Friday, December 30, 2016

मक्कारों के दरवाजे से ये दीप नहीं बुझने पाए ! -सतीश सक्सेना

पहचान करो  गद्दारों की,
खादी पहने मक्कारों की !
दोनों हाथों से लूट रहे ,
इस घर के बेईमानों की !
इनकी चौखट पर जा जाकर
इक दीप जलाएंगे ऐसा 
जिससे विशेष पहचान रहे
दुनियां में इन दरवाजों की 
बारिश हो या तूफ़ान मगर यह दीप नहीं बुझने पाये !

धूर्तों के  दरवाजे  जाकर 
इक अक्षयदीप जलाना है 
जो देशभक्त का रूप रखे
उनका चेहरा दिखलाना है
बस्ती समाज बरबाद किये
बरसों से  श्वेत दीमकों ने !
जाकर थूकें, घर को खाते 
इन ध्यान लगाए बगुलों पर  
बेईमानी के उद्गम  पर,  श्रमदीप नहीं बुझने पाये ! 

यह दीपक आँखें खोलेगा
मूर्खों को राह दिखायेगा  
मानव की सुप्त चेतना को
ये दरवाजे, दिखलायेगा !
धूर्तों के चेहरे, नोच तुम्हें 
असली चेहरे दिखलायेगा
भ्रामक विज्ञापन के जरिये  
आस्था गरीब की बेच रहे ,
बाबाओं के दरवाजे से, जनदीप नहीं बुझने पाये !

Saturday, December 10, 2016

हेल्थ ब्लन्डर्स (पार्ट 3) -सतीश सक्सेना

-रनिंग से डरने वाले यह जान लें कि मैंने अपने जीवन की रनिंग सीखने की शुरुआत अपना बीपी, हार्ट पल्पिटेशन, कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए 61 वर्ष की उम्र में शुरू की थी , इससे पूर्व मैंने विद्यार्थी जीवन में भी रनिंग नहीं की !

- आज मैं 62 वर्ष की उम्र में लगातार बिना रुके 21 km तक दौड़ता हूँ , और तमाम बीमारिया गायब हो चुकी हैं !
-अगर रनिंग का पहला कदम बढ़ाने की हिम्मत आज आप में आयी है तो यह विश्वास रखिये कि अगले दो तीन महीने में आप 5 km दौड़ रहे होंगे !
-रनिंग और वाक में फर्क है कि रनिंग के समय आपके हर गिरते कदम पर बॉडी का तीन गुना वजन पड़ता है और यह तमाम वजन आपकी हड्डियां और मसल्स सँभालते हैं , अगर आप नौसिखिये हैं शुरुआत में आपको सावधान रहना पड़ेगा कि शरीर पर एक साथ प्रेशर न पड़े , आपका शरीर धीरे धीरे हर आदत को स्वीकार करने को तैयार होगा बशर्ते आप उसके साथ जबरदस्ती न करें !
-शुरुआत में चार मिनट वाक के बाद एक मिनट रनिंग , या लगातार आधा घंटा वाक समाप्त करने के बाद 2 मिनट की रनिंग बिना हांफे , रनिंग की स्पीड और समय धीरे धीरे ही बढ़ाना है अगर आप इन दो मिनट में दौड़ते समय बात कर पा रहे हैं तब आप ठीक भाग रहे हैं बिना अपना बीपी बढाए, यह सबसे पहला मंत्र है !
- वाकिंग/रनिंग से पहले और बाद में 5-10 मिनट व्यायाम कर, स्ट्रेचिंग अवश्य करें , यह बेहद आवश्यक है , जो व्यायाम आवश्यक हैं उनमें body weight squats, pushup, lunges एवं planks उपयोगी हैं ! थकी हुई मसल्स को यह व्यायाम रिलैक्स देते हैं और मसल्स इंजरी का खतरा काम हो जाता है !
-हर रनर के लिए पानी बेहद आवश्यक होता है , डिहाइड्रेशन होने की स्थिति में आप मसल्स इंजुरी को आमंत्रित कर रहे हैं यह ध्यान रहे
- हमेशा हलके और आरामदेह जूते पहनकर दौड़ते समय पैरों की पोजिशन का ध्यान रहे , गड्ढे या ऊबड़खाबड़ रास्ते आपको जख्मी कर सकते हैं
-अगर जीपीएस वाच न हो तब strava या endomondo नामक app अपने स्मार्टफोन में इंसटाल कर लें यह जीपीएस सिस्टम के जरिये दौड़ते समय आपकी लोकेशन एवं समय रिकॉर्ड करता है ताकि बाद में आप एनालिसिस कर सकें
-दौड़ते समय पानी की 300 ml की पानी की बोटल हाथ में लेकर गला सूखने की स्थित में सिप ले कर अपने को सहज रखें
-दौड़ते समय स्पीड बिलकुल न बढ़ाएं सिर्फ सहज भाव से जॉगिंग करें , शरीर को धीरे धीरे अभ्यस्त बनाएं

हेल्थ ब्लन्डर्स II - सतीश सक्सेना


मानवीय शक्ति अपरिमित है और हम उसका अपने मस्तिष्क की तरह शतांश भी उपयोग नहीं करते , अक्सर 40 वर्ष का होते होते अपने आपको समझाना शुरू कर देते हैं कि चढ़ना नहीं, दौड़ना नहीं , गिर जाओगे ! असुरक्षा इस कदर होती है कि शरीर को , दांतों को , मजबूत बनाने के लिए तुरंत डॉक्टर की शरण में भागते हैं बिना सोंचे कि न केवल हम अपने बेहद मजबूत शरीर , जो बिना दवा के 90 वर्ष के लिए डिजाइन है, को न केवल केमिकल जहर दे रहे हैं बल्कि दवा विक्रेताओं के निर्मम और निर्दयी उद्योग को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे अधिक मानव शरीर का नुकसान, विश्व में किसी ने नहीं किया है !
मैं जब भी सामान्य रोगों में एलोपैथिक दवा खाते किसी व्यक्ति को देखता हूँ तब मुझे उसके शरीर की सुरक्षा शक्ति की स्पष्ट चीत्कार सुनाई देती है , हमारा शरीर लंबे समय जीने के लिए डिज़ाइन है , जिसमें हर बीमारी का उपचार करने के लिए शक्तिशाली रोग प्रतिरोधक शक्ति निहित है जो कि संक्रमण होने पर शरीर में तुरंत सक्रिय हो जाती है और उसके एक्शन को मानव विभिन्न रूपों में जैसे प्यास,पसीना, बुखार, जुकाम ,खांसी,बीपी, गांठे, खुजली, आदि के रूप में अनुभव करता है और अगर ऐसा न होता तो लाखों वर्ष की मानव यात्रा यहाँ तक पंहुचती ही नहीं इसकी रक्षा के लिए मेडिकल व्यवसाय कुछ ही वर्षों से है !

शक्तिशाली धनवान मेडिकल व्यवसाय की मेहरबानी है कि हम शरीर की प्राकृतिक रोगनाशक शक्ति के हर आवश्यक उत्पन्न प्रतिक्रिया (बुखार , गांठे आदि ) से भयभीत होकर उसे गोलियां खाकर अथवा ऑपरेशन कराकर बेकार कर देते हैं और अपने ताकतवर शरीर को एक शक्तिशाली भयानक जकड़न के हवाले कर देते हैं जिसका इलाज मानव प्रदत्त उपचार मात्र है ! ऐसा करते हम भूल जाते हैं कि हम मानव शरीर के जटिल रक्षातंत्र को, अपने अविकसित मस्तिष्क ( ढाई प्रतिशत ) द्वारा निर्दयता पूर्वक बर्वाद कर रहे हैं ..... कैंसर की गांठों के ऑपरेशन एक सामान्य उदाहरण है , जिसे हमारे शरीर ने रोक लिया था और हमने उसे कटवाकर मुक्त दिया !

