपने नाम को चमकाने में लगे यह तथाकथित लेखक किस प्रकार देश को नंगा करने में लगे हुए हैं !

                                अपने ही घर में दावत देकर बुलाये दुनिया भर के लोगों को अपनी नंगई और नीचता किस बेशर्मी से दिखलाई जा रही है ...जिससे यह बेचारे विदेशी दुबारा आने का साहस भी न कर सकें ...

Monday, September 27, 2010

राजधानी दिल्ली में अभूतपूर्व निर्माणकार्य -सतीश सक्सेना

इस समय के नकारात्मक माहौल में डॉ दराल द्वारा धारा के विपरीत लिखा गया यह है दिल्ली मेरी जान ... पढ़कर
ही इस लेख को लिखने की प्रेरणा मिली ! पहली बार देश में इतने बड़े स्केल पर अभूतपूर्व निर्माण कार्य हुआ है ...पहली बार देश में इतने बड़े मेगा स्ट्रक्चर बनाए गए हैं और शायद पहली बार ही इतनी बड़ी संख्या में विदेशी हमारे देश को देखने, इन खेलों के बहाने यहाँ आ रहे हैं ! पिछले ३ वर्षों में तमाम लालफीताशाही और तमाम सरकारी एजेंसियों ने, लाखों रुकावटों के बावजूद जितना कार्य किया गया है वह कार्य पिछले २० वर्षों में पूरे देश में नहीं हो पाया ...... 
याद कीजिये, ५ साल पहले दिल्ली में ट्रेफिक व्यवस्था की क्या स्थिति थी ? अभी हाल में मैंने अपनी यूरोप यात्रा के दौरान जिन रेलों में और मेट्रो में सफ़र किया था मेरा दावा है कि दिल्ली मेट्रो उन सबमें बेहतरीन है  और वाकई ऐसी दाग रहित सफाई, हमारे रहनसहन के साथ, आश्चर्य की ही बात थी मगर मैंने आज तक भारतीय मीडिया को मेट्रो के आधुनिकतम कुशल कार्य की तारीफ़ करते नहीं सुना  ! हर ३ मिनट के अंतराल पर विश्व के सबसे अच्छी वातानुकूलित तथा प्रदूषणरहित गाड़ियों को दिल्ली में चलते देखना, निस्संदेह बेहद सुखद था ! आटोमेटिक डोर, सीढियाँ , और सिक्यूरिटी को देख, हमें अपने महान देश का गौरव शाली नागरिक होने का बोध क्यों नहीं हुआ  ?  मेट्रो के आने से पहले कोई सोच भी नहीं पाता था कि चांदनी चौक और चावडी बाज़ार में भी ट्रेन से जाया जा सकता है ! दिल्ली की बनी घनी आबादी और खड़े पुराने भवनों के नीचे से सुरंग बना कर, केवल ८ वर्षों में लगभग २०० किलोमीटर स्टेट आफ आर्ट दिल्ली मेट्रो को चलाना कोई मज़ाक नहीं था ! मगर चौबीस घंटों काम करने का फल मेट्रो इंजीनियरों को , एक मेट्रो गर्डर गिरने पर, गालियों के रूप में दिया गया  ! इतने विशाल निर्माण कार्य पर शायद ही किसी पुरस्कार की घोषणा हुई होगी ! यह स्थिति बेहद अफ़सोस जनक है ...
राजीव चौक में  आमूल चूल परिवर्तन करना, ठीक इसी प्रकार का कार्य है कि जैसे बसे बसाए शहर को, बिना मिटाए दुबारा नए सिरे से बनाया जाए ! कनाट प्लेस के घनी आबादी को बिना छेड़े और विस्थापित किये उनकी सड़ी गली सर्विस सुविधाओं , सीवर लाइन, बिजली और जल सप्लाई को बहाल करते हुए, नया बनाना किसी भी इंजिनियर विभाग के लिए बेहद जटिल और पसीने लाने वाला काम है और विश्व के विकसित देशों में यह लगभग असंभव जैसा ही है मगर बिना इसकी जटिलता जाने राजीव चौक की खुदाई पर इन अनपढ़ों ने जितनी मज़ाक बनाई है उसे देख अपने बाल नोचने का ही दिल करता है !  
है मुमकिन दुश्मनों की दुश्मनी पर सबर कर लेना 
मगर  यह  दोस्तों  की  बेरुखी , देखी नहीं जाती  !
इसकी विशाल और भव्य निर्माण कार्य की, हम सबको मुक्त ह्रदय से तारीफ़ करनी चाहिए थी ! मगर हमारी भारतीय मीडिया को चटपटी खबर चाहिए और इस के चलते सैकड़ों कैमरामैन रात दिन इस अभूतपूर्व निर्माण कार्य में कमियां निकालने के लिए दिन रात मेहनत करते रहे और जो कुछ भी मिला,फाल्स सीलिंग की गिरी टाइलों से लेकर भारी बाढ़ के फलस्वरूप पैदा गन्दगी और मच्छरों तक को, दिन में २०-२० बार दिखाया गया  ......ऐसा लग रहा है कि पूरे विश्व में हमसे अयोग्य,घटिया, भ्रष्ट और निकम्मा कोई है ही नहीं ! और यह पूरे विश्व को बताना बहुत आवश्यक है कि हम कितने अयोग्य तथा शेष विश्व के लिए बेकार हैं ! आप लोग इस देश में आकर सुरक्षित नहीं हैं ! देश के विश्वास को जितनी ठेस इन दिनों हम भारतीयों ने दी है शायद दुश्मन देश पिछले दसियों वर्षों में नहीं कर पाए थे ! असद बदायुनी का एक शेर मुझे याद आ रहा है !
गैरों को क्या पड़ी है कि रुसवा मुझे करें 

