Friday, February 28, 2014

वे आवारा क्या समझेंगे ! -सतीश सक्सेना

जिनको माँ घर में बोझ लगे वे नाकारा क्या समझेंगे !
पशुओं जैसा जीवन जीते वे आवारा क्या समझेंगे !


कुछ जीव हमेशा बस्ती में, कीचड़ में ही रहते आये !
गंदे जल में रहने वाले, निर्मल धारा क्या समझेंगे !

वृद्धों को भरी बीमारी में, असहाय अकेले छोड़ दिया,
सर झुका नहीं माँ के आगे ठाकुर द्वारा क्या समझेंगे 

जानवर कहाँ ममता जानें हर जगह लार टपकाएंगे 
माँ के धन पर नज़रें रखते वे भंडारा क्या समझेंगे !

ये क्रूर ह्रदय, ऐसे ही हैं , हंसों के संग, न रह पायें !
अपने ही बसेरे भूल गए, वे गुरुद्वारा क्या समझेंगे !


Wednesday, February 26, 2014

प्राणायाम - सतीश सक्सेना

हाँ जिज्जी ( मेरी बेटी  ),  क्या कर रही है ?
पप्पा ! वाशरूम से बाहर निकला हूँ !
कितने गिलास पानी पिया  ?
३ गिलास आधा घंटे पहले पी चुकी हूँ , पापा मैं इससे अधिक नहीं पी सकती लगता है वोमिटिंग हो जायेगी , और ऑफिस भी जाना है !
ओके , अब क्या करना है ?
घर की बालकनी में बैठकर प्राणायाम करना है , जैसे अपने बताया है ..
वह तो क्रिया थी जो बतायी थी अब ध्यान से जो मैं कह रहा हूँ वह सुनों .... 
प्राणायाम का अर्थ प्राण ( सांस ) पर नियंत्रण होता है ! शरीर में अगर सांस नहीं तो कुछ नहीं बेटा  , गहरी सांस लेकर अपने फेफड़ों को पूरा फुलाना है , और निकालना है !पता है फेफड़ों को जब सांस से भर रही तो तो क्या होता है ?
 

-शुद्ध ऑक्सीजन जीवन का आधार है, ब्लड वैसेल ( रक्त वहितकाओं ) के जरिये यह हमारे शरीर के हर अंग को जीवित रखने में मददगार है ! शुद्ध ऑक्सीजन हवा के साथ हमारे फेफड़ों में जाकर, रक्त में मिलकर उसे शुद्ध और हल्का बनाती है और यही रक्त शरीर के दूर दूर तक के अंगों को फुर्तीला और मज़बूत बनाता है !  

-शुद्ध ऑक्सीजन अंदर फेफड़ों में भर कर उन्हें फुला रही है , उससे फेफड़ों के बंद चेम्बर जो इस व्यायाम को न करने के कारण बंद हो गए थे, वे खुलेंगे और अधिक शक्तिशाली बन पाएंगे !

सांस बाहर छोड़ते समय विचार करो कि शुद्ध ऑक्सीजन अंदर खींचकर फेफड़ों के बंद चेंबर खोल रही हो उस समय सीना बाहर आएगा क्योंकि फेफड़े फूल हुए हैं कुछ देर सांस रोक कर रखो और पेट के ढीले ढाले हिस्से को अंदर खिंच कर पीठ से मिलाने का प्रयास करो !  प्राणायाम की इस क्रिया से फेफड़े और पेट के अन्य अवयवों जैसे किडनी , लीवर आदि का व्यायाम भी हो रहा है !
- जैसे जैसे हमारी बॉडी ऑक्सीजन का उपयोग करेगी उसमें से वेस्ट प्रोडक्ट के रूप में कार्बन डाई ऑक्साइड का निर्माण होगा जिसे हमारा शरीर सांस के जरिये बाहर निकाल देगा !
-सुबह की स्वच्छ हवा में मिली ऑक्सीजन का भरपूर सदुपयोग, पूरा जीवन ,निरोग रखने में सहायक होगा !  

