आज रश्मिप्रभा जी की एक रचना पढकर अनायास अभिमन्यु की पीड़ा याद आ गयी ! वैज्ञानिक तथ्य है कि बच्चे गर्भ से ही शिक्षा ग्रहण करने लगते हैं ! महाभारत काल की यह घटना बहुत मार्मिक है , काश उस दिन सुभद्रा को नींद न आयी होती तो शायद कथाक्रम कुछ और ही लिखा जाता !
अभिमन्यु ,माँ के गर्भ में, पिता को सुनते हुए,चक्रव्यूह भेदना समझ चुके थे मगर इससे पहले कि अर्जुन पुत्र को बाहर निकलने का रास्ता बताते, माँ सुभद्रा को नींद आ चुकी थी !पिता के अधूरे रहते पाठ के कारण, अभिमन्यु चक्रव्यूह से कभी बाहर न निकल सके !
पांडवों को, कृष्णा की वह नींद बहुत भारी पड़ी थी ! एक पुत्र का व्यथा चित्रण इस रचना द्वारा महसूस करें !
एक भयानक पूर्वाभास जैसा रहस्यमय संयोग कि यह कविता लिखने के बाद, सबसे पहले 8 माह की गर्भवती अनु को उसकी असामयिक मृत्यु से एक सप्ताह पहले सुनाई गयी ... :(
मैंने यह रचना क्यों लिखी मुझे खुद नहीं पता , काश न लिखता !!
पिता ने कहा था !
कि जगती रहें !
आप भी पुत्र की ,
बात सुनती रहें !
काश कुछ देर भी ,
ध्यान देतीं अगर !
तब न खोती मुझे नींद में, सुनते सुनते !
मैंने उनको बहुत ,
ध्यान देकर सुना !
पर तुम्हे उस समय
पाया कुछ अनमना
काश उस दिन पिता
साथ, जगतीं अगर,
पर तुम्ही सो गयीं, दास्ताँ सुनते सुनते !
मैं तो मद्धम ध्वनि
में भी सुनता रहा !
नींद में डूबते भी
मैं चलता रहा !
काश कुछ दूर तक,
ऊँगली छुटती नहीं !
माँ कहाँ खो गयीं ?दास्ताँ सुनते सुनते !
पिता चाहते थे
कि यशवान हो !
और तुम चाहती थीं
कि बलवान हो !
काश कुछ देर ऑंखें
झपकती नहीं ,
तेरा दीपक बुझा नींद में, सुनते सुनते !
एक दुख तो रहेगा
मुझे भी यहाँ ,
मैं पिता की तरह
लड़ न पाया वहाँ,
उनका सम्मान, उस
दिन बचा ना सका !
माँ , कहाँ ध्यान था, दास्ताँ सुनते सुनते !
अभिमन्यु ,माँ के गर्भ में, पिता को सुनते हुए,चक्रव्यूह भेदना समझ चुके थे मगर इससे पहले कि अर्जुन पुत्र को बाहर निकलने का रास्ता बताते, माँ सुभद्रा को नींद आ चुकी थी !पिता के अधूरे रहते पाठ के कारण, अभिमन्यु चक्रव्यूह से कभी बाहर न निकल सके !
पांडवों को, कृष्णा की वह नींद बहुत भारी पड़ी थी ! एक पुत्र का व्यथा चित्रण इस रचना द्वारा महसूस करें !
एक भयानक पूर्वाभास जैसा रहस्यमय संयोग कि यह कविता लिखने के बाद, सबसे पहले 8 माह की गर्भवती अनु को उसकी असामयिक मृत्यु से एक सप्ताह पहले सुनाई गयी ... :(
मैंने यह रचना क्यों लिखी मुझे खुद नहीं पता , काश न लिखता !!
पिता ने कहा था !
कि जगती रहें !
आप भी पुत्र की ,
बात सुनती रहें !
काश कुछ देर भी ,
ध्यान देतीं अगर !
