आज के माहौल में कुछ लिखने का मन नहीं हो रहा है , समझ नहीं आ रहा कि अपने ही घर में क्यों चेतावनी प्रसारित की जा रही है ! बेहद तकलीफदेह है यह महसूस करना कि इसी देश की संतानों को आपस में ही, एक दूसरे से ही खतरा है ! शायद हमारे इतिहास को कलंकित करने वाले कारणों में से सबसे बड़ा कारण यही है !
आज देश के जाने माने शायर और एक बेहतरीन इंसान भाई सरवत जमाल साहब की ग़ज़ल आपके सामने पेश कर रहा हूँ ...मेहरवानी करके एक एक शेर को ध्यान से पढ़ें और महसूस करें ! शायद यही दर्द आप महसूस करेंगे !मैं भी इस दौर के बशर सा हूँ
आँखें होते हुए भी अँधा हूँ !
मेरी हालत भी धान जैसी है
पक रहा हूँ, नमी में डूबा हूँ !
जब मैं सहरा था, तब ही बेहतर था
आज दरिया हूँ और प्यासा हूँ !
जबकि सुकरात भी नहीं हूँ मैं
फिर भी हर रोज़ जहर पीता हूँ
आप के भक्त हार जाएंगे
आप भगवान हैं, मैं पैसा हूँ
मेरे हमराह मेरा साया है
और तुम कह रहे हो, तन्हा हूँ
मैं ने सिर्फ एक सच कहा लेकिन
यूं लगा जैसे इक तमाशा हूँ
मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ !
Nice Post...
ReplyDeleteप्रारम्भ से ही इंसान ही इंसान के लिए खतरा बना हुआ है। शेर भी अपनी सीमा बनाकर रहता है लेकिन अपनी सीमा में ही खुश रहता है लेकिन इंसान ऐसा है जिसकी कोई सीमा नहीं होती है बस वह और चाहता है और।
ReplyDeleteमेरे द्वेष ईष्या क्रोध ने बांधा समा,
ReplyDeleteकि मैं(अभिमान)बना रहा,मैं(आत्मा)से ही अन्जान हूं।
भाव तो समझ आ गया , पर ये ग़ज़ल जैसी तो नहीं लगती, अलग अलग शेर होते तो बेहतर होता ... खैर, कई शेर अच्छे है ...
ReplyDeleteमैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
ReplyDeleteसिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ ....
सहमा हूँ मैन भी! अच्छी गज़ल...
... bhaavpoorn gajal ... sundar prastuti !!!
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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क्या कहें ?
चुक से गये हैं शब्द भी... :(
...
अपनों के बीच सहमना कैसा ?
ReplyDeleteसच में कुछ लिखने का मन नहीं हो रहा है, मन अनमना है।
ReplyDeleteसच में कुछ लिखने का मन नहीं हो रहा है, मन अनमना है।
ReplyDeleteमैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
ReplyDeleteसिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ
सुन्दर सामयिक शेर.
हर आम आदमी सहमा हुआ है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ ---
ReplyDeleteआज तो सभी सहमे हुए थे । जाने क्यों लोग समझते ही नहीं ।
सहमा हुआ केवल इंसान है
ReplyDeleteबाकी के सब बेईमान हैं।
सहमा हुआ केवल इंसान है
ReplyDeleteबाकी के सब बेईमान हैं।
सर्वत जमाल जी की इस बेहद उम्दा रचना से रूबरू करवाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteएक शेर मुझे भी याद आ रहा है ..... किस का है यह पता नहीं ....
बुत बना रखें है .....नमाज़ भी अदा होती है ... ;
दिल मेरा दिल नहीं......खुदा का घर लगता है !!
सलाम है सर्वत साहब की कलाम को ..... बहुत ही कमाल का लिखते हैं .... हर शेर में सामाजिक पक्ष बहुत मज़बूत होता है .... लाजवाब ...
ReplyDeleteबेहतरीन! बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteजबकि सुकरात भी नहीं हूँ मैं
ReplyDeleteफिर भी हर रोज़ जहर पीता हूँ
बहुत उम्दा प्रस्तुति पढ़वाने के लिए ...सतीश जी ...
