जिनको माँ घर में बोझ लगे वे नाकारा क्या समझेंगे !
पशुओं जैसा जीवन जीते वे आवारा क्या समझेंगे !
कुछ जीव हमेशा बस्ती में, कीचड़ में ही रहते आये !
गंदे जल में रहने वाले, निर्मल धारा क्या समझेंगे !
वृद्धों को भरी बीमारी में, असहाय अकेले छोड़ दिया,
सर झुका नहीं माँ के आगे ठाकुर द्वारा क्या समझेंगे
जानवर कहाँ ममता जानें हर जगह लार टपकाएंगे
माँ के धन पर नज़रें रखते वे भंडारा क्या समझेंगे !
ये क्रूर ह्रदय, ऐसे ही हैं , हंसों के संग, न रह पायें !
अपने ही बसेरे भूल गए, वे गुरुद्वारा क्या समझेंगे !
पशुओं जैसा जीवन जीते वे आवारा क्या समझेंगे !
कुछ जीव हमेशा बस्ती में, कीचड़ में ही रहते आये !
गंदे जल में रहने वाले, निर्मल धारा क्या समझेंगे !
वृद्धों को भरी बीमारी में, असहाय अकेले छोड़ दिया,
सर झुका नहीं माँ के आगे ठाकुर द्वारा क्या समझेंगे
जानवर कहाँ ममता जानें हर जगह लार टपकाएंगे
माँ के धन पर नज़रें रखते वे भंडारा क्या समझेंगे !
ये क्रूर ह्रदय, ऐसे ही हैं , हंसों के संग, न रह पायें !
अपने ही बसेरे भूल गए, वे गुरुद्वारा क्या समझेंगे !