इन साजिशों में हाथ किसी आशना का है 
इससे भी भयावह है हमारे देश की भीड़ चाल , एक न्यूज़ को सुनकर वही काँव काँव , उसके बाद अन्य न्यूज़ एजेंसी  और बाद में  आम आदमी  ! यही दुर्दशा ब्लाग जगत में देखने को मिली इस मानसिक गरीबी पर क्या खेद व्यक्त किया जाए सिवा अफ़सोस के !
खैर मुझे अपनी दिल्ली में हुए इस अभूतपूर्व निर्माण कार्य पर गर्व है , कि इन राष्ट्र मंडल खेलों के बहाने हम विश्वस्तरीय शहर में रहने लायक हो पाए हैं !
आइये अच्छे कामों पर हम अपने मजदूरों और अभियंताओं को शाबाशी देना सीखें  ! दिल्ली के तेजी से बदलते स्वरुप पर आप सब को हार्दिक शुभकामनाये !
   

Sunday, September 26, 2010

आपके स्वर्ण आभूषण और उनका रख रखाव - सतीश सक्सेना

भारतीय महिलाओं में स्वर्ण मोह विश्व में सबसे अधिक पाया जाता है ! कुछ दिन पहले मेरी धर्मपत्नी अपनी गले की चेन को साफ़ कराने की जिद कर रही थीं अतः मैंने उनसे तनिष्क पर जाने की सलाह दी क्योंकि टाटा कंपनी होने के कारण यह विश्वसनीय अधिक थी ! मगर साफ़ कराने के कुछ दिनों में ही उसके जोड़ जगह जगह पर काले पड़ गए और पूरी चेन ही बदरंग हो जाने के कारण कुछ दिनों में ही उसे बेचना पड़ा ! बहुत पछतावा हुआ कि ज्वेलर के पास साफ़ कराने के लिए ले जाने की क्या आवश्यकता थी ! अक्सर सुनार से साफ़ कराने में विभिन्न तरह के कैमिकल उपयोग किये जाते हैं जिनकी प्रतिक्रिया स्वरुप सोने की सफाई के साथ साथ सोना भी साफ़ हो जाता है ,जिसका अंदाज़ा बहुत बाद में होता है ! 
अक्सर प्राकृतिक स्किन आयल ,पसीना ,साबुन, क्रीम आदि लगने से स्वर्ण और हीरे आदि के आभूषण अपनी स्वाभाविक चमक खो देते हैं साथ ही वातावरण में उपलब्ध धूल जमने के साथ ही वे बेहद ख़राब लगने लगते हैं !अतः सबसे पहले इनसे धूल और चिकनाई हटानी आवश्यक होती है! ध्यान रखें कि सोने का रंग कभी ख़राब नहीं होता अतः उसको घर पर ही साफ़ करना आसान होता है  ! 
-स्वर्ण आभूषणों को साफ़ करने के लिए ,गरम पानी में थोडा शैम्पू या अन्य कोई सोफ्ट डेटरजेंट मिला कर उसमें अपने गंदे और पुराने आभूषणों को एक मिनट के लिए डाल दें !थोडा ठंडा होने पर उसे टूथब्रश से साफ़ कर ,स्वच्छ पानी में धो लें  ! आपकी ज्वेलरी चमक उठेगी !
-चाँदी पर वातावरण का असर बहुत जल्दी होता है अतः शीघ्र ही बदरंग होने का खतरा होता है ! एक बार बदरंग होने के बाद इनको साफ़ करना आसान नहीं होता , बाज़ार से सिल्वर पोलिश लेकर उसको एक स्पोंज में लगा कर धीरे धीरे रगड़ने से  सिल्वर में पुरानी चमक बापस आ जाती है !  
-डायमंड इयर रिंग साफ़ करने के लिए, गरम पानी में थोडा घर में प्रयुक्त होने वाला ग्लास क्लीनर मिला दीजिये और आभूषण इसमें लगभग २ मिनट के लिए डाल दें ,गन्दगी और चिकनाई हटाने के लिए सोफ्ट टूथब्रश का प्रयोग कर साफ़ पानी से धो लें !  

