Friday, February 24, 2023

एलोपैथी हेल्थ ब्लंडर्स -सतीश सक्सेना

होम्योपैथी वरदान जैसी लगी यूरोपियन को , यहाँ तक कि कितने एलोपैथिक प्रैक्टिशनर , एलोपैथी छोड़कर इसका उपयोग कर अपने रोगियों का सफलता पूर्वक उपचार करने लगे और उन्होंने कितनी ही किताबें लिखीं जो बेहद कामयाब और आज भी होम्योपैथी की रीढ़ मानी जाती हैं , और यह उस समय हुआ जब विश्व में प्रचार और विज्ञापन के साधन उपलब्ध नहीं थे !

बस तभी से एलोपैथी ने होम्योपैथी को पढ़े, समझे बिना उसके सिद्धांतों की खिल्ली उड़ाना शुरू किया और धीरे धीरे इन तेज प्रभाव वाली कैमिकल दवाओं ने मानव मन क़ाबू पाने में सफलता हासिल कर ली, एंटी बायोटिक्स मेडिसिन जो लाभ से अधिक नुक़सान करती हैं , एलोपैथिक प्रैक्टिशनरों द्वारा हर रोग का इलाज मानी जाने लगी और धीरे धीरे रेडियो और टेलीविज़न के ज़रिए इस धनवान और मशहूर व्यवसाय ने एलोपैथी ट्रीटमेंट सिस्टम को मेडिकल साइंस का नाम देने में सफलता प्राप्त कर ली !

हज़ारों वर्ष से दुनियाँ में सैकड़ों तरह के सफल रोग उपचार विधियाँ प्रचलित थीं , यूरोप,अफ़्रीका , चायना , मिडिल ईस्ट , भारत एवं मिश्र में हर्बल , एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंक्चर, आयुर्वेद, यूनानी मेडिसिन का बोलबाला था, प्राकृतिक पौधों से ही बनायी गयीं यूरोप में होम्योपैथी मेडिसिन प्रचलित थीं , मगर धीरे धीरे प्रचार और धन की बदौलत एलोपैथी ने इन सबको निगल कर ख़ुद को मेडिकल साइंस का नाम देने में सफलता प्राप्त कर ली  !

इस तरह एक ताक़तवर मछली विज्ञापन के सहारे आसानी से अपने आसपास तैरती तमाम खूबसूरत छोटी मछलियों को खा गई , और व्यस्त मानवजाति ने गौर तक नहीं किया कि उनसे कितनी ही खूबसूरत रोग उपचार सिस्टम हमारे दिमाग़ को प्रचार साधनों से प्रभावित कर, धूर्तता पूर्वक दूर कर दिये गये हैं ! 

धुआँधार विज्ञापन आसानी से महा धूर्त को योगी और योगी को महा धूर्त बनाने में समर्थ हैं , सो आँखें खोलें दोस्त अन्यथा यह भूल जानलेवा साबित होगी  !



Wednesday, February 15, 2023

लम्बे जीवन के लिए सुपरफूड केफीर -सतीश सक्सेना

कॉकेशस पर्वत के आसपास रहने वाले लोग , बहुत लम्बा जीवन जीने के लिए जाने जाते हैं , आधुनिक रिसर्च के अनुसार वे एक तरह के दही का उपयोग हज़ारों वर्षों से करते आ रहे हैं जिसे केफीर (Kefir) कहा जाता है , वे इसे गाय, बकरी या भैंस के दूध में केफीर ग्रेन मिलाकर प्राप्त करते थे ! केफीर ग्रेन 24 घंटों में दूध के साथ मिलाकर रखने पर दही में बदल जाता है , इस दही को छानकर केफीर ग्रेन दुबारा प्राप्त कर लेते हैं , इस तरह यह ग्रेन्स एक परिवार में न केवल जीवन भर चलते रहते हैं बल्कि खुद को बढ़ाते भी रहते हैं ! आश्चर्यजनक है कि एक चम्मच केफीर ग्रेन्स एक परिवार को आजीवन केफीर देने के लिए काफी है !

केफीर ग्रेन की उत्पत्ति के बारे में वहां के निवासियों का मानना है कि यह चमत्कारी भेंट उन्हें खुद हज़रत मोहम्मद साहब के द्वारा दिए गए ताकि वे और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ स्वस्थ रहें और वहां इसे अमर रहने का रस कहा जाता है  ! हजारों साल से इन केफीर ग्रेन्स को वे लोग अपने परिवार में कीमती रत्नों की तरह सहेजते आये हैं , उनके परिवारों में सौ वर्ष तक जीना एक सामान्य बात है  !
और आजकल यही केफीर सुपर फ़ूड का दर्जा प्राप्त कर सारे यूरोप और अमेरिका में बिक रहा है  !

केफीर ग्रेन्स मानव निर्मित नहीं हैं बल्कि जीवित सूक्ष्म जीवाणु समूह (माइक्रो ऑर्गनिज़्म्स )हैं , सामान्य भाषा में वे जीवित बैक्टीरिया समूह हैं जो मानव शरीर के लिए जीवन अमृत की तरह काम करते हैं ! आजतक उनकी उत्पत्ति कैसे और कहाँ हुई, किसी को नहीं पता सिवाय इसके कि कॉकेशियस पहाड़ के आसपास के निवासी ही, उनके द्वारा फर्मेन्टेड दूध का उपयोग करते पाए गए !

मैंने कई वर्ष पहले इसके बारे में किसी फ़ूड रिसर्च जानकारी के जरिये पढ़ा था , मगर ग्रेन्स की उपलब्धता के बारे में कोई जानकारी न मिलने के कारण उपयोग न कर सका ,संयोग से पिछले वर्ष मित्र विद्याधर गर्ग शुक्ल से भेंट होने पर उन्होंने अपने परिवार में इसके उपयोग के बारे में सविस्तार बताया जिसे सुनकर मैंने इसका उपयोग करने का फैसला किया और यह जानकारी वाकई अद्भुत रही  !

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