ब्लॉग जगत में आने से पहले ही मैं एक व्यस्त सामाजिक प्राणी था जो अकेला रहना कभी पसंद नहीं करता था जो लोग मुझे अच्छे लगते रहे हैं, उनकी समस्याओं को अपनी पूरी शक्ति के साथ सुलझाने का प्रयत्न करना, मेरा जूनून रहा है, नतीजा हर समय व्यस्तता, जो मेरी अक्षय उर्जा को और शक्ति देता रहता है !
मानव समाज में मित्रता और मुहब्बत एक अजीब रंग है जो किस पर चढ़ जाए यह कोई नहीं जानता ! समान गुण स्वभाव के लोगों में परस्पर खिचाव स्वाभाविक ही है , सो ब्लॉग जगत में शुरुआत से ही जिन लोगों से आकर्षित रहा उनमें अनूप शुक्ल, अरविन्द मिश्र और समीर लाल प्रमुख रहे ...मुझे इन लोगों के लेख कहीं न कहीं प्रभावित करते रहते थे और हम मुरीदों में शामिल होते चले गए ! अभी इसी माह समीर लाल के साथ दिल्ली में समय बिताने का मौका मिला ! शायद आपको जानकर आश्चर्य होगा कि प्रोफेशनल चार्टर्ड एकाउंटेंट समीर लाल, बिना किसी विशेष आधिकारिक डिग्री लिए, कम्पयूटर टेक्नालोजी में कनाडा स्टाक मार्केट में, सोफ्टवेयर विशेषज्ञ के रूप में मशहूर हैं ! इस संवेदनशील, पारिवारिक और भावुक व्यक्ति की रचनाओं के जरिये, आप इसमें छिपे एक सीधे साधे सरल व्यक्तित्व को आसानी से देख सकते हैं !
गर्वरहित मगर प्रभावशाली जाकिर अली रजनीश के साथ खड़े डॉ अरविन्द मिश्र , से मिलने में लगा कि एक मस्त परमहंस से मुलाकात हो गयी ! मिलनसारिता और बेबाकी में सीमारहित, अरविन्द में, कई जगह मुझे अपना प्रतिरूप नज़र आया ! अगर आप खुलकर बात करना और कहना पसंद करते हैं तो बेबाक विद्वता के धनी , अरविन्द मिश्र के पास से हटने का दिल नहीं करेगा, और निस्संदेह विभिन्न विषयों पर गहरी पकड़ रखने वाले अरविन्द, किसी को भी आसानी से, हँसते हँसते प्रभावित करने में सक्षम है !
ब्लॉग जगत की शख्शियतों की चर्चा ही बेकार मानी जायेगी अगर अनूप शुक्ल का नाम नहीं लिया जाए ! हिंदी ब्लॉग साहित्य में, अपने योगदान की बिना चर्चा किये, अपनी ही छवि के साथ खिलवाड़ करने वाले इस विद्वान् लेख़क में गज़ब का जीवट है जो निर्ममता के साथ अपने व्यक्तित्व के साथ मज़ाक करता रहता है ! आप एक उदाहरण देखिये "सतीश सक्सेना जी ने मासूम भाई को सुझाया कि वे अनूप शुक्ला से भी अमन का पैगाम लिखवा लें। मुझे लगा कि शायद सतीश जी अमन में हमारे मसखरेपन को शामिल करवाना चाहते हैं। हम कोई पैगाम देंगे तो लोग भले न हंसे हमको खुद हंसी आयेगी कि हम भी पैगाम देने लगे।"
कई बार मुझे महसूस होता है की अगर हिंदी ब्लॉग में अनूप शुक्ल और समीर लाल न होते तो ब्लॉग जगत का आज का स्वरुप हमें कम से कम पांच साल बाद देखने को मिलता ! निस्संदेह ब्लॉग जगत को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों में, ये दोनों हमेशा जाने जायेंगे !