मानव शरीर की इस रक्षा शक्ति के दो उदाहरण देने आवश्यक हैं यहाँ ......
पंजाब के एक दबंग किसान को उसके दुश्मनों ने रात को जंगल में पकड़कर उसके दोनों हाथ और दोनों पैर काट डाले थे , डॉक्टरों को आश्चर्य था कि उसका खून नहीं बहा था , क्योंकि उसके मन में हाथ पैर कटते समय भय न होकर, उन लोगों से बदला लेने की भावना इतनी प्रबल थी कि उसकी सुरक्षा शक्ति ने उसका खून नहीं बहने दिया और वह जीवित बच गया !
जीवित रहने की प्रबल भावना के कारण ही उसकी प्रतिरोधक शक्ति ने उसकी रक्षा की !

हमारे देश में ही ऐसे कितने ही फौजी मिल जाएंगे जिनके शरीर में लगीं दसियों गोलियों में से डॉक्टरों द्वारा खतरनाक गोलियां ही निकाली जा सकीं बाकी शरीर में ही छोड़ दी गयीं , जहरीले लेड से बनीं गोलियों के चारो ओर शरीर की प्रतिरोधक शक्ति, एक जैली जैसा मजबूत कवच चढ़ा देती है जिसके अंदर से कोई भी इंफेक्शन , इन्फेक्टेड टिश्यू अथवा , जहर बाहर नहीं आ सकता मगर आज हम सबसे पहले इन सुरक्षा करती गांठों को काट कर निकाल देते हैं !

आश्चर्य जनक धूर्तता यह है कि हमारे पाठ्यक्रम में शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति के बारे में पढ़ाया ही नहीं जाता या हम ( मेडिकल व्यापारी ) पढ़ाना ही नहीं चाहते अन्यथा उनका पूरा व्यवसाय ही नष्ट हो जाने का खतरा है !

आज मैं बहुत थक गया हूँ , इस उम्र में अब यह हमारे काम नहीं , कभी हम भी मोटर साइकिल चलाते थे , जैसे वाक्य हमारी मजबूत आत्मिक शक्ति को कमजोर मानने के लिए मजबूर कर देते हैं ! ऐसे शब्दों का उपयोग की जगह कहना यही चाहिए कि मैं भी यह कर सकता हूँ और नौजवानों से अधिक बेहतर कर सकता हूँ क्योंकि मैं उनसे अधिक अनुभवी हूँ ! अपने शरीर की शक्ति पर विश्वास करें यह आपको शर्मिंदा नहीं होने देगी !

अपने ऊपर विश्वास पैदा करें कि आप यह कर सकते हैं !! सो आप कायाकल्प आसानी से कर सकते हैं !

Friday, December 9, 2016

बीपी की गोलियां बंद करने के लिए सबसे पहले सहजता अपनाएँ (पार्ट -1)

@मेरा रक्तचाप असहज है।
ये शर्मनाक है मेरे लिए। मूर्ख हूं मैं। संसार को ठीक होने की नसीहतें बकता रहता हूं लेकिन खुद के प्रति लापरवाही करता हूं। ये निपट चूतियापा है।

मेरी जरूरत है मुझे और हमारे अपनों को। जैसे मुझे जरूरत है उनकी तो... पहली शर्त कि सब ठीक रखने की जरूरत है। केवल मन ही नहीं तन और धन भी।
... तो जय हो!
अब बस! बहुत हुआ.... बहुत हुई लापरवाही और बहाने, टाला जाना। तंग आ गया हूं मैं खुद से। अब और नहीं।
ये धोखा है, खुद से, अपनों से, उनसे जो आपसे प्यार करते हैं। ये सही नहीं है।
...आप मुझे सुधारने में मेरी मदद करें प्लीज। लताड़िए मुझे।
*********************************************************
ये हैं कृष्ण आनंद चौधरी के ये सहज शब्द जो बिना किसी दिखावे के बोले गए, पढ़कर आनंद आया, थोड़ा गुस्सा भी कि अगर इन जैसा भव्य व्यक्तित्व भी बीमारियों का शिकार होगा तो सामान्य जन से क्या शिकायतें करनी , आनंद इसलिए आया कि आनंद के लिए अपना बीपी बिना दवा के सहज रखना बेहद आसान है , रनिंग जैसी मस्ती सीखते ही बीपी के साथ ह्रदय रोग की चिंताएं अपने आप समाप्त हो जाएंगी !
हमारे पिछड़े समाज में बहुत कम लोग हैं जो बिना दिखावे के सहज हो सकें , वे असहज हैं क्योंकि उन्हें खुलापन पसंद नहीं , वे असहज हैं क्योंकि वे सोंचते हैं कि मजाक करने और खुलकर बोलने पर न जाने लोग क्या सोंचेंगे , वे असहज हैं क्योंकि वे हर हंसी के पीछे कुछ कारण ढूंढने लगते हैं , दुनियाभर के कॉम्प्लेक्स लिए ये लोग , खुल कर हंसना चाहते हैं पर दूसरों के सामने हंस नहीं पाते ! आइये मुक्त अंदाज़ सीखिये आज और बीमारियों को भगाइये ....
- सबसे पहले शुरुआत करते हैं एक मस्त गाने से इसे सुनिए और गाकर दिखाइए और हो सके तो नाचिये भी झूम के, अगर शर्म आये तो सोंचिये कि आपको कोई नहीं देख रहा ....
https://www.youtube.com/watch?v=-11EKfRYU2o
...... क्रमश:

Monday, December 5, 2016

मेरे जाने पर मेरी आँख, गुर्दे, ह्रदय, लीवर जलाना नहीं - सतीश सक्सेना

जिन मित्रों को मेरी उम्र पता चल जाती है वे मेरे नाम के साथ आदरणीय लगाना शुरू कर मुझे अपने से दूर कर देते हैं, मुझे लगता है आदर देने की जगह अपनापन और उन्मुक्त व्यवहार मिलता तो अधिक अच्छा था , उसमें मुझे अधिक फायदा होता ! अक्सर अधिक उम्र वालों को आदर देकर हम अपने से दूर रखने में सफल होते हैं जबकि उन्हें इस आदर से अधिक मित्रता की आवश्यकता अधिक होती है !
मेरे यहाँ कई मित्र हैं जिन्हें मैं बुड्ढा कहता हूँ , अपनी बेटी को नसीहत देते समय, बुढ़िया, और कई महिला मित्रों को उनके जबरदस्त स्नेही स्वभाव और अपनापन के कारण अम्मा कहने में आनंद आता है ! पूरे जीवन हम अपने आपको ढंके रहते हैं , घर परिवार , यहाँ तक कि बच्चों तक से औपचारिक व्यव्हार करने के आदि हो गए हैं ! आदर हो या स्नेह , खुल कर करें , यही ईमानदारी है ! अपनापन को दिखावा क्यों ?

बरसों से खूनदान के लिए कई हॉस्पिटल में अपना नाम लिखवा रखा है कि वे मुझे खून की कमी के वक्त बुला सकते हैं ! मरते दम तक किसी के काम आ जाएँ तो जीवन सफल हो इस इच्छा को निभाते हुए , बरसों पहले अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली में अपने शरीर के सारे अंग और शरीर दान कर चुका हूँ !

यह लिख रहा हु ताकि सनद रहे और मित्र मेरी मृत्यु पर परिवार को मेरा संकल्प याद दिलाएं कि यह ऑंखें , गुर्दे, ह्रदय और लीवर किसी को जीवनदान देने में सक्षम हैं !

Thursday, December 1, 2016

बंदरों के हाथ में , परमाणु बम है -सतीश सक्सेना

झूठ,मक्कारी, दिखावे भी न कम है,
सौ करोड़ों को नचाने का भी दम है !

ध्यान लोगों का न घोटालों पे जाए
ये बताओ खूब कि खतरे में हम हैं !

दुश्मनी से देश को खतरा तो है पर 
वोट बरसेंगे जभी खतरे में जन है !

धन कुबेरों के लिए , खोले खजाने
इन ग़रीबों के लिए तो आँख नम है !

हो सके तो देश अपने को बचा लो
बंदरों के हाथ में , परमाणु बम है !

Friday, November 25, 2016

ईद को ख़तरा बताते, आज भी कुछ लोग हैं - सतीश सक्सेना

अमन को बरबाद करते,आज भी कुछ लोग है,
नफरतों का गान करते,आज भी कुछ लोग हैं !