तब न खोती मुझे नींद में, सुनते सुनते !

ध्यान देकर सुना !
पर तुम्हे उस समय
पाया कुछ अनमना
काश उस दिन पिता
साथ, जगतीं अगर,
पर तुम्ही सो गयीं, दास्ताँ सुनते सुनते !
मैं तो मद्धम ध्वनि
में भी सुनता रहा !
नींद में डूबते भी
मैं चलता रहा !
काश कुछ दूर तक,
ऊँगली छुटती नहीं !
माँ कहाँ खो गयीं ?दास्ताँ सुनते सुनते !
पिता चाहते थे
कि यशवान हो !
और तुम चाहती थीं
कि बलवान हो !
काश कुछ देर ऑंखें
झपकती नहीं ,
तेरा दीपक बुझा नींद में, सुनते सुनते !
एक दुख तो रहेगा
मुझे भी यहाँ ,
मैं पिता की तरह
लड़ न पाया वहाँ,
उनका सम्मान, उस
दिन बचा ना सका !
माँ , कहाँ ध्यान था, दास्ताँ सुनते सुनते !
बेहतरीन अख्यांश काव्य रश्मियों के साथ / मां सोती नहीं तो अभिमन्यु की जगह शायद अर्जुन की प्रति छाया का संवरण होता , और अर्जुन की तरह नेत्रित्व ,वांछित ... ? .सरल स्पष्ट सुन्दर काव्य बधाईयाँ जी /
ReplyDeleteआभार भाई जी...
Deleteबहुत सुन्दर.......
ReplyDeleteमाँ चाह कर तो नहीं सोयी होगी.....इसमें भी ईश्वर की कोई इच्छा रही होगी.
सादर
अनु
आप सच कह रही हैं ...
Deleteकोई माँ सोंच भी नहीं सकती , यह सिर्फ एक कथा है और इसे कथा के रूप में ही लेना चाहिए !
मैं सोया नहीं पर तुम सो गई
ReplyDeleteपाठ पूरा नहीं मैं सुन सका
चक्रव्यूह के अन्दर मैं जा फँसा
माँ इतिहास तुम पर क्यूँकर हँसा
वहाँ पर मरा, यह बेहतर हुआ
पिता की तरह
दुविधा में न फँसा
अच्छा ही हुआ तुम सो गई दास्ताँ सुनते सुनते
रश्मि जी ने जो लिखा उसी पर आधारित....
सादर
अब आज सोचता हूँ मैं अभिमन्यु .... सारी कला जानकर भी अपने गंभीर दादा भीष्म को देख मैं क्या करता !
ReplyDeleteसच कहा आपने ...
Deleteजब भीष्म ने ही वाण चढ़ा लिया तो बचा कहाँ कुछ लिखने को...
सचमुच बहुत मार्मिक चित्रण है...
ReplyDeleteबढिया प्रस्तुति .तादात्म्य कराती है श्रोता और पढने वाले का ...
ReplyDeleteवाह: सतीश जी अभिमन्यु का दर्द बहुत सरलता से उकेरा...बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteवह भाई जी आपने तो कमाल कर दिया ...अभिमन्यु कि मनोव्यथा को सूक्ष्मता से उकेरा है आपने ...
ReplyDeleteअआप्का स्वागत है मदन भाई !
Deleteमार्मिक!
ReplyDeleteएक नींद महाभारत की दिशा बदल गयी..
ReplyDeleteअभिमन्यु की व्यथा पर कम ही कहा गया है.बचपन से ही उसके नायकत्व की तरफ मेरा आकर्षण रहा है.इतनी विषमताओं को झेलते हुए उसने जो पराक्रम दिखाया,वह दुर्लभ है.
ReplyDelete...आपकी अभिव्यक्ति प्रभावित करने वाली है !
कभी कभी सगे सम्बन्धों में ऐसे स्नेहिल उलाहने कहने सुनने को मिल जाते हैं ! काश!