१५ दिसंबर को अनूप शुक्ल का आमंत्रण था जेएनयू में आइये , चाय पीते हैं !गंभीर और बेहद भावुक, पीएचडी विद्यार्थी , अमरेन्द्र त्रिपाठी से मिलने की बहुत दिनों से तीब्र इच्छा थी इनके लिखे हुए कमेन्ट का मैं हमेशा से प्रसंशक रहा ! वहाँ पंहुच कर तो आनंद ही आ गया , मितभाषी डॉ आराधना चतुर्वेदी "मुक्ति", ईमानदार श्रीश पाठक , और स्नेही मगर तीखे शिव कुमार मिश्र ( फोन पर ) जैसे दिग्गज ब्लोगर्स से, एक साथ पहली मुलाक़ात कर, मेरा आज का दिन यादगार हो गया ! वह और बात है कि ( अनूप शुक्ल ) महागुरु ( घंटाल ) की रहस्यमय बातें और अंदाज़ आज भी मेरी समझ नहीं आती ;-)
ब्लॉग जगत में एक से एक बड़े विद्वान् लिख रहे है जहाँ मेरे जैसे जैसे लोग पासंग भी नहीं है...अगर इन लेखों के कारण इन विद्वानों से कुछ सीख सकूं अथवा इसी प्रकार इनका सामीप्य मिलता रहे तो यह ब्लाग लेखन धन्य हो जाए ! काश प्यार और परस्पर सम्मान के साथ यह ब्लोगर मिलन चलते रहे और सब उन्मुक्त मन स्वागत करें तो शायद आनंद चौगुना हो जाए !
मानव समाज में मित्रता और मुहब्बत एक अजीब रंग है जो किस पर चढ़ जाए यह कोई नहीं जानता ! समान गुण स्वभाव के लोगों में परस्पर खिचाव स्वाभाविक ही है , सो ब्लॉग जगत में शुरुआत से ही जिन लोगों से आकर्षित रहा उनमें अनूप शुक्ल, अरविन्द मिश्र और समीर लाल प्रमुख रहे ...मुझे इन लोगों के लेख कहीं न कहीं प्रभावित करते रहते थे और हम मुरीदों में शामिल होते चले गए ! अभी इसी माह समीर लाल के साथ दिल्ली में समय बिताने का मौका मिला ! शायद आपको जानकर आश्चर्य होगा कि प्रोफेशनल चार्टर्ड एकाउंटेंट समीर लाल, बिना किसी विशेष आधिकारिक डिग्री लिए, कम्पयूटर टेक्नालोजी में कनाडा स्टाक मार्केट में, सोफ्टवेयर विशेषज्ञ के रूप में मशहूर हैं ! इस संवेदनशील, पारिवारिक और भावुक व्यक्ति की रचनाओं के जरिये, आप इसमें छिपे एक सीधे साधे सरल व्यक्तित्व को आसानी से देख सकते हैं !
गर्वरहित मगर प्रभावशाली जाकिर अली रजनीश के साथ खड़े डॉ अरविन्द मिश्र , से मिलने में लगा कि एक मस्त परमहंस से मुलाकात हो गयी ! मिलनसारिता और बेबाकी में सीमारहित, अरविन्द में, कई जगह मुझे अपना प्रतिरूप नज़र आया ! अगर आप खुलकर बात करना और कहना पसंद करते हैं तो बेबाक विद्वता के धनी , अरविन्द मिश्र के पास से हटने का दिल नहीं करेगा, और निस्संदेह विभिन्न विषयों पर गहरी पकड़ रखने वाले अरविन्द, किसी को भी आसानी से, हँसते हँसते प्रभावित करने में सक्षम है !
