Wednesday, February 24, 2016

धीर और गंभीर पदों के, आहट की पहचान नहीं है -सतीश सक्सेना

सबके मन में ही बसते हैं 
गूगल से साभार 
वे समग्र शास्वत आते हैं
मुरझाये मानव,जीवन में
गीतों का झरना लाते हैं
घने अँधेरे पर जाने कब ,
हौले हौले छा जाते हैं !
किसे ढूँढ़ते चित्र बनाये

लाखों देव देवताओं में ,
दिव्य और विश्वस्त रूप की, मानव को पहचान नहीं है !

उनके आने से पहले ही
जग में कोलाहल आ जाता
उनके चलने से पहले ही,
धरती पर योवन आ जाता
उनकी मद्धम गति से दुनियां
का जीवन रौनक पा जाता
किसे अर्ध्य देने जाती हो
स्वप्नपुरुष की अनदेखी कर
सूर्य किरण के रथ चिन्हों की, तुमको भी पहचान नहीं है !

अगर तेज को सह न पायीं
आँखें बंद नहीं करनी थीं !
अर्ध्य नहीं दे पायीं जल का
तो भी पीठ नहीं करनी थी !

देवपुरुष को आगे पाकर
पुष्पांजलि भेंट करनी थी
आकर  चले गए द्वारे से
ये  कैसा आवाहन तेरा !
धीर और गंभीर पदों के, आहट की पहचान नहीं है !

जीवन के सब चक्र उलझते
उनके असमय सो जाने पर ,
फुलझड़ियाँ बरसें आँगन में
रोज सुबह उनके जगने पर
दिव्य पुरुष के आसानी से
दर्शन सुलभ नहीं मानव को
कष्ट और निज मर्यादा का
कितना ही अहसास रहे पर
अवमानना प्यार की करके , कोई भी परिहार नहीं है !


Monday, February 8, 2016

नुक्कड़ भी अचानक से ही अनाथ हो गया - सतीश सक्सेना

अविनाश वाचस्पति ब्लॉगिंग सभा संचालित करते हुए 
नुक्कड़ भी अचानक से , ही अनाथ हो गया ! 
ऐसा भी क्या हुआ, ये चमन ख़ाक हो गया !

अविनाश के जाते ही,कुछ सुनसान सा लगे 
ब्लॉगिंग में मुन्नाभाई भी, इतिहास हो गया !

कितने दिनों से लड़ रहा था, मौत से इकला
जीवन में जी लिए हैं, ये  अहसास हो गया !

दर्दों में भी हँसता रहा, अविनाश अंत तक 
आखिर ये ज़ज़्बा मस्त भी खलास हो गया !

इक दिन तो मुन्ना भाई,वहां हम भी आएंगे,
अखबार में छपेगा  कि , अवसान हो गया !

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