आज बरसों बाद अपनी जननी को, जिसका चेहरा भी मुझे याद नहीं, खूब याद किया ...और बिलकुल अकेले में याद किया, जहाँ हम माँ बेटा दो ही थे, बंद कमरे में ....
भगवान् से कहा कि मुझ से सब कुछ ले ले... पर माँ का चेहरा केवल एक बार दिखा भर दे...बस एक बार उन्हें प्यार करने का दिल करता है, केवल एक बार ...कैसी होती है माँ ...?? मुझे बदकिस्मत को मां का चेहरा भी नहीं मालूम , कैसी थीं वे ?
कई बार, रातों में, उठकर
दूध गरम कर लाती होगी
मुझे खिलाने की चिंता में
मुझे खिलाने की चिंता में
खुद भूखी रह जाती होगी
मेरी तकलीफों में अम्मा !
सारी रात जागती होगी !
सारी रात जागती होगी !
बरसों मन्नत मांग गरीबों को, भोजन करवाती होंगी !
सुबह सबेरे बड़े जतन से
वे मुझको नहलाती होंगी
नज़र न लग जाए, बेटे को
काला तिलक, लगाती होंगी
चूड़ी ,कंगन और सहेली,
उनको कहाँ लुभाती होंगी ?
बड़ी बड़ी आँखों की पलके, मुझको ही सहलाती होंगी !
वे मुझको नहलाती होंगी
नज़र न लग जाए, बेटे को
काला तिलक, लगाती होंगी
चूड़ी ,कंगन और सहेली,
उनको कहाँ लुभाती होंगी ?
बड़ी बड़ी आँखों की पलके, मुझको ही सहलाती होंगी !
सबसे सुंदर चेहरे वाली ,
घर में रौनक लाती होगी
बरसों बाद, गोद में पाकर
बरसों बाद, गोद में पाकर
बेटे को, इठलाती होंगी !
दूध मलीदा खिला के मुझको,
स्वयं तृप्त हो जाती होंगी !
स्वयं तृप्त हो जाती होंगी !
अन्नपूर्णा , नज़रें भर भर, रोज न्योछावर होतीं होंगी !
रात रात भर सो गीले में ,
मुझको गले लगाती होगी
अपनी अंतिम बीमारी में ,
मुझको लेकर चिंतित होंगी
बेटा कैसे जी पायेगा ,
वे निश्चित ही, रोई होंगी !
सबको प्यार बांटने वाली, अपना कष्ट छिपाती होंगी !
अपनी बीमारी में, चिंता
सिर्फ लाडले ,की ही होगी !
गहन कष्ट में भी, वे ऑंखें ,
मेरे कारण व्याकुल होंगी !
अपने अंत समय में अम्मा ,
मुझको गले लगाये होंगी !
मेरे नन्हें हाथ पकड़ कर, फफक फफक कर रोई होंगी !
रात रात भर सो गीले में ,
मुझको गले लगाती होगी
अपनी अंतिम बीमारी में ,
मुझको लेकर चिंतित होंगी
बेटा कैसे जी पायेगा ,
वे निश्चित ही, रोई होंगी !
सबको प्यार बांटने वाली, अपना कष्ट छिपाती होंगी !
अपनी बीमारी में, चिंता
सिर्फ लाडले ,की ही होगी !
गहन कष्ट में भी, वे ऑंखें ,
मेरे कारण व्याकुल होंगी !
अपने अंत समय में अम्मा ,
मुझको गले लगाये होंगी !
मेरे नन्हें हाथ पकड़ कर, फफक फफक कर रोई होंगी !
behad samvedan sheel ...maa ka chehra nishchit hi aisa hi hota hai ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना पढवाई है दी है आपने ....आपके साथ साथ अशोक जी का धन्यवाद
ReplyDeleterachna ko aansuon ke madhyam se pahunchane ka naya pryog .nishabd
ReplyDeleteगुरु भाई ,
ReplyDeleteबहुत-बहुत खुश रहो !