ब्लॉग जगत की शख्शियतों की चर्चा ही बेकार मानी जायेगी अगर अनूप शुक्ल का नाम नहीं लिया जाए ! हिंदी ब्लॉग साहित्य में, अपने योगदान की बिना चर्चा किये, अपनी ही छवि के साथ खिलवाड़ करने वाले इस विद्वान् लेख़क में गज़ब का जीवट है जो निर्ममता के साथ अपने व्यक्तित्व के साथ मज़ाक करता रहता है ! आप एक उदाहरण देखिये "सतीश सक्सेना जी ने मासूम भाई को सुझाया कि वे अनूप शुक्ला से भी अमन का पैगाम लिखवा लें। मुझे लगा कि शायद सतीश जी अमन में हमारे मसखरेपन को शामिल करवाना चाहते हैं। हम कोई पैगाम देंगे तो लोग भले न हंसे हमको खुद हंसी आयेगी कि हम भी पैगाम देने लगे।"
कई बार मुझे महसूस होता है की अगर हिंदी ब्लॉग में अनूप शुक्ल और समीर लाल न होते तो ब्लॉग जगत का आज का स्वरुप हमें कम से कम पांच साल बाद देखने को मिलता ! निस्संदेह ब्लॉग जगत को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों में, ये दोनों हमेशा जाने जायेंगे !
ब्लॉग जगत में एक से एक बड़े विद्वान् लिख रहे है जहाँ मेरे जैसे जैसे लोग पासंग भी नहीं है...अगर इन लेखों के कारण इन विद्वानों से कुछ सीख सकूं अथवा इसी प्रकार इनका सामीप्य मिलता रहे तो यह ब्लाग लेखन धन्य हो जाए ! काश प्यार और परस्पर सम्मान के साथ यह ब्लोगर मिलन चलते रहे और सब उन्मुक्त मन स्वागत करें तो शायद आनंद चौगुना हो जाए !
जिस दिन महागुरु ( घंटाल ) की बातें आपको समझ आने लगेगी ... जानिएगा आप भी महागुरु ( घंटाल ) बन गए ! ;-)
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट !
मैं एक बात हमेशा कहता हूँ ,आप जैसे होते हैं वैसे आपको मिल ही जाते हैं किसी गली मोड़ और पड़ाव पर ..
ReplyDeleteमगर हाँ ,कुछ गलतफहमियों और मजबूरियों के चलते .कुछ साथी साथ छोड़ देते हैं ...बशीर बद्र कहते हैं -
.अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जायेगा,
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो
मगर मैं तो दिल पर पत्थर रख कुंवर बेचैन जी की इन लाईनों को गुनगुना कर दिल बहला लेता हूँ -
कोई मुश्किल ही रही होगी जो वो भूल गया
मेरे हिस्से में एक शाम सुहानी लिखना ..
भाई जी आप मिल गए दिल्ली की मेरी एक शाम सुहानी हो गयी नहीं तो किसी की याद में वह ऐसी ही रीत जानी थी ...
मैं प्रेम की रीति जानता हूँ....छाया मत छूना मन होगा दुःख दूना मन ...मगर मन फिर छाया पकड़ने को दौड़ता है ..
अरे अरे मैं यह सब क्या लिखने लग गया ...
चित्र के नीचे कैप्शन लगाना एक मान्य परम्परा है और आप शोधार्थी रहे होते तो अब तक गाईड दांत दिखा दिए होते ...
वैसे तो सब स्वनामधन्य लोग हैं मगर मोहतरमा को नहीं पहचाना (उर्दू में मोहतरमा एक सम्मानपूर्ण संबोधन है,सावधानी वश बता दे रहा हूँ ....क्योंकि एक ब्लॉग पानीपत युद्ध इस पर छिड़ चुका है )
आपकी नज़र से सबका परिचय अच्छा लगा ...
ReplyDeleteब्लाग जगत अभी तक अंधा कुआँ है, कौन कैसे हैं गहरे में झांकना पड़ता है। जब हम एक दूसरे को जान जाएंगे तब आपस में कद्र करना भी जान जाएंगे।
ReplyDelete@ डॉ अरविन्द मिश्र,
ReplyDeleteये मोहतरमा प्राचीन इतिहास में पी एच डी हैं , जे एन यू की विद्यार्थी हैं ! अनूप जी इनका परिचय देंगे, उन्ही की पूर्वपरिचित हैं ! वे ब्लागर नहीं हैं !