रूप त्यागी सा, प्रबल आवाज, मन में धूर्तता !
देश का विश्वास हरते,आज भी कुछ लोग हैं !

रंग, सिवइयां जाने कब से, ही रहे हैं, साथ में,
ईद को ख़तरा बताते, आज भी कुछ लोग हैं !


धूर्त मन,मक्कार दिल,पर ओढ़ चादर केसरी,
देशभक्त स्वरुप रखते आज भी कुछ लोग हैं !

हमको लड़ना ही पड़ेगा , इन ठगों से, गांव में,

कौम को मुर्दा समझते,आज भी कुछ लोग हैं !

Wednesday, November 23, 2016

इक दिन के लिए द्वार पे , रहमान बन के आ - सतीश सक्सेना

किसने कहा कि दिल में तू मेहमान बनके आ, 
ये तेरी सल्तनत है, तू सुल्तान बन के आ !
इक दिन तो बोल खुल के, तड़पता मेरे बगैर !
दिल के गरीब एक दिन , धनवान बन के आ।
साँसे तो कुछ बाकी तेरे दीदार के लिए,
मुफलिस के पास कर्ज का भुगतान बन के आ !
कब तक यहाँ तड़पें सनम रह के भी बावफ़ा,
इक दिन के लिए द्वार पे , रहमान बन के आ !

पहली दो पंक्तियाँ सुदेश आर्या द्वारा लिखी हैं , उनके द्वरा अनुरोध किये जाने पर यह ग़ज़ल पूरी बन गयी !

Monday, November 7, 2016

हेल्थ ब्लंडर - सतीश सक्सेना

उम्र कुछ भी हो, मानव शरीर की क्षमताएं असीमित हैं , कल की इस रेस में , मैं धुंध , धुआं , थकान भुला कर दौड़ा और पहली बार अपना व्यक्तिगत रिकॉर्ड कायम करने में कामयाब रहा ! बचपन से हर जगह एक ही लिखा पढता रहा कि बुढ़ापा अभिशाप है , शरीर बीमार ही रहता है , बुढ़ापे में हम दौड़ भाग नहीं कर सकते आदि आदि और हमने जैसा सुना और जीवन में देखा, वैसा आसानी से मान भी लिया , इसी को ब्लॉक माइंडस कहते हैं न , हमने कभी खुद पर आजमाया ही नहीं और न कभी सोंचने की जहमत उठायी कि यह गलत भी हो सकता है !
मानव शरीर लंबे समय को जीवित रहने के लिए डिज़ाइंड है बशर्ते हम उसका ठीक से उपयोग समझ सकें , यह हर परिस्थितियों में अपने को ढाल सकता है बशर्ते हम उन परिस्थितियों से बाहर निकलने के लिए बेचैन होकर , उनका त्याग न कर दें ! पेंटर , कोयला मजदूर , खनन मजदूर , आटा चक्की , स्टोन क्रेशर , देसी चूल्हे पर फुकनी से धुआं फूंकती हमारी करोड़ों माएँ , बस डिपो की रिपेयर वर्कशॉप के मिस्त्री, कार स्कूटर रिपेयर शॉप मजदूर दिन भर में जितना धुआं एब्जॉर्व करते हैं उसकी कल्पना भी, इन पढ़े लिखे ब्लॉक माइंडस ने नहीं की होगी जो दिल्ली को प्रदूषित और न रहने लायक घोषित कर रहे हैं !
2 वर्ष पहले रिटायर होते समय मुझे, ब्रोंकाइटिस, हाई ब्लडप्रेशर, कॉन्स्टिपेशन, बढे वजन, निकली तोंद , हार्ट पल्पिटेशन, क्रोनिक खांसी, बढे कोलोस्ट्रोल, ट्रायग्लिसराइड , और बेहद आलस्य की शिकायत थी और विज्ञानं के हिसाब से यह सब दौड़ने में बाधक ही नहीं , घातक भी थे मगर मैं इन सबको जानते हुए भी नकार कर दौड़ा और इन सब बीमारियों से सिर्फ एक वर्ष में ही आसानी से बिना दवा, मुक्त हो चुका हूँ !
इस समय बहुत से बाबा लोग, योग को भुनाकर देश में करोड़ पति बन चुके हैं , उनका दावा है कि योग से सारे रोगों से मुक्ति मिल जायेगी और तो और बरसों से उपेक्षित पड़ा बिना किसी रिसर्च, आयुर्वेद भी आजकल चकाचक हो रहा है , बांछे खिली हुई हैं इन सब व्यापारियों की !
इनमें से कोई नहीं बताता कि कितने पुराने पुराने योग करने वाले , हार्ट अटैक से असमय ही मर गए , मेरे एक बेहतरीन मित्र जिन्हें योग की सारी क्रियाओं का नियमित ज्ञान था , पचास वर्ष की उम्र में , ही असमय चले गए मैं उनसे ही योग सीखता था , उनके जाने के साथ ही अपने आपको इन ब्लॉक धारणाओं से मुक्त किया कि योग हर व्याधि की एकमात्र दवा है !
जिस प्रकति से आपको पैदा किया है उसने ही रोग मुक्ति की शक्ति भी प्रदान की हुई है , किसी की भी मजबूत इच्छा शक्ति, उसे भीष्म पितामह बना सकती है , गंगापुत्र की इच्छा थी सूर्य के उत्तरायण में आने तक वे प्राण नहीं त्यागेंगे और वैसा ही हुआ भी ! शरीर में प्राणशक्ति बेहद शक्तिशाली होती है उसपर व्याधियों का कोई प्रभाव नहीं बशर्ते हम उसके काम में व्यवधान न डालें ! जुकाम होते ही दवा लेने भागते मूर्ख मनुष्य ने अपनी रोग निवारक शक्ति को ही नष्ट कर दिया है .....
शुरू से ऐसी ही ठानी
मिले, अंगारों से पानी
पिएंगे सागर तट से ही 
आंसुओं में डूबा पानी,
कौन आयेगा देने प्यार
हमारी सांस आखिरी में
हंसाएंगे इन कष्टों को 
डुबायें दर्द, दीवानी में !
बहुत कुछ समझ नहीं पाये, इश्क़ न करें किसी से यार !
मानवों से ही डर लागे 
पागलों में ही, यारी रे !!

सस्नेह मंगलकामनाएं !!
@अचंभित हूँ और चिंतित भी दिल्ली के प्रदूषण का डंका बजा है. बच्चों के स्कूल तक बंद हैं और आप उसी अंदाज में दौड़ रहे हैं.!!!
Devendra का कमेंट कल की पोस्ट पर 

#healthblunders

Thursday, October 13, 2016

सिर्फ दिखावे के उत्सव , सद्भाव ख़त्म हो जाते हैं - सतीश सक्सेना

जहाँ पूजा का हो अपमान
वहां बन जाते कालिदास
जहाँ प्रीति का हो उपहास
वहीं पैदा हों तुलसी दास
इतने गहरे तीर , मृदुल 
आवेग ख़त्म कर जाते हैं !
चुभते तीखे शब्दों से, अनुराग ख़त्म हो जाते हैं !

जहाँ परिवार मनाये शोक 
जन्मते ही कन्या को देख 
बुढ़ापे में बन जाते बोझ 
पुत्र पर,कैसे जीवनलेख
इन रिश्तों में वर्चस्व हेतु , 
संपर्क ख़त्म हो जाते हैं !
अपना अपना हिस्सा ले,म्बन्ध ख़त्म हो जाते हैं !

जहाँ सन्यास कमाए नोट 
देश में  बेशर्मी के साथ ! 
जहाँ संस्कार बिके बाजार
नोट ले बड़ी ख़ुशी के साथ
रात्रि जागरण में कितने, 
विश्वास  ख़त्म हो जाते हैं !  
सिर्फ दिखावे के उत्सव , सद्भाव ख़त्म हो जाते हैं !

साधू सन्यासी करते होड़
देश में व्यापारी के साथ 
अनपढ़ों नासमझों के देश 
भव्य अवतारी बनते रोज, 
धन के लालच में पड़कर  
ईमान ख़तम हो जाते हैं !
धर्माचार के साये में , विश्वास  ख़त्म हो जाते हैं !

