यह कैसा माहौल ? अब यहाँ द्वेष गीत गाये जाएंगे !
संवेदना बिलख के रोये ,कवि न यहां पाये जाएंगे !
दयाहीनता के आलम में उम्मीदें तो कम हैं लेकिन
संवेदन संतप्त ह्रदय की, हम कसमें खाये जाएंगे !
द्वेषभाव को जल देने को,ढेरों लोग उगे हैं फिर भी
दिल से दूषित भाव हटाने, गंगा हम लाये जाएंगे !
आग लगाते इन शोलों में, ह्रदय वेदना कौन पढ़ेगा,
जब तक सूरज आसमान में,हम छप्पर छाये जाएंगे !
राजनीति के इन धूर्तों ने, बेशर्मी की हदें पार कीं,
जल्द आयेगा वक्त,रेत के किले सभी ढाए जाएंगे !
द्वेषभाव को जल देने को,ढेरों लोग उगे हैं फिर भी
दिल से दूषित भाव हटाने, गंगा हम लाये जाएंगे !
आग लगाते इन शोलों में, ह्रदय वेदना कौन पढ़ेगा,
जब तक सूरज आसमान में,हम छप्पर छाये जाएंगे !
राजनीति के इन धूर्तों ने, बेशर्मी की हदें पार कीं,
जल्द आयेगा वक्त,रेत के किले सभी ढाए जाएंगे !
वाह बहुत सुन्दर ।
ReplyDeletepyara..... :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDelete