Saturday, March 26, 2016

हम जैसे सख्त जान भी, बरबाद हो गए ! -सतीश सक्सेना

कुछ श्राप भी दुनिया में आशीर्वाद हो गए,
जब भी तपाया आग में, फौलाद हो गए !

यह राह खतरनाक है , सोचा ही नहीं था ,
हम जैसे सख्तजान भी, बरबाद हो गए !  

कितने तो कट गए बिना आवाज किये ही
बच वे ही सके, जो कहीं आबाद हो गये !

ख़त ध्यान से पढ़ने की जरूरत ही नहीं थी 
हर शब्द के मनचाहे से, अनुवाद  हो गए !

क्यों दर पे तेरे आके ही सर झुक गया मेरा 
काफिर न जाने क्यों यहाँ , सज़्ज़ाद हो गए !

न जाने कब से तेरे सामने बेबस रहे थे हम 
इस बार उड़ाया तो , हम आज़ाद हो गए !

14 comments:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये दिनांक 27/03/2016 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
    चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
    आप भी आयेगा....
    धन्यवाद...

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  2. क्यों दर पे तेरे आके ही सर झुक गया मेरा
    काफिर न जाने क्यों यहाँ सज़्ज़ाद हो गए !

    ..बहुत सही ...

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  3. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  4. सख्तजान कभी बर्बाद नहीं होते...बन्धु...

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  5. बहुत बढिया प्रस्तुती।

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  6. यह राह खतरनाक है, सोंचा ही नहीं था
    हम जैसे सख्तजान भी, बरबाद हो गए !
    सुना है एक सौ एक राहे होती है सौ राहें संसार में ले जाती है
    और एक राह परमात्मा की ओर, संसार में ले जाने वाली
    सभी सौ राहे खतरनाक तो नहीं पर हाँ निराशाजनक जरूर होती है !

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  7. बहुत सुंदर, दिल की बात कही भाई जी अगर अन्यथा न लें तो आप की इजाज़त से .....कब तक ग़ुलामी सहते किसी की ...बात जब दिल की मानी तो आज़ाद हो गये | स्वस्थ रहें .

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    Replies
    1. "आज़ाद" पसंद आया एक शेर और सही , आभार सुझाव के लिए !

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  8. ख़त ध्यान से पढ़ने की जरूरत ही नहीं थी
    हर शब्द के मनचाहे से, अनुवाद हो गए ...
    वाह बहुत ही कमाल के शब्द लिखे हैं सतीश जी ... बहुत सुन्दर रचना ...

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  9. वाह, बहुत खूब

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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