Thursday, April 10, 2014

ये ग़ज़ल के कद्रदां भी क्या करें ? -सतीश सक्सेना

ये बेचारे बागबां , भी क्या करें !
बिन बुलाये खामखां भी क्या करें !


अब ये जूता और चप्पल ही सही
ये वतन के नौजवां, भी क्या करें !

भौंकने पर किस कदर नाराज हो
ये  बेचारे बेजुबां ,भी क्या करें !


हाले धरती, देख कर ही रो पड़े,
दूर से ये आस्मां भी , क्या करें !

झाँकने ही झांकने , में फट गए ,
ये हमारे गिरेबां भी , क्या करें !


तालियां, वे  मांग कर बजवा रहे
ये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें !

22 comments:

  1. बहुत सटीक बात अभिव्यक्त की आपने, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  2. waah......
    बहुत बढ़िया !!!
    हाले धरती,देख कर ही रो पड़े,
    दूर से ये आस्मां भी , क्या करें ?
    गज़ब के शेर कहे हैं !!

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  3. सचमुच अब तालियाँ मँगवाकर ही बजाते देखी जातीं हैं चाहे वह काव्यपाठ हो या किसी नेता का भाषण । बहुत खूब । कुछ दिन पहले एक स्वनामधन्य कवि ग्वालियर आए । वे लगभग दूसरी-तीसरी पंक्ति पर श्रोताओं को कह रहे थे --मुझे लगना चाहिये कि मैं ग्वालियर के सुधी श्रोताओं को कविता सुना रहा हूँ । ...आपका आशार्वाद चाहिये आदि आदि । और श्रोता चाहे अनचाहे भर भर कर आशीर्वाद देने विवश थे ।

    ReplyDelete
  4. १-झाँकने ही झांकने , में फट गए ,
    ये हमारे गिरेबां भी , क्या करें ?
    २-तालियां, वे मांग कर बजवा रहे
    ये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें ?
    बहुत शानदार शेर..बधाई

    ReplyDelete
  5. ऐ गमे दिल क्या करें
    वहशते दिल क्या करें
    क्या करें क्या करें
    गा रहा हूँ आपका गीत
    पढ़्ते पढ़्ते ............... :)

    ReplyDelete
  6. अब ये जूता और चप्पल ही सही !
    इस वतन के नौजवां भी,क्या करें ?
    नायब शेर है एक से एक, अब समझ में आया उस टिप्पणी का
    मतलब :) चप्पल की जगह थप्पड़ होता तो और करारा शेर होता !

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुझाव पसंद आया , लीजिये कर दिया !! आभार आपका :)

      Delete
  7. छा गए गुरुदेव...बड़े ही चुनिन्दा अशरार हैं...

    ReplyDelete
  8. तालियां, वे मांग कर बजवा रहे
    ये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें ?
    right comment over politics .in my view .

    ReplyDelete
  9. लगता इस घर में कोई बूढा नहीं
    अब हमारे मेजबाँ भी, क्या करें ?

    खूबसूरत ! आपकी अनुमति से कुछ पंक्तियाँ जोड़ने से रोक न गया -

    हर तरफ बस बेतहाशा शोर है -
    इस शहर में सिसकियां भी क्या करें
    माँ ने ही चाहा हो जब बेटा अगर -
    ऐसे घर में बेटियां भी क्या करें !

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रभाव शाली पंक्तियाँ दी हैं हितेश , आभार आपका !!

      Delete
  10. वाह ! बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही है .. बहुत बधाई ..

    ReplyDelete
  11. शब्द भी अब हैं नहीं तारीफ के हम बिचारे कद्रदॉ भी क्या करें ?

    ReplyDelete
  12. हाले धरती,देख कर ही रो पड़े,
    दूर से ये आस्मां भी , क्या करें ?
    बहुत सुंदर.

    ReplyDelete
  13. सुंदर अभिव्यक्ति सर .......

    ReplyDelete
  14. झाँकने ही झांकने , में फट गए ,
    ये हमारे गिरेबां भी , क्या करें ?
    तालियां, वे मांग कर बजवा रहे
    ये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें ?
    ..बहुत खूब कही !

    ReplyDelete
  15. बहुत बढिया गजल......

    ReplyDelete
  16. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 03 फरवरी 2018 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  17. लाजवाब गजल....
    वाह!!!

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,