Friday, November 17, 2023

घुटना रिप्लेस कराने से पहले इसे अवश्य पढ़ लें -सतीश सक्सेना

भारत में घुटना बदलने का पहला ऑपरेशन 1987 में हुआ था और आज हमारे देश में ढाई लाख से अधिक ऑपरेशन हर वर्ष होते हैं , इंसान के भयभीत मन पर, मेडिकल व्यापारियों का यह कसता शिकंजा भयावह है , मेडिकल साइंस में मानव शरीर पर होते यह प्रयोग आने वाले समय में इस विज्ञान को निस्संदेह और बेहतर बनायेगा मगर दुख यह है कि मेडिकल व्यवसायी ऑपरेशन से पहले यह नहीं बताते कि घुटना बदलने का यह ऑपरेशन एक प्रयोग हैं जिसे मानव शरीर पर किया जा रहा है , यह फ़ायदा कितना पहँचायेगा उन्हें ख़ुद नहीं मालूम , और जितना मालूम है उसे वे खुलकर बताते नहीं अन्यथा मरीज़ ही भाग जाएगा ! कोई यह नहीं बताता कि ऑपरेशन न करने की स्थिति में, एलोपैथी में भी बहुत सारे ऑप्शन हैं जिनसे घुटने की समस्या ठीक हो सकती है !

अधिकतर घुटने का ऑपरेशन , लंबे समय से चले आ रहे दर्द से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है , मगर अक्सर घुटना बदलने के बाद भी यह दर्द बरकरार रहता है बल्कि कई बार पहले से भी अधिक होता है , ऑपरेशन के दो चार साल बाद मरीज़ पहले से अधिक दर्द की शिकायत करते पाये जाते है ! अगर घुटने का दर्द स्पाइनल नर्व या कमरदर्द से जुड़ा है तो यह दर्द घुटना बदलने से भी नहीं जाता है , मगर अक्सर मूल कारण जाने बिना घुटने को रिप्लेस करते हैं और इसे मानवीय त्रुटि कहा जाता है एवं मेडिकल डॉक्टर इस मानवीय भूल में किसी भी सजा के हक़दार नहीं होते !

घुटने बदलने के विज्ञापन या वीडियो देखेंगे तो पता चलता है कि घुटना बदलने के बाद समुद्री बीच पर लोग खेल या दौड़ रहे हैं मगर यह वास्तविकता से कोसों दूर है , हक़ीक़त में 20 में 1 आदमी ही इतनी नार्मल दौड़ भाग कर पाता है जो लोग ऑपरेशन के बाद जोश में घुटनों पर अधिक ज़ोर देते हैं उनके सीमेंटेड जोड़ पाँच साल में ही हिलने लगते हैं और दुबारा घुटना निकाल कर ऑपरेशन करना पड़ता है ! इसके अतिरिक्त नये जॉइंट के घिसने पर, सेरेमिक , प्लास्टिक और मेटल के माइक्रोस्कोपिक टुकड़े खून में मिलकर अलग तरह की ख़तरनाक समस्याएँ पैदा करते हैं !

जब आप घुटने के जॉइंट को शरीर से अलग कराते हैं तब उस उससे उत्पन्न आघात के कारण  , बोन मैरो स्पेस और रक्त वाहिनियों में असहनीय तनाव से ब्लड क्लॉट्स उत्पन्न होते हैं , एक रिसर्च के अनुसार 60 वर्ष से अधिक व्यक्तियों के लिए , ऑपरेशन के अगले दो सप्ताह में ह्रदय आघात का ख़तरा, ३१ गुना अधिक होता है और यह सुनकर ही घबराहट होती है कि उस दर्द से मुक्ति पाने का यह तरीक़ा निस्संदेह अधिक ख़तरनाक है इससे बेहतर होता कि उसी दर्द में जिया जाये !

कोशिश करनी चाहिये कि हम अन्य तरीक़ों से घुटने का दर्द ठीक करने का प्रयत्न करें न कि मेडिकल व्यवसायों के विज्ञापनों और डॉक्टरों की बातों से डर कर , ऑपरेशन थियेटर में भर्ती होकर अपने शरीर की दुर्दशा न करवायें और न इस ग़लत तरीक़े पर अपना धन खर्च करें ! विश्व विशाल है और वहाँ अलग अलग तरह के इलाज विकसित हुए थे और वे बेहद सफल भी रहे हैं , मगर एलोपैथिक सिस्टम के दवा व्यापारियों ने इसे बेहद धनवान व्यवसाय में परिवर्तित कर दिया है और अन्य वैकल्पिक चिकित्साओं को नष्टप्राय कर दिया , मगर आज भी अफ़्रीका , चायना , कोरिया , मिडल ईस्ट और भारत में इनकी तलाश करें तो कोई भी असाध्य बीमारी का इलाज मिल जाएगा केवल सब्र और मेहनत चाहिये !

