किसने कहा कि दिल में तू मेहमान बनके आ,
ये तेरी सल्तनत है, तू सुल्तान बन के आ !
साँसे तो कुछ बाकी तेरे दीदार के लिए,
मुफलिस के पास कर्ज का भुगतान बन के आ !
मुफलिस के पास कर्ज का भुगतान बन के आ !
कब तक यहाँ तड़पें सनम रह के भी बावफ़ा,
इक दिन के लिए द्वार पे , रहमान बन के आ !
इक दिन के लिए द्वार पे , रहमान बन के आ !
पहली दो पंक्तियाँ सुदेश आर्या द्वारा लिखी हैं , उनके द्वरा अनुरोध किये जाने पर यह ग़ज़ल पूरी बन गयी !
पता नहीं सही लगा या गलत पर कुछ ऐसा लगा जैसे ऐ टी म घर के बाहर खड़ा हो कर कह रहा हो जनाब ले लो आ गया हूँ ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 25 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteइक दिन के लिए द्वार पे, रहमान बन के आ!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ......
ReplyDeleteशानदार पोस्ट .... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteदुनिया ने दिल के रास्ते को इतना कठिन बना दिया है कि
ReplyDeleteप्यार करना भी चाहा प्यार से बचना भी चाहा ऐसा कितनो ने
न चाहा होगा !