ये सच है ,मैने अपनी माँ को नही देखा !एक साल का बच्चा क्या अपनी माँ का चेहरा याद रख सकता है ..? पर आज आपने अपने शब्दों के द्वारा मुझे मेरी माँ के दर्शन करा दिए| मैं तो सदा ही ये कहता हूँ कि मेरे पास शब्दों कि कमी है ...आप नही जानते आज आप ने मेरे को मेरी मनचाही मुराद दे दी ! इसके लिए आभार,धन्यावाद,जैसे शब्दों का कोई मूल्य नही !में दिल से आप के लिए आप की खुशी और आप के परिवार सहित आप के स्वस्थ जीवन की कामना करता हूँ !बाकी आप मेरी भावुकता को समझ सकते हैं ..... शुभकामनाएँ !अशोक सलूजा !
भावनाओं के समन्दर में गोते लगाने लग गया मैं तो
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ReplyDeleteदुष्ट! टायटल ही ऐसा रखते हो कि कोई भी भावुक मन पिघले,बरसे और....बाद आ जाये. वैसे एक बात बताऊँ? मेरी अपनी मम्मी से इतनी निकटता कभी नही रही जितनी पापा से.मैं उनकी चाँद,सूरज,आँखों का तारा और...पूरा ब्रह्माण्ड थी.मम्मी के हाथो तो खूब जूत खाए हैं मैंने.हा हा हा किन्तु उनका बिस्तर पर पड़े हुए भी मेरे गाल और माथे को चूमना और ये कहाँ -'कब आएगी?' नही भूल सकती. बाबु! फिर कोई नही रहता इस तरह ये सब कहने के लिए.
ReplyDeleteदुष्ट! दुष्ट ! दुष्ट सतीश ! तुमने आज मुझे बहुत रुलाया और तुम्हे कोई हक नही मुझे रुलाने का समझे.
अब ऐसी रचनाये लिखी ना तो मार डालूंगी जान से. समझे? दुष्ट ! एकदम पागल! जाने किस दुनिया में जीता है.क्यों उन्हें याद करता है जो नही आयेंगे.माँ को खुद में समा लो बाबु और अपने हिस्से का प्यार भी अपने बच्चो को दे दो .
गंदा लड़का!
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ReplyDeleteऐसा क्या लिखा था मैंने कि आपको कमेन्ट हटाना पड़ा? पर देखो फिर चली आई अर्चना जी के मार्फत और पढ़ रही हूँ एक बच्चे के मन को....उसके खालीपन को
Deleteध्यान से दुबारा देखें, कमेंट डिलीट किसने किया ... :)
Deleteहर मुसीबत में हर कोई ‘मां’ को ही पुकारता है ॥
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDeleteपहली बार, हाँ पहली बार किसी ब्लॉग-पोस्ट पढते हुए आँखे गीली हो गई, मन भर आया!!
माँ के प्रति हमारी भावनाएँ कितनी सम्वेदनशील होती है कि उसके त्याग बलिदान ममत्व को लाखों बार याद करो, हर बार हृदय भर आता है।
आदरणीय सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
माँ शब्द में ही
एक अदृश्य शक्ति होती है
माँ कहते हीमाँ से बढ़कर कोई नहीं इस दुनिया में
बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
मां से बढ़कर कोई नहीं... मां तो बस मां है...
ReplyDeleteभगवान् का चेहरा किसने देखा ...वह तो माँ के रूप में साक्षात् हमारे पास होती है बस उस दिव्य स्वरुप को जो समझ गया, उसे फिर किया चाहिए ......
माँ को सचे मनोभावों से सम्पर्पित रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा...
हार्दिक शुभकामनाएं
अपने अंत समय में अम्मा ,
ReplyDeleteमुझको गले लगाये होंगी !
मेरे नन्हें हाथ पकड़ कर ,
फफक फफक कर रोई होंगी !
jai baba banaras................
माँ का अति सुंदर स्वरूप आपने सामने ला दिया
ReplyDeletebass ma hi ma ke jaise hoti hai......