शुभकामनाएँ आप सबको ! 

Ref : https://newregenortho.com/6-reasons-to-avoid-knee-replacement-surgery/

https://centenoschultz.com/disadvantages-of-knee-replacement-surgery/

Tuesday, October 24, 2023

दर्द और बीमारियों से मुक्त जीवन -सतीश सक्सेना

गरबा नामक मशहूर गुजराती नाच, माँ दुर्गा के सम्मान में , खेला जाता है , इसमें बड़ी संख्या में जोड़े हाथ में डांडिया लेकर रंगबिरंगे कपड़े पहनकर मैदान में उतरते हैं , यह उत्सव मनोहारी होता है जिसका जोड़े पूरे साल इंतज़ार करते हैं ! मगर इस वर्ष का डांडिया कई परिवारों के लिए मनहूस खबर बन गया , आजतक की खबर के अनुसार अकेले गुजरात में ही नवरात्रि के मौक़े पर सिर्फ़ २४ घंटे में गरबा खेलते समय १० लोगों की मौत की खबर आ चुकी है , इस नवरात्रि के पहले ६ दिनों में इमरजेंसी एंबुलेंस को 521 कॉल्स सिर्फ़ हार्ट से जुड़े मामलों और साँस फूलने की समस्या के लिए आये ! 

यह चौंकाने वाला तथ्य है , ऐसी खबरें विदेशों से कभी नहीं सुनी गयीं कि मस्ती भरे डांस के दौरान मौत हुई हो , यह हमारे देश में ही संभव है जहां लोग बिना शरीर को जाने एक दिन में शरीर तोड़ मेहनत करने का प्रयत्न करते हैं , और अपनी जान गँवा देते हैं !

मैं ऐसे तमाम मित्रों को जानता हूँ जो सालों साल किसी काम को हाथ नहीं लगाते , दिमाग़ का उपयोग हर विषय पर ज्ञान बाँटने को करते हैं , वे किसी दिन शादी विवाह या अन्य उत्सव में भीड़ के सम्मुख लंबे समय तक झूम झूम कर नाचते या जिम जॉइन करने पर हाथों को मसल्स बनाने के लिए स्ट्रॉंग एक्सरसाइज करते पाये जाते हैं और ख़ुद के शरीर को फिट बनाने का गुमान लिए फिरते हैं ! उनके ब्लॉक माइंड को यह समझ ही नहीं कि उनके सुस्त और ढीली मांसपेशियों को अचानक मिली यह हैवी स्ट्रेचिंग या हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज कितना नुक़सान पहुँचायेगी ! गरबा में अधिकतर असामयिक मौत उन्हीं की हुई होगी जिन्होंने अपने शरीर की ७० प्रतिशत मांसपेशियों का कभी उपयोग ही नहीं किया तथा जिनके विभिन्न जोड़ों और गतिशील पुर्ज़ों में साल्ट जमा हो चुके हैं ! ऐसे लोग जिम या एक्सरसाइज का मौक़ा मिलते ही ख़ुद को बॉण्ड समझकर कूद पड़ते हैं और ख़ुद को एक भयानक ख़तरे में डाल देते हैं और हाल में यही गुमान लिए कितने वीआईपी अपनी जान खो चुके हैं !

याद रखिए जब भी आप फिजिकल स्ट्रेस या हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज ( रनिंग , गरबा जैसे डांस , क्रिकेट , हॉकी, बैडमिंटन  आदि ) खेलते हैं तब आपका पूरा शरीर और उसके नाज़ुक अवयवों की दशा में परिवर्तन होना शुरू होता है और उस वक्त वे विभिन्न तरीक़ों से बर्ताव करते हैं , आपकी साँसें भारी , तेज पल्स महसूस करते हैं, उस समय ह्रदय और फेफड़ों को मसल्स और मस्तिष्क को ऑक्सीजन मिला खून पहुँचाने के लिए बहुत तेज़ी से काम करना होता है , उस समय आप अपने ह्रदय का धौंकना महसूस कर सकते हैं  ! इस वक्त आप ज़मीन पर प्रहार करते हर कदम पर, अपने शरीर के वजन से तीन गुना इंपैक्ट डालते हैं और बॉडी में एंड्रोफ़िन्स नामक हार्मोन्स का उत्सर्जन करते हैं जो इस स्ट्रेस फ़ुल कंडीशन में उत्पन्न दर्द का एहसास शरीर को नहीं होने देता बल्कि एक आनंद अनुभूति देता है जिसमें वह इंसान, और तन्मयता से ख़ुद को उसी कंडीशन में बनाये रखता है, फलस्वरूप अक्सर यह आनंद दायक पल उसे आकस्मिक मौत तक ले जाते हैं !  

