Tuesday, October 24, 2023

दर्द और बीमारियों से मुक्त जीवन -सतीश सक्सेना

गरबा नामक मशहूर गुजराती नाच, माँ दुर्गा के सम्मान में , खेला जाता है , इसमें बड़ी संख्या में जोड़े हाथ में डांडिया लेकर रंगबिरंगे कपड़े पहनकर मैदान में उतरते हैं , यह उत्सव मनोहारी होता है जिसका जोड़े पूरे साल इंतज़ार करते हैं ! मगर इस वर्ष का डांडिया कई परिवारों के लिए मनहूस खबर बन गया , आजतक की खबर के अनुसार अकेले गुजरात में ही नवरात्रि के मौक़े पर सिर्फ़ २४ घंटे में गरबा खेलते समय १० लोगों की मौत की खबर आ चुकी है , इस नवरात्रि के पहले ६ दिनों में इमरजेंसी एंबुलेंस को 521 कॉल्स सिर्फ़ हार्ट से जुड़े मामलों और साँस फूलने की समस्या के लिए आये ! 

यह चौंकाने वाला तथ्य है , ऐसी खबरें विदेशों से कभी नहीं सुनी गयीं कि मस्ती भरे डांस के दौरान मौत हुई हो , यह हमारे देश में ही संभव है जहां लोग बिना शरीर को जाने एक दिन में शरीर तोड़ मेहनत करने का प्रयत्न करते हैं , और अपनी जान गँवा देते हैं !

मैं ऐसे तमाम मित्रों को जानता हूँ जो सालों साल किसी काम को हाथ नहीं लगाते , दिमाग़ का उपयोग हर विषय पर ज्ञान बाँटने को करते हैं , वे किसी दिन शादी विवाह या अन्य उत्सव में भीड़ के सम्मुख लंबे समय तक झूम झूम कर नाचते या जिम जॉइन करने पर हाथों को मसल्स बनाने के लिए स्ट्रॉंग एक्सरसाइज करते पाये जाते हैं और ख़ुद के शरीर को फिट बनाने का गुमान लिए फिरते हैं ! उनके ब्लॉक माइंड को यह समझ ही नहीं कि उनके सुस्त और ढीली मांसपेशियों को अचानक मिली यह हैवी स्ट्रेचिंग या हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज कितना नुक़सान पहुँचायेगी ! गरबा में अधिकतर असामयिक मौत उन्हीं की हुई होगी जिन्होंने अपने शरीर की ७० प्रतिशत मांसपेशियों का कभी उपयोग ही नहीं किया तथा जिनके विभिन्न जोड़ों और गतिशील पुर्ज़ों में साल्ट जमा हो चुके हैं ! ऐसे लोग जिम या एक्सरसाइज का मौक़ा मिलते ही ख़ुद को बॉण्ड समझकर कूद पड़ते हैं और ख़ुद को एक भयानक ख़तरे में डाल देते हैं और हाल में यही गुमान लिए कितने वीआईपी अपनी जान खो चुके हैं !

याद रखिए जब भी आप फिजिकल स्ट्रेस या हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज ( रनिंग , गरबा जैसे डांस , क्रिकेट , हॉकी, बैडमिंटन  आदि ) खेलते हैं तब आपका पूरा शरीर और उसके नाज़ुक अवयवों की दशा में परिवर्तन होना शुरू होता है और उस वक्त वे विभिन्न तरीक़ों से बर्ताव करते हैं , आपकी साँसें भारी , तेज पल्स महसूस करते हैं, उस समय ह्रदय और फेफड़ों को मसल्स और मस्तिष्क को ऑक्सीजन मिला खून पहुँचाने के लिए बहुत तेज़ी से काम करना होता है , उस समय आप अपने ह्रदय का धौंकना महसूस कर सकते हैं  ! इस वक्त आप ज़मीन पर प्रहार करते हर कदम पर, अपने शरीर के वजन से तीन गुना इंपैक्ट डालते हैं और बॉडी में एंड्रोफ़िन्स नामक हार्मोन्स का उत्सर्जन करते हैं जो इस स्ट्रेस फ़ुल कंडीशन में उत्पन्न दर्द का एहसास शरीर को नहीं होने देता बल्कि एक आनंद अनुभूति देता है जिसमें वह इंसान, और तन्मयता से ख़ुद को उसी कंडीशन में बनाये रखता है, फलस्वरूप अक्सर यह आनंद दायक पल उसे आकस्मिक मौत तक ले जाते हैं !  