Tuesday, September 27, 2016

कायाकल्प बेहद आसान है, साथ दें मेरा : सतीश सक्सेना

मैंने अधिकतर धीर गंभीर विद्वानों को 60 वर्ष की उम्र तक पंहुचते पहुंचते निष्क्रिय होते देखा है , इस उम्र में पंहुचकर ये लोग अधिकतर सुबह एक घंटे नियमित वाक के बाद अखबार पढ़ना , भोजन करने के बाद आराम करने तक ही सीमित हो जाते हैं ! पूरा जीवन गौरव पूर्ण जीवन जीते हैं ये लोग मगर स्वास्थ्य पर ध्यान देने का शायद ही कभी सोंच पाते होंगे , इनके जीवन की सारी खुशियां इनके प्रभामंडल तक ही सिमट कर रह जाती हैं , रिटायर जीवन में अक्सर ये शानदार व्यक्तित्व, अपने कार्यकाल के किस्से सुनाते मिलते हैं जिनमें कोई रूचि नहीं लेना चाहता सिर्फ हाँ में हाँ मिलाता रहता है !

मैंने 61 वर्ष की उम्र में अपने कायाकल्प का फैसला लिया और सबसे पहले धीरे धीरे दौड़ना शुरू किया 50 मीटर से शुरू करके आज 21 km तक बिना किसी ख़ास थकान के दौड़ लेता हूँ , ढीली मसल्स एवं भुलाई शक्ति का पुनर्निर्माण होते

देख मैं खुद आश्चर्यचकित हूँ , शारीरिक शक्ति एवं सहनशीलता में इतने बड़े बदलाव की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी , और यह सब बिना किसी दवा, विटामिन्स, जूस के संभव हुआ है , हड्डियों और जॉइंट्स में आयी मजबूती एवं फर्क को मैं महसूस कर सकता हूँ !

पिछले एक वर्ष में मैंने लगभग 1200 km रनिंग की है जबकि पहले साठ वर्षों में 1 km भी नहीं दौड़ा था ! मैं यह सब अपनी तारीफ हो, इसलिए कभी नहीं लिखता , लिखने का उद्देश्य मेरे से कम उम्र के साथियों , विद्वानों का ध्यान आकर्षण मात्र है ताकि वे मेरी उम्र में आकर ठगे से महसूस न करके स्वस्थ और व्याधिमुक्त जीवन व्यतीत करें !


आज जिस तरह स्वास्थ्य सेवाओं का व्यवसायीकरण हुआ है वह पूरी मानवजाति के लिए बेहद चिंता जनक है , मानवशरीर के साथ, धन कमाने मात्र के लिए, भयभीत करके जिस प्रकार अस्पतालों में चीरफाड़ की जा रही है वह शर्मनाक है अफ़सोस यह है कि हमें इस पर,पूरे जीवन सोंचने का समय ही नही मिलता कि हमारे साथ क्या मज़ाक हो रहा है , मौत होने के डर से अक्सर हम डॉ की हाँ में हाँ मिलाते जाते हैं और ऑपरेशन के बाद ,शेष बचे जीवन को एक बीमार व्यक्ति की तरह काटने को मजबूर हो जाते हैं !


आइये, सुबह ५ बजे उठकर, नजदीक के पार्क में, अपने आपको फिजिकल एक्टिव बनाने का प्रयत्न शुरू करें ! हलके हल्के दौड़ते हुए, खुलते, बंद होते फेफड़े, शुद्ध ऑक्सीजन को शरीर में पम्प करते, शरीर का कायाकल्प करने में पूरी तौर पर सक्षम हैं !
विश्वास रखें ये सच है ...

Monday, September 26, 2016

एक अनुरोध - सतीश सक्सेना

प्रणाम प्रभु ,
कल सुबह नेहरू पार्क में दौड़ने से पहले 

आज के समय में मानव अपने स्वास्थ्य के प्रति बेहद लापरवाह हो गया है और इसमें बहुत बड़ा हाथ हमारे मन का होता है जो कि हमारे काबू में ही नहीं है , हमें समोसे, जलेबी, पकौड़े राह चलते ललचाते हैं  और कठोर व्यायाम करना हमारे बस में नहीं उससे बचने के लिए , हमारा मन हमें तरह तरह से समझाता है कि रात को बारह बजे सोकर, जल्दी नहीं उठ सकते सो सुबह का व्यायाम या टहलना कैसे हो ! ऑफिस से घर पंहुचते ही बहुत समय निकल जाता है , नौकरी तो करनी है न आदि आदि .......
भारत में हर व्यक्ति, समस्या निदान के लिए, विश्व का सबसे बड़ा विद्वान है , आप कोई समस्या बताइये जवाब हाज़िर है खास तौर पर बीमारियों के इलाज़ , बिना शरीर हिलाये तो टिप्स पर हैं  .... हार्ट एवं मोटापे के इतने इलाज हैं कि उन्हें सुनकर आपको लगेगा कि मैं बेकार ही चिंता करता हूँ शायद ही कोई भारतीय होगा जो मेथी, जामुन व् लहसुन नहीं खाता होगा और यह इलाज बचपन से मालूम हैं , उसके बाद सबसे अधिक मौतें इन्हीं बीमारियों से होती हैं मगर मजाल है कि किसी घर में यह देसी इलाज बंद हुए हों !

आज सुबह नेहरू पार्क दिल्ली जो मेरे घर से 20 km है वहां जाकर 15 km दौड़ाना बेहद सुखद रहा ,चित्र में लाल शर्ट में बेयर फुट रनर पंकज प्रसाद हैं उनके साथ कूल डाउन रनिंग में कुछ टिप सीखने का मौका मिला , डॉ प्रभा सिंह लखनऊ से किसी सेमिनार के लिए आयीं थीं , वे भी रनर ग्रुप को तलाश करते हुए , वहां पंहुचीं थी यकीनन इन जवानों के साथ दौड़ते हुए मैं ३० वर्ष पुरानी दुनियां में महसूस करता हूँ साथ ही बीपी अथवा अन्य बीमारियों से जाने कबसे निज़ात मिल चुकी है !  
  
कायाकल्प आसान नहीं है प्रभु , इसे करने के लिए दृढ निश्चयी होकर कुछ कठोर तथा अप्रिय फैसले करने ही होंगे , अगर आप रात को घर 10-11 बजे ही पंहुचते हैं तब आपको घर के गरम खाने का मोह त्यागना होगा, इसके लिए घर से सुबह ही रात का भोजन लेकर निकलें और शाम ६ बजे उसे ग्रहण करने की आदत डालें और अगर ठंडा भोजन स्वीकार नहीं तब शाम को बाजार से ताजे फल खरीदकर वहीँ कुर्सी पर बैठकर खाइये और रात के भोजन की आदत त्यागिये !

रात को १०-११ बजे तक हर हालत में सोना है , जिससे की आप सुबह ५ बजे पास के पार्क में जाकर टहल सकें , अगर दौड़ते हुए आपकी सांस फूलती है तो कृपया दौड़ना तुरंत बंद करें सिर्फ वाक् करना शुरू करें , टहलने के अंत के २ मिनट जॉगिंग अथवा तेज चलना शुरू करें और हांफने से पहले ही उसे बंद कर दें ! धीरे धीरे शरीर दौड़ने की आदत विकसित कर लेगा !

ध्यान रहे हांफना, आपके ह्रदय पर आये खतरे को बताता है , इससे मुक्ति पाने को धीमे धीमे वाक् को बढ़ाना होगा कुछ समय बाद आप देखेंगे कि हांफना समाप्त हो गया है ! यह बेहद खुशनुमा दिन होगा आपके लिए यह पहचान है आपके स्वस्थ ह्रदय की !
फेसबुक पर इस विषय पर  #healthblunders पर मेरे उपयोगी लेख हैं, कृपया उन्हें अवश्य पढ़ लें ! मेरा दावा है कि अगर ऐसा करेंगे तो आप हमेशा के लिए आपरेशन थियेटर से बच पाएंगे अन्यथा पूरे जीवन की कमाई, एक झटके में लूटने के लिए यह एयरकंडीशंड हॉस्पिटल तैयार खड़े हैं !