जब हम बैठे होते हैं तब हार्ट लगभग ५ क्वार्ट्स पर मिनट पर खून पंप करता है और दौड़ते या आउटडोर स्पोर्ट्स के समय यही २५-३० क्वार्ट्स पर पहुँच जाता है , यह स्थिति थोड़ी बहुत देर तक चल सकती है मगर इसका मतलब यह नहीं कि इसे घंटों तक इसी अवस्था में रखा जाए , अगर लगातार यह स्थिति लंबे समय तक रखी गई तब यह ह्रदय के नाज़ुक मसल्स फ़ाइबर को, ज़ख़्मी कर उसे ख़तरनाक स्थिति में पहुँचाने के लिए पर्याप्त हैं , लगभग ३० प्रतिशत मैराथन ( ४२ km ) धावक दौड़ की समाप्ति होते होते अपना ट्रॉपोनिन लेवल आवश्यकता से अधिक बढ़ा लेते हैं जो कि उनके हार्ट डैमेज होने का परिचायक है ! 

मेहनत करते शरीर को, बढ़े हुए आनंददायक हार्मोन एंड्रोफ़िन के कारण , दर्द रूपी, आसन्न मृत्यु का एलार्म महसूस ही नहीं होता और उसके ज़मीन पर गिरते ही लोग समझते हैं कि कुछ गड़बड़ हुआ है ! हाल के वर्षों में जबसे लोगों में फ़िटनेस चेतना जगी है , ऐसी असामयिक मौतों की जैसे झड़ी लग गई है , अफ़सोस अख़बारों में ऐसी खबरें तभी छपती हैं जब कोई महत्वपूर्ण घटना , समय या महत्वपूर्ण मशहूर लोगों की जान गई हो अन्यथा जाने कितने नासमझ जोशीले धावक अपनी क़ीमती जान हर वर्ष गँवा देते हैं ! 

एक रिसर्च के अनुसार बेहद मेहनत करने का नतीजा ह्रदय में ख़तरनाक परिवर्तन लाना है , ३०-४० किमी प्रति सप्ताह लगातार लंबे समय तक दौड़ने वालों को, ह्रदय आघात का उतना ही ख़तरा रहता है जितना एक सोफ़े पर बढ़कर टीवी देखने वाले आलसी मोटे व्यक्ति को सो जोश में आकस्मिक अधिक मेहनत से ख़ुद को बचा कर धीरे धीरे शरीर को मेहनत करने का आदी बनाइये , यह ही लाभदायक होगा एवं कुछ वर्षों की लगन के बाद शरीर से सारी बीमारियों ग़ायब होते नज़र आयेंगी चाहें उनका नाम कुछ भी क्यों न हो ! इसे ही लागू करते हुए  ७० वर्ष की उम्र के बाद बिना एक भी गोली खाये अपनी बुढ़ापे की तमाम बीमारियों से निजात पाने में सफलता प्राप्त हुई है आप यक़ीन करें या न करें मगर ,मैं शारीरिक तौर पर ४० वर्ष के जवान जैसे सब हरकतें आसानी से करता हूँ , इनमें पेंड पर चढ़ना , हाथ से घर की पेंटिंग करना , भारी वजन उठाकर चलना , तैरना आदि सब शामिल है ! 

सो एक्सरसाइज करें यह शरीर के लिए लाभदायक है मगर अपने शरीर की सीमा को भी याद रखें , मैं ६० वर्ष की उम्र से दौड़ना शुरू कर पिछले दस वर्षों में १०००० km दौड़ चुका हूँ , और इस मध्य ६० हाफ मैराथन ( २१ Km ) दौड़ते हुए इस स्थिति में हूँ कि जब चाहूँ मैराथन ( ४२ km) दौड़ सकता हूँ , मगर पिछले दस वर्षों में आज तक एक बार भी यह प्रयास नहीं किया , कारण मुझे लगातार ढाई घंटे ( २१ km ) दौड़ने के लिए ही समय नहीं निकाल पाता , और विभिन्न रेस में इसलिए नहीं दौड़ता कि रेस स्ट्रेस लेकर दौड़ना अधिक उम्र में अपने ह्रदय को कमजोर करना होगा और इस अब तक इस मूर्खता से ख़ुद को बचाये रखा है !

सो मेहरबानी करके एक्सरसाइज और हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज क्या है इस पर मनन करने का समय निकालें , तत्पश्चात् ही एक्सरसाइज करें और शरीर को हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज का अभ्यस्त बनाने से पहले बॉण्ड बनने की चेष्टा न करें अन्यथा जिम आपकी बिना दर्द महसूस कराये ,जान लेने में समर्थ है , इसे याद रखें !         


