
स्वप्रकाशित लेखों पर , भीड़ के द्वारा की गयी ,वाह वाही के कारण, बने अपने आभामंडल की चमक में मदांध, हम लोग अक्सर मूर्ख को कालिदास और कालिदास को मूर्ख कह कर, विद्वता को निर्ममता से रौंद डालते हैं !
ब्लॉग जगत की त्रासदी है कि पढने लायक लेख़क और उसके लेख को समझ कर टिप्पणिया देने वाले पाठक, की तलाश करना, सागर में बिना साधन, मोती ढूँढना है !
जो अच्छे लिखते हैं, वे लोकप्रिय न होने के कारण सामने नहीं आ पाते...मगर जो कूड़ा लिखते हैं, वे अधिक टिप्पणियां देने के कारण अधिक लोकप्रिय हैं ! ( मैं भी लगा रहता हूँ ...) :-)

ब्लॉगजगत में पिछले वर्ष की उपलब्धियों के नाम पर कुछ ख़ास नहीं मिल पाया जो दिल को तसल्ली मिले ....
हाँ कुछ ऐसे स्वघोषित विद्वान् ;-) जरूर मिले जो यह समझा गए कि कुछ अच्छा लिखा करो तो लोग तारीफ़ भी करेंगे :-)))
अपने काम और व्यवहार के प्रति लोगों की बुद्धि समझ कर, अपने बाल नोचने का दिल कई बार किया है ....
अपने काम और व्यवहार के प्रति लोगों की बुद्धि समझ कर, अपने बाल नोचने का दिल कई बार किया है ....
इस वर्ष तो यही समझ आया कि मूर्खों से ईश्वर रक्षा करे और चालबाजों से दूरी बनी रहे, हालाँकि पहचानने में बार बार गलती की है ..... :-(

शुभकामनायें चाहिए कि अगले साल "हमें समझ जाने वाले" और "हमारी असलियत जानने वाले" समझदार, कम से कम टकरायें :-)), और कुछ भले और ईमानदार लोगों से भेंट हो तो इन लेखों का लिखना सार्थक हो !सबसे अंत में ईश्वर से प्रार्थना है कि मेरे पास इतना धन और शक्ति जरूर बचाए रखे कि वक्त आने पर, मेरे दरवाजे से , कोई मायूस होकर, वापस न लौट जाए !
किसी का एक आंसू,बिना उस पर अहसान किये, पोंछ सका, तो अगले वर्ष, अपना मन संतुष्ट मान लूँगा ...
किसी का एक आंसू,बिना उस पर अहसान किये, पोंछ सका, तो अगले वर्ष, अपना मन संतुष्ट मान लूँगा ...