Friday, September 24, 2010

जैसलमेर में १८ करोड़ वर्ष पुराने पथरीले जंगल के अवशेष -सतीश सक्सेना

मुझे हमेशा से पहाड़ और घने जंगल आकर्षित करते रहे हैं ! हजारों साल पुराने खोये हुए अवशेष अगर किसी पहाड़ी पर मिल जाएँ तो मैं वहाँ अपने कैमरे के साथ, बिना खाए पिए अकेला पूरे दिन आराम से रह सकता हूँ !राजस्थान यात्रा से पहले मैं यह सोच भी नहीं सकता था कि वहाँ मुझे इतिहास लिखे जाने से भी पहले का, बेशकीमत खज़ाना मिल जायेगा, जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था !
जैसलमेर से १७ किलोमीटर दूर जैसलमेर - बारमेड रोड पर, अकाल वुड फोसिल पार्क, जिसमें सैकड़ों की संख्या में फासिल भरे पड़े हैं, कौन विश्वास करेगा कि यहाँ १० स्कुआयर किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल के पेंड, पत्थर बने हुए अपने अतीत की गवाही दे रहे हैं ! और यह पथरीले पेंड़ों  के तने ,यहाँ १८० मिलियन वर्ष पुराने जंगल होने के गवाह हैं !



समय और धरती में आये बदलाव के कारण, यह जंगल बाद में सागर  की तलहटी में समा गया और लगभग ३६ मिलियन वर्ष पहले जब सागर यहाँ से बापस लौटा तो पीछे पूरा पत्थर रुपी जंगल छोड़ गया !
सरकार द्वारा सुरक्षित घोषित इस फासिल पार्क में, जहाँ तहां पत्थर बन चुके, लकड़ी के तने बिखरे पड़े हैं ! पथरीले पहाड़ पर २५ तने नज़र आते हैं इनमें से १० पेंड के तने बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट दीखते हैं ! सबसे बड़ा तना 13मीटर लम्बा और डेढ़ मीटर चौड़ाई में है !इन विशाल पेंड़ों की उपस्थित यह बताती है कि कभी यहाँ की जलवायु घने जंगल के लिए अनुकूल रही होगी और समय के साथ, यह गिरे हुए पेंड, मिटटी में दबते चले गए और लाखों वर्षों से जमीनी दवाब और गर्मी के कारण पत्थर में बदल गए ! बाद में पानी के कटाव और मिटटी के क्षरण के साथ प्रकृति की यह दुर्लभ रचना जमीन के ऊपर आ गयी  ! आज सैकड़ों वर्ष पुराने समुद्री शैल ,सीप,शंख  इत्यादि के साथ पत्थर बने यह पेंड, रेगिस्तान में करोड़ों साल पहले समुद्र की उपस्थिति को, सबूत के साथ बयान करते हैं !
राजस्थान यात्रा में तमाम ऐतिहासिक खूबसूरत इमारतों और स्वादिष्ट भोजन के मध्य, मैं इस पथरीले जंगल को कभी नहीं भूल पाऊंगा !