सतीश जी,
ReplyDeleteदूसरे चित्र की व्यख्या:
जब सतीश जी जैसा सरल मित्रबंधु टेढी मिनार के सम्मुख सीधा आ खडा होता है तो मिनार का टेढापन भी पार्श्व में चला जाता है। ओरों के सम्मान में एक पैर पर ध्यानरत सतीश जी विख्यात मिनारों के नींव सम प्रतीत होते है।
कमाल है ! मेरी इतनी बकबक सुनने और झेलने के बाद भी आप मुझे मितभाषी कह रहे हैं. मेरे दोस्त लोग पढ़ते तो हँसते-हँसते पागल हो जाते. अरे, मैं बहुत बोलती हूँ, हाँ कम लोगों से मिलती हूँ और कम ही लोगों से बात भी करती हूँ.
ReplyDeleteआपने सच ही लिखा है. हमें जहाँ तक हो सके माहौल अच्छा बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
बड़े लोगों की बड़ी बातें..................
ReplyDeleteछोडो बाबा....... अपनी बक बक पर ध्यान लगाओ....... देखो सामने कई लोग डटें हैं तुम्हरी बक बक सुनने के लिए और एक तुम हो की सक्सेना साहिब को पढ़े जा रहे हो ...... न केवल पढ़ रहे हो बल्कि टीप लिखी जा रहे हो.........
क्या करें अब इन सब के बिना गुजारा भी तो नहीं.
आवश्यकता है प्रतिभावान दोस्तों की. समस्याएं डिस्क्स करो और समाधान सामने पाओगे......
अत: आप सभी में अपने दोस्त ढूंढते हैं...........
agar blogger milan pune me hota to main bhi shamil hoti , sabse mil paati... is pariwaar se milne kee ek alag khushi hogi...
ReplyDeleteइनमें से लगभग सभी से यानी समीर जी, अनूप जी और अरविन्द जी से मिलने का सुयोग प्राप्त हुआ है , आपने तीनों व्यक्तित्व की सही तस्वीर पेश की और जाकिर भाई का क्या कहना बाहर -भीतर एक जैसे हैं , किन्तु गुरु घंटाल की बात समझना सबके बस की बात नहीं, मुझे तो लगता है कि वे आज भी छायावाद में ही जीते हैं !
ReplyDeleteवैसे गुरु घंटाल के बारे में अरविन्द जी ज्यादा बेहतर ढंग से बता सकते हैं !
कुत्ते की दुम की तरह यह पीसा की मीनार भी कभी सीधी नहीं होती. सचमुच विश्व के आश्चर्य में से एक है.मेरी भी ख्वाहिश है एक बार देखने की... एक पूरी तस्वीर मुझे मेल करेंगे, अनुरोध है मेरा!
ReplyDeleteखैर! अच्छा लगा इन मशहूर हस्तियों से एक बार फिर मिलना आपकी नज़र से!!
गुरुदेव! जैसे पानी अपनी सतह खोज लेता है, अच्छे लोगों को अच्छे लोग भी मिल ही जाते हैं.
आपने अपने अंदाज में बातों को रखा , जैसे बात करते हुए रख रहे थे , यह भी ठीक रहा ! बाकी दो - तीन मूर्धन्यों से ही मिला हूँ जिनमें दो तो आप ही हो गए ! बढियां रहा , क्योंकि अनुभव तो मिलता ही है ! मेरी बेहद भावुकता को आपने देखा , इसे देखने की आपकी बेहद भावुकता भी जमी :)
ReplyDeleteआप तो समीपस्थ हैं , संयोग बनेंगे , पुनः मिलेंगे ! आभार !