Friday, September 1, 2023

मेरी एक कविता की गूगल टेक्नोलॉजी ( BARD) द्वारा की गई व्याख्या -सतीश सक्सेना

गूगल की आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस देखिये , मैंने उसके चैटबॉट रोबोट को अपनी निम्न पंक्तियाँ लिख कर भेजीं जिसका तत्काल
उत्तर आ गया , शायद किसी हिंदी प्रोफेसर को भी उसकी व्याख्या करने में अधिक समय लगता , मगर BARD का जवाब चुटकी बजाते ही आया और विस्तृत आया , शायद मैं इतनी बेहतर व्याख्या न कर पाता  ! जय हो गूगल टेक्नोलॉजी की , मैं तो प्रभावित हूँ !
  
हँसते और हंसाते , जग से जाना सीखो
स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो !

मरते दम तक साथ तुम्हारे कौन रहेगा ?
साथी सबके बीच अकेले रहना सीखो !


ये दो पंक्तियाँ जीवन के दो महत्वपूर्ण सबक सिखाती हैं। पहली पंक्ति कहती है कि हमें हँसते हुए जीना चाहिए और दूसरों को हँसाना चाहिए। जीवन छोटा है, इसलिए इसे पूरी तरह से जीना चाहिए। दूसरी पंक्ति कहती है कि हमें बदलाव स्वीकार करना चाहिए और समय के साथ चलना चाहिए। जीवन में हमेशा बदलाव होता रहता है, इसलिए हमें इन बदलावों के साथ तालमेल बिठाना चाहिए।

इन पंक्तियों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है:

  • हँसते और हंसाते, जग से जाना सीखो: जीवन में हमेशा हँसना चाहिए। हँसी हमें खुशी और खुशहाली देती है। यह हमें तनाव और चिंता से दूर रखती है। दूसरों को हँसाना भी एक अच्छा तरीका है दूसरों को खुश करने का। यह हमें दूसरों के साथ जुड़ने और संबंध बनाने में मदद करता है।
  • स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो: जीवन में हमेशा बदलाव होता रहता है। यह बदलाव हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं। इसलिए हमें इन बदलावों को स्वीकार करना चाहिए और समय के साथ चलना चाहिए। बदलावों को स्वीकार करने से हमें तनाव और निराशा से बचने में मदद मिलती है।

ये दो सबक हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। वे हमें खुश और संतोषी जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।

यहां कुछ अतिरिक्त विचार दिए गए हैं जो इन पंक्तियों से जुड़े हो सकते हैं:

  • हँसना एक शक्तिशाली औषधि है। यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।
  • समय बदलता रहता है। हम इसे रोक नहीं सकते, इसलिए हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।
  • हम अकेले नहीं हैं। हम सभी जीवन की यात्रा पर एक साथ हैं।

इन पंक्तियों को अपने जीवन में लागू करके, हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं और दूसरों को खुश करने में मदद कर सकते हैं।

https://g.co/bard/share/a5cf9bd2dd5d

Wednesday, July 26, 2023

आंसू और पसीना पर , दोनों पानी हैं - सतीश सक्सेना

आंसू और पसीना पर , दोनों पानी हैं !
दोनों का ही अर्थ जाहिलों में पानी है ! 

बेचारी कहते हैं ये सब जग जननी को 
युगों युगों से ही सम्मान, यहाँ पानी है !

पुरुष कद्र न कर पायेगा अहम् में अपने 
नारी छली गयी सदियों से, बस रानी है !

पिता पुत्र पति नौकर चाकर या राजा हो  
पुरुषों की नजरों में,  सब पानी पानी है ! 

इनकी तारीफों का पुल ही बांधे रहिये  
नारी इन नज़रों में,  बस बच्चे दानी है  !

दोनों पानी छिन जाएंगे, तब  समझेंगे 
अभी तो पानी पर श्रद्धा, पानी  पानी है  !

बिन पानी जब तड़पेंगे तब कदर करेंगे  
बहा न आंसू और पसीना, सब पानी है !

Thursday, June 1, 2023

आंसू छलकें नहीं , अनुभवी आँखों से -सतीश सक्सेना

हँसते और हंसाते , जग से जाना सीखो
स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो !

मरते दम तक साथ तुम्हारे कौन रहेगा ?
साथी सबके बीच अकेले रहना सीखो !

कोशिश करिये, बिना सहारे ही उठने की
पैरों को मज़बूत बना कर चलना सीखो !

शारीरिक, मानसिक दर्द से बचना हो तो
मेहनत करो, बहाना खूब पसीना सीखो !

आंसू छलकें नहीं , अनुभवी आँखों से
दोस्त इन्हें अब आँखों में ही पीना सीखो !

