Monday, March 30, 2015
Saturday, March 28, 2015
ऐसे भी कहाँ देश में ईमान मिलेंगे - सतीश सक्सेना
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चेहरा लगाए संत का शैतान मिलेंगे !
शुरुआत में ऐसे बड़े भुगतान मिलेंगे
धनवानों के भेजे हुए तूफ़ान मिलेंगे !
नाले में आ गये हो ज़रा देखभाल के
चारो ही ओर, खूंख्वार श्वान मिलेंगे !
बेईमान लालची ही, तुम्हें लोग कहेंगे
सारे पढ़े लिखों से,यह प्रमाण मिलेंगे !
धनवान,मीडिया दलाल साथ साथ हैं,
चोरों के शहर में बड़े,अपमान मिलेंगे !
Friday, March 27, 2015
आम आदमी भी कितने अरमान छिपाए बैठा है ! - सतीश सक्सेना
बुझती नज़रों में कितने, तूफ़ान छिपाए बैठा है !
धनाभाव भी तोड़ न पाया साहस बूढी सांसों का,
जाने पर भी, उनके कर्जे ,मर के मिटा न पाएंगे !
अपने पुरखों के कितने,अहसान छिपाए बैठा है !
कबसे बुआ नहीं आ पायीं अपने घर में रहने को,
अपने सर पर पापा के, भुगतान छिपाए बैठा है !
आस्तीन में रहने वालों से, थोड़ा हुशियार रहें
जाने कितने बरसों के अपमान छिपाए बैठा है !
दुश्मन शांत न सोने देगा, गद्दारों का ध्यान रहे,
क्या मालूम वो कितने इत्मीनान छिपाए बैठा है !
Thursday, March 26, 2015
व्यास का स्मरण कर ऋग्वेद का विस्तार लिख दूँ - सतीश सक्सेना
सहज निर्मल मुस्कराहट से धरा गुलज़ार लिख दूँ !
एक दिन उन्मुक्त मन से पास आकर बैठ जाओ
और बोलो नाम तेरे, स्वर्ग का अधिकार लिख दूँ !
काव्य अंतर्मन हिला दे, शुष्क मानव भावना में ,
समर्पण संभावना को प्यार का उपहार लिख दूँ !
मुक्त निर्झर सी हंसी पर, गर्व पौरुष का मिटा दूँ ,
तुम कहो तो मानिनी, अतृप्त की मनुहार लिख दूँ !
यदि तुम्हें विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
व्यास का स्मरण कर, ऋग्वेद का विस्तार लिख दूँ !
Monday, March 23, 2015
दीवानों का , परिचय क्या ? - सतीश सक्सेना

कलम अर्चना करते आये दीवानों का,परिचय क्या ?
कितना सुख है कमजोरों की, रक्षा में कुछ लोगों को
मुरझाये अंकुर सहलाती बदली का दूँ, परिचय क्या ?
प्यार,नेह, करुणा और ममता, घर से जाने कहाँ गए !
धर्मध्वजाओं को लहराते विष का दूँ,मैं परिचय क्या ?
जिस समाज में जन्म लिया था रहने लायक बचा नहीं
मानव मांस चबाने वाले, मानव का दूँ ,परिचय क्या ?
जहाँ लड़कियां घर से बाहर निकलें सहमीं, सहमीं सी !
धूल भरे माहौल में जन्में काव्यपुरुष का,परिचय क्या ?
Thursday, March 19, 2015
राजनीति के अंधे कैसे समझें कष्ट किसानों का -सतीश सक्सेना

यवतमाळ में पैदल जाकर जानें दर्द किसानों का !
जुड़ा हमारा जीवन गहरा ,भोजन के रखवालों से !
किसी हाल में साथ न छोड़ें,देंगे साथ किसानों का
इन्द्र देव की पूजा करके, भूख मिटायें मानव की
राजनीति के अंधे कैसे समझें कष्ट किसानों का !
यदि आभारी नहीं रहेंगे मेहनत और श्रमजीवी के
मूल्य समझ पाएंगे कैसे इन बिखरे अरमानों का !

चलो किसानों के संग बैठे, जग चेतना जगायेंगे
सारा देश समझना चाहे कष्ट कीमती जानों का !
(यवतमाळ पदयात्रा १५-१९ अप्रैल २०१५ के अवसर पर )
(यवतमाळ पदयात्रा १५-१९ अप्रैल २०१५ के अवसर पर )
Monday, March 16, 2015
निकलो बंद मकानों से जंग लड़ो बेईमानों से - सतीश सक्सेना
सावधान रहना भक्तों के, राष्ट्रभक्ति के गानों से !
बड़ी बड़ी गाडी में घूमें झंडा लगा गुमानों का
मूर्ख बनी है जनता कबसे खादी के शैतानों से
चर्बी चढ़ी है गद्दारों को, नोट कमाने निकले हैं
भारत माँ को खतरा ऐसे, राष्ट्रभक्त हनुमानों से !
राष्ट्रभक्ति से अरबपति, बन बैठे हैं आसानी से
कानों को न सुनाई पड़ता, स्पर्धा धनवानों से !
खद्दरधारी दीमक सुर में, देशभक्ति का गान करें,
देश हमारा शर्मिन्दा है, दसलक्खा परिधानों से !
Saturday, March 7, 2015
इन दर्दीली आँखों ने ही थका दिया -सतीश सक्सेना
आज तुम्हारी आँखों ने ही थका दिया
इतनी गहरी आँखों,ने ही थका दिया !
इतनी बात पुरानी, कब तक भूलोगे
इन दर्दीली आँखों ने ही थका दिया !
सदियाँ बीतीं इंतज़ार में केशव के ,
इन पथरायी आँखों ने ही थका दिया !
पता नहीं मन कहाँ तुम्हारा रहता है ,
खोयी खोयी आँखों ने ही थका दिया
छलके आंसू, ऐसे छिपा न पाओगे,
भीगी भीगी आँखों ने ही थका दिया !
इतनी गहरी आँखों,ने ही थका दिया !
इतनी बात पुरानी, कब तक भूलोगे
इन दर्दीली आँखों ने ही थका दिया !
सदियाँ बीतीं इंतज़ार में केशव के ,
इन पथरायी आँखों ने ही थका दिया !
पता नहीं मन कहाँ तुम्हारा रहता है ,
खोयी खोयी आँखों ने ही थका दिया
छलके आंसू, ऐसे छिपा न पाओगे,
भीगी भीगी आँखों ने ही थका दिया !
Sunday, March 1, 2015
आओ छींटें मारे, रंग के, बुरा न मानो होली है ! - सतीश सक्सेना
नमन करूं ,
गुरु घंटालों के !
पाँव छुऊँ ,
भूतनियों के !
राजनीति के '
मक्कारों ने,
डट कर खेली
होली है !
आओ छींटें मारे रंग के , बुरा न मानो होली है !
गुरु है, गुड से
चेला शक्कर
गुरु के गुरु
पटाये जाकर !
गुरुभाई से
राज पूंछकर ,
गुरु की गैया,
दुह ली है !
जहाँ मिला मौका देवर ने जम के खेली होली है !
घूंघट हटा के
पैग बनाती !
हिंदी खुश हो
नाम कमाती !
पंत मैथिली
सम्मुख इसके,
अक्सर भरते
पानी है !
व्हिस्की और कबाब ने कैसे,हंसके खेली होली है !
जितना चाहे
कूड़ा लिख दो !
कुछ ना आये ,
कविता लिख दो
एक पंक्ति में,
दो शब्दों की,
माला लगती
सोणी है !
कवि बैठे हैं माथा पकडे , कविता कैसी होली है !
कापी कर ले ,
जुगत भिडाले !
लेखक बनकर
नाम कमा ले !
हिंदी में
हाइकू
लिख मारा,
शिकी की
गागर फोड़ी है !
गीत छंद की बात भी अब तो,बड़ी पुरानी होली है !
अधर्म करके
धर्म सिखाते
धन पाने के
कर्म सिखाते
नज़र बचाके,
कैसे उसने,
दूध में गोली,
घोली है !
खद्दर पहन के नेताओं ने, देश में खेली होली है !
ब्लू लेवल,
की बोतल आयी !
नई कार ,
बीबी को भायी !
बाबू जी का
टूटा चश्मा,
माँ की चप्पल
आनी है !
समय ने, बूढ़े आंसू देखे , कैसी गीली होली है !
गुरु घंटालों के !
पाँव छुऊँ ,
भूतनियों के !
राजनीति के '
मक्कारों ने,
डट कर खेली
होली है !
आओ छींटें मारे रंग के , बुरा न मानो होली है !
गुरु है, गुड से
चेला शक्कर
गुरु के गुरु
पटाये जाकर !
गुरुभाई से
राज पूंछकर ,
गुरु की गैया,
दुह ली है !
जहाँ मिला मौका देवर ने जम के खेली होली है !
घूंघट हटा के
पैग बनाती !
हिंदी खुश हो
नाम कमाती !
पंत मैथिली
सम्मुख इसके,
अक्सर भरते
पानी है !
व्हिस्की और कबाब ने कैसे,हंसके खेली होली है !
जितना चाहे
कूड़ा लिख दो !
कुछ ना आये ,
कविता लिख दो
एक पंक्ति में,
दो शब्दों की,
माला लगती
सोणी है !
कवि बैठे हैं माथा पकडे , कविता कैसी होली है !
कापी कर ले ,
जुगत भिडाले !
लेखक बनकर
नाम कमा ले !
हिंदी में
हाइकू
लिख मारा,
शिकी की
गागर फोड़ी है !
गीत छंद की बात भी अब तो,बड़ी पुरानी होली है !
अधर्म करके
धर्म सिखाते
धन पाने के
कर्म सिखाते
नज़र बचाके,
कैसे उसने,
दूध में गोली,
घोली है !
खद्दर पहन के नेताओं ने, देश में खेली होली है !
ब्लू लेवल,
की बोतल आयी !
नई कार ,
बीबी को भायी !
बाबू जी का
टूटा चश्मा,
माँ की चप्पल
आनी है !
समय ने, बूढ़े आंसू देखे , कैसी गीली होली है !
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