-इंसान को जीने के लिए हवा, पानी और भोजन आवश्यक है !  
-शरीर को मोटापा रहित बनाने के लिए १२ - १५ गिलास जल रोज पीना होगा !
-सुबह वृक्ष के नीचे बैठकर आधा घंटे प्राणायाम करना होगा ! 
-हज़ारो साल पहले जंगलों में रहते इंसान के पास प्राकृतिक तौर पर भोजन के लिए पत्तियां और फल उपलब्ध थे ! सो हमेशा खूब सारी पत्तियां और अपने आप टूट कर गिरे पके फल ही हमारा भोजन होना चाहिए !
ध्यान रहे समोसा , परांठा , पकौड़े, गुलाबजामुन , जलेबी जंगलों में नहीं उगते थे यह हमने कंक्रीट के जंगलों में खुद बनाये थे सो इन्हें खाना छोड़ना है ! 
-चीनी और चीनी कि कोई भी बनायी गयी  मिठाई जैसे खीर ,सिवइयां और तली हुई भोजन सामग्री शरीर में सबसे हानिप्रद है इसका उपयोग किसी भी रूप में बंद करना होगा !
आशा है आज का यह सबक मेरे बच्चे याद रखेंगे  ! 
स्वस्थ और हँसते लम्बे जीवन की कामनाओं के साथ !
पापा  

Tuesday, February 25, 2014

जैसे तैसे बचा के रख्खा, लूट लिया मुस्कानों ने -सतीश सक्सेना

जिस दिन सूरज को ग़ुस्से में देखा दुनिया वालों ने, 
आसमान में अफ़रातफ़री ,पायी चाँद सितारों ने !

निज घर में ही सेंध लगाई, घर के ही मक्कारों ने
जो घर वालों से बच पाया , लूटा चौकीदारों ने !

धुएँ के छल्लों ने देखा है, मदहोशी के आलम में, 
जो कुछ साक़ी से बच पाया लूट लिया दरबानों ने ! 

ऐसे क्यों पहचान न पाये, मास्क लगाये लोगों को !
कुछ तो भावुकता ने लूटा, कुछ अपने घर वालों ने ! 

जिन जिन को ले रहे भागते, नंगे पैरों भूखे प्यासे 
जीवन भर ही लाभ लिया था, कैसे कैसे यारों ने !

Friday, February 21, 2014

सारे गॉँव की माताओं में,लगती निस्संतान वही हैं - सतीश सक्सेना

छलके अाँसू हाथ से पोंछे,दुनियां में इंसान वही है !
प्रेम दया ममता हो मन में,बस्ती में धनवान वही है !

खेत जमीं जंगल आपस में मम्मी पापा बाँट लिए 
दोनों फैलें हाथ मुक्तमन,गले मिलें इंसान वही है !

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, बच्चे हैं भारत माँ के,
विश्व में ऐसा होते देखे, अपना हिंदुस्तान वही है !

अगर चार बच्चे भी माँ के, उसे अकेला छोड़ गए 
सारे जग की माताओं में,लगती निस्संतान वही हैं !

सारे धर्म ग्रन्थ सिखलाए नफ़रत बड़ा गुनाह बताएं 
राजनीति के चश्में फेंको,पढ़िए वेद,कुरान वही हैं !

Thursday, February 20, 2014

आदतें पशुओं के जैसी, जानवर घबराएंगे ! - सतीश सक्सेना

मानवों की बस्तियों में , बेजुबां मर जाएंगे !
दूध के बदले उन्हें हम प्लास्टिक खिलवाएंगे

हम जहाँ होंगे ,वहीँ कुछ गंदगी बिखरायेंगे !
आदतें पशुओं के जैसी, जानवर  घबराएंगे !

हर मोहल्ले में,जिधर देखो, उधर कूड़ा पड़ा !
भिनभिनाती मख्खियों के साथ,बच्चे खायेंगे !

जाहिलों के द्वार, ये  आये हैं  खाना ढूंढते !

सडा खाना पन्नियों में डालकर खिलवाएंगे !

जूँठने , थैली में भरकर, घर के बाहर है रखी !

गाय देती दूध हमको, हम जहर खिलवाएंगे !

Sunday, February 16, 2014

जब देखोगे खाली कुर्सी, पापा याद बड़े आयेंगे - सतीश सक्सेना

आज अनुलता राज नायर  के पिता को श्रद्धांजलि देते हुए न जाने क्यों , अपने पिता की याद आ गयी ! सो यह

रचना पिता को समर्पित हैं , श्रद्धाश्रुओं के साथ !!

चले गए वे अपने घर से 
पर वे मन से दूर नहीं हैं !
चले गए वे इस जीवन से  
लेकिन लगते दूर नहीं हैं !
उन्हें  याद करने पर अपने, 
कंधे  हाथ रखे पाएंगे !
अपने आसपास रहने का, वे आभास दिए जायेंगे !