Thursday, September 16, 2010

विवाह गीत - सतीश सक्सेना

हरियाली बन्ने ! दुल्हन करे है इंतजार
चटक मटकती फिरें भाभियाँ
हुलस हुलस बारी जायें !
हरियाले बन्ने ....


बुआ तुम्हारी लेयं बलाएँ 
फिरें नाचती द्वार द्वार में

घुंघरू करें झंकार ! 
हरियाले बन्ने ....


बहना तुम्हारी हुई बाबरी 
घर घर में वो फिरे हुलसती

बार बार बलिहार ! 
हरियाले बन्ने ....


मां के दिल से पूछे कोई
बारम्बार बलाएँ लेती

नज़र नहीं लग जाए !
हरियाले बन्ने ....

मौसी तुम्हारी रानी जैसी
घर में खुशियाँ लेकर आयी

करे प्रेम - बौछार ! 
हरियाले बन्ने ....


मामी तुम्हारी फिरें मटकती
सब लोगों को नाच नचाती

करती नयना - चार ! 
madhurima,bhasker-2-12-15
हरियाले बन्ने ....


चाची तुम्हारी खुशियाँ बांटे
रंग - बिरंगी बनी घूमती

गाएं गीत मल्हार ! 
हरियाले बन्ने ....


दादी तुम्हारी घूमें घर में
पैर जमीं पर नहीं पड़ रहे


खुशी कही ना जाए ! 
हरियाले बन्ने ....


बाबा तुम्हारे , घर के मुखिया
चार पीढियां देख के हरसें 

शान कही ना जाय ! 
हरियाले बन्ने ....


पिता तुम्हारे फिरें घूमते
घर में सबका हाल पूंछते 

खुशी छिपे न छिपाय ! 
हरियाले बन्ने ....


भइया तुम्हारे फिरें महकते
मेहमानों की खातिर करते 

इत्र फुलेल लगाय ! 
हरियाले बन्ने ....


चाचा तुम्हारे आए दूर से

नए नवेले कपड़े पहने 
मस्त फिरे बतियायं ! 
हरियाले बन्ने ....


जीजा तुम्हारे हुए बावरे

फिरें घूमते बन्ना लिखते
हाल कहा ना जाए !
हरियाले बन्ने ....

http://epaper.bhaskar.com/magazine/madhurima/213/02122015/mpcg/1/

एक अन्य खूबसूरत विवाह गीत के लिए यहाँ जाइये  - कैसे जाओगे यहाँ से लेके  प्यार सजना !

Saturday, September 11, 2010

आँखें - सतीश सक्सेना

कई बार मन के अस्थिर होने के कारण कुछ नया लिखने का मन नहीं करता , आज एक एक बहुत पुरानी रचना  (लगभग 30 वर्ष पुरानी ), प्रकाशित कर  रहा हूँ  !


यह दर्द उठा क्यों दिल में है
या याद किसी की आई है 
लगता है कोई चुपके से
दस्तक दे रहा, चेतना की 
वे भूले दिन बिसरी यादें ,
क्यों मुझे चुभें शूलों जैसी  
लगता कोई अपराध मुझे , है याद दिलाये करमों  की 

रजनीगंधा की सुन्दरता,
फूलों की गंध उठे  जैसे 
उन भूली बिसरी यादों से ,
ये गीत सजे, अरमानों के
मैं कभी सोचता क्यों मुझको, 
ही शांति नहीं है, जीवन में
यह क्यों उठती अतृप्त भूख, सूनापन सा इस जीवन में


लगता है जैसे इंगित कर
है मुझको याद करे कोई
लगता कोई हर समय मेरी
भूलों पर रोता है , जैसे ,
वे कोई भरी भरी आँखें , 
यादों से  जुड़ी हुईं ऐसे !
दिल में कोई भी दर्द उठे, सम्मुख जीवित होती आँखें !


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