आदरणीय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
आपने सच ही लिखा है. हमें जहाँ तक हो सके माहौल अच्छा बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
mukti ne bilkul sahi kaha hai
आवश्यकता है प्रतिभावान दोस्तों की. समस्याएं डिस्क्स करो और समाधान सामने पाओगे......
ReplyDeletebaba ke saath ham bhee aap ka intizaar kar rahe hai------
वाह जी बल्ले बल्ले. अच्छा लगा आप लोगों की बैठक के बारे में पढ़कर.
ReplyDeleteसतीश जी जन्मदिवस के शुभावसर पर आपको बेहतरीन संगत का अनमोल उपहार मिला. इससे बढ़कर क्या हो सकता है. क्यों ! ठीक कहा ना.
ReplyDelete@ शिवम् मिश्रा,
ReplyDeleteइसी लिए उन्हें गुरु बना रखा है कि शायद किसी दिन गुरु तो बन ही जायेंगे :-)
@ सुज्ञ,
यह आपका बड़प्पन है कि सबमें अच्छा ढूँढ़ते हैं , प्रणाम आपको !
@ दीपक बाबा ,
समय के साथ आपका आशीर्वाद अवश्य फलित होगा ऐसा विश्वास है अभी भी विद्वानों कि हमारे बीच कमी नहीं है गंभीर प्रोत्साहन और पहचान की कमी है ...
प्यार और परस्पर सम्मान के साथ यह ब्लोगर मिलन चलते रहे और सब उन्मुक्त मन स्वागत करें तो शायद आनंद चौगुना हो जाए !
ReplyDelete-सच कहा!! आपसे मिलना यादगार रहा.
@ रविन्द्र प्रभात जी ..
ReplyDeleteनिम्न लेख पर सुझाव देने का अनुरोध है...
http://mishraarvind.blogspot.com/2010/12/blog-post_17.html
@ पुरविया,
ठीक मैं अपनी समस्या समाधान के लिए आप दोनों के सामने हाजिर होता हूँ फिलहाल आज की तो यह रही ...
http://mishraarvind.blogspot.com/2010/12/blog-post_17.html
अच्छे को अच्छे ही मिलते है।
ReplyDeleteआपने सच ही लिखा है. हमें जहाँ तक हो सके माहौल अच्छा बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
आपसी सम्मान के साथ ये मिलन चलते रहें ..
ReplyDeleteaapke lekhan dwara sabhee se milkar accha laga.......
ReplyDeletedhanyvaad .
badhiya lagta hai..........aisee baato ko padhna.......kash kabhi ham bhi aise milan samaroh ka hissa ban payen.......:)
ReplyDeletehttp://mypoeticresponse.blogspot.com/2009/09/blog-post_29.html
ReplyDeleteu can read this post and see how against people are for 'pay to read service "
सतीश जी
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा...
एक और शानदार पोस्ट के लिए आभार स्वीकार करें...
बहुत अच्छा लगा सतीश जी ...
ReplyDeleteइस पोस्ट में चर्चा किए गए लोगों में से अधिकांश से मिल पाने का सौभाग्य मुझे नहीं मिल सका .. शिव कुमार मिश्र जी के अलावे मेरी भेंट अभी तक आपसे ही हो सकी है .. सबसे मिलने, जानने और समझने की इच्छा अवश्य है!!
ReplyDeleteमैं अभी तक किसी भी ब्लौगर से नहीं मिला..क्यूंकि जब से ब्लौगिंग शुरू की एक जगह पर स्थिर ही नहीं रहा | कुछ लोगों से मिलने की गहरी इच्छा है, उम्मीद है जल्द ही मौका मिलेगा....
ReplyDeleteसतीश जी मेरे ब्लॉग पर ज़रा अपना बचपन याद नहीं करना चाहेंगे...
मेरा बचपन ..
