Thursday, September 30, 2010

मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ - सतीश सक्सेना

 आज के माहौल में कुछ लिखने का मन नहीं हो रहा है , समझ नहीं आ रहा कि अपने ही घर में क्यों चेतावनी प्रसारित की जा रही है ! बेहद तकलीफदेह है यह महसूस करना कि इसी देश की संतानों को आपस में ही, एक दूसरे से ही खतरा है  ! शायद हमारे इतिहास को कलंकित करने वाले कारणों में से सबसे बड़ा कारण यही है !
आज देश के जाने माने शायर और एक बेहतरीन इंसान भाई सरवत जमाल साहब की ग़ज़ल आपके सामने पेश कर रहा हूँ ...मेहरवानी करके एक एक शेर को ध्यान से पढ़ें और महसूस करें  ! शायद यही दर्द आप महसूस करेंगे !


मैं भी इस दौर के बशर सा हूँ 
आँखें होते हुए भी अँधा हूँ !
मेरी हालत भी धान जैसी है
पक रहा हूँ, नमी में डूबा हूँ !



जब मैं सहरा था, तब ही बेहतर था 
आज दरिया हूँ और प्यासा हूँ  !
जबकि सुकरात भी नहीं हूँ मैं 
फिर भी हर रोज़ जहर पीता हूँ 


आप के भक्त हार जाएंगे
आप भगवान हैं, मैं पैसा हूँ 
मेरे हमराह मेरा साया है 
और तुम कह रहे हो, तन्हा हूँ 


मैं ने सिर्फ एक सच कहा लेकिन 
यूं लगा जैसे इक तमाशा हूँ
मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख 
सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ  !

48 comments:

  1. प्रारम्‍भ से ही इंसान ही इंसान के लिए खतरा बना हुआ है। शेर भी अपनी सीमा बनाकर रहता है लेकिन अपनी सीमा में ही खुश रहता है लेकिन इंसान ऐसा है जिसकी कोई सीमा नहीं होती है बस वह और चाहता है और।

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  2. मेरे द्वेष ईष्या क्रोध ने बांधा समा,
    कि मैं(अभिमान)बना रहा,मैं(आत्मा)से ही अन्जान हूं।

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  3. भाव तो समझ आ गया , पर ये ग़ज़ल जैसी तो नहीं लगती, अलग अलग शेर होते तो बेहतर होता ... खैर, कई शेर अच्छे है ...

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  4. मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
    सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ ....
    सहमा हूँ मैन भी! अच्छी गज़ल...

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  5. ... bhaavpoorn gajal ... sundar prastuti !!!

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  6. .
    .
    .
    क्या कहें ?
    चुक से गये हैं शब्द भी... :(


    ...

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  7. अपनों के बीच सहमना कैसा ?

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  8. सच में कुछ लिखने का मन नहीं हो रहा है, मन अनमना है।

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  9. सच में कुछ लिखने का मन नहीं हो रहा है, मन अनमना है।

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  10. मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
    सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ
    सुन्दर सामयिक शेर.

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  11. हर आम आदमी सहमा हुआ है
    सुन्दर रचना

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  12. मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ ---
    आज तो सभी सहमे हुए थे । जाने क्यों लोग समझते ही नहीं ।

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  13. सहमा हुआ केवल इंसान है
    बाकी के सब बेईमान हैं।

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  14. सहमा हुआ केवल इंसान है
    बाकी के सब बेईमान हैं।

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  15. सर्वत जमाल जी की इस बेहद उम्दा रचना से रूबरू करवाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
    एक शेर मुझे भी याद आ रहा है ..... किस का है यह पता नहीं ....

    बुत बना रखें है .....नमाज़ भी अदा होती है ... ;
    दिल मेरा दिल नहीं......खुदा का घर लगता है !!

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  16. सलाम है सर्वत साहब की कलाम को ..... बहुत ही कमाल का लिखते हैं .... हर शेर में सामाजिक पक्ष बहुत मज़बूत होता है .... लाजवाब ...

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  17. बेहतरीन! बहुत सुन्दर!

