सहज निर्मल मुस्कराहट से धरा गुलज़ार लिख दूँ !
एक दिन उन्मुक्त मन से पास आकर बैठ जाओ
और बोलो नाम तेरे, स्वर्ग का अधिकार लिख दूँ !
काव्य अंतर्मन हिला दे, शुष्क मानव भावना में ,
समर्पण संभावना को प्यार का उपहार लिख दूँ !
मुक्त निर्झर सी हंसी पर, गर्व पौरुष का मिटा दूँ ,
तुम कहो तो मानिनी, अतृप्त की मनुहार लिख दूँ !
यदि तुम्हें विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
व्यास का स्मरण कर, ऋग्वेद का विस्तार लिख दूँ !
ATIIIIIIIIII SUNDER...........SADHUWAD. ........SAADAR NAMAN. .......JAI MAA SHAARDE.
ReplyDeleteखूब लिखा है , बहुत उम्दा
ReplyDeleteयदि तुम्हे विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
ReplyDeleteव्यास का स्मरण कर,ऋगवेद का विस्तार लिख दूँ !
..बहुत खूब..विश्वास पर दुनिया कायम है
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - शुक्रवार- 27/03/2015 को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 45 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
एक दिन उन्मुक्त मन से पास आकर बैठ जाओ
ReplyDeleteऔर बोलो नाम तेरे, स्वर्ग का अध्याय लिख दूँ ---वाह अद्भुत भाव,खूबसूरत शब्द।
bahtareen ,bahut sunder likha !!
ReplyDeleteएक दिन उन्मुक्त मन से पास आकर बैठ जाओ
ReplyDeleteऔर बोलो नाम तेरे, स्वर्ग का अध्याय लिख दूँ !
सकारात्मक प्रेरणा अक्सर आपके पास ही होती है,
तभी तो इतने सुन्दर गीत रचे जाते है, बहुत पसंद आयी
यह रचना !
समर्पण की सम्भावना के ये स्वर्णिम अध्याय ही तो हैं .मानवीय संवेदना के गायक . जीवन (और दुनिया भी) इसी तरह हरा-भरा रहता है . .
ReplyDeleteआह! अद्भुत गान।
ReplyDeleteमनु और श्रद्धा का प्रेमालाप स्मरित हो गया।
ह्रदय से बहुत-बहुत बधाई।
आपकी सामर्थ्य - वाह !
ReplyDeleteबहुत ही सूंदर...
ReplyDeleteसाथ में भाषा और भाव की गहरी समझ.
मज़ा अ गया..
वाह ! बहुत सुंदर भाव...गंगा जल से पावन और हिम शिखरों से विमल..
ReplyDeleteमुक्त निर्झर सी हंसी पर,गर्व पौरुष का मिटा दूँ ,
ReplyDeleteतुम कहो तो मानिनी,अतृप्त की मनुहार लिख दूँ !
यदि तुम्हे विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
व्यास का स्मरण कर,ऋगवेद का विस्तार लिख दूँ !
वाह्ह बहुत ही खुबसूरत | मन को छू गयी आपकी ये रचना | बधाई
यदि तुम्हे विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
ReplyDeleteव्यास का स्मरण कर,ऋगवेद का विस्तार लिख दूँ !
वाह ! बेहतरीन रचना।
यदि तुम्हे विश्वास हो, अनुराग की गहराइयों का !
ReplyDeleteव्यास का स्मरण कर,ऋगवेद का विस्तार लिख दूँ !
विश्वास और अनुराग ही तो काव्य का विस्तार करते हैं।
लीक से हट कर रची गई एक सुंदर रचना ।
जो सच है वो सच में सच लिख दो :)
ReplyDeleteजिसको लिखने की हिम्मत
किसी में नहीं वो हिम्मत लिख दो
कटोरों में चिपकी हुई
च्म्म्मचॉं को छोड़ कर कभी
कुछ साफ सी सीधी साधी
प्लेटें भी कभीए लिख दो :)
सारगरभित रचना
ReplyDeleteमाननीय सतीश जी
ReplyDeleteआपकी कविताओं को पढ़कर आनंद आ जाता है, आपकी कलम सदैव सृजन के साहस को जीवंत रखे।
आपका
Awww... I wish yeh mere liye hota :], Its just TOO GUD!
ReplyDeleteArvind ki chinta ki jaroorat nahin woh sab ko peeche chod dega . sab chota mehsoos karenge uske samne . Har chaal ko badi chaal se maat dega.
ReplyDeleteBht hi umda
ReplyDeleteवाह अद्भुत
ReplyDeleteबेहतरीन गीत।
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ReplyDeleteमुक्त निर्झर सी हंसी पर,गर्व पौरुष का मिटा दूँ ,
तुम कहो तो मानिनी,अतृप्त की मनुहार लिख दूँ !
वाह!
Bahut hi shaandaar sir
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