Friday, February 27, 2015

बिना जिगर ही जिंदा हैं, हम यार बड़े शर्मिन्दा हैं - सतीश सक्सेना

बिना जिगर हम जिंदा हैं पर यार बड़े शर्मिन्दा हैं !
कितनी बार मरे हैं , लेकिन यार बड़े शर्मिन्दा हैं !

किससे वादे ,जीवन भर के ,
किसके हाथों में हाथ दिया !
किसके संग कसमें खायीं थी  
किसके जीवन में साथ दिया !
आंसू,मनुहार,सिसकियों का,
अपमान हमारे, हाथ हुआ !
अब  सब जग के आंसू पोंछें, पर यार बड़े शर्मिन्दा हैं !

उस घोर अँधेरे जंगल में, 
कैसे मनुहारें सिसकी थीं
किसके सपनें बर्वाद हुए
कैसी दर्दीली हिचकी थीं 
तब किसने माँगा साथ मेरा,
उस समय कदम न उठ पाये !
अब सारी दुनियां जीत चुके, पर यार बड़े शर्मिन्दा हैं !

कितने सपने कितने वादे  
बिन आँखे खोले टूट गए !
कितने गाने कितनी गज़लें 
गाये बिन, हमसे रूठ गए !
मुंह खोल नहीं पाये थे हम, 
सारे जीवन,घुट घुट के जिए !
चलना जब था तब चल न सके, अब यार बड़े शर्मिंदा हैं !

कितना अच्छा होता यदि हम 
मिलते ही नहीं इस बस्ती में !
कितना अच्छा होता यदि हम  
हँसते ही नहीं, उस मस्ती में !
उस राह दिखाने वाले को,
हमने ही अकेला छोड़ दिया !
खुद ही घायल कर अपने को,हम यार बड़े शर्मिन्दा हैं !

कितनी नदियां धीरे धीरे 
कैसे नालों में बदल गयीं !
जलधाराएं मीठे जल की  
कैसे खारों में बदल गयीं !
अपने घर आग लगा हँसते,
मानव जीवन का सुख लेते
कहने को यूँ हम जिन्दा हैं , पर यार बड़े शर्मिंदा हैं !

Wednesday, February 11, 2015

मफलर की आँखें - सतीश सक्सेना

अरविन्द का उदय , इस देश की भोले जनमानस में , ठंडी हवा के संचार का सूचक है ! जिस जनमानस पर अब तक सिर्फ श्वेतवस्त्र धारी राजनैतिक बदबूदार मदारियों का राज था वहां पर एक साधारण व्यक्ति के ईमानदार क़दमों की आहट पर आम जनता का विश्वास होना, एक सुखद सवेरे का आगमन जैसा लगता है !अरविन्द के आश्वासन पर, राजनैतिक लुटेरों और झंडों से बारबार धोखा खाए लोगों का विश्वास जगा है और उन्हें लगा है कि यह व्यक्ति बेईमान नहीं है !

 साधारण अशिक्षित ग्रामीण जनमानस, भारतीय गृहणियां, जो मनोरंजन  तथा ख़बरों के लिए सिर्फ लालची टेलीविजन  मीडिया पर निर्भर हैं तथा अपने कामों के लिए राजनीतिक धूर्तों और मदारियों के ऊपर भरोसा करने को मज़बूर हैं ! देश की ७० प्रतिशत से अधिक जनता शायद ही कभी किसी सरकारी दफ्तर में जाने की हिम्मत कर पायी होगी वे अपने कार्यों के लिए दलालों और इन राजनैतिक छुटभैयों की जान पहचान पर फख्र महसूस करते हैं और यह सोंचते हैं कि हमारे काम भी हो ही जाएंगे ! राशन कार्ड बनाने, बिजली वालों के सामने गिड़गिड़ाते, इन लोगों के
पास पैसे देकर , काम कराने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है !

जिस देश में अपने एमएलए और एमपी के पास जाने का मतलब ही  "काम " का हो जाना होता है , ९० % इन अनपढ़ों के बच्चों की नौकरियां, राजनीतिज्ञों के दलालों को पैसे देकर ही लगती हैं बशर्ते दलाल सही जगह ( साहब के पास ) पैसे पंहुचा दे !  राज्य सरकार की नगर पालिकाओं, सरकारी स्कूलों , लेखपालों , कंडक्टरों , ड्राइवरों, पुलिस में सिपाहियों और हवलदारों की भर्ती , रेलवे भर्ती बोर्ड  आदि की नौकरियों पर खद्दर धारियों की चेयरमैन शिप का कब्ज़ा है ! सरकारी नौकरियों में  हेराफेरी सबको पता है मगर कहीं कोई विद्रोह की आवाज नहीं सुनायीं पड़ती, सरकारी महकमों में बच्चों की नौकरी लगने की उम्मीद अखबारों के नुमाइंदों का मुंह भी बंद रखने में कामयाब है !

