बस तभी से एलोपैथी ने होम्योपैथी को पढ़े, समझे बिना उसके सिद्धांतों की खिल्ली उड़ाना शुरू किया और धीरे धीरे इन तेज प्रभाव वाली कैमिकल दवाओं ने मानव मन क़ाबू पाने में सफलता हासिल कर ली, एंटी बायोटिक्स मेडिसिन जो लाभ से अधिक नुक़सान करती हैं , एलोपैथिक प्रैक्टिशनरों द्वारा हर रोग का इलाज मानी जाने लगी और धीरे धीरे रेडियो और टेलीविज़न के ज़रिए इस धनवान और मशहूर व्यवसाय ने एलोपैथी ट्रीटमेंट सिस्टम को मेडिकल साइंस का नाम देने में सफलता प्राप्त कर ली !
हज़ारों वर्ष से दुनियाँ में सैकड़ों तरह के सफल रोग उपचार विधियाँ प्रचलित थीं , यूरोप,अफ़्रीका , चायना , मिडिल ईस्ट , भारत एवं मिश्र में हर्बल , एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंक्चर, आयुर्वेद, यूनानी मेडिसिन का बोलबाला था, प्राकृतिक पौधों से ही बनायी गयीं यूरोप में होम्योपैथी मेडिसिन प्रचलित थीं , मगर धीरे धीरे प्रचार और धन की बदौलत एलोपैथी ने इन सबको निगल कर ख़ुद को मेडिकल साइंस का नाम देने में सफलता प्राप्त कर ली !
इस तरह एक ताक़तवर मछली विज्ञापन के सहारे आसानी से अपने आसपास तैरती तमाम खूबसूरत छोटी मछलियों को खा गई , और व्यस्त मानवजाति ने गौर तक नहीं किया कि उनसे कितनी ही खूबसूरत रोग उपचार सिस्टम हमारे दिमाग़ को प्रचार साधनों से प्रभावित कर, धूर्तता पूर्वक दूर कर दिये गये हैं !
धुआँधार विज्ञापन आसानी से महा धूर्त को योगी और योगी को महा धूर्त बनाने में समर्थ हैं , सो आँखें खोलें दोस्त अन्यथा यह भूल जानलेवा साबित होगी !
क्या करें उसी पर निर्भरता हो चली है ?
ReplyDeleteसही कहा
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