ReplyDeletepranam.
रुला दिया भैया ......इस गीत ने
ReplyDeleteक्या कहें ....
अति संवेदनशील रचना.माँ ऐसी ही तो होती है.
ReplyDeleteसुबह सबेरे बड़े जतन से
ReplyDeleteवे मुझको नहलाती होंगी
नज़र न लग जाए, बेटे को
काला तिलक, लगाती होंगी
चूड़ी ,कंगन और सहेली, उनको कहाँ लुभाती होंगी ?
बड़ी बड़ी आँखों की पलके,मुझको ही सहलाती होंगी !
bilkul... main maa hun , mujhe pata hai
आदरणीय सतीश जी
ReplyDeleteनमन !
बहुत मार्मिक रचना लिखी है आज …
आपको पता है , मेरी मां का स्वास्थ्य पिछले दिनों सही न होने से मेरी मानसिक हालत अच्छी नहीं थी…
मां से किसका मन कब भर सकता है …
अच्छी भावपूर्ण रचना के लिए बधाई और आभार !
मेरी एक रचना के कुछ अश्'आर आपके लिए सादर समर्पित हैं -
तेरे दम से है रौनक़ घर मेरा आबाद है अम्मा !
दुआओं से मुअत्तर है ये गुलशन शाद है अम्मा !
तेरे क़दमों तले जन्नत , दफ़ीने बरकतों के हैं
ख़ुदा का नाम भी दरअस्ल तेरे बाद है अम्मा !
किसी भी हाल में रब अनसुना करता नहीं उसको
किया करती जो बच्चों के लिए फ़रियाद है अम्मा !
न दस बेटों से मिलकर एक मां पाली कभी जाती
अकेली जूझ लेती है , तुझे लखदाद है अम्मा !
ऐ मां तुझे सलाम !
इस लिंक पर मां संबंधी मेरी रचनाएं समय निकाल कर देखें …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
एक श्रेष्ठ भाव कविता सुभद्रा कुमारी चौहान जी की पढी थी जिन्हें अपनी बेटी को देखकर अपने बचपन की अनायास याद हो आयी थी.
ReplyDeleteऔर दूसरी श्रेष्ठ कविता आपकी पढ़ी जो कि आपको ब्लॉगजगत में टहलते हुए बरबस याद हो आयीं.
बहुत सुन्दर भावपूर्ण और मार्मिक कविता.
कविता अच्छी लगी | पर माँ इससे भी कही ज्यादा कुछ करती है ,ये सब न करे उसे कोई दुख न हो बड़े आराम से हमें पाले फिर भी वो खास है क्योकि वो हमें निस्वार्थ प्यार करती है दुख और सुख सभी में पहले हमारे बारे में सोचती है |
ReplyDeleteमाँ के लिए सम्भव नहीं होगी मुझसे कविता
ReplyDeleteअमर चिऊँटियों का एक दस्ता मेरे मस्तिष्क में रेंगता रहता है
माँ वहाँ हर रोज़ चुटकी-दो-चुटकी आटा डाल देती है
मैं जब भी सोचना शुरू करता हूँ
यह किस तरह होता होगा
घट्टी पीसने की आवाज़ मुझे घेरने लगती है
और मैं बैठे-बैठे दूसरी दुनिया में ऊँघने लगता हूँ
जब कोई भी माँ छिलके उतार कर
चने, मूँगफली या मटर के दाने नन्हीं हथेलियों पर रख देती है
तब मेरे हाथ अपनी जगह पर थरथराने लगते हैं
माँ ने हर चीज़ के छिलके उतारे मेरे लिए
देह, आत्मा, आग और पानी तक के छिलके उतारे
और मुझे कभी भूखा नहीं सोने दिया
मैंने धरती पर कविता लिखी है
चन्द्रमा को गिटार में बदला है
समुद्र को शेर की तरह आकाश के पिंजरे में खड़ा कर दिया
सूरज पर कभी भी कविता लिख दूँगा
माँ पर नहीं लिख सकता कविता ! ……॥सुन्दर कविता हेतु आपके साथ साथ अशोक जी का धन्यवाद
माँ की गरिमा मै सारे जीवन का सार छिपा है सतीश जी
ReplyDelete" एक तू ही तो थी माँ
जिसने मुझे मेरे होने का अस्तित्व दिया "
माँ को नमन !
