30 jan 2014, टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छत्तीस गढ़ पुलिस द्वारा , नक्सलबादियों के आत्मसमर्पण के लिए, एक हिंदी कविता के जरिये आवाहन किया है ! निस्संदेह यह एक स्वागत योग्य कदम है !
कविता, अगर मन से लिखी जाए तो जनमानस को बदलने की शक्ति रखती है और ऐसे कदम, अपने स्थायी प्रभाव छोड़ने में समर्थ रहते हैं !
छत्तीस गढ़ पुलिस के इस आवाहन को अपने शब्दों में देते हुए, यह रचना, इस मंगलकारी कार्य हेतु छत्तीस गढ़ पुलिस को समर्पित है ! मुझे विश्वास है कि ऐसे प्रयत्न, इस जलती आग में, ठन्डे जल का काम करेंगे !
इस खूबसूरत पहल के लिए मंगलकामनाएं, छत्तीस गढ़ पुलिस को !!
कर्म भूमि बस्तर पुकारती , और नहीं संघर्ष करें !
आओ हम आवाहन करते, जन मन सद्भावना करें !
बौद्धजनों की कर्म भूमि औ महर्षियों की तपोभूमि से
जन जन की आवाजे आतीं , खेल खून का बंद करें !
आंदोलन विरोध के रस्ते और भी हैं इस दुनियां में
आओ मिलकर बात करेंगे, क्रोध के गाने, बंद करें !
कर्म परायणता गरीब की , सम्मानित करवाएंगे !
मार काट के रास्ते त्यागें , काली राहें , बंद करें !
नक्सल और पुलिस मुठभेड़ें, कितनी जाने लेती हैं
खड़े हैं हम बाहें फैलाए , शस्त्र समर्पण शुरू करें !
शस्त्र समर्पण मंगल कारक,सम्मानित मानवता है !
हंसकर तुमको गले लगाने आये हैं , विश्वास करें !
हथियारों का यही समर्पण, साहस का परिचायक है
बच्चों के भविष्य की खातिर,एक नयी शुरुआत करें !
सद्प्रयास विजयी हो !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteएक कविता
उन सब को भी
दे कर देखें
नक्सलवाद के
जन्म के लिये
जो हर पल
हर क्षण एक
प्रेरक का
काम करें :)
बहुत सुन्दर और प्रेरक
ReplyDeleteसराहनीय प्रयास छत्तीसगढ़ पुलिस का
नक्सलवाद का दानव ख़त्म हो तो सबके लिए बेहतर
सुंदर शब्द और सद्भावना ....!!सुंदर रचना .
ReplyDeleteआंदोलन विरोध के रस्ते और भी हैं इस दुनियां में
ReplyDeleteआओ मिलकर बात करेंगे, क्रोध के गाने, बंद करें ...
सहमत हूँ आपकी बात से ... देश जब आज़ाद है तो इन सब बातों की जरूरत क्यों पड़े ... पर ये बात समाज और तंत्र को भी समझनी होगी की वो ऐसा मौका न दें ...
कविता के माध्म से नक्सली समस्या का हल हो, यह अत्यंत सुखद है। नक्सलियों को कविता के माध्यम से समझाने में उनके नक्सली साहित्य को भी पढ़ना पड़ेगा। उनकी समस्याओं को भी समझना पड़ेगा।
ReplyDeleteनक्सलवाद,नक्सली शब्द को क्यों इतना भयावान बना दिया है ? क्या वोह इंसान नही है..?
ReplyDeleteक्या उनका खून हम से अलग है.? तो फिर यह कैसी उदंडता है..वोह भी इस देश के देश वासी है..सरकार उन्हें आंतकी क्यों मानती है..?
जुल्म सह कर भी उफ़ नही करते
उनके दिल भी अजीब होते है.
सार्थक प्रयास ....... सुन्दर प्रस्तुति.......
ReplyDeleteनक्सलवाद एक नकारात्मक प्रयोग है,
ReplyDeleteशस्त्रों से केवल हिंसा और विध्वंस के सिवा और कोई समाधान नहीं मिलता !
सार्थक अवाहन किया है रचना में !
हथियारों का यही समर्पण, साहस का परिचायक है
ReplyDeleteबच्चों के भविष्य की खातिर,एक नयी शुरुआत करें !
बहुत सुंदर रचना.
बढिया प्रयास . मंज़िल तक पहुँचे , आपकी आवाज़ .
ReplyDeleteवाह! छा गए सतीश जी ! सुन्दर पहल । हमारा छत्तीसगढ बहुत सुन्दर है । मुझे लगा था कि यह आपकी भी कर्म-भूमि है ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना और अत्यंत ही सुंदर प्रयोजन, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
नक्कार खाने में तूती आवाज़ सुनाई नहीं देती हमारे राजाओं को...बातचीत की नौबत भी इतने इम्तहानों से गुज़रने के बाद आती है...भय बिन होहि न प्रीत...
ReplyDeleteकविताओं से कौन मानेगा सरजी? फ़िर भी शुभ भावना के लिये शुभकामनायें।
ReplyDeleteसहजीवन के भाव समस्या पर विजय पायें, मनुज मनुज के निकट आयें। बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteकल हमने भी यहाँ कमेन्ट किया था वो दिखाई नहीं देता :-(
ReplyDeleteअच्छा लगा कि जवान लोग भी भुलक्कड़ होते हैं . .
Deleteकल आपने फेसबुक पर कमेन्ट किया होगा ! :)
जी सर
ReplyDeleteआज मैंने भी पढ़ी
सराहनीय प्रयास !!