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  18. जबकि सुकरात भी नहीं हूँ मैं
    फिर भी हर रोज़ जहर पीता हूँ
    बहुत उम्दा प्रस्तुति पढ़वाने के लिए ...सतीश जी ...

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  19. मेरे दिल कि बात अली साहब ने कह दी.

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  20. ग़ज़ल का मिज़ाज़ और माहौल की तल्खियाँ दोनों अपनी जगह कायम हैं लेकिन जिस दर्द में आलूदा है हर इक शे'र ...........वह भीतर तक रुला देने वाला है

    उम्दा
    नहीं बहुत उम्दा

    नहीं नहीं नायाब ग़ज़ल !

    मुबारक !

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  21. ऐसे वक्त पर यह गज़ल ...अच्छा लगा पढ़कर.

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  22. सरवत भाई का शेर शेर लाजवाब है...

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  23. सतीश जी
    आभार … एक शानदार ग़ज़ल पढ़ने का अवसर देने के लिए !

    सरवत जमाल साहब को ज़्यादा नहीं पढ़ा , जितना पढ़ा , उनके कलाम को पढ़ने की प्यास बढ़ी ही है ।
    यहां प्रस्तुत सरवत जी की ग़ज़ल बहुत पसंद आई ।


    मैं भी इस दौर के बशर सा हूं
    आंखें होते हुए भी अंधा हूं

    मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
    सिर्फ इन्सान हूं मैं, सहमा हूं


    वाह ! वाह ! वाह !

    वाकई …
    आज के दिन का हौवा !
    चेतावनी !
    सचमुच बेहद तकलीफ़देह !

    अपना एक दोहा समर्पित करना चाहूंगा -

    मस्जिद - मंदिर तो हुए , पत्थर से ता'मीर !
    इंसां का दिल : राम की , अल्लाह् की जागीर !!


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  24. सुंदर प्रस्तुति। आभार!

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  25. कुछ भी नयी बात नहीं आयी गजल में -सर्वत जमाल से और अच्छे की उम्मीद है

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  26. इनसान का इनसान से हो भाईचारा,
    यही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा...

    जमाल भाई बेमिसाल हैं...

    जय हिंद...

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  27. मैं जान बूझ कर कल, 30 सितम्बर को टिप्पणी देने नहीं आया. कल का दिन जितनी शंकाओं-आशंकाओं से भरा हुआ था, उस ने मुझे भी किसी काम का नहीं छोडा था. लेकिन खुशी इस बात की है कि एक बार फिर इंसानियत की जीत हुई. एक बार फिर फिरक़ा परस्ती ने मुंह की खाई. एक बार फिर इस मुल्क के अवाम ने यह साबित किया कि यहां गंगा-जमुनी तह्ज़ीब है और हमेशा रहेगी.यहां फिर्दौस, सतीश, शिवम, सर्वत और अनगिनत इंसान एक साथ थे, है और रहेंगे.
    सतीश भाई, थोडी मेहनत किया करें और किसी अच्छे शायर का कलाम पोस्ट किया करें.

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  28. @ सरवत जमाल साहब
    जो हुक्म हुजूर
    हाज़िर हैं और हाज़िर रहेंगे सेवा में :-)

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  29. ऊई अल्लाह,
    दरवाज़े मॉडरेशन खाँसता ।
    टिप्पणी भेजता हूँ, पिछली खिचड़ी से ।
    ई-मेल से आयी टिप्पणियाँ छपती तो होंगी ?

    "समझ नहीं आ रहा कि अपने ही घर में क्यों चेतावनी प्रसारित की जा रही है ! बेहद तकलीफदेह है यह महसूस करना कि इसी देश की संतानों को आपस में ही, एक दूसरे से ही खतरा है ! "
    - इसी पोस्ट से !

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  30. .

    छोटी-मोटी मुश्किलों से यूँ, परेशान नहीं होते।
    डर-डर के जो जिए, वो इंसान नहीं होते।

    .

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  31. अच्छा लगा पढ़ना.

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  32. बढ़िया प्रस्तुति...
    अब हिंदी ब्लागजगत भी हैकरों की जद में .... निदान सुझाए.....