इसीलिए तो कहा गया है'
ReplyDelete*
उसको नहीं देखा हमने कभी
पर ऐ मां तेरी सूरत से अलग
भगवान की सूरत क्या होगी
*
मां तो बस मां होती है।
सतीश जी ,
ReplyDeleteआज की रचना मन को छू गयी ..अति संबेदनशील रचना ..सहज सरल शब्दों में गहन भाव लिए हुए ...
अपनी बीमारी में, चिंता
ReplyDeleteसिर्फ लाडले ,की ही होगी !
गहन कष्ट में भी, वे ऑंखें ,
मेरे कारण चिंतित होंगी !
अपने अंत समय में अम्मा ,मुझको गले लगाये होंगी !
मेरे नन्हें हाथ पकड़ कर ,फफक फफक कर रोई होंगी !..............
जी हाँ सतीश जी मैंने देखा है माँ को बिलकुल हुबहू ऐसी ही होती है माँ....
बस इतना ही लिखूंगी आँखे भर आई हैं ...
आप तो कलापारखी कलाकार है ही,
ReplyDeleteआपके हाथोंमे पड़कर हर रचना बड़ी खुबसूरत
बन जाती है ! बधाई अशोक जी को,जिनकी रचना
मैंने भी पढ़ी है ! बधाई आप को भी !
माँ कहते ही ..आगे कुछ नहीं कहा जाता है..शब्दों की सीमाएँ असीम को कभी समेट ही नहीं सकती..हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबेहद संवेदनशील रचना।
ReplyDeleteसुबह सबेरे बड़े जतन से
ReplyDeleteवे मुझको नहलाती होंगी
नज़र न लग जाए, बेटे को
काला तिलक, लगाती होंगी
चूड़ी ,कंगन और सहेली, उनको कहाँ लुभाती होंगी ?
बड़ी बड़ी आँखों की पलके,मुझको ही सहलाती होंगी !
बेहद मार्मिक,पढ़ कर मन भर आया !
सच कहा है, इस दुनियाँ में माँ का कोई विकल्प नहीं है !
सतीश जी,
ReplyDeleteमाँ के बारे में सब कुछ बयान कर आपने सबको अपनी माँ याद दिला दी. मन को द्रवित करने वाली कविता ने माँ है तब भी विचलित कर दिया. है तो दूर है विछोह जैसे लगता है.
कुछ कहने को नहीं है...अहसास रहा हूँ बस..
ReplyDeleteमाँ पर लिखी रचनाओं पर मैं टिप्पणी नहीं करता -मुआफी चाहता हूँ !
ReplyDeleteसुन्दर मार्मिक प्रस्तुति.आपको और यार चाचू का बहुत बहुत आभार.पर सतीश जी आप हुए अशोक जी के गुरू भाई.फिर आपको क्या कहूँ ?
ReplyDeleteमाँ तो बस माँ होती है उसकी तुलना तो मैं भगवन से भी करना नहीं चाहता
ReplyDeleteआपकी रचना ने माँ की याद दिला दी
शुभकामनाये
नाज़ुक मनोभावों को दर्शाती संवेदनशील गीत रचना ।
ReplyDeleteआपके दिल से निकली बातें समझ आती हैं ।
बहुत सुन्दर ।
बहुत ही भाव-प्रवण रचना,
ReplyDeleteतारीफ़ के शब्द नहीं हैं, सचमुच !
ऎ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की मूरत क्या होगी !
कुछ बातें सिर्फ़ महसूस की जा सकती हैं।
ReplyDeleteगजब की हृदयस्पर्शी रचना .. शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteमेरी तकलीफों में अम्मा,सारी रात जागती होगी !