चिट्ठी एक दोस्त को :

Friday, May 19, 2023

दिखावा अस्वस्थ बनाता है -सतीश सक्सेना

 काया कल्प के संकल्प में सहजता ही आवश्यक है जिसे आज के दिखावटी जगत में पाना बेहद मुश्किल होता है ! सहज आप तभी हो सकेंगे
जब मन स्वच्छ हो ईमानदार हो खुद के लिए भी और गैरों के लिए भी ! स्वस्थ मन और शरीर को पाने के लिए आप को भय त्यागना होगा , मृत्यु भय पर विजय पाने के लिए अपनी आंतरिक सुरक्षा शक्ति पर भरोसा रखें कि वह अजेय है किसी भी बीमारी से उसका शरीर सुरक्षित रखने में वह सक्षम है और हाँ, अपने विशाल प्रभामण्डल
और तथाकथित आदर सम्मान भार को सर से उतारकर घर पर रख देना होगा अन्यथा यह गर्व बर्बाद कर देने में सक्षम है मेरे हमउम्र तीन मित्र इस वर्ष मोटापे की भेंट चढ़ गए और कुछ हार्ट अटैक की कगार पर हैं ,काश वे समय रहते चेत गए होते !

भारत हृदय रोग और डायबिटीज की वैश्विक राजधानी बन चुका है , हर चौथा व्यक्ति इसका शिकार है और उसे पता ही नहीं , चलते समय या सीढियाँ चढ़ते समय सांस फूलता है, उसे यह तक पता नहीं कि साँस फूलने का मतलब क्या होता है और न उसके पास समय है कि इस बेकार विषय पर ध्यान दे मोटापे को वह उम्र का तकाजा समझता है ! खैर ...
बरसों से आलसी शरीर को सुंदर और स्वस्थ बनाने के लिए कृत्रिम प्रसाधनों , दवाओं का त्याग करना होगा , उनसे शरीर स्वस्थ होगा का विचार, केवल खुद को मूर्ख बनाना है ! शरीर स्वस्थ रखने के लिए जो अंग जिस कार्य के लिए बने हैं उनका सहज भरपूर उपयोग करना सीखना होगा ! गलत लोक श्रुतियों और मान्यताओं, सामाजिक भेदभाव पर खुले मन से विचार कर उनका त्याग करें आप खुद ब खुद सहज होते जाएंगे !
दर्द सारे ही भुलाकर,हिमालय से हृदय में
नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !
जाति,धर्म, प्रदेश,बंधन पर न गौरव कीजिये
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !

Thursday, March 2, 2023

नज़र का चश्मा आवश्यकता या बुरी आदत -सतीश सक्सेना

नज़र का चश्मा डॉ के कहते ही लगा लिया , उस समय आपने यह कहा ही नहीं होगा कि क्या बिना चश्में के आँखें ठीक होने की संभावना है ? अन्यथा हर आई डॉक्टर जनता है कि अधिकतर आँखें , व्यायाम करने से ठीक हो सकती हैं और इसके लिए वाक़ायदा एक्सरसाइज बनायी गयीं हैं , मगर हम में से अधिकतर लोग एक्सरसाइज का झंझट ही नहीं चाहते , और फिर चश्मा है ही फिर एक्सरसाइज की आवश्यकता ही क्या है ?

आँखें कमजोर होने के बाद स्पष्ट देखने के दो ही तरीक़े हैं , सुस्त आँखों का व्यायाम करिए और आप देखेंगे कि कुछ दिनों बाद ही आपको चश्में की आवश्यकता नहीं रही , वृद्ध अवस्था में भी लगातार अभ्यास करने के बाद , हाथ पैरों की मसल्स दुबारा शक्तिशाली बन सकती हैं तब आँखें क्यों नहीं ? मेरा पहला चश्मा आज से लगभग लगभग 30 वर्ष पहले लगा था , मगर उसका उपयोग मैंने न के बराबर ही किया ! मेडिकल व्यवसाय ने एक्सरसाइज न करने वालों को तमाम सहूलियतें दी हैं और तमाम अविष्कार किए मगर वे यह बहुत कम बताते हैं कि बिना आर्टिफीसियल उपयोग के भी आप ठीक हो सकते हैं और शायद यही हमें  भी सुविधा जनक लगता है सो बहुत कम उम्र में ही खूबसूरत आँखों पर चश्मा चढ़ा दिया जाता है !

आज मैंने अपने एक दोस्त से कहा कि मेरे सामने वे बिना चश्मा लगाये पढ़ने का प्रयत्न करें और उन्हें विभिन्न फ़ॉण्ट साइज के आर्टिकल पढ़ने को कहा , जिस आर्टिकल को वे सही से नहीं पढ़ सके उसे मैंने बिना चश्मे की मदद के बार बार पढ़ने के प्रयत्न करने को कहा और लगभग 5 मिनट बाद वे उसे धीरे धीरे पढ़ने में समर्थ थे , वे आश्चर्य चकित थे , मैंने उन्हें बताया कि कभी मेरी आँखें भी ऐसी ही थीं ! और आज लगभग 68+ की उम्र में , बिना चश्में कहीं भी चला जाता हूँ , छोटे अक्षर भी मिलें तब भी बिना चश्में पढ़ने की कोशिश करता हूँ और आँखों ने कभी धोखा नहीं दिया , इसीलिए चश्मे का नंबर 2.5 होने के बावजूद , मैं बरसों से चश्में का उपयोग सिर्फ़ बारीक अक्षर पढ़ने के लिए ही करता हूँ  !

