Saturday, September 10, 2016

जाहिलों पर मीडिया का,मुस्कराना देश में - सतीश सक्सेना

देशभक्तों ने किया खाली, खजाना देश में !
धनकुबेरों को बिका, शाही घराना देश में !

बेईमानों और मक्कारों की छवि अच्छी रहे,
जाहिलों पर मीडिया का, मुस्कराना देश में !

गेरुए कपडे पहन कर डाकू, व्यापारी बने
कैसे, कैसे धूर्तों का , हाकिमाना देश में ! 

खर्च लाखों हो गए तो कार पे झंडा लगा,
पांच वर्षों में समंदर भर , कमाना देश में !

चोर, बेईमान खुद को, राष्ट्रवादी  मानते,
आजकल ईमानदारी का वीराना देश में !

15 comments:

  1. चोर, बेईमान खुद को क्रांतिकारी मानते,
    आजकल ईमानदारी का वीराना देश में !
    इन्हीं की पूछ-परख है ..
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  2. खुद को तो
    मानते ही हैं
    अपने जैसे औरों
    को बताते भी हैं
    ईमानदारी से
    ईमानदारी
    के मेडल
    आपस में
    एक दूसरे को
    बटवाते भी हैं
    कुछ बे‌ईमान
    कुछ को
    दिलवाते है
    ईमान के
    बड़े ठेके
    कुछ बोली
    ईमान की
    लगाने वालों को
    बोली लगाने से
    पहले ही
    उठवाते भी हैं ।

    सुन्दर और हमेशा की तरह दुधारी तलवार :)

    ReplyDelete
  3. रुए कपडे पहन कर, डाकू व्यापारी बने
    कैसे, कैसे धूर्तों का , हाकिमाना देश में !

    ReplyDelete
  4. आपकी लिखी रचना एक बार फिर से "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 12 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  5. पाखंड पर करारा वार ।

    ReplyDelete
  6. सक्सेना जी बहुत बहुत बधाई इस मुखर प्रवाह प्रलेख के लिए ... हम गर्त में जा रहे हैं उनकी भाषा में पुण्य कमा रहे हैं यथार्थ वंचित हो रहा है और हम तमाशाई बने बैठे हैं ।

    ReplyDelete
  7. बहुत करारा झन्नाटा है ... पर इन मोटी चमड़ी वालों पर असर माही होता ..

    ReplyDelete
  8. इतना ही कह सकता हूँ की देश की आज के हालात पर आपका करारा तमाचा लगा है. पर दिल पर रख हाथ अगर देखे तो काफी हद तक एषा लगता है हमने ही भेड़ों की बाढ़ को शेर की रखवाली में छोड़ कर अपनी इति श्री कर ली है. फिर भेंड गायब तो होंगी ही. पढ़ा लिखा प्रबुद्ध वर्ग या तो चमचा बन गया है या इतना स्वार्थी की आपने आगे कुछ नहीं दीखता.

    ReplyDelete
  9. बहुत खूब ! सटीक कटाक्ष !

    ReplyDelete
  10. "आजकल ईमानदारी का वीराना देश में"

    ReplyDelete
  11. ज़बर्दस्त...!

    ReplyDelete
  12. शासन में रह, टूटकर, जितना संभव, लूट,
    हाथ से ग़र सत्ता गयी, भाग जाएंगे फूट.

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,