अब न मिलेगी पप्पी उनकी  
पर स्पर्श , तो बाकी होगा ! 
अब न मिलेगी आहट उनकी 
पर अहसास तो बाकी होगा !
कितने ताकतवर लगते थे,
वे कठिनाई के मौकों पर !
जब जब याद करेंगे उनको , हँसते हुए खड़े पाएंगे !

अपने कष्ट नही कह पाये
जब जब वे बीमार पड़े थे 
हाथ नहीं फैलाया आगे 
स्वाभिमान के धनी बड़े थे
पाई पाई बचा के कैसे, 
घर  की दीवारें  बनवाई !
जब देखेंगे खाली कुर्सी, पापा  याद बड़े आयेंगे !

तिनका तिनका जोड़ उन्होंने 
अपना घर निर्माण किया था !  
कैसे कैसे हम बच्चों को 
अपने पैरों खड़ा किया था 
हमें पता है वे सुख दुःख 
के सपनों में, जरूर आयेंगे !
हमें रास्ते प्यास लगी तो , जल से भरे घड़े पाएंगे !

उनके बचे काम को हमने 
तन मन से पूरा करना है,
उनके दायित्यों को सबने  
हंस हंसकर पूरा करना है ! 
चले गए वे बिना बताये 
पर ऐसा आभास रहेगा ! 
दुःख में हमें सहारा देने, पापा पास खड़े पाएंगे !

Monday, February 10, 2014

नीची नज़रों वाले अक्सर, तीखी चोटें करते हैं - सतीश सक्सेना

चंदा, सूरज, बादल ,कितना काम हमारा करते हैं !
कुदरत की ताकत बतलाने, सिर्फ इशारा करते हैं !

खुशी हमारी देख हमेशा, जलते हैं दुनिया वाले !
नज़र लगाने वाले अक्सर, नज़र उतारा करते हैं !

लड़के अक्सर ही लुट जाते चूड़ी, सुरमा, लाली से  
संवेदना, समर्पण पाकर, दिल को हारा करते हैं !

करुणा दया से रिश्ता कैसा, पथरीली चट्टानों से 
डूबते दिल को, बैठे साहिल सिर्फ निहारा करते हैं 

नज़र बचा के चलने वालों, से रहना चौकन्ने ही   
नीची नज़रों वाले , तीखी चोटें , मारा करते हैं !

Saturday, February 1, 2014

लानत है, इस संकीर्ण सोंच के लिए - सतीश सक्सेना

कल इसी देश के एक बच्चे को पीट पीट कर राजधानी में मार दिया गया जबकि वह अपना प्रान्त और भाषा छोड़ कर सबसे विकसित शहर दिल्ली में शिक्षा लेने आया था ! सुदूर उत्तर पूर्व क्षेत्र के, हमारे यह सीधे साधे देशवासी, भारत वासी होने का क्या अभिमान करें ?

जाति, धर्म, भाषा और प्रांतीयता में आकंठ डूबे, विद्वता का दम भरते, हम संकीर्ण भारतीय, मरते दम तक अपने अपने झंडे उठाये, आपस में एक दुसरे को भला बुरा कहते रहेंगे बस यही हमारी पहचान है ! इस पूरे देश को, १९४७ से पूर्व ३०० - ४०० राज्यों में बाँट देना चाहिए और हम उसी छुद्र अभिमान के योग्य हैं !     

हमारी संकुचित अशिक्षित मनस्थिति, हज़ारों किलोमीटर दूर फैले, हमारे ही विभिन्न रीतिरिवाज और संस्कृतियों को अपनाने में बुरी तरह फेल हुई है ! बिहारी, मराठी, गुजराती, मद्रासी मानसिकता में साँसे भरते हम संकीर्ण देसी लोग, विश्व में कहीं रहने योग्य नहीं हैं !       

यह देश अब एक विकलांग सोंच  का मालिक है जहाँ औरों से घृणा के अलावा और कुछ नहीं है  हम भारतीयों  के पास, शायद विश्व के सबसे संकीर्णमना देशों में से एक हैं हम !

यह देश सभ्य लोगों के रहने योग्य नहीं !
Ref : http://indianexpress.com/article/cities/delhi/delhi-arunachal-boy-beaten-to-death-by-shopkeepers-in-lajpat-nagar-say-reports/
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