कृपया प्रयास करें , चश्मा हटाने के लिए अपनी खूबसूरत आँखों की मदद करें , वे आपका साथ अवश्य देंगी  ! 

Friday, February 24, 2023

एलोपैथी हेल्थ ब्लंडर्स -सतीश सक्सेना

होम्योपैथी वरदान जैसी लगी यूरोपियन को , यहाँ तक कि कितने एलोपैथिक प्रैक्टिशनर , एलोपैथी छोड़कर इसका उपयोग कर अपने रोगियों का सफलता पूर्वक उपचार करने लगे और उन्होंने कितनी ही किताबें लिखीं जो बेहद कामयाब और आज भी होम्योपैथी की रीढ़ मानी जाती हैं , और यह उस समय हुआ जब विश्व में प्रचार और विज्ञापन के साधन उपलब्ध नहीं थे !

बस तभी से एलोपैथी ने होम्योपैथी को पढ़े, समझे बिना उसके सिद्धांतों की खिल्ली उड़ाना शुरू किया और धीरे धीरे इन तेज प्रभाव वाली कैमिकल दवाओं ने मानव मन क़ाबू पाने में सफलता हासिल कर ली, एंटी बायोटिक्स मेडिसिन जो लाभ से अधिक नुक़सान करती हैं , एलोपैथिक प्रैक्टिशनरों द्वारा हर रोग का इलाज मानी जाने लगी और धीरे धीरे रेडियो और टेलीविज़न के ज़रिए इस धनवान और मशहूर व्यवसाय ने एलोपैथी ट्रीटमेंट सिस्टम को मेडिकल साइंस का नाम देने में सफलता प्राप्त कर ली !

हज़ारों वर्ष से दुनियाँ में सैकड़ों तरह के सफल रोग उपचार विधियाँ प्रचलित थीं , यूरोप,अफ़्रीका , चायना , मिडिल ईस्ट , भारत एवं मिश्र में हर्बल , एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंक्चर, आयुर्वेद, यूनानी मेडिसिन का बोलबाला था, प्राकृतिक पौधों से ही बनायी गयीं यूरोप में होम्योपैथी मेडिसिन प्रचलित थीं , मगर धीरे धीरे प्रचार और धन की बदौलत एलोपैथी ने इन सबको निगल कर ख़ुद को मेडिकल साइंस का नाम देने में सफलता प्राप्त कर ली  !

इस तरह एक ताक़तवर मछली विज्ञापन के सहारे आसानी से अपने आसपास तैरती तमाम खूबसूरत छोटी मछलियों को खा गई , और व्यस्त मानवजाति ने गौर तक नहीं किया कि उनसे कितनी ही खूबसूरत रोग उपचार सिस्टम हमारे दिमाग़ को प्रचार साधनों से प्रभावित कर, धूर्तता पूर्वक दूर कर दिये गये हैं ! 

धुआँधार विज्ञापन आसानी से महा धूर्त को योगी और योगी को महा धूर्त बनाने में समर्थ हैं , सो आँखें खोलें दोस्त अन्यथा यह भूल जानलेवा साबित होगी  !



Wednesday, February 15, 2023

लम्बे जीवन के लिए सुपरफूड केफीर -सतीश सक्सेना

कॉकेशस पर्वत के आसपास रहने वाले लोग , बहुत लम्बा जीवन जीने के लिए जाने जाते हैं , आधुनिक रिसर्च के अनुसार वे एक तरह के दही का उपयोग हज़ारों वर्षों से करते आ रहे हैं जिसे केफीर (Kefir) कहा जाता है , वे इसे गाय, बकरी या भैंस के दूध में केफीर ग्रेन मिलाकर प्राप्त करते थे ! केफीर ग्रेन 24 घंटों में दूध के साथ मिलाकर रखने पर दही में बदल जाता है , इस दही को छानकर केफीर ग्रेन दुबारा प्राप्त कर लेते हैं , इस तरह यह ग्रेन्स एक परिवार में न केवल जीवन भर चलते रहते हैं बल्कि खुद को बढ़ाते भी रहते हैं ! आश्चर्यजनक है कि एक चम्मच केफीर ग्रेन्स एक परिवार को आजीवन केफीर देने के लिए काफी है !