मेरे दिल कि बात अली साहब ने कह दी.
ReplyDeleteग़ज़ल का मिज़ाज़ और माहौल की तल्खियाँ दोनों अपनी जगह कायम हैं लेकिन जिस दर्द में आलूदा है हर इक शे'र ...........वह भीतर तक रुला देने वाला है
ReplyDeleteउम्दा
नहीं बहुत उम्दा
नहीं नहीं नायाब ग़ज़ल !
मुबारक !
बहुत अच्छी पोस्ट ...
ReplyDeleteऐसे वक्त पर यह गज़ल ...अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteसरवत भाई का शेर शेर लाजवाब है...
ReplyDeleteसतीश जी
ReplyDeleteआभार … एक शानदार ग़ज़ल पढ़ने का अवसर देने के लिए !
सरवत जमाल साहब को ज़्यादा नहीं पढ़ा , जितना पढ़ा , उनके कलाम को पढ़ने की प्यास बढ़ी ही है ।
यहां प्रस्तुत सरवत जी की ग़ज़ल बहुत पसंद आई ।
मैं भी इस दौर के बशर सा हूं
आंखें होते हुए भी अंधा हूं
मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
सिर्फ इन्सान हूं मैं, सहमा हूं
वाह ! वाह ! वाह !
वाकई …
आज के दिन का हौवा !
चेतावनी !
सचमुच बेहद तकलीफ़देह !
अपना एक दोहा समर्पित करना चाहूंगा -
मस्जिद - मंदिर तो हुए , पत्थर से ता'मीर !
इंसां का दिल : राम की , अल्लाह् की जागीर !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सुंदर प्रस्तुति। आभार!
ReplyDeleteकुछ भी नयी बात नहीं आयी गजल में -सर्वत जमाल से और अच्छे की उम्मीद है
ReplyDeleteइनसान का इनसान से हो भाईचारा,
ReplyDeleteयही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा...
जमाल भाई बेमिसाल हैं...
जय हिंद...
मैं जान बूझ कर कल, 30 सितम्बर को टिप्पणी देने नहीं आया. कल का दिन जितनी शंकाओं-आशंकाओं से भरा हुआ था, उस ने मुझे भी किसी काम का नहीं छोडा था. लेकिन खुशी इस बात की है कि एक बार फिर इंसानियत की जीत हुई. एक बार फिर फिरक़ा परस्ती ने मुंह की खाई. एक बार फिर इस मुल्क के अवाम ने यह साबित किया कि यहां गंगा-जमुनी तह्ज़ीब है और हमेशा रहेगी.यहां फिर्दौस, सतीश, शिवम, सर्वत और अनगिनत इंसान एक साथ थे, है और रहेंगे.
ReplyDeleteसतीश भाई, थोडी मेहनत किया करें और किसी अच्छे शायर का कलाम पोस्ट किया करें.
@ सरवत जमाल साहब
ReplyDeleteजो हुक्म हुजूर
हाज़िर हैं और हाज़िर रहेंगे सेवा में :-)
ReplyDeleteऊई अल्लाह,
दरवाज़े मॉडरेशन खाँसता ।
टिप्पणी भेजता हूँ, पिछली खिचड़ी से ।
ई-मेल से आयी टिप्पणियाँ छपती तो होंगी ?
"समझ नहीं आ रहा कि अपने ही घर में क्यों चेतावनी प्रसारित की जा रही है ! बेहद तकलीफदेह है यह महसूस करना कि इसी देश की संतानों को आपस में ही, एक दूसरे से ही खतरा है ! "
- इसी पोस्ट से !
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ReplyDeleteछोटी-मोटी मुश्किलों से यूँ, परेशान नहीं होते।
डर-डर के जो जिए, वो इंसान नहीं होते।
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खुश हूँ की राम का फैसला हो गया , उनको birth ceritficate ईशु होगया ।
अच्छा लगा पढ़ना.
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeleteअब हिंदी ब्लागजगत भी हैकरों की जद में .... निदान सुझाए.....
