दहशते भीड़ को, वोटों से भुनाया करिये !
इसी दुनियां में , दरिंदे भी तो पाये जाते
कभी लोबान को,बस्ती में घुमाया करिये !
काश लड़ते हुए मंदिर औ मस्जिदों के लिए
कोई कबीर भी , मिलने को बुलाया करिये !
सियासी दावतें, अक्सर ही खूब छपती हैं ,
कभी गरीब को इफ़्तार, खिलाया करिये !
आजकल आपकी, हैवानियत के चरचे हैं !
अजी ये रात की बातें, तो छिपाया करिये !
मंदिर का इश्तहार कैसे छपाया जाये
ReplyDeleteपुजारी का कमीशन कहाँ पहूँचाया जाये
करने को सब कुछ किया जा सकता है
अपने बच्चों को कैसे ये सब सिखाया जाये
भगवान तक पहूँचना तो मुमकिन नहीं
उसके चेले चपाटों से घर को कैसे बचाया जाये ?
-सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 14/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
धर्म का डर दिखा इंसान, रुलाया करिये !
ReplyDeleteऔर इस डर को सरे आम,भुनाया करिये !
एक धर्म दूसरी राजनीती (पॉवर ) इन दोनों का डर बताकर आसानी से मनुष्य पर राज किया जा सकता है, और सदियों से यही हो रहा है ! सार्थक पंक्तियाँ लगी !
धर्म का डर दिखा इंसान, रुलाया करिये !
ReplyDeleteऔर इस डर को सरे आम,भुनाया करिये !
क्या खूब! सदियों से यही तो हो रहा है। बढ़िया रचना।
वाह...शानदार !!
ReplyDeleteबहुत खूब...खूबसूरत प्रस्तुति...
ReplyDeleteसुन्दर रचना , बधाई ।
ReplyDeleteधर्म के नाम पर जितना अत्याचार और मार-काट हुई है उसके मूल में मनुष्य का अहंकार और स्वार्थ ही रहा है. यह वास्तविकता है कि वहाँ मानवीय नहीं केवल दानव लीला खेली गई है.
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब।
ReplyDeleteसटीक ... तीखे व्यंग
ReplyDeleteबहुत खूब
प्रभावी व्यंग्य
ReplyDeleteवाह...बहुत खूब..
ReplyDeleteसुंदर।
ReplyDeleteधर्म का डर दिखा इंसान, रुलाया करिये !
ReplyDeleteऔर इस डर को सरे आम,भुनाया करिये !
आजकल तो धर्म को इसी काम में लिया जाता है !
धर्म का डर दिखा इंसान, रुलाया करिये !
ReplyDeleteऔर इस डर को सरे आम,भुनाया करिये !
bahut samyik aur sarthak rachna hai Satish ji …. yahi to ho raha hai aajkal
व्यंग्य की धार भी है और वर्त्तमान परिस्थितियों से उपजी पीड़ा भी... बहुत अच्छे!!
ReplyDeleteवाह क्या बात है ... करार व्यंग है .. तीखी धार ...
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