आपके माध्यम से प्रसिद्ध ब्लागर साथियों से परिचय प्राप्त करना अच्छा लगा...शुभकामनाएं।
ReplyDeletewaqayi sach kaha hai .. blog jagat bahut bada hai..bahut kuch jaanne samjhne ke liye hai
ReplyDeleteइस पोस्ट के माध्यम से आपसे मिलना अच्छा लगा।
ReplyDeleteसतीश जी विलम्भ के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ , आज ही मुझे एक ज्ञात हुआ कि १४ दिसम्बर को आपका जन्म दिवस था । मेरी बहु बहुत शुभकामनाये ।
ReplyDeleteसतीश जी मेरे भाई का भी इसी दिन जन्म दिवस होता है । बहुत अच्छा संयोग ।
सतीश जी, आपने, परमात्मा की कृपा से, जो उर्जा और साहस है........ उससे लगता है आगामी कुछ दिनों में आप ब्लॉग जगत को कुछ नयापन दोगे......
ReplyDeleteकम से कम मेरी ये अपेक्षा है....
आप अच्छा लिखते हो........
आप में योग्यता है......
पर ये सब बेकार है...... जब तक २ - ४ लोग उसकी प्रशंसा न करें या फिर कमी न निकाले....
आपका व्यक्तित्व भारी पड़ता है ......... कईओं पर .. जो आपसे प्यार करते हैं उन पर भी और जो आपसे नाराज़ रहते हैं उन पर भी ........
मैं आपके ऊपर एक जिम्मेवारी डालना चाहता हूँ..... (वैसे छोटा हूं, तो अधिकार भी रखता हूं) एक मीटिंग बुलाई जाए....... और इस ब्लॉग जगत में जो गहन अन्धकार छाया है...... जिसकी चर्चा डॉ. अरविन्द मिश्र जी ने की....... उसके निमित कोई रास्ता निकला जाए.....
आपके ब्लॉग पर ही सबके सामने मैं ये दिल की बक बक ब्यान कर्ता हूं.
“दीपक बाबा की बक बक”
दर्द का खरीददार हूं, कविता.........
ReplyDeleteदीपक बाबा ,
मुझे लगता है ब्लॉग जगत की दुर्दशा के बारे में अच्छे जानकार हो ...बहुत बढ़िया सुझाव लाये हो आपका स्वागत करता हूँ !
पहल करने वाले भीड़ में से नहीं ढूंढे जाते वे अपने आप आगे आते हैं और रास्ता भी बनाते हैं ! मुझे जो कहना था डॉ अरविन्द मिश्र के ब्लॉग पर कह चूका हूँ मगर ध्यान रहे मीटिंग में आया एक भी गलत आदमी आपका सारा उद्देश्य खराब कर सकता है अतः अधिक लोगों के चक्कर में न पड़ काम शुरू करें !
मुझे आप पर भरोसा है आप कुछ विश्वसनीय और ईमानदार लोगों की एक कमेटी बनाइये मुझे जो काम देंगे कर लूँगा !
कुछ अच्छे ब्लोगेर्स के बारे मैं आप ने जानकारी बेहतरीन अंदाज़ मैं दी ,आप का शुक्रिया. अनूप जी भाई अमन और शांति का पैग़ाम एक बच्चा दुसरे इंसान को मुस्करा के भी दे दिया करता है. आप तो फिर एक ब्लोगर हैं. सतीश जी का मशविरा सही था, कम्ताबी मुझे नहीं मिल सकी ,इसका अफ़सोस रहेगा
ReplyDeleteजन्मदिन की बधाई । देर से खबर मिली। पिताजी के निधन के कारण बाद की औपचारिकताओं में व्यस्त था।
ReplyDeleteमाहौल बना रहे, उत्साहजनक पक्ष व्यक्त करती पोस्ट।
ReplyDeleteवह और बात है कि ( अनूप शुक्ल ) महागुरु ( घंटाल ) की रहस्यमय बातें और अंदाज़ आज भी मेरी समझ नहीं आती यह बात एकदम सही है। अगर आप सच में अनूप शुक्ल की बातें और अंदाज समझते होते तो यह न लिखते अगर हिंदी ब्लॉग में अनूप शुक्ल और समीर लाल न होते तो ब्लॉग जगत का आज का स्वरुप हमें कम से कम पांच साल बाद देखने को मिलता !