केफीर ग्रेन की उत्पत्ति के बारे में वहां के निवासियों का मानना है कि यह चमत्कारी भेंट उन्हें खुद हज़रत मोहम्मद साहब के द्वारा दिए गए ताकि वे और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ स्वस्थ रहें और वहां इसे अमर रहने का रस कहा जाता है  ! हजारों साल से इन केफीर ग्रेन्स को वे लोग अपने परिवार में कीमती रत्नों की तरह सहेजते आये हैं , उनके परिवारों में सौ वर्ष तक जीना एक सामान्य बात है  !
और आजकल यही केफीर सुपर फ़ूड का दर्जा प्राप्त कर सारे यूरोप और अमेरिका में बिक रहा है  !

केफीर ग्रेन्स मानव निर्मित नहीं हैं बल्कि जीवित सूक्ष्म जीवाणु समूह (माइक्रो ऑर्गनिज़्म्स )हैं , सामान्य भाषा में वे जीवित बैक्टीरिया समूह हैं जो मानव शरीर के लिए जीवन अमृत की तरह काम करते हैं ! आजतक उनकी उत्पत्ति कैसे और कहाँ हुई, किसी को नहीं पता सिवाय इसके कि कॉकेशियस पहाड़ के आसपास के निवासी ही, उनके द्वारा फर्मेन्टेड दूध का उपयोग करते पाए गए !

मैंने कई वर्ष पहले इसके बारे में किसी फ़ूड रिसर्च जानकारी के जरिये पढ़ा था , मगर ग्रेन्स की उपलब्धता के बारे में कोई जानकारी न मिलने के कारण उपयोग न कर सका ,संयोग से पिछले वर्ष मित्र विद्याधर गर्ग शुक्ल से भेंट होने पर उन्होंने अपने परिवार में इसके उपयोग के बारे में सविस्तार बताया जिसे सुनकर मैंने इसका उपयोग करने का फैसला किया और यह जानकारी वाकई अद्भुत रही  !

Thursday, January 19, 2023

बतलायें, तपोवन कहां लिखूं -सतीश सक्सेना

साधारण जनमानस में गुरु बेहद आवश्यक हैं, लोग अक्सर पूछते दिखते है, यह किसने कहा ? यह कहाँ लिखा है ? किसी सम्मानित से दिखने वाले व्यक्ति में उन्हें गुरु दिखने लगता है, और उनके व्यवहार में विनम्रता तुरंत नज़र आने लगती है !

गुरुओं ने इसे अंगीकार कर लिया, गुरु सत्संग में पहुँचने पर सबसे पहले शिष्य को बिना बोले, सिर्फ़ सुनना अनिवार्य शर्त है , बोलना ही मना है, और पूछना अशिष्टता ! सो गुरु लोग सबसे पहले बेहतरीन सांस्कृतिक सा नाम पहले धारण करते हैं, दाढ़ी आवश्यक है और अगर आचार्य रवींद्र नाथ जैसी हो तो क्या कहने ! बिना कुर्ता , क्लीनशेव व्यक्तित्व को शिष्य कभी गुरु नहीं बनायेंगे ! सो जो साथी ज्ञान देने में माहिर हैं उन्हें चाहिये एक बढ़िया सा नाम, और सौम्य वेशभूषा, कुछ दिन मजमा लगाने के बाद, लच्छे दार लुभावनी भाषा, बढ़ती शिष्य मंडली देखकर अपने आप आ जाएगी !

राजकुमार सिद्धार्थ ने किसी को गुरु नहीं बनाया, उनमें बिना किसी जानवर के भय के बालसुलभ निडरता बचपन से ही थी, वे ख़ुद से ही प्रश्न करते ख़ुद में ही उत्तर की तलाश करते और उन्हें हर बार शरीर और अनुभव सिखाता रहा ! जानवर एक शांत चित्त व्यक्ति अपने पास पाकर खुश थे, उन्हें इस व्यक्ति से कभी ख़तरा महसूस नहीं हुआ सो उन्होंने सिद्धार्थ पर भी कभी आक्रमण नहीं किया बल्कि वे उनसे प्यार करते थे , शायद यही से अहिंसा का जन्म हुआ

उन्होंने महसूस किया कि इंसान को जीवित रहने के लिए शुद्ध हवा में साँस लेना सबसे आवश्यक है , उन्हें दिन में चार पाँच बार प्यास लगती और भूख सिर्फ़ एक बार, खाने में जो फल, मूल, पत्ता, जीभ को कड़वा लगता उसे थूकना पड़ता था उन्होंने उसे हमेशा त्याज्य माना और जो मीठा लगा उसे खाने योग्य !

बिना गुरु ही वे एकाग्रचित्त हो साँसों पर अधिकार कर पेट में कंपन पैदा करना सीख गए जिससे उनका शरीर स्वस्थ रहे , वे ही सर्वोच्च योगी थे जिनका कोई गुरु नहीं था ! सो मेरा ख़ुद का विश्वास है कि हम सब अपने अंदर निहित, आंतरिक गुरु को तलाश करें, जो कि शरीर को पूरे जीवन बेहद शक्ति देने में समर्थ है न कि धन की तलाश में जुटे आडंबरी गुरुओं की तलाश में समय व्यर्थ कर ख़ुद को मूर्ख साबित करें !