४५ वर्ष से ऊपर के लोग अधिकतर इस गुलाम विचारधारा को बढ़ाने के दोषी हैं , इन कमज़ोर और संकीर्ण दिमाग व्यक्तियों  का अपने घर में शक्तिशाली होने का अहसास होने के लिए , किसी नेता का पिट्ठू बनना आसान होता है उसके बाद यह चमचे अक्सर अपनी पीठ पर ताउम्र उस राजनैतिक पार्टी का नाम लिखाये फख्र महसूस करते घूमते रहते हैं ! इनका अपना कोई
व्यक्तित्व नहीं , यह सिर्फ अपने गुरुओं की विचारधारा के गुलाम हैं जो देश में नफरत फैलाने के दोषी हैं ! धर्म और आस्था के नाम पर , दूसरों के प्रति नफरत फैलाकर , भेंड़ बकरियों की भीड़ को अपनी पार्टी की तरफ हांकना और उन्हें सुरक्षा देने का वायदा दिलाने के कार्य, इस देश के पढेलिखे नवयुवक पहचानने लगे हैं और इसे रोकने के लिए कटिवद्ध हैं !
इस देश में सामान्य जन का विश्वास बेहद आहत हुआ है , त्रस्त और अशिक्षित जनता अपनी स्थिति में कुछ बदलाव लाने के लिए हर जगह जाने और सीखने के लिए तैयार रहती है , बाबा कामदेव , बापू विश्वासराम , साईं और साध्वियों  के समागमों के नाम पर लाखों की भीड़ उमड़ पड़ी , आशान्वित आँखों से ताकते यह श्रद्धालु अपने बनाये हर गुरू द्वारा बुरी तरह लुटे और ठगे गए , इनके चढ़ावों से और आस्था स्वरुप हर गुरु ने हज़ारों लाखों करोड़ कमाए और देश की जनता को कालाधन बापस लाने का वायदा और राष्ट्रभक्त बनाने की ओजस्वी प्ररेणा दी  !

    
शुक्र है पढ़े लिखे नवजवानों की नयी पीढ़ी का कि वे लालची नहीं है वे मेहनत कर धन कमाने पर विश्वास रखते हैं, धर्म, कर्म, पाप, पुण्य , पाखण्ड दिखावे से बहुत दूर यह बच्चे एक सुखद संकेत हैं एवं अपने बड़ों की मानसिकता में परिवर्तन लाने को कटिवद्ध हैं !  
लगता है आने वाले समय में और इन लड़के लड़कियों में से बहुत सारे अरविन्द जन्म लेंगे, यह सुखद संकेत ,देश में नया बदलाव लाने में समर्थ होगा ! अब मफलर, दसलखा सूटों को पहचान चुका है इसीलिए बाकी काम अधिक आसान हो जाएगा ! निस्संदेह आने वाला समय,  इस देश की भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के लिए बेहद बुरा काल होगा, उन्हें अपने कर्मों का फल भुगतना ही होगा मगर नवनेताओं को इन गिरगिटों से सावधान रहना होगा !


ये नेता रहे तो , वतन  बेंच देंगे !
ये पुरखों के सारे जतन बेंच देंगे

कुबेरों का कर्जा लिए शीश पर ये 
अगर बस चले तो सदन बेंच देंगे

नए राज भक्तों की इन तालियों
के,नशे में ये भारतरतन बेंच देंगे

मान्यवर बने हैं करोड़ों लुटाकर
उगाही में, सारा वतन बेंच देंगे ! - सतीश सक्सेना 

Thursday, February 5, 2015

हिन्दु मुसलमानों से , अंशदान चाहिए - सतीश सक्सेना

समस्त राजनीति, स्व 
समृद्धि हेतु बिक चुकी 
समस्त बुद्धि भीड़ में 
दिवालिया सी हो चुकी
देश विपत काल में 
प्रवंचकों से मुक्ति हेतु 
हिन्दु मुसलमानों से , 
अंशदान  चाहिए !
शुद्ध, सत्यनिष्ठ, मुक्त  आसमान चाहिए !

चाटुकार भांड यहाँ 
राष्ट्र भक्त बन गए !
देश के दलाल सब 
खैरख्वाह बन गए !
चोर बेईमान सब, 
ध्वजा उठा के चल पड़े !
तालिबानी  देश को , 
कबीर  ज्ञान चाहिए !
अपाहिजों के देश में, कोचवान  चाहिए !

चेतना कहाँ से आये 
जातियों के, देश में 
बुरी तरह से बंट  चुके 
विभाजितों के देश में 
प्यार की जगह, जमीं 
पै नफरतों को पालते !
भूखे पेट वोटरों को 
त्मज्ञान चाहिए  !
सड़ी गली परम्परा में , अग्निदान चाहिए !

अकर्मण्य बस्तियां 
शराब के प्रभाव में !
खनखनातीं थैलियां 
चुनाव के प्रवाह में ! 
बस्तियों के जोश में,
उमंग नयी आ गयी !
शिथिल प्रसुप्त देश को 
नयी अज़ान चाहिए !
मानसिक अपंग देश , बोध ज्ञान चाहिए !

सही समय दुरुस्त पा  
निरक्षरों को लूटते !
विदेशियों से जो बचा 
ये राजभक्त लूटते !
दाढ़ियों को मंत्रमुग्ध , 
मूर्ख तंत्र, सुन रहा !
समग्र मूर्खशक्ति को, 
विचारवान चाहिए !
निपट गुलाम देश को, चैतन्यवान चाहिए !
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