जब हम बैठे होते हैं तब हार्ट लगभग ५ क्वार्ट्स पर मिनट पर खून पंप करता है और दौड़ते या आउटडोर स्पोर्ट्स के समय यही २५-३० क्वार्ट्स पर पहुँच जाता है , यह स्थिति थोड़ी बहुत देर तक चल सकती है मगर इसका मतलब यह नहीं कि इसे घंटों तक इसी अवस्था में रखा जाए , अगर लगातार यह स्थिति लंबे समय तक रखी गई तब यह ह्रदय के नाज़ुक मसल्स फ़ाइबर को, ज़ख़्मी कर उसे ख़तरनाक स्थिति में पहुँचाने के लिए पर्याप्त हैं , लगभग ३० प्रतिशत मैराथन ( ४२ km ) धावक दौड़ की समाप्ति होते होते अपना ट्रॉपोनिन लेवल आवश्यकता से अधिक बढ़ा लेते हैं जो कि उनके हार्ट डैमेज होने का परिचायक है ! 

मेहनत करते शरीर को, बढ़े हुए आनंददायक हार्मोन एंड्रोफ़िन के कारण , दर्द रूपी, आसन्न मृत्यु का एलार्म महसूस ही नहीं होता और उसके ज़मीन पर गिरते ही लोग समझते हैं कि कुछ गड़बड़ हुआ है ! हाल के वर्षों में जबसे लोगों में फ़िटनेस चेतना जगी है , ऐसी असामयिक मौतों की जैसे झड़ी लग गई है , अफ़सोस अख़बारों में ऐसी खबरें तभी छपती हैं जब कोई महत्वपूर्ण घटना , समय या महत्वपूर्ण मशहूर लोगों की जान गई हो अन्यथा जाने कितने नासमझ जोशीले धावक अपनी क़ीमती जान हर वर्ष गँवा देते हैं ! 

एक रिसर्च के अनुसार बेहद मेहनत करने का नतीजा ह्रदय में ख़तरनाक परिवर्तन लाना है , ३०-४० किमी प्रति सप्ताह लगातार लंबे समय तक दौड़ने वालों को, ह्रदय आघात का उतना ही ख़तरा रहता है जितना एक सोफ़े पर बढ़कर टीवी देखने वाले आलसी मोटे व्यक्ति को सो जोश में आकस्मिक अधिक मेहनत से ख़ुद को बचा कर धीरे धीरे शरीर को मेहनत करने का आदी बनाइये , यह ही लाभदायक होगा एवं कुछ वर्षों की लगन के बाद शरीर से सारी बीमारियों ग़ायब होते नज़र आयेंगी चाहें उनका नाम कुछ भी क्यों न हो ! इसे ही लागू करते हुए  ७० वर्ष की उम्र के बाद बिना एक भी गोली खाये अपनी बुढ़ापे की तमाम बीमारियों से निजात पाने में सफलता प्राप्त हुई है आप यक़ीन करें या न करें मगर ,मैं शारीरिक तौर पर ४० वर्ष के जवान जैसे सब हरकतें आसानी से करता हूँ , इनमें पेंड पर चढ़ना , हाथ से घर की पेंटिंग करना , भारी वजन उठाकर चलना , तैरना आदि सब शामिल है ! 

सो एक्सरसाइज करें यह शरीर के लिए लाभदायक है मगर अपने शरीर की सीमा को भी याद रखें , मैं ६० वर्ष की उम्र से दौड़ना शुरू कर पिछले दस वर्षों में १०००० km दौड़ चुका हूँ , और इस मध्य ६० हाफ मैराथन ( २१ Km ) दौड़ते हुए इस स्थिति में हूँ कि जब चाहूँ मैराथन ( ४२ km) दौड़ सकता हूँ , मगर पिछले दस वर्षों में आज तक एक बार भी यह प्रयास नहीं किया , कारण मुझे लगातार ढाई घंटे ( २१ km ) दौड़ने के लिए ही समय नहीं निकाल पाता , और विभिन्न रेस में इसलिए नहीं दौड़ता कि रेस स्ट्रेस लेकर दौड़ना अधिक उम्र में अपने ह्रदय को कमजोर करना होगा और इस अब तक इस मूर्खता से ख़ुद को बचाये रखा है !

सो मेहरबानी करके एक्सरसाइज और हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज क्या है इस पर मनन करने का समय निकालें , तत्पश्चात् ही एक्सरसाइज करें और शरीर को हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज का अभ्यस्त बनाने से पहले बॉण्ड बनने की चेष्टा न करें अन्यथा जिम आपकी बिना दर्द महसूस कराये ,जान लेने में समर्थ है , इसे याद रखें !         


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