अरसे बाद मिली हैं नज़रें, छलके खुशियां आँखों में !
लगता खड़े खड़े ही होंगी, जीभर बतियाँ आँखों में !
लगता खड़े खड़े ही होंगी, जीभर बतियाँ आँखों में !
बरसों बाद सामने पाकर, शब्द न जाने कहाँ गए !
मगर हृदय ने पढ़ लीं कैसे इतनी सदियाँ आँखों में !
इतना भी आसान न होता, गुमसुम दर्द भुला पाना !
बहतीं और सूखती रहतीं, कितनी नदियां आँखों में !
सावन की हरियाली जाने कब से याद न आयी है ,
तुम्हें देख लहरायीं कैसे, इतनी बगियां आँखों में !
इतना हंस हंस बतलाते हो कितना दर्द छिपाओगे !
कब से आंसू रोके बैठीं, गीली गलियां आँखों में !
कब से आंसू रोके बैठीं, गीली गलियां आँखों में !