ReplyDeleteबरसों मन्नत मांग गरीबों को, भोजन करवाती होंगी !
रात रात भर जाकर बच्चे का सारा दर्द अपने हिस्से की मन्नत माँगती होगी.....गले में अटकता है कुछ... नम आँखें धुँधला जाती हैं फिर भी जाने क्यों बार बार पढ़ रही हूँ....
बहुत हृदयस्पर्शी रचना है आपकी , दिल को छू गई .
ReplyDeleteMamma bilkul aisee hee hotee hai .
ReplyDeleteAankhe nam ho aaee.
बस एक कदम आगे बढ़ाएं और देखें मां के आशीर्वाद का हासिल.
ReplyDeleteBhaiji ! maine ek ajeeb dard mehsoos kiya iss geet mei... Kya kahoon Geet padkar mann bahut udhas hogaya.. Aage koi sabd nahi hai.
ReplyDeletesadar
माँ पर लिखी वाकई बेजोड़ रचना है |अशोक अकेला जी और भाई सतीश जी आपको भी बधाई |
ReplyDeleteबीस बरस के उस नौजवान के जज्बात,जिसकी माँ उसी दिन मर गयी जिस दिन वह पैदा हुआ
ReplyDeleteLove you papa!
ReplyDeleteरात रात भर सो गीले में ,
ReplyDeleteमुझको गले लगाती होगी
अपनी अंतिम बीमारी में ,
मुझको लेकर चिंतित होंगीं
बच्चा कैसे जी पायेगा ,वे निश्चित ही रोई होंगी !
सबको प्यार बांटने वाली,अपना कष्ट छिपाती होंगी !
आँखें नम कर गयी रचना ..... बहुत सुंदर भावपूर्ण
bhawbhini......
ReplyDeleteमुझे नही पता मेरी मां कैसी थी, क्योकि उस समय मै बचपने मे था उस का प्यार समझ नही आया, आज अपनी बीबी को बच्चो के लिये भागते दोडते देखता हुं, उन के लिये रात रात भर जागते देखता हुं चाहे उस की तबियत खराब हो तब भी उसे बच्चो के लिये तडपते देखता हुं, तो महसूस होता हे मां केसी होती हे.... सच मे मां महान होती हे
ReplyDeleteमाँ सबकी ऐसी होती है ,जैसा बिम्ब उकेरा तूने ....
ReplyDeleteसुन्दर शब्द चित्र ,अमूर्त का मूर्तन .निर्गुण रूप माँ को आपने अपने मन से सगुन रूप दे दिया .माँ का ही तो अक्स है आप में मिठास और कोमलता भी ,ओज भी ,मुसबतों के आगे डेट रहने की कूवत भी उसी की है आपमें सक्सेना साहब .
जैसा तूने बिम्ब उकेरा ,माँ सबकी ऐसी होती है ,
ReplyDeleteबोलो माँ कैसी होती है ।
सबकी माँ जैसी होती है ।
"मैं "से भैया माँ होती है ,
"तय ".से ता-थैयां होती है .
इन्दुपुरी गोस्वामी ने जो भी लाड दुलार से कहा है ,शब्द उनके हैं ,
ReplyDeleteभाव मेरे भी हैं ,हम सबके हैं ,
आँख नम है ,आज फिर से माँ का गम है .
उसके जाने के बाद मैं भी बहुत रोया था ,
तीनों बच्चे मेरे भी तो उसने पाले थे ,
बच्चों के बच्चे पाले थे ......
आज फिर आँख इतना नमक्यों है (दूसरी पंक्ति सक्सेना साहब आपको लिखनी है ).
ReplyDelete@ वीरू भाई ,
ReplyDeleteमाँ के लिए कितना ही लिखें, कम लगता है ....
आज फिर आँख इतना नम क्यों है
आज फिर याद, उन की आई है !