प्रणाम आप सबको

Thursday, January 12, 2023

टीशर्ट राहुल गांधी की -सतीश सक्सेना

देखिए जब 69 वर्ष के सतीश सक्सेना टी शर्ट में 7 डिग्री में दौड़ रहे हैं तब राहुल तो नौजवान हैं , मार्शल आर्ट Akido में ब्लैक बेल्ट होल्डर हैं , ऐसे शानदार एथलीट का ठंड में टी शर्ट पहनना भी, ढीले ढाले लोगों के बीच चर्चा का विषय बन जाता है !
 
विश्वास करिए, ठंड में एक टी शर्ट में बाहर निकलना असंभव नहीं है , बल्कि आप सबको एक एक लेयर कम करते हुए कम कपड़ों में बाहर रहने का अभ्यास करना चाहिए ! १०००० साल पहले लोग गुफाओं में बिना कपड़े ही रहते थे , परिवार सहित !

शरीर बहुत शक्तिशाली है इस पर भरोसा रखें यह किसी भी परिस्थिति में ज़िंदा रह सकता है , इसको शक्तिशाली बनाने के लिए ढेरों हवा , पानी और भूख लगने पर थोड़ा भोजन चाहिये बस !
 
इसकी आदत न बिगाड़िये , प्रमाण आप सबको

Sunday, January 8, 2023

आदतें बदलनी होगी -सतीश सक्सेना

हम सम्मानित लोग अक्सर अपने ऊपर कोई कठोर फैसला लागू ही नहीं होने देते क्योंकि हम खुद ही नियम बनाने वाले हैं और अक्सर यह नियम दूसरों पर लागू करवाते हैं ! वजन घटाने का फैसला आसान नहीं है क्योंकि बरसों से मेहनत न करने , और जम के बढ़िया भोजन की आदत छोड़ना, भीष्म प्रतिज्ञा जैसा है जो खुद पर लागू ही नहीं करना क्योंकि हम किसी के प्रति जवाब देह नहीं है !

कड़ाके की ठंड में कम कपड़े पहनने की आदत डालें, शुरुआत में एक लेयर कम कर दें , कुछ दिनों में ठंड लगनी बंद हो जाएगी !

Wednesday, January 4, 2023

अरे चीथड़ों कब जागोगे -सतीश सक्सेना

अरे चीथड़ों कब जागोगे , 
लूट मची है , पछताओगे !
खद्दर धारी बाजीगर हैं ,
और तुम बने जमूरे रहना !
सपने , रैली , भाषण मीठे
जीवन भर तुम पीते रहना
छोड़ देखना , स्वप्न सुनहरे 
भाग सके तो भाग सभी संग 
दुनिया फ़ायदा उठा रही है 
सीख लगाना डुबकी, तू भी
लूट सके तो लूट देश को , नहीं तो पीछे रह जाओगे  !
लूट मची है, पछताओगे !

शपथ उठाए संविधान की 
खद्दर पहने , नेता लूटें !
नियम और क़ानून दिखायें 
दफ़्तर वाले, बाबू लूटें !
हाथ में झंडा ले छुटभैया, 
धमकी देकर चौथ वसूले   
सब्जी वाला तक डंडी के  
बल पर, बहिन बनाके लूटे
उल्लू मत बन, बनो जुगाड़ू  
आँख उठा ले, राष्ट्रभक्त बन 
झूठ को सत्य बनाना सीखो , वरना बेटा क्या खाओगे !
देश लुट रहा पछताओगे !

आँखें खोलो नंगों तुम भी 
बहती गंगा में मुँह धो लो
फेंक मजीरा, तबला, ढोलक  
हर हर गंगे अलख जगा ले ! 
जय श्री राम बोल नेता को 
जीत दिलाकर शोर मचा ले 
हाथ में आएगा, घंटा ही ,
चाहे जितना ज़ोर लगा ले 
त्याग पसीना, बनो हरामी 
बुद्धि के बल नोट कमाओ 
फेंक रज़ाई फटी, लूट ले , वरना पीछे रह जाओगे  !
तुम वन्दे मातरम गाओगे  !

तुमको धांसू न्यूज़ सुनाकर  
प्रेस मीडिया नोट कमाये !'
तुमको भरमाने की खातिर 
चोर को साहूकार बताये  ! 
टेलिविज़न बनाए उल्लू ,
मीठे मीठे स्वप्न दिखाये !
जो घर को ही, चले लूटने  
उनके जयजयकार लगाए 
समय बचा है अब भी बकरे 
मूर्ख़ बनाना सीखो भोंदू  ,
वरना जीवन भर तुम लल्लू , क्या ओढ़ोगे क्या बिछाओगे  !
हाथ में बस घंटा पाओगे !

#व्यंग्य 
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