लो आज कष्ट की स्याही से
संतप्त ह्रदय का गान लिखूं
धनपतियों से इफ़्तार दिला
मैं निर्धन का रमजान लिखूं
बतलाओ तुमको यार कहूँ ,
या केवल मित्र सुजान लिखूं !
अनुराग कहां सम्मानित हो
मनुहार रचाये चरणों में !
आ जाएं कभी आनंदमयी, बतलायें व्यथा मन कहां लिखूं !
नेताओं को कह देश भक्त ,
अधपके देश की शान लिखूं
धन पर मरते, सन्यासी को
दरवेशों का लोबान लिखूं !
या बरसों बाद मिले, जीवन
में, भूखे का जलपान लिखूं
धनपति बनने को राष्ट्रभक्त
उग आये, रातों रात यहाँ !
कह जाएं किसी दिन रूपमयी , मन का वृन्दावन कहां लिखूं !
सूरज को श्रद्धा नत होकर ,
मंत्री का स्वागत गान लिखूं !
या तिल तिल कर मरते, निर्जल
इन वृक्षों को , उपहार लिखूं !
उम्मीदों में , बादलों सहित,
आती बारिश जलधार लिखूं !
कोसों तक प्यार नहीं दिखता
नफ़रत फैलाती , दुनिया में !
पथ दिखलायें ,अनुरागमयी, बोलें न , बुलावन कहां लिखूं !
संक्रमण काल में गीत बना
कर छंदों का अपमान लिखूं
या धूर्त काल में गीतों की
चोरी कर काव्य महान लिखूं
फिर महागुरु के चरण पकड़
कर, उनको दिव्य सुजान लिखूं
कवितायें जन्म कहाँ लेंगी ,
गुरु शिष्य बिकाऊ जिस घर में,
आ जाएं एक दिन दिव्यमयी, कह जाएं, स्तवन कहां लिखूं !
बंगाल सिंध कश्मीर कटा,
नफरत में, हिंदुस्तान लिखूं ,
जिसके रिश्ते, आधे उसमें
उस घर को, पाकिस्तान लिखूं !
गांधार, पाणिनी आर्यक्षेत्र को
अब अफ़ग़ानिस्तान लिखूं !
कुल, जाति, धर्म, फ़र्ज़ी गुरुर
पाले, नफरत में हांफ रहे !
आ जाएं किसी दिन करुणमयी , समझाएं तपोवन कहां लिखूं !
संतप्त ह्रदय का गान लिखूं
धनपतियों से इफ़्तार दिला
मैं निर्धन का रमजान लिखूं
बतलाओ तुमको यार कहूँ ,
या केवल मित्र सुजान लिखूं !
अनुराग कहां सम्मानित हो
मनुहार रचाये चरणों में !
आ जाएं कभी आनंदमयी, बतलायें व्यथा मन कहां लिखूं !
नेताओं को कह देश भक्त ,
अधपके देश की शान लिखूं
धन पर मरते, सन्यासी को
दरवेशों का लोबान लिखूं !
या बरसों बाद मिले, जीवन
में, भूखे का जलपान लिखूं
धनपति बनने को राष्ट्रभक्त
उग आये, रातों रात यहाँ !
कह जाएं किसी दिन रूपमयी , मन का वृन्दावन कहां लिखूं !
सूरज को श्रद्धा नत होकर ,
मंत्री का स्वागत गान लिखूं !
या तिल तिल कर मरते, निर्जल
इन वृक्षों को , उपहार लिखूं !
उम्मीदों में , बादलों सहित,
आती बारिश जलधार लिखूं !
कोसों तक प्यार नहीं दिखता
नफ़रत फैलाती , दुनिया में !
पथ दिखलायें ,अनुरागमयी, बोलें न , बुलावन कहां लिखूं !
संक्रमण काल में गीत बना
कर छंदों का अपमान लिखूं
या धूर्त काल में गीतों की
चोरी कर काव्य महान लिखूं
फिर महागुरु के चरण पकड़
कर, उनको दिव्य सुजान लिखूं
कवितायें जन्म कहाँ लेंगी ,
गुरु शिष्य बिकाऊ जिस घर में,
आ जाएं एक दिन दिव्यमयी, कह जाएं, स्तवन कहां लिखूं !
बंगाल सिंध कश्मीर कटा,
नफरत में, हिंदुस्तान लिखूं ,
जिसके रिश्ते, आधे उसमें
उस घर को, पाकिस्तान लिखूं !
गांधार, पाणिनी आर्यक्षेत्र को
अब अफ़ग़ानिस्तान लिखूं !
कुल, जाति, धर्म, फ़र्ज़ी गुरुर
पाले, नफरत में हांफ रहे !
आ जाएं किसी दिन करुणमयी , समझाएं तपोवन कहां लिखूं !
अपने मन को नादान लिखूं
ReplyDeleteकवि पर तेरा ऋणदान लिखूं
संक्रमण काल है गीतों का,
चोरी कर काव्य महान लिखूं
ना जाने कितने बरसों से
इक भूखे का,जलपान लिखूं
धनपति बनने को हैं व्याकुल
जनभक्त भरे , मेरे घर में ,
अा जाएं कभी तो रूपमयी, मन का वृंदाबन कहां लिखूं !
कवि मन की व्यथा ... गहन भाव. लाज़वाब रचना
बहुत खूब
ReplyDeleteकुछ नहीं सारे बेईमान महान लिखो
ReplyDeleteईमानदारी और ईमानदार के
अंतिम यात्रा का अभी से इतिहास लिखो
वाह वाह गाने वाले देश के भाँडों
के जोकर और जमूँरों के गान लिखो
रहने दो बहुत अच्छा लिखा है
मेरे कहने सुनने बताने का
मत कोई गान लिखो :)
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 03 जुलाई 2016 को लिंक की गई है............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteबरसाते , सूर्य थपेड़ों पर
ReplyDeleteवृक्षों का शीतल प्यार लिखूं
कुछ दूर सही,बौछार सहित,
अाती वारिश जलधार लिखूं
जितना भी प्यार लिखूं कम है
नफरत फैलाती दुनियाँ में ,
अा जाएं कभी अनुरागमयी, बोलो न बुलावन कहां लिखूं !
वाह ! अति प्रभावशाली कविता...आभार !
वाह!अति सुन्दर |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ....आप यूं ही लिखते रहें
ReplyDeleteBatlayen Bharat kahani likhoon? Bahut sahee sawal.
ReplyDeleteबिगड़े हालतों में कैसे गर्व से भारत लिखे, यह यक्ष प्र्श्न है ...बहुत सटीक रचना
ReplyDeleteवाह हर छंद कुछ गहरे प्रश्न खड़े कर रहा है ... इन प्रश्नों का जवाब किसी के पास नहीं दीखता है ...
ReplyDeleteइस तपती हुई अशान्त और व्यथित धरती पर आप तपोवन लिखने की कामना कर रहे हैं - कहाँ से लायेंगे उसके उपादान और उस महान् चिन्तन के पोषक और अनुकर्ता !
ReplyDeleteकुछ बेईमान, महान गिना
ReplyDeleteअधपके देश की शान लिखूं
धन पर मरते धनवानों को
दरवेशों का लोबान लिखूं !
या छन्दों का इम्तहान बता
कर हिंदी का अपमान लिखूं
कवितायें जन्म कहाँ लेंगीं ?
हों सभी बिकाऊ जिस घर में
अा जाएं एक दिन दिव्यमयी, बतलायें, स्तवन कहां लिखूं !
जबरदस्त !!
गज़ब!! जिओ
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