पंकज सुबीर की पहचान शक्ति की तारीफ़ करनी होगी ! सीमा गुप्ता के कविता संकलन की पहली लाइनें ही दिल छू गयीं और इस लेख का शीर्षक बन गयीं ! कुछ लम्हे पर पंहुचते ही महसूस हो जाता है कि आप किसी असीमित क्षमता के धनी ,भावुक कलाकार के घर आये हैं ! इस रचना में उठाया विषय बिछड़ों के बारे में हैं ,क्या हमारे जीवन से दूर चले जाने वाले हमारे अपने, कभी भी हमारी यादों से धूमिल हो पाते हैं ?
"ह्रदय के जल थल पर अंकित
चित्र ! धूमिल कर जाओगे !
याद तो फिर भी आओगे !"
हँसना रोना , गीत पुराना !
सुर सरगम का साज बजाना
शब्द ताल ही ले जाओगे ...
याद तो , फिर भी आओगे !
सूनी राहें दिल थाम के चलना
साथ बिठाये पलों का छलना
यही, खाली कर जाओगे ...
याद तो , फिर भी आओगे !
अपनों से दूर होने की व्यथा की ऐसी गहरी अभिव्यक्ति और बिछड़ गए इन अपनों से, यह उदास शिकायत, शायद हर संवेदनशील ह्रदय के जीवन का एक भाग होगी ,जिसे हम व्यक्त नहीं कर पाए और सीमा ने बेहद खूबसूरती से व्यक्त कर दिया ....
"ह्रदय के जल थल पर अंकित
चित्र ! धूमिल कर जाओगे !
याद तो फिर भी आओगे !"
हँसना रोना , गीत पुराना !
सुर सरगम का साज बजाना
शब्द ताल ही ले जाओगे ...
याद तो , फिर भी आओगे !
सूनी राहें दिल थाम के चलना
साथ बिठाये पलों का छलना
यही, खाली कर जाओगे ...
याद तो , फिर भी आओगे !
अपनों से दूर होने की व्यथा की ऐसी गहरी अभिव्यक्ति और बिछड़ गए इन अपनों से, यह उदास शिकायत, शायद हर संवेदनशील ह्रदय के जीवन का एक भाग होगी ,जिसे हम व्यक्त नहीं कर पाए और सीमा ने बेहद खूबसूरती से व्यक्त कर दिया ....
आदरणीय सतीश जी , आप सभी के आशीर्वाद से ही ये काव्य संग्रह जन्म ले पाया और आप सभी के सहयोग और स्नेह से ये संग्रह अपनी जगह बनाने में कामयाब हो रहा है. पंकज जी के आशीर्वाद और शिवना प्रकाशन की टीम की मेहनत इस संग्रह में स्पष्ट नजर आ रही है, उसके लिए मै शिवना प्रकाशन का जितना शुक्रिया अदा करूं कम है.
ReplyDeleteसतीश जी काव्य संग्रह की पहली ही रचना को लेकर जो विचार आपने इतने अच्छे और सराहनीय तरीके से व्यक्त किये हैं और आपने मुझे अपने ब्लॉग पर ये सम्मान दिया उसके लिए मै दिल से बेहद आभारी हूँ
regards
सीमा जी को बधाई
ReplyDeleteएवं आपको भी शुभकामनाएं
हमारी तरफ़ से भी सीमा जी...और आपको भी शुभकामनाएं...
ReplyDeleteसीमा जी की कविताओं में एक प्रकार की सेडनेस है जो इन दिनों कम ही लेखकों की रचनाओं में होती है । यही सेडनेस उनकी कविताओं को खास बनाती है । सतीश जी आपको आभार पुस्तक पर चर्चा करने के लिये ।
ReplyDeleteसीमा जी को बधाई
ReplyDeleteshekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
सीमा जी की कविताओं का मुख्य स्वर विरह का है -उन्हें लगता है की सुख संयोग की स्थाई चाहना तो सभी को होती है मगर कोई विरह वियोग के दुःख को भी तो अपनाए और तद्जनित पीड़ा को रचनात्मक बनाते हुए एक उत्कट जीजिविषा से जीवन की राहों पर बढ़ता जाये -यह सीमा जी ने खुद के जीवन में चरितार्थ कर दिखाया है .
ReplyDeleteमैं भी इस अप्रतिम रचनाकार को इन दिनों पढ़ रहा हूँ -
हमारी तरफ़ से भी सीमा जी...और आपको भी शुभकामनाएं...
ReplyDeleteसीमा जी के भाव गहरे हैं और उतनी गहराई से मन को छू जाते हैं ।
ReplyDeleteयादों पर तो बस चलता ही है।
ReplyDeleteसुन्दर रचना । अच्छी प्रस्तुति ।
सीमाजी की कविताएं विरह भाव का सृजन करती हैं. यह सब बात उनके पाठक भलिभांति जानते हैं. पर आश्चर्य की बात कि वो विरह उनके निजी स्वभाव मे कहीं नही है. वो कमेंट मे ha..ha...ha..का जैसा भाव प्रदर्शित करती हैं ठीक वैसी ही उन्मुक्त और निश्चल हंसी उनसे बातचीत मे नजर आती है.
ReplyDeleteवाकई लगता है कि रचना कर्म करते समय उन पर मां सरस्वती की असीम अनुकंपा रहती है. ये कृपा बनी रहे. उनको बहुत शुभकामनाएं. और आपका इस समीक्षा के लिए बहुत आभार.
रामराम.
badhai seema jee ko.
ReplyDeleteshubhkamnayein
Seemaji ko badai.... Bahut sunder rachna... satishji appko aabar.
ReplyDeleteHello Madam,
ReplyDeleteCongratulation for getting so much positive review on ur book.
It's really incredible to have this kind of feed back. And it is fine enough to encrough to write another Fantastic edition.
Many Many Congratulation n Best wishes for the future,
Rakesh Kaushik
9268225947
सीमा जी को शुभकामनाएं !!
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