क्या पता भूल से दिल रुलाया कोई 
गर ह्रदय पर वजन हो, तभी दौड़िए !

आने वाली नसल,आलसी बन गयी
उनको हिम्मत बंधाने को भी दौड़िए !

शक्ति ,साहस,भरोसा,रहे अंत तक 
हाथ में जब समय हो, जभी दौड़िए !

always remember that Running is the best Cardio and diabetes control exercise   
सस्नेह 

Wednesday, September 14, 2016

हिंदी पुरस्कार शॉर्टकट - सतीश सक्सेना

हिंदी दिवस पर गुरुघंटालों, चमचों और बेचारे पाठकों को बधाई कि आज हिंदी, साहित्य चमचों के हाथ, जबरदस्त तरीके से फल फूल रही है, बड़े बड़े पुरस्कार पाने के शॉर्टकट तरीके निकाल कर लोग पन्त , निराला से भी बड़े पुरस्कार हासिल कर पाने में समर्थ हो पा रहे हैं !

ज्ञात हो कि हिंदी के तथाकथित मशहूर विद्वान, जो भारत सरकार , राज्य सरकारों द्वारा पुरस्कृत हैं, सब के सब किसी न किसी आशीर्वाद के जरिये ही वहां तक पहुँच पाए हैं और इसमें उनके घटिया चोरी किये लेखों, रचनाओं का कोई हाथ नहीं !

अधिकतर हिंदी मंचों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष राजनीतिज्ञों की विरुदावली खुश होकर गाते हैं एवं उनके सामने कमर झुका कर खड़े रहने को मजबूर हैं अगर उन्हें आगामी पद्म पुरस्कारों एवं विदेश यात्राओं में अपना नाम चाहिए !

इस सबके लिए कोई नेताओं के बच्चों के विवाह में काव्य पत्र अर्पित कर अपनी जगह बनाता है तो कोई नेता जी का अभिभाषण लेखन पर अपना हस्त कौशल दिखाता है ! नेताजी के खुश होने का नतीजा हिंदी के अगले वर्ष बंटने वाले पुरस्कार समारोह में पुरस्कृत होकर मिलता है ! एक बार मंच पर चढ़ने का आशीर्वाद पाकर यह हिंदी मार्तण्ड पूरे जीवन हर दूसरे वर्ष कोई न कोई कृपापूर्वक बड़ा पुरस्कार प्राप्त करते रहते हैं एवं मूर्ख मीडिया जिसको भाषा की कोई समझ नहीं इन्हें ही हिंदी का सिरमौर समझ, बार बार टीवी गोष्ठियों में बुलाकर, हिंदी कविराज, विद्वान की उपाधि से नवाज, इनके प्रभा मंडल में इज़ाफ़ा करती रहती है !
हाल में दिए एक विख्यात सरकारी हिंदी मंच की पुरस्कार लिस्ट देख कर हँसी आ गयी, इस एक ही लिस्ट में परमगुरु, महागुरु , गुरु , शिष्य और परम शिष्यों को सम्मान दिया जाना है इन पुराने भांड गवैय्यों को छोड़ एक भी स्वाभिमानी  हिंदी लेखक/कवि  इनकी नजर में पुरस्कृत होने योग्य नहीं है ...

जब तक इन चप्पल उठाने वाले धुरंधरों से छुटकारा नहीं मिलता तबतक हिंदी उपहास का पात्र ही रहेगी !
हिंदी पाठकों को मंगलकामनाएं हिंदी दिवस की !

Saturday, September 10, 2016

जाहिलों पर मीडिया का,मुस्कराना देश में - सतीश सक्सेना

देशभक्तों ने किया खाली, खजाना देश में !
धनकुबेरों को बिका, शाही घराना देश में !

बेईमानों और मक्कारों की छवि अच्छी रहे,
जाहिलों पर मीडिया का, मुस्कराना देश में !

गेरुए कपडे पहन कर डाकू, व्यापारी बने
कैसे, कैसे धूर्तों का , हाकिमाना देश में ! 

खर्च लाखों हो गए तो कार पे झंडा लगा,
पांच वर्षों में समंदर भर , कमाना देश में !

चोर, बेईमान खुद को, राष्ट्रवादी  मानते,
आजकल ईमानदारी का वीराना देश में !

Monday, September 5, 2016

चुनौती खुद को - सतीश सक्सेना

भारत सरकार में 37 वर्ष सेवा करने के उपरान्त, आखिरकार 31 दिसंबर 2014 को रिटायर हुआ जिसमें मुझे साथी अधिकारियों द्वारा पूरे सम्मान के साथ, आखिरी विदाई समारोह आयोजित कर, सरकारी कार में घर तक पंहुचाया गया था !
पूरे जीवन एक कमी हमेशा रही कि विद्यार्थी जीवन से लेकर अब तक शारीरिक एक्सरसाइज पर कभी ध्यान नहीं दिया, सो भारतीय समाज में अभिशप्त रिटायरमेंट के बाद फैसला किया कि ढीले ढाले शरीर का कायाकल्प करूँगा ! बच्चों और परिवार जनों के सामने अपनी बीमारी में कराहते , लुंजपुंज, असहाय व्यक्तित्व मुझे सिर्फ दया के पात्र लगते थे ऐसे लोग अपने परिवार अथवा समाज को अपने विशद अनुभव से कोई भी दिशा देने में पूरी तौर पर असमर्थ थे , जिनके साथ शामिल होने को, मेरा मानस कभी तैयार न था !
अतः सबसे पहले अपना ही कायाकल्प करने का फैसला किया, और यह फैसला उस समय किया जब मैं मॉल में अथवा बाज़ार में घूमने को, सुबह का टहलना मान लिया करता था ! उन दिनों १ किलोमीटर अथवा आधा घंटा टहलने में कमर में दर्द हो जाता था ! दो दिन के मनन के बाद फैसला किया कि 
  • मीठा, आइसक्रीम और शुगर मोटापा बढ़ाने में सबसे अधिक रोल निभाती है अतः इसे बंद करना होगा !
  • पकौड़े, पापड , कश्मीरी दम आलू , पंजाबी दाल फ्राई , जीरा और प्याज परांठा , के साथ साथ हर प्रकार की शोरबे की मसालेदार मुगलई सब्जी छोड़नी होगी !
  • शराब और बियर का शौक़ीन नहीं था मगर परहेज भी नहीं करता था अगर अच्छी कंपनी हो तो दो पैग ड्रिंक्स या गर्मी के दिनों में एक बियर पीना हमेशा आनंददायक लगता था , इसके साथ काजू अथवा पनीर कहकर आसानी से भारी भरकम कैलोरी मिलती थी , उसे बेहद कम करना होगा !
  • दूध की चाय और साथ में नमकीन कुरकुरे नमकपारे , तली नमकीन मूंगफली तुरंत बंद करनी होगी !
  • रात का डिनर बेहद हल्का एवं सात बजे से पहले खाना होगा !
  • बचपन से छोड़ी हुई हरी सब्जियां एवं अंकुरित सलाद के साथ कम से कम एक फल रोज अवश्य खाना होगा 
  •  जमीन पर उकड़ू बैठकर चलना, एवं रोज पांच मंजिल सीढिया चढ़ना सीखना होगा !
  • पार्क में सुबह ५ बजे उठकर , हलकी एकसार गति से , हांफना शुरू होने तक धीमे धीमे दौड़ना होगा 
यह सब करना मेरे जैसे आलसी और बढ़िया खाने के शौक़ीन व्यक्ति के लिए एक सज़ा से कम न था मगर सवाल 61 वर्ष की उम्र में कायाकल्प का संकल्प लेने का था और हार जाना स्वीकार कभी नहीं था सो यह संकल्प लिया कि इसे अपने ऊपर लागू कर अपने परिवार के बच्चों के लिए एक नयी दिशा छोड़ने में कामयाब रहूंगा !
बुढापे में आकर नए सिरे से 35 वर्षीय जवान बनने की क्रिया आसान नहीं थी , शुरुआत से ही आलसी मन ने अड़चने डालनी शुरू कर दी , पैरों में दर्द रोज होता था , मन हमेशा सलाह देता रहता था कि घुटने बर्बाद कर लोगे बुड्ढे , दौड़ना बिलकुल बेकार है आदि आदि  ... 
कुछ दिनों में ही समझ में आ गया कि यह मन जीतने नहीं देगा और मज़ाक बन जायेगी इस संकल्प की , सो दो माह बाद होने वाले हाफ मैराथन ( 21 km ) रनिंग का फार्म भर दिया और परिवार व् नज़दीक मित्रों में घोषणा कर दी !
और इज़्ज़त बचाने के लिए हांफते हांफते भी हाफ मैराथन दौड़ना ही पड़ा और  जब मैंने यह असंभव जैसा कार्य कर लिया तब आत्मविश्वास से सराबोर अगले ४ माह में ही , 3 हाफ मैराथन सहित दसियो मैडल आसानी से हासिल किये ! 
और मैं जीत गया अपने संकल्प में, सिर्फ ८ माह की मेहनत में..... 
जीवन भर पसीने से चिढ़ने वाले व्यक्ति ने , लगातार 3 घंटे दौड़ने के साथ, शरीर से ३ लीटर पसीने के साथ साथ जमा चर्बी बहने का सुख भी महसूस कर लिया था ! 
काया कल्प इतना आसान था, ये पता होता तो बहुत पहले कर लिया होता !

