Wednesday, April 16, 2014

गीतकार की हर कविता के, जाने कितने माने होंगे -सतीश सक्सेना

घने कष्ट  और वीरानों में , तुम्हें गीत भी गाने होंगे !
कितनी बार अकेले बेमन,उत्सव तुम्हें मनाने होंगे !

सांस नहीं ले सके सुबह से,ऐसे कैसे शाम हो गयी,
बारिश के आने से पहले,उजड़े छप्पर छाने होंगे !

अंतिम क्षण तक टूट न पाएं , ऐसे हों ये रिश्ते नाते ,
आधी जान हमारी उस घर ,वे कैसे अनजाने होंगे !

अर्थ, समीक्षाकार लिखेंगे,कैसे उनकी बात बताऊँ ,
गीतकार की हर कविता के,जाने कितने माने होंगे !

स्वाद हमें कड़वे शब्दों का,बड़े सबेरे ही मिल जाता,

जलतरंग सी मीठी ध्वनि को, चूड़ी कंगन लाने होंगे !

गिनती के दिन चुकने आये,अपने सारे काम करा लें !
कौन जानता कल सतीश के जाने कहाँ ठिकाने होंगे !


13 comments:

  1. सुन्दर. हमने तो छप्पर छाना शुरू किया और बारिश हो गई.

    ReplyDelete
  2. बढ़िया , बेहतरीन रचना सतीश सर शेयर करने के लिए धन्यवाद !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    ReplyDelete
  3. सांस नहीं ले सके सुबह से, हँसते रोते शाम हो गयी,
    वारिश के आने से पहले , हमें तो छप्पर छाने होंगे ..
    बहुत लाजवाब सतीश जी ... जो करना है समय पर और खुद ही करना है ... आह्वान है आपकी गज़ल ...

    ReplyDelete
  4. अर्थ, समीक्षाकार लिखेंगे , कैसे उनकी बात बताऊँ ,
    गीतकार की हर कविता के,जाने कितने माने होंगे !
    सौ प्रतिशत लोग पढ़ते है, दस प्रतिशत जांचते परखते है
    और एक प्रतिशत ही कविता को समझते है, सटीक पंक्तियाँ !

    ReplyDelete
  5. ब्रेकफास्ट कडवे शब्दों का,हमें चाय के साथ खिलाते,
    जलतरंग सी मीठी ध्वनि को, चूड़ी कंगन लाने होंगे !
    मुश्किल है :)

    ReplyDelete
  6. काम शुरु करना नहीं सीख पाये अभी
    इतनी जल्दी जाने की याद दिला रहे है
    ठिकाने जोगियों के भी कभी होते हैं कहीं
    बेवकूफों को बेवकूफ बना कर समझा रहे हैं ।

    बहुत ही सुंदर :)

    ReplyDelete
  7. गिनती के दिन चुकने आये,अपने सारे काम करा लें !
    कौन जानता कल सतीश के जाने कहाँ ठिकाने होंगे !
    वाह ! बहुत उम्दा प्रस्तुति ...!
    RECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.

    ReplyDelete
  8. संबंधों को निभाने का सहृदय बड़प्पन और छोटों को प्यार भरा संदेश खूब उभर कर आया है .साधु !

    ReplyDelete
  9. अजरामरवत् प्राज्ञो विद्याम्रर्थं च चिन्तयेत् ।
    गृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ॥
    मैं अजर-अमर हूँ , यह सोच-कर विद्या प्राप्त करना चाहिए और मृत्यु ने केश को पकड रखा है, यह सोच-कर धर्म का आचरण करना चाहिए ।

    ReplyDelete
  10. कौन जानता कल सतीश के जाने कहाँ ठिकाने होंगे !
    ...बहुत उम्दा

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,