हवा के साथ यह माथे पर हाथ किसका था
क्या मुझे देखने, माँ खुद ही चली आयीं हैं !
लगता है दर्द मेरा, माँ को खींच लाया है
कौन आहिस्ता से बालों को मेरे सहलाए !
यह कौन थपकी देके मुझको सुला देता है
नींद में कौन मेरे , आंसू पोंछ जाता है !
इस रचना को पूरी करूंगा ...माँ के प्रति श्रद्धांजलि होगी ! आपका आभार !
पंक्तियाँ द्रवित कर गयीं।
ReplyDeleteइतना मर्म ........पढ़ते -पढ़ते ही ऑंखें छलक आईं | कोन आदमी अपने दिल मैं कितना दर्द लिए बैठा .........................कोई नहीं जनता ...............बस ओरों को देखा तो अपना दुःख ही कम नजर आया |.............................................सर जी लोगों को कम रुलाया करों |
ReplyDeleteपृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
ReplyDeleteपरं तेषां मध्ये विरलतरोऽहं तव सुतः
एक अत्यंत सुंदर एवं मातॄत्व से ओत-प्रोत रचना को सुपलब्ध कराने के लिये बहुत बहुत आभार ।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना सतीश जी
ReplyDeleteसुबह सबेरे बड़े जतन से
ReplyDeleteवे मुझको नहलाती होंगी
नज़र न लग जाए, बेटे को
काला तिलक, लगाती होंगी
चूड़ी ,कंगन और सहेली, उनको कहाँ लुभाती होंगी ?
बड़ी बड़ी आँखों की पलके,मुझको ही सहलाती होंगी !
sach hi hai maa aesi hi hoti hai jo bachcho ke liye jeeti hai sundar rachna
जब छोटा था...माँ कि ममता को समझ पाना मुश्किल था...जब मैं अपनी पत्नी की अपने बच्चों के प्रति ममता और समर्पण को देखता हूँ...तो ये विश्वास होता है कि ऐसा निस्वार्थ प्रेम सिर्फ माँ ही दे सकती है...मेरा सर माँ और पत्नी दोनों के लिए गर्व से उठ जाता है...ये दुनिया की सभी माँओं के लिए है...
ReplyDeletemother is a creation beyond thinking--
ReplyDeleteno words --
रात रात भर सो गीले में ,
मुझको गले लगाती होगी
अपनी अंतिम बीमारी में ,
मुझको लेकर चिंतित होंगीं
बच्चा कैसे जी पायेगा ,वे निश्चित ही रोई होंगी !
सबको प्यार बांटने वाली,अपना कष्ट छिपाती होंगी !
thanks for an emotional ----
mother is a creation beyond thinking--
ReplyDeleteno words --
रात रात भर सो गीले में ,
मुझको गले लगाती होगी
अपनी अंतिम बीमारी में ,
मुझको लेकर चिंतित होंगीं
बच्चा कैसे जी पायेगा ,वे निश्चित ही रोई होंगी !
सबको प्यार बांटने वाली,अपना कष्ट छिपाती होंगी !
thanks for an emotional ----
चर्चा -मंच पर आपका स्वागत है --आपके बारे मै मेरी क्या भावनाए है --आज ही आकर मुझे आवगत कराए -धन्यवाद !२०-५-११ ..
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com/
अश्रु नमन !!
ReplyDeleteबहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत मर्मस्पर्शी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteSateesh ji aankhe chalak aai yeh kavita padh kar.bahut marmik hai.aur aajkal main bhi apni maa ki bimari se chintit rahti hoon.bahut badi baat kahi gai hai is kavita me das bete bhi milkar maa ko paal nahi sakte.aur veh akeli kitni hi aulaad ko paal deti hai.
ReplyDeleteभावपूर्ण मन को द्रवित करती रचना.
ReplyDeleteहाँ सतीश जी, माँ ऐसी ही होती है, प्रकृति का अनोखा उपहार जो एक ही बार मिलता है.
