देशभक्तों ने किया खाली, खजाना देश में !
धनकुबेरों को बिका, शाही घराना देश में !
बेईमानों और मक्कारों की छवि अच्छी रहे,
जाहिलों पर मीडिया का, मुस्कराना देश में !
गेरुए कपडे पहन कर डाकू, व्यापारी बने
कैसे, कैसे धूर्तों का , हाकिमाना देश में !
खर्च लाखों हो गए तो कार पे झंडा लगा,
पांच वर्षों में समंदर भर , कमाना देश में !
चोर, बेईमान खुद को, राष्ट्रवादी मानते,
आजकल ईमानदारी का वीराना देश में !
चोर, बेईमान खुद को क्रांतिकारी मानते,
ReplyDeleteआजकल ईमानदारी का वीराना देश में !
इन्हीं की पूछ-परख है ..
बहुत सुन्दर
खुद को तो
ReplyDeleteमानते ही हैं
अपने जैसे औरों
को बताते भी हैं
ईमानदारी से
ईमानदारी
के मेडल
आपस में
एक दूसरे को
बटवाते भी हैं
कुछ बेईमान
कुछ को
दिलवाते है
ईमान के
बड़े ठेके
कुछ बोली
ईमान की
लगाने वालों को
बोली लगाने से
पहले ही
उठवाते भी हैं ।
सुन्दर और हमेशा की तरह दुधारी तलवार :)
रुए कपडे पहन कर, डाकू व्यापारी बने
ReplyDeleteकैसे, कैसे धूर्तों का , हाकिमाना देश में !
आपकी लिखी रचना एक बार फिर से "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 12 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteपाखंड पर करारा वार ।
ReplyDeleteसक्सेना जी बहुत बहुत बधाई इस मुखर प्रवाह प्रलेख के लिए ... हम गर्त में जा रहे हैं उनकी भाषा में पुण्य कमा रहे हैं यथार्थ वंचित हो रहा है और हम तमाशाई बने बैठे हैं ।
ReplyDeleteबहुत करारा झन्नाटा है ... पर इन मोटी चमड़ी वालों पर असर माही होता ..
ReplyDeleteक्या बात है!
ReplyDeleteइतना ही कह सकता हूँ की देश की आज के हालात पर आपका करारा तमाचा लगा है. पर दिल पर रख हाथ अगर देखे तो काफी हद तक एषा लगता है हमने ही भेड़ों की बाढ़ को शेर की रखवाली में छोड़ कर अपनी इति श्री कर ली है. फिर भेंड गायब तो होंगी ही. पढ़ा लिखा प्रबुद्ध वर्ग या तो चमचा बन गया है या इतना स्वार्थी की आपने आगे कुछ नहीं दीखता.
ReplyDeleteबहुत खूब ! सटीक कटाक्ष !
ReplyDelete"आजकल ईमानदारी का वीराना देश में"
ReplyDeleteज़बर्दस्त...!
ReplyDeleteशासन में रह, टूटकर, जितना संभव, लूट,
ReplyDeleteहाथ से ग़र सत्ता गयी, भाग जाएंगे फूट.