Sunday, August 21, 2016

जाने कितने बरसों से यह बात सालती जाती है - सतीश सक्सेना

जैसे कल की बात रही 
हम कंचे खेला करते थे !
गेहूं चुरा के घर से लड्डू 
बर्फी,  खाया करते थे !
बड़े सवेरे दौड़ बाग़ में 
आम ढूंढते  रहते थे ! 
कहाँ गए वे संगी साथी 
बचपन जाने कहाँ गया  !
कस के मुट्ठी बाँधी फिर भी, रेत फिसलती जाती है !
इतनी जल्दी क्या सूरज को ? 
रोज शाम गहराती है !

बचपन ही भोलाभाला था
सब अपने जैसे लगते थे !
जिस घर जाते हँसते हँसते
सारे बलिहारी होते थे !
जब से बड़े हुए बस्ती में
हमने भी चालाकी सीखी
औरों के वैभव को देखा
हमने भी ,ऐयारी सीखी !

धीरे धीरे रंजिश की, कुछ बातें खुलती जाती हैं !
बचपन की निर्मल मन धारा
मैली होती जाती है !

अपने चन्दा से, अभाव में 
सपने कुछ पाले थे उसने !
और पिता के जाने पर भी 
आंसू बाँध रखे थे अपने !
अब न जाने सन्नाटे में,
अम्मा कैसे रहतीं होंगी !   
अपनी बीमारी से लड़ते,
कदम कदम पर गिरती होंगीं !
जाने कितने बरसों से, यह बात सालती जाती है !
धीरे धीरे ही साहस की परतें 
खुलती जाती हैं !

Thursday, August 11, 2016

इन डगमग चरणों के सम्मुख, विद्रोही नारा लाया हूँ - सतीश सक्सेना

बरसाती कवियों के युग में
नवगीतों के, सूखेपन में 
कुछ शब्दों में हेरफेर कर 
चौर्य कलाओं के छपने से
अधिपतियों के समर युद्ध में
खूब पुरस्कृत सेवक होते ,
शिष्यों की गिनती बढ़वाते 
मंच गवैयों , के इस युग में ,
कविता की बंजर धरती पर, 
करने इक प्रयास आया हूँ !
मानवता को अर्ध्य चढ़ाने , निश्छल जलधारा लाया हूँ !

सरस्वती की धार, न जाने
कब से धरती छोड़ गयी थी !

माँ शारदा, ऋचाएँ देकर 
कब से, रिश्ते तोड़ गयी थीं !
ध्यान,ज्ञान,गुरु मर्यादा का
शिष्यों ने रिश्ता ही तोड़ा !
कलियुग सर पे नाच नाच के

तोड़ रहा, हर युग का जोड़ा !
कविता के संक्रमण काल में , 
चेतन ध्रुवतारा लाया हूँ !
जनमानस को झंकृत करने अभिनव इकतारा लाया हूँ !

हिंदी जर्जर, भूखी प्यासी
निर्बल गर्दन में फंदा है !
कोई नहीं पालता इसको
कचरा खा खाकर ज़िंदा है !
कर्णधार हिंदी के, कब से
मदिरा की मस्ती में भूले !
साक़ी औ स्कॉच संग ले 

शुभ्र सुभाषित माँ को भूले
इन डगमग चरणों के सम्मुख, 
विद्रोही नारा लाया हूँ !
भूखी प्यासी सिसक रही, 
अभिव्यक्ति को चारा लाया हूँ !

राजनीति के पैर दबाकर
बड़े बड़े पदभार मिल गए !
गा बिरुदावलि महाबली की
हिंदी के,सरदार बन  गए !
लालकिले से भांड गवैय्ये
भी भाषा की शान बन गए
श्रीफल, अंगवस्त्र, धन से
सम्मान विदेशों में करवाते,
धूर्त शिष्य, मक्कार गुरू के 
द्वारे, नक्कारा लाया हूँ !
दम तोड़ते काव्य सागर में, जल सहस्त्र धारा लाया हूँ !

जाते जाते, काव्यजगत में
कुछ तो रस बरसा जाऊंगा
संवेदना ,प्रीति से भरकर
निर्मल मधुघट, दे जाऊंगा !

कविता झरती रहे निरन्तर 
चेतन,मानवयुग कहलाये
कला,संस्कृति,त्याग धूर्तता 
मानव मन श्रृंगार बनाएं !
सुप्त ह्रदय स्पंदित करने, 
काव्यसुधा प्याला लाया हूँ !
पीकर नफरत त्याग , हँसे मन , वह अमृतधारा लाया हूँ !

मुझे पता है शक्की युग में
चोरों का सरदार कहोगे !
ज्ञात मुझे है, चढ़े मुखौटों
में, इक तीरंदाज़ कहोगे !
बेईमानों की दुनिया में हम
बदकिस्मत जन्म लिए हैं !
इसीलिए कर्तव्य मानकर
मरते दम तक शपथ लिए हैं

हिंदी की दयनीय दशा का,
मातम दिखलाने आया हूँ !
जिसको तुम संभाल न पाए, अक्षयजल खारा लाया हूँ !

Tuesday, August 2, 2016

मालिक ये हाथ रखें नीचे,हम हाथ उठाना सीख गए - सतीश सक्सेना

डमरू तबला कसते कसते,हम धनक उठाना सीख गये,
तेरा गंद उठाकर सदियों से, तेरा आबोदाना सीख गये !


हमसे ही अस्मिता भारत की, परिहास बनाना बंद करें
सदियों से पिटते पिटते ही, तलवार चलाना सीख गए !

मालिक गुस्ताखी माफ़ करें,घरबार हिफाज़त से रखना
बस्ती के बाहर भी रहकर, हम आग जलाना सीख गये !

बेपर्दा घर, जूता, गाली, मजदूरी कर हम  बड़े हुए !
जाने कब, ऊंचे महलों की दीवार गिराना सीख गए ! 

तेरे जैसा ही जीवन पाकर, पशुओं जैसा बर्ताव मिला,
मालिक ये हाथ रखें नीचे, हम हाथ उठाना सीख गए !

Sunday, July 17, 2016

अच्छे दिन भी आते होंगे , हर हर मोदी बोल किसानों -सतीश सक्सेना


मेहनत करते जीवन बीता,मेहनत करते रहो ,किसानों !
अच्छे दिन भी आते होंगे ,हर हर मोदी बोल किसानों !


जित्ती चादर ले के लाये, पैर मोड़ सो जाओ किसानों !
भला करेंगे, राम तुम्हारा, कोई शक न करो किसानों !

रखो भरोसा नेताओं पर , क्यों हताश होकर मरते हो,
बेटी की शादी में तुमको, लाला देगा, कर्ज किसानों !

