आखिरकार किसी डॉ ने इस धंधे से जुड़े काले सत्य को उजागर करने की कोशिश करते हुए पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ी है ,डॉ अरुण गाडरे एवं डॉ अभय शुक्ला ने अपनी पुस्तक "Dissenting Diagnosis " में जो सत्य उजागर किये हैं वे वाकई भयावह हैं ! लोगों की मेहनत की कमाई को मेडिकल व्यापारियों द्वारा कैसे लूटा जा रहा है इसका अंदाज़ा तो था पर इस कदर लूट है, यह पता नहीं था !
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4Y41Ato862THc-jKVUc0t-7J9keEGhLd_2SeudrLntJ26e-_VTIAjijugd56-Uw5FptKxG99rIL6Uc2moEHERN6u7SAvylIIxSykmmGCLMi1EbBeji9ASM4NC5wgUXAW7BPo5wcbpwvgd/s200/2671.jpg)
डॉक्टर भगवान का स्वरुप होता है क्योंकि वह मुसीबत में पड़े व्यक्ति को भयानक बीमारी से बाहर निकालने में समर्थ होता है , इस तरह रोगी के परिवार के लिए वह देवतुल्य ही होता है मगर आज समीकरण उलट चुके हैं , डॉक्टर बनने के लिए लाखों रुपया खर्च होता है , उसके बाद क्लिनिक पर किये गए करोड़ों रूपये जल्दी निकालने के लिए, धंधा करना लगभग अनिवार्य हो जाता है अफ़सोस यह है कि यह धन निकालने का धंधा , मानव एवं रोगी शरीर के साथ किया जाता है !
अधिकतर डॉक्टर सामने बैठे रोगी को सबसे पहले टटोलते हैं कि वह मालदार कितना है , और इस समय हर रोगी अपने आपको रोग मुक्त होना चाहता है अतः उसे धन खर्च करने में ज्यादा समस्या नहीं होती और वह डॉक्टर की हाँ में हाँ मिलता रहता है ,
पहली ही मीटिंग में उसके प्रेस्क्रिप्शन में 5 से 10 टेस्ट लिख दिए जाते हैं और साथ ही लैब का नाम भी , जहाँ से टेस्ट करवाना है ! बीमारी के डाइग्नोसिस के लिए आवश्यक टेस्ट में, कुछ ऐसे टेस्ट भी जुड़े रहते हैं जिनके बारे में उक्त लैब से पहले ही, डॉक्टर कोरिक्वेस्ट आई होती है ! जब आप लैब पंहुचते हैं तब यह आवश्यक बिलकुल नहीं कि सारे टेस्ट किये ही जाएंगे , जिन टेस्ट को करने के लिए लैब का अधिक कीमती केमिकल और समय खर्च होता है उनकी रिपोर्ट अक्सर आपके डॉक्टर की राय से बिना किये हुए ही दे दी जाती है एवं आपके डॉक्टर एवं लैब की आपसी सुविधा से यह टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव या पॉजिटिव अथवा नार्मल कर दी जाती है !लीवर पॅकेज , किडनी पैकेज , वेलनेस पैकेज और अन्य रूटीन पैकेज टेस्ट के सैंपल अक्सर बिना वास्तविक टेस्ट किये नाली में बहा दिए जाते हैं एवं उनकी रिपोर्ट कागज पर, डॉक्टर की राय से, जैसा वे चाहते हैं , बनाकर दे दी जाती है !
एक निश्चित अंतराल पर इन फ़र्ज़ी तथा वास्तविक टेस्ट पर आये खर्चे को काट कर, प्रॉफिट में से डॉक्टर एवं लैब के साथ आधा आधा बाँट लिया जाता है ! अप्रत्यक्ष रूप से रोगी की जेब से निकला यह पैसा , उस रोग के लिए दी गयी डॉक्टर की फीस से कई गुना अधिक होता है , अगर आपने डॉ को फीस ५०० रूपये और लगभग 8000 रुपया टेस्ट लैब को दिए हैं , तब डॉक्टर के पास लगभग 4800 रुपया पंहुच चुका होता है , जबकि आपके हिसाब से आपने फीस केवल 500 रुपया ही दी है ! लगभग हर लेबोरेटरी को सामान्य टेस्ट पर ५० प्रतिशत कमीशन देना है वहीं एम आर आई आदि पर 33 % देना पड़ता है !