ReplyDeletebahut hi gehre ,marmik bhav......
ReplyDeleteयह वह कसक है जिसे पौराणिक काल से आज तक की पीढ़ी महसूस कर रही है।
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल रविवार को 08 -07-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज हलचल में .... आपातकालीन हलचल .
bahut hi marmik prasang....bahut acchi prastuti...
ReplyDeleteप्रसंशनीय प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,,,
ReplyDeleteबेहद वेदना भरी व्यथा ...काश की अभिमन्यु वो सार सुन पाता पर विधि की विडम्बना ....
ReplyDeleteअभिमन्यु के मन की पीड़ा को सटीक शब्दों में ढाला है ... सब कुछ तो नियति के हाथ में होता है , इसी लिए माँ भी सो गईं दास्तान सुनते सुनते
ReplyDeleteपुत्र की व्यथा का बहुत ही मार्मिक चित्रण
ReplyDeleteएक दुख तो रहेगा
ReplyDeleteमुझे भी यहाँ ,
मैं पिता की तरह
लड़ न पाया वहाँ,
उनका सम्मान, उस दिन बचा ना सका !
माँ , कहाँ ध्यान था, दास्ताँ सुनते सुनते !
beautiful lines with deep feelings and emotions
एक दुख तो रहेगा
ReplyDeleteमुझे भी यहाँ ,
मैं पिता की तरह
लड़ न पाया वहाँ,
उनका सम्मान, उस दिन बचा ना सका !
माँ , कहाँ ध्यान था, दास्ताँ सुनते सुनते !
sundar panktiyan....
अभिमन्यु का चरित्र बहुत गहरे तक उतर जाता है
ReplyDeleteबहुत खूब भाई साहब , पढ़ते पढ़ते अचानक कोई लेख जब अपने दिल को छू जाता है , तब आप जैसा कवि हृदय बिना कुछ लिखे कैसे रह सकता है. हालांकि कहानी बचपन से सुनते आये है , मगर लेखनी से आज निकली है. . . . . यही तो है की अंदर छुपा दर्द बरसो बाद भी लेखनी मे उतर जाता है. बहुत सुंदर जी .
ReplyDeleteकितना मुश्किल होता है आदर्श मात पिता बनना !
ReplyDeleteइसलिए मैं कहती हूँ कि गृहस्थ जीवन एक तपस्या है और इस तपस्या के फलस्वरूप हमें श्रेष्ठ और समाजोपयोगी संतान का निर्माण करना है। श्रेष्ठ विषय पर गीत लिखने के लिए बधाई।
ReplyDeleteअभिमन्यु की कश्मकश और माता पिता के कर्त्तव्य को समझने की कोशिश.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
सुन्दर रचना ... इस पर मेरा विचार यह है कि गार्हस्थ्य जीवन में एक दुसरे को प्राधान्य देना बहुत ज़रूरी है ... शायद इस कथा का यही तात्पर्य है ...
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने, शायद यही तात्पर्य रहा होगा इस कथा का !
Deleteरश्मि जी की कविता तरह आपकी कविता भी पौराणिक कथा को कुछ नए आयाम दे गई. शुभकामनाएँ सतीश जी.
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी ...
Deleteएक नींद ने अभिमन्यु की दुनिया ही पलट दी..
ReplyDeleteकाश माँ न सोयी होती...
अभिमन्यु का दर्द बता दिया..
मर्मस्पर्शी रचना....
अभिमन्यु की कशमकश को गहरे भाव दिए हैं..माँ के सो जाने के पीछे भी नियति तो रही होगी.
ReplyDeleteसही कह रहीं है आप , नियति लिख चुकी थी !
Deleteबेहतरीन भाव संयोजन मनोज जी कि बात से सहमत हूँ शुभकामनायें आपको...
ReplyDeleteबहुत गहनता से कही है अभिमन्यु की व्यथा
ReplyDeleteकशमकश में रची गई खूबसूरत रचना ...बहुत खूब
ReplyDelete"बढिया से भी बढिया चर्चा ,प्रस्तुति .