अफ्रीका में खेत दाल के, लगते सुंदर बहुत किसानों !
दाल उगाएं वे, हम खाएं , हर हर गंगे बोल किसानों !

केजरी झक्की , खांसे इतना , नींद न आने दे, रातों में ,
कांग्रेस,मीडिया,कचहरी और भी गम हैं,बहुत किसानों !


Saturday, July 9, 2016

संवेदना बिलख कर रोये,कवि न वहां पाये जाएंगे - सतीश सक्सेना

यह कैसा माहौल ? अब यहाँ द्वेष गीत गाये जाएंगे !
संवेदना बिलख के रोये ,कवि न यहां पाये जाएंगे !

दयाहीनता के आलम में उम्मीदें तो कम हैं लेकिन   
संवेदन संतप्त ह्रदय की, हम कसमें खाये जाएंगे !

द्वेषभाव को जल देने को,ढेरों लोग उगे हैं फिर भी 
दिल से दूषित भाव हटाने, गंगा हम लाये जाएंगे !

आग लगाते इन शोलों में, ह्रदय वेदना कौन पढ़ेगा, 
जब तक सूरज आसमान में,हम छप्पर छाये जाएंगे !

राजनीति के इन धूर्तों ने,  बेशर्मी  की हदें पार कीं,
जल्द आयेगा वक्त,रेत के किले सभी ढाए जाएंगे !

Monday, July 4, 2016

तेरी इस बादशाहत में, मेरी मुस्कान खतरे में - सतीश सक्सेना

हाल में ढाका हादसे पर अातंकवादियों और उनके रहनुमाओं के लिए ....

न हैं इस्लाम  खतरे मे, न है भगवान खतरे मे !
तुम्हारे शौक़ में, इंसानियत , इंसान खतरे में !

न हिंदुस्तान खतरे में न, पाकिस्तान खतरे में !
तेरी अय्याशियां औ महले आलीशान खतरे में 

न आयत ही कभी पढ़ पाए, न श्लोक गीता के, 
चाय का कांपता कप हाथ में,हैरान,खतरे में 

भले बच्चे हों पेशावर के, कत्लेआम ढाका हो ,
कहीं रोये तड़प कर माँ, इसी अनजान खतरे में 

बुरा हो तेरी मक्कारी औ अंदाज़े बयानी का !
तेरी इस बादशाहत में, मेरी मुस्कान खतरे में !

Friday, July 1, 2016

आ जाएँ , बैठें पास मेरे , बतलायें, भारत कहां लिखूँ - सतीश सक्सेना

लो आज  कष्ट की स्याही से
संतप्त ह्रदय का गान लिखूं
धनपतियों से इफ़्तार दिला 
मैं निर्धन का रमजान लिखूं 
बतलाओ तुमको यार कहूँ ,
या केवल मित्र सुजान लिखूं !
अनुराग कहां सम्मानित हो
मनुहार  रचाये  चरणों में  !
आ जाएं कभी आनंदमयी, बतलायें  व्यथा मन कहां लिखूं ! 

नेताओं को कह देश भक्त ,
अधपके देश की शान लिखूं 
धन पर मरते, सन्यासी को  
दरवेशों का लोबान लिखूं !
या बरसों बाद मिले, जीवन 
में, भूखे का जलपान लिखूं 
धनपति बनने को राष्ट्रभक्त 
उग आये, रातों रात यहाँ !
कह जाएं किसी दिन रूपमयी , मन का वृन्दावन कहां लिखूं !

सूरज  को श्रद्धा नत होकर , 
मंत्री का स्वागत गान लिखूं !
या तिल तिल कर मरते, निर्जल 
इन वृक्षों को , उपहार लिखूं !
उम्मीदों में , बादलों  सहित, 
आती बारिश जलधार लिखूं !
कोसों तक प्यार नहीं दिखता 
नफ़रत फैलाती , दुनिया में !
पथ दिखलायें ,अनुरागमयी, बोलें  न , बुलावन कहां लिखूं !

संक्रमण काल में गीत बना
कर छंदों का अपमान लिखूं 
या धूर्त काल में गीतों की 
चोरी कर काव्य महान लिखूं
फिर महागुरु के चरण पकड़ 
कर, उनको दिव्य सुजान लिखूं 
कवितायें जन्म कहाँ लेंगी  ,
गुरु शिष्य बिकाऊ जिस घर में,
आ जाएं एक दिन दिव्यमयी, कह जाएं, स्तवन कहां लिखूं  !

बंगाल सिंध कश्मीर कटा, 
नफरत में, हिंदुस्तान लिखूं ,
जिसके रिश्ते, आधे उसमें 
उस घर को, पाकिस्तान लिखूं !
गांधार, पाणिनी आर्यक्षेत्र को 
अब अफ़ग़ानिस्तान लिखूं !
कुल, जाति, धर्म, फ़र्ज़ी गुरुर 
पाले, नफरत में  हांफ रहे !
आ जाएं किसी दिन करुणमयी , समझाएं तपोवन कहां लिखूं !


Friday, June 24, 2016

भगवान आपकी रक्षा करें - सतीश सक्सेना

आखिरकार किसी डॉ ने इस धंधे से जुड़े काले सत्य को उजागर करने की कोशिश करते हुए पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ी है ,डॉ  अरुण गाडरे एवं डॉ अभय शुक्ला ने अपनी पुस्तक  "Dissenting Diagnosis " में जो सत्य उजागर किये हैं वे वाकई भयावह हैं ! लोगों की मेहनत की कमाई को मेडिकल व्यापारियों द्वारा कैसे लूटा जा रहा है इसका अंदाज़ा तो था पर इस कदर लूट है, यह पता नहीं था !

डॉक्टर भगवान का स्वरुप होता है क्योंकि वह मुसीबत में पड़े व्यक्ति को भयानक बीमारी से बाहर निकालने में समर्थ होता है , इस तरह रोगी के परिवार के लिए वह देवतुल्य ही होता है मगर आज समीकरण उलट चुके हैं , डॉक्टर बनने के लिए लाखों रुपया खर्च होता है , उसके बाद क्लिनिक पर किये गए करोड़ों रूपये जल्दी निकालने के लिए, धंधा करना लगभग अनिवार्य हो जाता है अफ़सोस यह है कि यह धन निकालने का धंधा , मानव एवं रोगी शरीर के साथ किया जाता है !
अधिकतर डॉक्टर सामने बैठे रोगी को सबसे पहले टटोलते हैं कि वह मालदार कितना है , और इस समय हर रोगी अपने आपको रोग मुक्त होना चाहता है अतः उसे धन खर्च करने में ज्यादा समस्या नहीं होती और वह डॉक्टर की हाँ में हाँ मिलता रहता है , 

पहली ही मीटिंग में उसके प्रेस्क्रिप्शन में 5 से 10 टेस्ट लिख दिए जाते हैं और साथ ही लैब का नाम भी , जहाँ से टेस्ट करवाना है ! बीमारी के डाइग्नोसिस के लिए आवश्यक टेस्ट में, कुछ ऐसे टेस्ट भी जुड़े रहते हैं जिनके बारे में उक्त लैब से पहले ही, डॉक्टर कोरिक्वेस्ट आई होती है ! जब आप लैब पंहुचते हैं तब यह आवश्यक बिलकुल नहीं कि सारे टेस्ट किये ही जाएंगे , जिन टेस्ट को करने के लिए लैब का अधिक कीमती केमिकल और समय खर्च होता है उनकी रिपोर्ट अक्सर आपके डॉक्टर की राय से बिना किये हुए ही दे दी जाती है एवं आपके डॉक्टर एवं लैब की आपसी सुविधा से यह टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव या पॉजिटिव अथवा नार्मल कर दी जाती है !लीवर पॅकेज , किडनी पैकेज , वेलनेस पैकेज और अन्य रूटीन पैकेज टेस्ट के सैंपल अक्सर बिना वास्तविक टेस्ट किये नाली में बहा दिए जाते हैं एवं उनकी रिपोर्ट कागज पर, डॉक्टर की राय से, जैसा वे चाहते हैं , बनाकर दे दी जाती है ! 
एक निश्चित अंतराल पर इन फ़र्ज़ी तथा वास्तविक टेस्ट पर आये खर्चे को काट कर, प्रॉफिट में से डॉक्टर एवं लैब के साथ आधा आधा बाँट लिया जाता है ! अप्रत्यक्ष रूप से रोगी की जेब से निकला यह पैसा , उस रोग के लिए दी गयी डॉक्टर की फीस से कई गुना अधिक होता है , अगर आपने डॉ को फीस ५०० रूपये और लगभग 8000 रुपया टेस्ट लैब को दिए हैं , तब डॉक्टर के पास लगभग 4800 रुपया पंहुच चुका होता है , जबकि आपके हिसाब से आपने फीस केवल 500 रुपया ही दी है ! लगभग हर लेबोरेटरी को सामान्य टेस्ट पर ५० प्रतिशत कमीशन देना है वहीं एम आर आई आदि पर 33 % देना पड़ता है !