मेरी हालत भी धान जैसी है पक रहा हूँ, नमी में डूबा हूँ
ReplyDeleteजब मैं सहरा था, तब ही बेहतर था आज दरिया हूँ और प्यासा हूँ
आदरणीय सर्वत जी की तो मैं हमेशा फैन रही हूँ....
इनका हर शे'र गहरा पैठ कर लिखा गया होता है ..यहाँ भी वही देख रही हूँ ....
पाक रहा हूँ नमी में डूबा हूँ .....सुभानाल्लाह .....
और ये ....
जबकि सुकरात भी नहीं हूँ मैं फिर भी हर रोज़ जहर पीता हूँ
आप के भक्त हार जाएंगे आप भगवान हैं, मैं पैसा हूँ
ओह ....कहाँ से लाते है ऐसी सोच .....
सतीश जी शुक्रिया आपका ....
सर्वत जी अपना ब्लॉग फिर शुरू करें .....
इन्तजार है आपका .....!!
satishji bahut hi achhi gazal padhwai aapne... aabhar sachmuch apna sa dard laga har pankti me.
ReplyDeleteवाह सतीश जी बहुत बढिया । शायर सरवत जमाल साहब से मिलवाने का आभार ।
ReplyDeleteमैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ
सर्वत सर जी और उनकी इस सोच को दिल से सलाम ||
ReplyDeleteमैंने कई बार पढ़ा और न जाने,
और कितनी बार पढूंगा और सोचूंगा ||
कमाल की प्रस्तुति ||
मेरी हालत भी धान जैसी है
पक रहा हूँ, नमी में डूबा हूँ
जब मैं सहरा था, तब ही बेहतर था
आज दरिया हूँ और प्यासा हूँ
वाह !! ..........लाजवाब ||
क्या कहूँ मैं, बस निशब्द हो गया हूँ ||
@ आदरणीय सतीश जी
ReplyDeleteबशर,सहरा का क्या मतलब होता है
@गौरव अग्रवाल ,
ReplyDeleteबशर का अर्थ जीव अथवा इंसान तथा सहरा, मरुस्थल को कहते हैं ! वैसे मैं उर्दू का और ग़ज़ल का जानकार नहीं हूँ और स्पष्टीकरण इसलिए कि गौरव कोई दूसरा प्रश्न न पूँछ लें :-))
उम्मीद करता हूँ कि इस प्रश्न का जवाब खुद सरवत जमाल साहब देंगे !
@आदरणीय सतीश जी
ReplyDeleteअब क्या बताएं,
लगता है मानव का मूल स्वभाव जीभ की तरह ही होता है जो हमेशा वहीं जाती है जहां दांतों में छोटा सा तिनका फंसा होता है , यही गड़बड़ है मेरे साथ भी :))
बस दो शब्दों से अटक रहे थे तिनके की तरह ....अब ज्ञान प्राप्त हो गया, जो शेर दिल को छू गए वो ये हैं
जब मैं सहरा था, तब ही बेहतर था
आज दरिया हूँ और प्यासा हूँ
मैं ने सिर्फ एक सच कहा लेकिन
यूं लगा जैसे इक तमाशा हूँ
वैसे सारे शेर उम्दा हैं .. आनंद आ गया
अर्थ बताने हेतु आपका आभार , कोई डिक्शनरी की व्यवस्था अवश्य करूंगा :)
sir,
ReplyDeletei found a dictionary :)
"one needs to type every word properly" to get the right answer :)
http://www.hamariweb.com/dictionaries/hindi-urdu-dictionary.aspx?ue=%E0%A4%97%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%AC
please copy and paste the link given and get the meaning of "गज़ब"
सहमना गलत है ।
ReplyDeleteपरिदों में फिरकापरस्ती क्यों नहीं होती !
ReplyDeleteकभी मन्दिर पे जा बैठे कभी मस्जिद पे!
सर्वत जी वाकई शानदार गजल कहते हैं। इस गजल में भी कम शब्दों मं बडी बात कह दी है उन्होंने। इसे पढवाने के लिए आपका शुक्रिया।
ReplyDelete................
…ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
बड़ी अच्ची गज़ल है।.
ReplyDeleteबड़ी अच्ची गज़ल है।.
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