ReplyDeleteसतीश जी ,
ReplyDelete'माँ'का चेहरा याद नहीं तो क्या हुआ ,मन में उमड़ती उसके प्रति आपकी भावनाएँ उस मातृत्व को समर्पित हो रही हैं .आप हैं वही उनके होने का प्रमाण है ,उनकी इस जीवन्त रचना (आपका व्यक्तित्व )में उनका अस्तित्व निरंतर विद्यमान है .
"....................."
ReplyDeleteइनके बीच कुछ भी लिखा जाए कम है!!इसी देवी ने मुझे आस्तिक बना रखा है!!
बहुत बढ़िया गीत लिख रहे हैं आजकल सतीश जी.
ReplyDeleteमाँ के ममत्व की बेहतरीन प्रस्तुति,वाह.
आपके ब्लॉग पर आकर अक्सर भाउक हो जाता हूँ। कुछ लिखने के लिए प्रेरित होता हूँ। फिर चाहे वो आपका लिखा गद्य हो या पद्य। यह कविता तो है ही ह्रदय को झकझोर देने वाली।
ReplyDeleteपिता जब नहीं रहते
कैसी होती है माँ?
...........
चुनती है जितना
उतना ही रोती
यादों के सागर में
खुशियों के मोती
न जागी न सोती
रात भर
भींगती रहती है माँ।
ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान् की सूरत क्या होगी !!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteसच में बहुत ही मार्मिक कविता है....माँ तो बस ऐसी ही होती है...
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी ,
ReplyDeleteआप तो अच्छा लिखते ही हैं ,पर ये अम्मा की यादें सच मन को भिगो गयी .......सादर !
माँ के ममत्व की बेहतरीन प्रस्तुति| धन्यवाद|
ReplyDeleteआपके माध्यम से सुन्दर रचना पढने को मिली
ReplyDeleteमाँ के स्वरूप का सुन्दर चित्रण, आखिर माँ तो बस माँ होती है
अकेला जी की कविता से आपके मस्तिष्क में जो भी विचार आये यह तो एक सज्जन और भावुक दृदय की पहिचान है और फिर मां की याद एक धुधली सी स्मृति या एक काल्पनिक चित्र ममता मयी मां को कमरा बन्द करके ही याद किया जाना चाहिये ताकि अश्रु का किसी को स्पष्टीकरण न देना पडे
ReplyDeleteखुद भी रोये ... हमें भी रुला गए ... बहुत दिन हो गए माँ को देखे ... कुछ दिनों बाद घर जाने का प्लान है ... तब माके हाथ के खाने का फिर लुत्फ़ उठाऊंगा ...
ReplyDeleteअपनी बीमारी में चिंता
ReplyDeleteसिर्फ लाडले की ही होगी !
गहन कष्ट में भी वे ऑंखें
मेरे कारण चिंतित होंगी !
अपने अंत समय में अम्मा ,मुझको गले लगाये होंगी !
मेरे नन्हें हाथ पकड़ कर ,फफक फफक कर रोई होंगी !
मां की अप्रतिम ममता की व्याख्या करती सुंदर रचना।
कविता हृदयस्पर्शी है।
मां को नमन।
माँ की ममता का बेहद मर्मस्पर्शी चित्रण अपनी इस रचना में आपने प्रस्तुत किया है । सभी की इन भावनाओं को शब्द देने के लिये आभार सहित...
ReplyDeleteकुछ अतिरिक्त व्यस्तताओं के चलते ब्लाग्स पर न आ पाने की क्षमा भी...
गहन भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteआशा
हवा के साथ ये माथे पे हाथ किसका था ,
ReplyDeleteक्या मुझे देखने माँ खुद ही चली आई है .बेहद पुरसुकून तसव्वुर -
अंदाज़ हु -बा हु तेरी आवाज़े पा का था ,
बाहर निकलके देखा तो ,झोंका हवा का था .
पा माने पैर ,आवाज़े पा .
