ये बेचारे बागबां , भी क्या करें !
बिन बुलाये खामखां भी क्या करें !
अब ये जूता और चप्पल ही सही
ये वतन के नौजवां, भी क्या करें !
भौंकने पर किस कदर नाराज हो
ये बेचारे बेजुबां ,भी क्या करें !
हाले धरती, देख कर ही रो पड़े,
दूर से ये आस्मां भी , क्या करें !
झाँकने ही झांकने , में फट गए ,
ये हमारे गिरेबां भी , क्या करें !
बिन बुलाये खामखां भी क्या करें !
अब ये जूता और चप्पल ही सही
ये वतन के नौजवां, भी क्या करें !
भौंकने पर किस कदर नाराज हो
ये बेचारे बेजुबां ,भी क्या करें !
हाले धरती, देख कर ही रो पड़े,
दूर से ये आस्मां भी , क्या करें !
झाँकने ही झांकने , में फट गए ,
ये हमारे गिरेबां भी , क्या करें !
तालियां, वे मांग कर बजवा रहे
ये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें !
ये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें !
bahut achchi lagi......
ReplyDeleteबहुत सटीक बात अभिव्यक्त की आपने, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
waah......
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !!!
हाले धरती,देख कर ही रो पड़े,
दूर से ये आस्मां भी , क्या करें ?
गज़ब के शेर कहे हैं !!
सादर
अनु
सचमुच अब तालियाँ मँगवाकर ही बजाते देखी जातीं हैं चाहे वह काव्यपाठ हो या किसी नेता का भाषण । बहुत खूब । कुछ दिन पहले एक स्वनामधन्य कवि ग्वालियर आए । वे लगभग दूसरी-तीसरी पंक्ति पर श्रोताओं को कह रहे थे --मुझे लगना चाहिये कि मैं ग्वालियर के सुधी श्रोताओं को कविता सुना रहा हूँ । ...आपका आशार्वाद चाहिये आदि आदि । और श्रोता चाहे अनचाहे भर भर कर आशीर्वाद देने विवश थे ।
ReplyDelete१-झाँकने ही झांकने , में फट गए ,
ReplyDeleteये हमारे गिरेबां भी , क्या करें ?
२-तालियां, वे मांग कर बजवा रहे
ये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें ?
बहुत शानदार शेर..बधाई
ऐ गमे दिल क्या करें
ReplyDeleteवहशते दिल क्या करें
क्या करें क्या करें
गा रहा हूँ आपका गीत
पढ़्ते पढ़्ते ............... :)
अब ये जूता और चप्पल ही सही !
ReplyDeleteइस वतन के नौजवां भी,क्या करें ?
नायब शेर है एक से एक, अब समझ में आया उस टिप्पणी का
मतलब :) चप्पल की जगह थप्पड़ होता तो और करारा शेर होता !
सुझाव पसंद आया , लीजिये कर दिया !! आभार आपका :)
Deleteछा गए गुरुदेव...बड़े ही चुनिन्दा अशरार हैं...
ReplyDeletetoo good !!
ReplyDeleteतालियां, वे मांग कर बजवा रहे
ReplyDeleteये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें ?
right comment over politics .in my view .
लगता इस घर में कोई बूढा नहीं
ReplyDeleteअब हमारे मेजबाँ भी, क्या करें ?
खूबसूरत ! आपकी अनुमति से कुछ पंक्तियाँ जोड़ने से रोक न गया -
हर तरफ बस बेतहाशा शोर है -
इस शहर में सिसकियां भी क्या करें
माँ ने ही चाहा हो जब बेटा अगर -
ऐसे घर में बेटियां भी क्या करें !
प्रभाव शाली पंक्तियाँ दी हैं हितेश , आभार आपका !!
Deleteवाह ! बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही है .. बहुत बधाई ..
ReplyDeleteशब्द भी अब हैं नहीं तारीफ के हम बिचारे कद्रदॉ भी क्या करें ?
ReplyDeleteहाले धरती,देख कर ही रो पड़े,
ReplyDeleteदूर से ये आस्मां भी , क्या करें ?
बहुत सुंदर.
सुंदर अभिव्यक्ति सर .......
ReplyDeleteझाँकने ही झांकने , में फट गए ,
ReplyDeleteये हमारे गिरेबां भी , क्या करें ?
तालियां, वे मांग कर बजवा रहे
ये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें ?
..बहुत खूब कही !
बहुत बढिया..
ReplyDeleteबहुत बढिया गजल......
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 03 फरवरी 2018 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
लाजवाब गजल....
ReplyDeleteवाह!!!