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारें -
शुक्रवार, 6 जुलाई 2012
वो जगहें जहां पैथोजंस (रोग पैदा करने वाले ज़रासिमों ,जीवाणु ,विषाणु ,का डेरा है )
बहुत सुंदर ... कविता..
ReplyDeleteसावन सोमवार पर हार्दिक शुभकामनाएं ..
ReplyDeleteशुक्रिया महफूज़...
Deleteइस गीत ने माँ के उत्तरदायित्व को और भी बढ़ा दिया है.. आज जब समाज में संस्कार क्षीण हो रहे हैं, माँ की भूमिका और भी बढ़ गई है....बढ़िया गीत.
ReplyDeleteसुंदर...
ReplyDeleteमर्म को छूती कविता हेतु बधाई !
ReplyDeletebahut hi marmik prastuti.........badhai
ReplyDeletebahut hi marmik ..........badhai
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी...सदैव की तरह एक उत्कृष्ट प्रस्तुति...
ReplyDeletei have always seen / heard subhadra being named responsible for the whole tragedy, but, as arjuna was the 'guru' (i am not talking about him being the father, just the guru) - wasn't it HIS duty to ensure that
ReplyDelete1. his disciple (the unborn child) should be able to hear the whole lesson
2. hence should he have initiated the class at a time when the disciple was awake (in this case, the mother who was a 'nimitt' so to say for the student?
3. should he have started teaching at a normally sleepy time to a pregnant lady (as we know, they do need their sleep
4. krishna wasn't just a maternal uncle to abhimanyu, he was also abhimanyu's guru - so - as he knew from partha and subhadra that the lesson was unfinished - shouldn't HE have completed the missing part of the lesson ?
ReplyDeleteवाह इ.शिल्पा..
आनंद आ गया आपकी अकाट्य टिप्पणी पढकर ! आभार आपका
आप विदुषी हैं और भली भांति जानती हैं कि पुराण इस प्रकार कि विसंगतियों से भरे पड़े हैं, भले ही कथाये हों,मगर हमारी मान्य कथाओं में हजारों सवाल हमें उद्वेलित करते रहे हैं, भले कथा चाहे रामायण की हो अथवा महाभारत की !
कभी हम निमित्त मान कर चुप हो जाते हैं कभी प्रभु की मानव लीला समझ अपने आपको समझाते रहे हैं !
जहाँ तक पौराणिक कथाओं का सवाल है , सदियों चलकर इस काल तक आते आते, न जाने कितने हाथों द्वारा पुनर्लिखित होकर, इनका रूप कितना बदला होगा ? कौन जाने ?
उपरोक्त कविता और आपका विश्लेषण दोनों ही दो अलग अलग पक्ष हैं और दोनों ही अपनी जगह पर संतुलित और ठीक लगते हैं !
जहाँ तक मेरे द्रष्टिकोण का सवाल है मैं तो आपसे अधिक सहमत हूँ :)
शिल्प जी के प्रश्नों का जवाब जरूर इन पुरानों में छुपा होगा और वो खुद ही इनका अध्यन कर के जवाब भी ढूंढेंगी .... मुझे पूरा विश्वास है ...
Deleteबहुत मार्मिक ... भावपूर्ण रचना है ... सतीश जी ... मर्म कों छूती है ...
Deleteपर तुम्ही सो गयीं,दास्ताँ सुनते सुनते !
Deleteसुन्दर और मनोहर दर्पण विचारों का आपने परोसा है .शुक्रिया .
माँ से प्रश्न करना उचित तो नहीं पर अभिमन्यु का यह प्रश्न बाल-सुलभ सा ही रहा होगा | "उत्कृष्ट रचना " |
ReplyDeleteकविता में रोती हुई माँ के प्रति पुत्र के भाव महसूस करें ..
Deleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteभावप्रवण रचना।
ReplyDeleteहर मां के लिए प्रेरक।
abhimanyu ki pida ko uske bhavon ko bahut hi sunder shbdon me likha hai aapne
ReplyDeletebadhai
rachana
Shaandar....
ReplyDelete............
ये है- प्रसन्न यंत्र!
बीमार कर देते हैं खूबसूरत चेहरे...
मार्मिक रचना अभिव्यक्ति....आभार
ReplyDeleteभावों का सुंदर संयोजन .....
ReplyDeleteअद्भुत .....
ReplyDeleteहमेशा की तरह ....!!
सुंदर भावों से सजी आपकी प्रस्तुति काफी अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट अतीत से वर्तमान तक का सफर पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना ...माँ और पिता से ही प्रश्न पूछता है उनके लिए भाव प्रधान और बाल सुलभ
ReplyDeleteबना रहता है ये मन सदा....अतीत की यादों से वर्तमान तक होने और ना होने पर भी सदा सानिध्य का अहसास......माँ और पिता प्रेरक....शुभ कामनाएं
सादर !!!
बहुत सुन्दर भावप्रवण रचना दिल को छू गई
ReplyDeleteएक दुख तो रहेगा
ReplyDeleteमुझे भी यहाँ ,
मैं पिता की तरह
लड़ न पाया वहाँ,
उनका सम्मान, उस दिन बचा ना सका !
माँ , कहाँ ध्यान था, दास्ताँ सुनते सुनते !
बहुत सुन्दर चित्रण ..और आखिरकार ये बड़ा प्रश्न पूछ ही लिए अभिमन्यु जी .....सुन्दर प्रस्तुति //भ्रमर ५
Kya bat hai Sir Ji !
ReplyDeleteaap to kavita bhi acchi likhte hai ...
aaj apki kavita padhi acchi lagi..
Pls Visit My New Post..."Abla Kaoun"
http://yayavar420.blogspot.in
होनी को कोन टाल सका है , सर जी
ReplyDeletesunder rachnaa..
ReplyDeletesateesh bhai ji
ReplyDeletebahut hi bhauk kar gai aapki yah prernatmak v bhav-pravan prastuti.agar aisa na hota to maha bharat ki katha kuchh aur hi roop leti -----
sadarnaman
poonam
अभिमन्यू की हताशा और ये सवाल वाह पर हेनी को कौन टाल सका है कोई ना कोई तो निमित्ता होगा ही ।
ReplyDeleteये बात भी काबिले गौर है की बच्चा इतना मेधावी था की आधी बात तो गर्भ में ही समझ गया मगर बाकी की आधी बात उसने पैदा होने के २०-२५ सालों तक सीखने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई!
ReplyDeleteशायाद इसलिए की यही नियति हो...
अपनी लिखी हुई रचना हमें कब पढ़ा रहे है साहब ? :)
जारी रखिये.. :)
sundar aur sarthak bhav, badhai.
ReplyDeleteSatish,very well written.. heart felt thanks for writing such wonderful lines..
ReplyDeleteदिल को छू लेनेवाली रचना----बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअंतर्मन को झकझोरती - मार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteओह कितना कुछ लिखा था अभी मैंने ...अपना दिल खोल क्र रख दिया .ज्यों कुछ पल के लिए .मैं सुभद्रा भी थी..अर्जुन भी....अभी अभिमन्यु भी. पर अनायास ही जाने क्या हुआ .कमेन्ट उड़ गया. कोई बात नही फिर लिखुंगी. बहुत कुछ लिखने को बाध्य कर दिया था आपकी इस कविता ने
ReplyDeleteहम कुछ बातें नहीं जानते ऐसा क्यों हो रहा है, इसका एहसास बाद में जब होता है तो हमें सोंचने पर मजबूर कर देती है और जो आंसू उस याद में छलकते है वो आंसू के सिवा कुछ भी और नहीं जानते कि वो इतना महत्वपूर्ण होनी क्यों बना था!
ReplyDelete