ReplyDeleteयह आपकी समझ का फ़ेर है कि आप अनूप शुक्ल के योगदान को इतना अधिक आंकते हैं। अगर उनकी बातें समझ में आती तो आप उनके बारे में ऐसा न कहते। संभव है अनूप शुक्ल ब्लॉग न लिखते तो शायद हिन्दी ब्लॉगिंग में चिरकुटई और गैरजिम्मेदाराना लेखन कुछ कम हुआ होता।
जहां तक निर्ममता के साथ अपने व्यक्तित्व के साथ मज़ाक करने वाली बात है तो वह मैंने आपको बताया ही कि अपनी बुराई करना रद्दी/कबाड़ बेचने जैसा है। सफ़ाई का सफ़ाई हो जाती है और आमदनी अलग से ।
ओह ब्लॉग जगत ! जहाँ चार यार हिल मिल के बैठे हैं,वहीं दूर पृष्ठभूमि में कोई ब्लागर मुंहफेर कर भी बैठा हुआ है :)
ReplyDeleteआपको फोटो के नीचे पाँचों के नाम लिखने चाहिए थे !
आप भले तो जग भला......
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट!मिलना-जुलना हमेशा सुखद रहता है.
ReplyDeleteवैसे मेरा तीखापन माहौल को एक बैलेंस देने के लिए ज़रूरी भी लगता है. हम ब्लॉगर के बीच इतनी मिठास है कि चींटियाँ लगने का चांस बना रहता है. ऐसे तीखापन चीटियों को कुछ हद तक दूर रखता है:)
bari bechaini se barisht/sammanit aur
ReplyDeleteapne priye blogger bhaieyon ke vichar
is sundar post par dekhne ka intzar
kar raha tha....jo ab poora hua.....
हम ब्लॉगर के बीच इतनी मिठास है कि चींटियाँ लगने का चांस बना रहता है. ऐसे तीखापन चीटियों को कुछ हद तक दूर रखता है:)
uprokt vichar mithe-mithe me namak
ke saman hai....jo test banaye rakhne ke liye nihayat jaroori hai.....
pranam.
दूसरे शहर वालों पर करम,
ReplyDeleteनोएडा वालों पर सितम,
ऐ जाने वफ़ा, ये ज़ुल्म न कर,
ये ज़ुल्म न कर,
रहने दे अभी थोड़ा भ्रम...
जय हिंद...
bahut achi post...behad sundar....badhai ho
ReplyDeletebahut achi post...behad sundar....badhai ho
ReplyDeleteआपको विचारों से सहमत हूँ। आदमी हर वक्त कुछ न कुछ सीख सकता है, बशर्तें वह सीखना चाहे। महागुरू घंटाल के बारे में और जानना अच्छा लगा। अरविंद जी कमेंट पढ कर मजा आ गया। उन्हें इस पोस्ट पर आए सर्वश्रेष्ठ कमेंट की पदवी से नवाजा जा सकता है।
ReplyDelete---------
प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?
ओह सक्सेना जी, माफ करियेगा. देर कर दी मैंने आने में . आप से मिलकर वाकई बेहद अच्छा लगा. काफी जिंदादिल लगे और बेहद सकारात्मक भी. सहज सहयोगी तो आप है ही..!और हाँ...चिर युवा बने रहें यही शुभाशा एवं शुभकामनायें हैं मेरी...!
ReplyDelete"मितभाषी डॉ आराधना चतुर्वेदी "मुक्ति""
ReplyDeleteहुंह, बड़का ना!! :D