आपरेशन थिएटर का खर्चा निकालने को ही कम से कम एक आपरेशन रोज करना ही होगा अतः अक्सर इसके लिए आपरेशन केस तलाश किए जाते हैं चाहें फ़र्ज़ी आपरेशन ( सिर्फ स्किन स्टिचिंग ) किए जाएं या अनावश्यक मगर ओ टी चलता रहना चाहिए अन्यथा सर्जन एवं एनेस्थेटिस्ट का व्यस्त कैसे रखा जाए ! अाज शहरी भारत में लगभग हर तीसरा बच्चा, आपरेशन से ही होना इसका बेहतरीन उदाहरण है !
भगवान आपकी रक्षा करें .....
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डॉक्टर भगवान का स्वरुप होता है क्योंकि वह मुसीबत में पड़े व्यक्ति को भयानक बीमारी से बाहर निकालने में समर्थ होता है , इस तरह रोगी के परिवार के लिए वह देवतुल्य ही होता है मगर आज समीकरण उलट चुके हैं , डॉक्टर बनने के लिए लाखों रुपया खर्च होता है , उसके बाद क्लिनिक पर किये गए करोड़ों रूपये जल्दी निकालने के लिए, धंधा करना लगभग अनिवार्य हो जाता है अफ़सोस यह है कि यह धन निकालने का धंधा , मानव एवं रोगी शरीर के साथ किया जाता है !
अधिकतर डॉक्टर सामने बैठे रोगी को सबसे पहले टटोलते हैं कि वह मालदार कितना है , और इस समय हर रोगी अपने आपको रोग मुक्त होना चाहता है अतः उसे धन खर्च करने में ज्यादा समस्या नहीं होती और वह डॉक्टर की हाँ में हाँ मिलता रहता है ,
पहली ही मीटिंग में उसके प्रेस्क्रिप्शन में 5 से 10 टेस्ट लिख दिए जाते हैं और साथ ही लैब का नाम भी , जहाँ से टेस्ट करवाना है ! बीमारी के डाइग्नोसिस के लिए आवश्यक टेस्ट में, कुछ ऐसे टेस्ट भी जुड़े रहते हैं जिनके बारे में उक्त लैब से पहले ही, डॉक्टर कोरिक्वेस्ट आई होती है ! जब आप लैब पंहुचते हैं तब यह आवश्यक बिलकुल नहीं कि सारे टेस्ट किये ही जाएंगे , जिन टेस्ट को करने के लिए लैब का अधिक कीमती केमिकल और समय खर्च होता है उनकी रिपोर्ट अक्सर आपके डॉक्टर की राय से बिना किये हुए ही दे दी जाती है एवं आपके डॉक्टर एवं लैब की आपसी सुविधा से यह टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव या पॉजिटिव अथवा नार्मल कर दी जाती है !लीवर पॅकेज , किडनी पैकेज , वेलनेस पैकेज और अन्य रूटीन पैकेज टेस्ट के सैंपल अक्सर बिना वास्तविक टेस्ट किये नाली में बहा दिए जाते हैं एवं उनकी रिपोर्ट कागज पर, डॉक्टर की राय से, जैसा वे चाहते हैं , बनाकर दे दी जाती है !
एक निश्चित अंतराल पर इन फ़र्ज़ी तथा वास्तविक टेस्ट पर आये खर्चे को काट कर, प्रॉफिट में से डॉक्टर एवं लैब के साथ आधा आधा बाँट लिया जाता है ! अप्रत्यक्ष रूप से रोगी की जेब से निकला यह पैसा , उस रोग के लिए दी गयी डॉक्टर की फीस से कई गुना अधिक होता है , अगर आपने डॉ को फीस ५०० रूपये और लगभग 8000 रुपया टेस्ट लैब को दिए हैं , तब डॉक्टर के पास लगभग 4800 रुपया पंहुच चुका होता है , जबकि आपके हिसाब से आपने फीस केवल 500 रुपया ही दी है ! लगभग हर लेबोरेटरी को सामान्य टेस्ट पर ५० प्रतिशत कमीशन देना है वहीं एम आर आई आदि पर 33 % देना पड़ता है !
आपरेशन थिएटर का खर्चा निकालने को ही कम से कम एक आपरेशन रोज करना ही होगा अतः अक्सर इसके लिए आपरेशन केस तलाश किए जाते हैं चाहें फ़र्ज़ी आपरेशन ( सिर्फ स्किन स्टिचिंग ) किए जाएं या अनावश्यक मगर ओ टी चलता रहना चाहिए अन्यथा सर्जन एवं एनेस्थेटिस्ट का व्यस्त कैसे रखा जाए ! अाज शहरी भारत में लगभग हर तीसरा बच्चा, आपरेशन से ही होना इसका बेहतरीन उदाहरण है !
भगवान आपकी रक्षा करें .....