ये यूं भी हो सकता है -
अंदाज़ हु -बा -हु आवाज़े माँ का था ,
bahut hi marmik kavita hai aankh bhar aai
ReplyDeletemaa hoti hi aesi hai
saader
rachana
हृदय विदीर्ण कर देने वाली रचना। आपके लिये तो विशेष महत्व रखती है।
ReplyDeleteकाफी दिनों से कोई ब्लॉग पोस्ट पढ़ा... और आँखें नम हो गयीं... माँ तो एक भाव है उसे महसूस किया जा सकता है.. और माँ तो हर वक्त हमारे साथ होती है.. हमारे रक्त, अस्थि का एक एक कण उसका ही तो है... प्रणाम...
ReplyDeleteमाँ से बढ़कर कुछ है भी नहीं ,वह हमारा अस्तित्व होती है !
ReplyDeleteitne sunder ahsas hain aapke,aapne toh unko bhi maat di hain jinhoine maa ke darshan kiye hain.....MAA TO BILKUL AISI HI HOTIN HAIN.....
ReplyDeleteआज , आपकी इस रचना को पढकर आंसू आ गए , सतीश जी , मेरी माँ नहीं है .. और माँ के नहीं होने का दर्द वही जान सकता है , जिनकी माँ नहीं है ..माँ ही ईश्वर का सच्चा स्वरुप होती है .. कुछ और नहीं लिखा जा रहा है .... नमन आपकी लेखनी को ...
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
आज फिर पढी, और फिर ...
ReplyDeleteअपनी बीमारी में, चिंता
ReplyDeleteसिर्फ लाडले ,की ही होगी !
गहन कष्ट में भी,वे ऑंखें ,
मेरे कारण व्याकुल होंगी !
अपने अंत समय में अम्मा ,मुझको गले लगाये होंगी !
मेरे नन्हें हाथ पकड़ कर,फफक फफक कर रोई होंगी !!!!!
शानदार रचना........
ReplyDeleteकोई विकल्प नहीं ।
ReplyDeleteएक बार फिर...कोई शब्द नहीं है...
ReplyDeleteमाँ के विछोह की कल्पना से सिहर उठती हूँ मैं
ReplyDeleteजब तब, इधर-उधर से चुपचाप उन्हें देख लेती हूँ मैं
सुबह-सुबह जब आंख खुले तो सामने होती है मेरी माँ
रात भी जब तक आँखें न मूँद लूँ
नहीं सोती है मेरी माँ
मुझसे पहले नहा,पूजा कर खाना पका लेती मेरी माँ
यूँ ही देखते बरसों बीते ,कभी न
पहले खाती,सोती माँ....
माँ ...को नमन और माँ को दिल की गहराइयों से याद करने वाले बेटे को भी नमन ...बहुत सुंदर वर्णन ....लोग तो जीती जागती माँ को भूल जाते हैं पर आपने उस माँ को अभी तक अपने दिल में जिन्दा रखा जिनका चेहरा भी याद नहीँ ....
ReplyDeleteअपनी बीमारी में, चिंता
ReplyDeleteसिर्फ लाडले ,की ही होगी !
गहन कष्ट में भी,वे ऑंखें ,
मेरे कारण व्याकुल होंगी !
अपने अंत समय में अम्मा ,
मुझको गले लगाये होंगी !
मेरे नन्हें हाथ पकड़ कर,फफक फफक कर रोई होंगी !
आदरणीय सतीश जी , जिस व्यक्ति की आँखें ये रचना पढकर नम ना हों मैं समझती हूँ उसमें संवेदनाएं ही नहीं | आज आपके ब्लॉग के भावों के अनमोल मोती पढ़े और महसूस किये | पर इस रचना ने मन को गहरे तक छू लिया | सौभाग्य है मेरे पास मेरी माँ हा अभी पर बहुत बीमार और जर्जर काया हो चुकी हैं | पर ये कडवा सच है माँ सी कोई हस्ती नहीं | सादर
एक जमाना ऐसा भी था टिप्पणियां देख कर यही लगता है।
ReplyDelete