आपरेशन थिएटर का खर्चा निकालने को ही कम से कम एक आपरेशन रोज करना ही होगा अतः अक्सर इसके लिए आपरेशन केस तलाश किए जाते हैं चाहें फ़र्ज़ी आपरेशन ( सिर्फ स्किन स्टिचिंग ) किए जाएं या अनावश्यक मगर ओ टी चलता रहना चाहिए अन्यथा सर्जन एवं एनेस्थेटिस्ट का व्यस्त कैसे रखा जाए ! अाज शहरी भारत में लगभग हर तीसरा बच्चा, आपरेशन से ही होना इसका बेहतरीन उदाहरण है !

भगवान आपकी  रक्षा करें  ..... 

Tuesday, June 21, 2016

संगमरमरी फर्शों पर ही, पाँव फिसलते देखे हैं -सतीश सक्सेना

ड़े बड़ों के,सावन में अरमान मचलते देखे हैं 
सावन भादों की रातों, ईमान बहकते देखे हैं 

गर्वीले, अय्याश, नशे में रहें , मगर ये याद रहे  
संगमरमरी फर्शों पर ही, पाँव फिसलते देखे हैं 

कई बार मौसम भी, अपना रंग दिखा ही देता है
सावन की मदहोशी में, अंगार पिघलते देखे हैं 

झुग्गी से महलों के वादे, सदियों का दस्तूर रहा
राजमहल ने मोची के भी सिक्के चलते देखे हैं 

मूर्ख बना के कंगालों को, जश्न मनाते महलों ने
अक्सर ठट्ठा मार मारकर, जाम छलकते देखे हैं 

Friday, June 17, 2016

सब लोग क्या कहेंगे - सतीश सक्सेना

कलमधारियों के बीच शायद मैं अकेला बुद्धिहीन, विवेकहीन हूँगा जिसने ६० वर्ष की बाद दौड़ना शुरू किया कई विद्वान मित्र सोंचते होंगे कैसे दिन आ गए हैं कि पहलवानी करने वाले लोग भी कलम उठाकर अपने आपको लेखक अथवा कवि समझते हैं बहरहाल मैं सोंचता हूँ कि एथलीट कोई भी बन सकता है बशर्ते उसमें कुछ नया करने का मन हो , मजबूत अच्छा शक्ति के आगे बढ़ती उम्र का कोई बंधन, उसे रोक नहीं पायेगा !
लोग कहेंगे कि आप खुश किस्मत हैं कि आपको इस उम्र में कोई बीमारी नहीं है अन्यथा इस उम्र में दौड़ के दिखाने में, नानी याद आ जाती ! मैं सोंचता हूँ , बीमारी तो कई थीं और हैं भी , मगर मैं उन पर कभी ध्यान ही नहीं देता , मेरा यह विश्वास है कि बीमारी ठीक करने का काम मेरे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति का है जिसे मैं दौड़कर और मजबूत बना रहा हूँ ! 
ध्यान देता हूँ तो सिर्फ दौड़ने पर ताकि बढ़ता भयावह बुढ़ापा दूर दूर तक नज़र भी न आये और मुझे हर रोज सुबह लगातार ५-१० किलोमीटर दौड़ता देख, डर के कहीं छिप जाए कि यह आदमी पागल है कौन इससे पंगा ले !
जब सुबह मोहल्ले में सब सो रहे होते हैं उस वक्त कुछ एक टहलने वालों के सामने से दौड़ता हुआ पसीने से लथपथ जब मैं अपने घर में घुसता हूँ तब बहता हुआ पसीना अमृत जैसा लगता है और लोग आश्चर्य चकित होते हैं कि कमाल है इस उम्र में यह दौड़ क्यों रहा है उस समय उनके इस हैरानी के अहसास से ही मेरी सारी थकान गायब हो जाती है और चेहरे पर मुस्कान आ जाती है !
मुझे याद है ५ वर्ष पहले मैंने कुकिंग गैस का सिलेंडर एक झटके से उठाया था और मेरे सीधे हाथ की सॉलिड मसल्स एक झटके से टूट कर  अपनी जगह से हटकर लटक गईं थी उस दिन लगा था कि लगता है वे दिन गए जब खलील खां फ़ाख्ते उड़ाया करते थे , मगर आज दौड़ने के साथ ही वह मसल्स फिर रिपेयर होकर न केवल पहले से अधिक ताकतवर बन गयी है बल्कि अब अपने आपको अधिक  शक्तिशाली महसूस करता हूँ !
कल २ बजे की तेज धूप में २ किलोमीटर सड़क पर पैदल चलकर जब टपकते पसीने के साथ मॉल में घुसा तब कार से उतरते लोगों को देख बड़ा सुकून महसूस हो रहा था कि मैं वह कर सकता हूँ जो इस गर्मीं में इनके बस की बात नहीं और मैं वही हूँ जो अपनी पूरी युवावस्था में बस में कभी इसी लिए नहीं चढ़ा था कि दिल्ली की बसों में चढ़ने के लिए उनके पीछे भागना पडेगा ! पूरे जीवन पैदल न  चलने वाला व्यक्ति प्रौढ़ावस्था या बुढ़ापे में, जो भी आप समझें , बिना रुके, लगातार 10 किलोमीटर दौड़ सकता है , इसका अहसास ही, पूरे दिन दिमाग को तरोताजा रखने के लिए काफी है !
-मुझे याद है रनर का सबसे मुश्किल पहला महीना जब मैं रनिंग की कोशिश कर रहा था , उन दिनों पैरों में तेज दर्द होता था लगता था अब नहीं दौड़ पाउँगा वह दर्द अब कहाँ गया इसका पता ही नहीं चला  .... 
-मुझे याद है कि 50 वर्ष की उम्र में, ह्रदय की धड़कन तेज होने पर, एक बार मैं पूरी रात हॉस्पिटल में ऑक्सीजन के सहारे रहा तब लोगों ने कहा था कि बाज आइये अब आपकी उम्र हो गई है मगर अब ६२ वर्ष में ,ह्रदय लगता है दुबारा जवान हो गया है 
-बढे ब्लड प्रेशर का कभी कोई इलाज नहीं किया न कराया आजकल जब चेक करता हूँ , परफेक्ट जवानी वाला  82 / 140 आता है !
-कॉन्स्टिपेशन लगता है कभी था ही नहीं  .... 
- उँगलियों तक खून का बहाव लाने के लिए पागलों की तरह तालियां बजाना कब का बंद कर चुका हूँ !
सो अपनी शानदार तोंद को , बढ़िया लम्बे कुर्ते से छिपाए मंच पर बैठे साहित्यकारों, कवियों , लेखिकाओं से निवेदन है कि इस लेख पर सरसरी नजर न डाल , ध्यान से पढ़ें और कल से जॉगिंग के लिए घर से निकलने का संकल्प लें, भले ही गुस्से में गालियाँ मेरे हिस्से में आएं मगर प्लीज़ सुबह सवेरे ट्रेक पर जाने में अधिक न सोचिये कि सब लोग क्या कहेंगे 
याद रखें हमारे देश में सबसे अधिक डायबिटीज़ तथा ह्रदय रोगी हैं तथा रनिंग इन सबका सबसे अच्छा और निरापद इलाज है , Running is the best cardio exercise ...
आप सबके स्वास्थ्य के लिए चिंतित .... 

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