कहीं बंध जाएँ खूंटे से आवारा दिल नहीं करता !
भरोसा करके सो जाए बंजारा,दिल नहीं करता !
दया पाकर कोई भिक्षा,फकीरों को नहीं भाती
तुम्हारे द्वार जाने को, दुबारा दिल नहीं करता !
भरोसा करके सो जाए बंजारा,दिल नहीं करता !
दया पाकर कोई भिक्षा,फकीरों को नहीं भाती
तुम्हारे द्वार जाने को, दुबारा दिल नहीं करता !
मेरे हिन्दोस्तां की शान खो जायेगी , नफरत में
बड़ी पहचान छोटी हो,गवारा दिल नहीं करता !
जमाने भर के भोजन को, मेरे पुरखों ने खोला है,
ये लंगर बंद करने को, हमारा दिल नहीं करता !
जिन्होंने साथ छोड़ा था मुसीबत में , पहाड़ों पर
उन्हीं बैसाखियों का लें सहारा दिल नहीं करता !
बड़ी पहचान छोटी हो,गवारा दिल नहीं करता !
जमाने भर के भोजन को, मेरे पुरखों ने खोला है,
ये लंगर बंद करने को, हमारा दिल नहीं करता !
जिन्होंने साथ छोड़ा था मुसीबत में , पहाड़ों पर
उन्हीं बैसाखियों का लें सहारा दिल नहीं करता !
कहीं रुक जाएँ सुस्ताने आवारा दिल नहीं करता !
ReplyDeleteयहीं पर तान दें चादर, बंजारा दिल नहीं करता !
यह शेर सबसे अच्छा लगा !
वाह बहुत बढिया.
ReplyDeleteवाह बहुत बढिया.
ReplyDeleteकहीं रुक जाएँ सुस्ताने आवारा दिल नहीं करता !
ReplyDeleteयहीं पर तान दें चादर, बंजारा दिल नहीं करता !
बहुत खूब ! सब समेट दिया आवारा बंजारे दिल में ही ।
मेरे हिन्दोस्तां की शान खो जायेगी , नफरत में
ReplyDeleteबड़ी पहचान छोटी हो,गवारा दिल नहीं करता !
वाह!
उन्ही बैसाखियों का लें सहारा दिल नही करता .. वाह ..बहुत ही सुन्दर ..
ReplyDeleteये दिल भी कितना पागल है जो सच कह देता है
ReplyDeleteखूबसूरत भाव
दया पाकर कोई भिक्षा,फकीरों को नहीं भाती
ReplyDeleteतुम्हारे द्वार जाने को , दुबारा दिल नहीं करता !
वाह ! बहुत प्रभावशाली गजल...
सुन्दर भाव
ReplyDeleteमेरे हिन्दोस्तां की शान खो जायेगी , नफरत में
ReplyDeleteबड़ी पहचान छोटी हो,गवारा दिल नहीं करता !
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति सक्सेनाजी
अपनी दिली भाव को किस खूबसूरती से प्रतीकात्मक शब्दों से सजाया है--ये आपके कलम की कलाकारी है --साधुवाद।
ReplyDeleteजिन्होंने साथ छोड़ा था मुसीबत में , पहाड़ों पर
ReplyDeleteउन्हीं बैसाखियों का लें सहारा दिल नहीं करता !
क्या बात है. सुंदर गज़ल.
बहुत ही कमल के शेर हैं ... हर शेर गहरी बात को बाखूबी कह रहा है ...
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कही, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह!एक एक पद सचाई का वर्णन करता हुआ।
ReplyDeleteसुसंस्कार शब्दों में ध्वनित हो रहा है।
ReplyDeleteमेरे हिन्दोस्तां की शान खो जायेगी , नफरत में
ReplyDeleteबड़ी पहचान छोटी हो,गवारा दिल नहीं करता !
Lovely!
हर शेर की आपस में प्रतिस्पर्धा सी है। सभी बहुत सुंदर है । मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमेरे हिन्दोस्तां की शान खो जायेगी , नफरत में
ReplyDeleteबड़ी पहचान छोटी हो,गवारा दिल नहीं करता !
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जिन्होंने साथ छोड़ा था मुसीबत में , पहाड़ों पर
ReplyDeleteउन्हीं बैसाखियों का लें सहारा दिल नहीं करता !
बहुत खूबसूरत गज़ल।
शब्दों के जादूगर। बहुत बढ़िया लिखा है। बहुत बढ़िया लगा। 'जिन्होंने साथ छोड़ा था मुसीबत में , पहाड़ों पर
ReplyDeleteउन्हीं बैसाखियों का लें सहारा .......'
बहुत खूब सतीश जी
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