कितने कवियों ने मौसम की
गाथा गायी कविताओं में !
गाथा गायी कविताओं में !
लेखनी ठहर क्यों जाती है !
बरसों बीते , दिखती न कहीं
हर ओर छा रही हरियाली !
अब धुआं भरे इस मौसम में क्यों लोग मनाते दीवाली ?
धरती की छाती से निकली
सहमी सहमी कोंपलें दिखे
काला गहराता धुआं देख
कलियों में वह मुस्कान नहीं
जलवायु प्रकृति को दूषित कर
धरती लगती खाली खाली
विध्वंस हाथ से अपना कर , क्यों लोग मनाते दीवाली ?
प्रकृति का चक्र बदलने को
काटते पेड़ निर्दयता से !
बरसात घटी बादल न दिखे
ठंडी जलधार बहे कैसे !
कर रहीं नष्ट ख़ुद ही समाज,
कालिदासों की संताने !
आभूषण रहित धरा को कर,क्यों लोग मनाते दीवाली ?
अब नहीं नाचता मोर कहीं
घनघोर मेघ का नाम नहीं !
अब नहीं दीखता इन्द्रधनुष
सतरंगी आभा साथ लिए !
कर उपवन स्वयं तवाह अरे
क्यों फूल ढूँढता है माली ?
जहरीली सांसे लेकर अब, क्यों लोग मनाते दीवाली ?