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  33. मेरी हालत भी धान जैसी है पक रहा हूँ, नमी में डूबा हूँ
    जब मैं सहरा था, तब ही बेहतर था आज दरिया हूँ और प्यासा हूँ

    आदरणीय सर्वत जी की तो मैं हमेशा फैन रही हूँ....
    इनका हर शे'र गहरा पैठ कर लिखा गया होता है ..यहाँ भी वही देख रही हूँ ....
    पाक रहा हूँ नमी में डूबा हूँ .....सुभानाल्लाह .....

    और ये ....
    जबकि सुकरात भी नहीं हूँ मैं फिर भी हर रोज़ जहर पीता हूँ
    आप के भक्त हार जाएंगे आप भगवान हैं, मैं पैसा हूँ

    ओह ....कहाँ से लाते है ऐसी सोच .....
    सतीश जी शुक्रिया आपका ....
    सर्वत जी अपना ब्लॉग फिर शुरू करें .....
    इन्तजार है आपका .....!!

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  34. satishji bahut hi achhi gazal padhwai aapne... aabhar sachmuch apna sa dard laga har pankti me.

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  35. वाह सतीश जी बहुत बढिया । शायर सरवत जमाल साहब से मिलवाने का आभार ।
    मैं न पंडित, न राजपूत, न शेख
    सिर्फ इन्सान हूँ मैं, सहमा हूँ

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  36. सर्वत सर जी और उनकी इस सोच को दिल से सलाम ||
    मैंने कई बार पढ़ा और न जाने,
    और कितनी बार पढूंगा और सोचूंगा ||
    कमाल की प्रस्तुति ||

    मेरी हालत भी धान जैसी है
    पक रहा हूँ, नमी में डूबा हूँ

    जब मैं सहरा था, तब ही बेहतर था
    आज दरिया हूँ और प्यासा हूँ

    वाह !! ..........लाजवाब ||
    क्या कहूँ मैं, बस निशब्द हो गया हूँ ||

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  37. @ आदरणीय सतीश जी

    बशर,सहरा का क्या मतलब होता है

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  38. @गौरव अग्रवाल ,
    बशर का अर्थ जीव अथवा इंसान तथा सहरा, मरुस्थल को कहते हैं ! वैसे मैं उर्दू का और ग़ज़ल का जानकार नहीं हूँ और स्पष्टीकरण इसलिए कि गौरव कोई दूसरा प्रश्न न पूँछ लें :-))
    उम्मीद करता हूँ कि इस प्रश्न का जवाब खुद सरवत जमाल साहब देंगे !

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  39. @आदरणीय सतीश जी

    अब क्या बताएं,
    लगता है मानव का मूल स्वभाव जीभ की तरह ही होता है जो हमेशा वहीं जाती है जहां दांतों में छोटा सा तिनका फंसा होता है , यही गड़बड़ है मेरे साथ भी :))

    बस दो शब्दों से अटक रहे थे तिनके की तरह ....अब ज्ञान प्राप्त हो गया, जो शेर दिल को छू गए वो ये हैं

    जब मैं सहरा था, तब ही बेहतर था
    आज दरिया हूँ और प्यासा हूँ

    मैं ने सिर्फ एक सच कहा लेकिन
    यूं लगा जैसे इक तमाशा हूँ

    वैसे सारे शेर उम्दा हैं .. आनंद आ गया

    अर्थ बताने हेतु आपका आभार , कोई डिक्शनरी की व्यवस्था अवश्य करूंगा :)

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  40. sir,

    i found a dictionary :)

    "one needs to type every word properly" to get the right answer :)

    http://www.hamariweb.com/dictionaries/hindi-urdu-dictionary.aspx?ue=%E0%A4%97%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%AC

    please copy and paste the link given and get the meaning of "गज़ब"

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  41. परिदों में फिरकापरस्ती क्यों नहीं होती !
    कभी मन्दिर पे जा बैठे कभी मस्जिद पे!

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  42. सर्वत जी वाकई शानदार गजल कहते हैं। इस गजल में भी कम शब्दों मं बडी बात कह दी है उन्होंने। इसे पढवाने के लिए आपका शुक्रिया।
    ................
    …ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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