अक्सर हिंदी अधिपतियों के खिलाफ लिखने की, लेखकों की हिम्मत नहीं होती क्योंकि ऐसा करने वालों को न पुरस्कार मिलेगा, न मंच और उसकी कविता को सबसे बेकार रचना घोषित कर दिया जाएगा, किसकी हिम्मत है जो गुरु के खिलाफ लिखने वाले को छापे !
मंच पर परफ्यूम लगाए, हिंदी के मधुरिम आंगन में बदबू करते इन साहित्यकारों ने अपने चेहरे की भावभंगिमा,फूहड़ हास्य, और हुक्का भरने की क्षमता की बदौलत, हर जगह अध्यक्ष पद हथिया रखे हैं और इस माहौल में टेलीविजन कैमरों के ऑपरेटर , जिन्हें कविता व साहित्य की समझ ही नहीं, इन्हें साहित्य सम्राट मानकर, चमकाए जा रहे हैं !
फूहड़ रचनाओं के धनी, हिंदी अधिपतियों,कवियों, नेताओं एवं उन सबको यह रचना आदर सहित भेंट, जिन्होंने हिन्दी को कंगाल कर दिया !
भारत में, तथ्यों की हंसी , उड़ायेंगे उल्लू के पट्ठे !
मंच पर परफ्यूम लगाए, हिंदी के मधुरिम आंगन में बदबू करते इन साहित्यकारों ने अपने चेहरे की भावभंगिमा,फूहड़ हास्य, और हुक्का भरने की क्षमता की बदौलत, हर जगह अध्यक्ष पद हथिया रखे हैं और इस माहौल में टेलीविजन कैमरों के ऑपरेटर , जिन्हें कविता व साहित्य की समझ ही नहीं, इन्हें साहित्य सम्राट मानकर, चमकाए जा रहे हैं !
फूहड़ रचनाओं के धनी, हिंदी अधिपतियों,कवियों, नेताओं एवं उन सबको यह रचना आदर सहित भेंट, जिन्होंने हिन्दी को कंगाल कर दिया !
भारत में, तथ्यों की हंसी , उड़ायेंगे उल्लू के पट्ठे !
बिना पढ़े सबको इतिहास पढ़ायेंगे उल्लू के पट्ठे !
निपट झूठ को आसानी से, सत्य बनाए चुटकी में,
निराधार को बार बार दोहराएंगे , उल्लू के पट्ठे !
दल्लागीरी के सपनों में, नेताजी के पैर चाटते ,
गंगू तेली को ही भोज बताएँगे , उल्लू के पट्ठे !
रंगमंच से भाषण देते, नेताजी की बात बात पर
बड़ी देर तक ताली खूब बजायेंगे उल्लू के पट्ठे !
चोर उचक्के धूर्त सभी अब राम भक्त बनना चाहें
राजाओं के गीत जोर से गाएंगे , उल्लू के पट्ठे !
वाह !
ReplyDeleteआज तो मैं ही मैं नजर आ रहा है
चौदह पंक्तिया हैं और
आठ बार मेरा नाम लिया जा रहा है :D
डॉ जोशी ,
Deleteआपका स्वागत है प्रभु !! यह तो आपके शिष्यों के लिए समर्पित है . . . . :)
आपका आभार !
तल्ख़ तेवर.... सुन्दर गीत ......
ReplyDeleteगुल गए गुलशन गए अच्छे अच्छे मर गए उल्लू के पठ्ठे रह गए।
ReplyDeleteक्या बात है आदरणीय-
ReplyDeleteशुभकामनायें-
उल्लू के पट्ठे लड़ें, अब से युद्ध तमाम |
ReplyDeleteताम-झाम हर-मंच का, देता यह पैगाम |
देता यह पैगाम, चमचई आदर पाये |
बनते बिगड़े काम, चरण-चुम्बन गर आये |
रविकर घोंचू-मूर्ख, धरे पानी इक चुल्लू |
डूबे अवसर पाय, बड़ा ही अहमक उल्लू ||
बहुत सुंदर व्यंग्य !
ReplyDeleteअच्छी खासी लताड दे डाली आपने । अवश्य कोई गहरा व्यक्तिगत अनुभव होगा । लेकिन अब तो हर जगह आपको ऐसा ही कुछ देखने मिलेगा ।
ReplyDeleteवाह भैया, करारी चोट कर दी आपने, सुंदर। माफी चाहता हूँ, कई दिनों से ब्लॉग जगत से दूर था।
ReplyDeleteये उल्लू के पट्ठे !...बेहतरीन कटाक्ष!! जिओ!!
ReplyDeleteउल्लू के पट्ठे ही नहीं उल्लू के बाप भी हैं :)
ReplyDeleteइतिहास सबके कारनामे लिखेगा..
ReplyDeleteकाहे इतना नाराज हो गये!
ReplyDeleteऊल्लू के पठ्ठे तो धनपति होते हैं ये तो सरस्वती के पठ्ठे हुए ना।
ReplyDeleteनाम छपाकर,क्रीम लगाए,खादी पहने निकलेंगे !
ReplyDeleteहिन्दी संस्थानों पर कब्ज़ा,कर लेंगे उल्लू के पट्ठे ..
गहरा कटाक्ष ... तल्खी वाजिब है ... सत्ता के करीबी सब कुछ खराब करने की हिमात रखते हैं ...
कटाक्ष करती प्रभावी प्रस्तुति...! बधाई सतीस जी ....
ReplyDeleteRECENT POST -: आप इतना यहाँ पर न इतराइये.
अपने में से ही तो कुछ हैं जिनके हैं ये कर्म,
ReplyDeleteहम से ही तो बनाते- बनाते है ये उल्लू के पट्ठे |
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध
यही कारनामा दिखलायेंगे मिलकर उल्लू के पट्ठे |
दुखद है ये। बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteनाम छपाकर,क्रीम लगाए,खादी पहने निकलेंगे !
ReplyDeleteहिन्दी संस्थानों पर कब्ज़ा,कर लेंगे उल्लू के पट्ठे !
बहुत सुंदर खरी खरी कहने में आपका कोई जवाब नहीं.
" निज भाषा उन्नति अहै निज उन्नति को मूल ।
ReplyDeleteबिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल ॥"
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
हा हा हा हा ......भैया आपने तो बस एक ही गाली लिखी है ऐसा क्यों ...........कम से कम सबके दिल की भड़ास ओर अच्छे से तो निकाल देते ...........
ReplyDeleteक्या करारा व्यंग्य किया है ....मज़ा आ गया
एकाध नाम भी तो बताईये उन कथित उल्लू के पट्ठों का ?
ReplyDeleteकुमार विश्वास तो नहीं हो सकता -वह और कुछ भले हो उल्लू और गधा तो नहिये है !
:] kya baat hai sir, aaj tak eysi kavita nahi padhi. BRAVO!!!
ReplyDeleteचारों तरफ़ उल्लू के पठ्ठे ही पठ्ठे बैठे हैं, पर क्या किया जाये? इन्हीं उल्लूओं के बीच रहना है, बहुत सुंदर व्यंग गीत.
ReplyDeleteरामराम.