आज सुबह सुबह प्रवीण शाह का एक लेख के ज़रिये धार्मिक असलियत जान भौचक्का सा रह गया ! यह जानकारी किसी के लिए भी नयी नहीं होगी मगर शायद हम लोग उसपर ध्यान नहीं देते हैं ! प्रवीण भाई ने शायद साफ़ साफ़ हमें बताया कि धर्म से हमें क्या मिल रहा है ......
ऐसा होगा नर्क-जहन्नुम-Hell
यह कैदखाना कमोबेश सभी जगह एक सा है... प्रताड़नाओं में शामिल है आग से जलाना, भूखा-प्यासा रखना, खौलता पानी शरीर पर डालना, खौलता पानी पीने को देना, बिना इलाज के छोड़ देना आदि आदि... बहुत गंदा और बदबूदार !
यह कैदखाना कमोबेश सभी जगह एक सा है... प्रताड़नाओं में शामिल है आग से जलाना, भूखा-प्यासा रखना, खौलता पानी शरीर पर डालना, खौलता पानी पीने को देना, बिना इलाज के छोड़ देना आदि आदि... बहुत गंदा और बदबूदार !
नर्क तो आदमी और औरत दोनों का है पर स्वर्ग केवल पुरूषों के लिये ही बनाया प्रतीत होता है अधिकाँश धर्मों मे...यहाँ मिलेंगी अति सुन्दर चिर-कुंवारी, चिर-यौवना अप्सरायें या हूरें... जिसे चाहें भोगें... पानी की जगह नालियों में बहती होगी 'सुरा' या शराब... सुगंध होगी... संगीत होगा... एअर कंडीशनिंग भी होगी वहाँ!
अब यह बात दीगर है कि इन्ही सब चीजों का जिन्दा रहते निषेध करता है हर कोई 'धर्म'...
अब यह बात दीगर है कि इन्ही सब चीजों का जिन्दा रहते निषेध करता है हर कोई 'धर्म'...
मैंने टिप्पणी के जरिये प्रवीण भाई से पूछा है कि .....
मौत के बाद जन्नत - तथाकथित धार्मिक लोगों के लिए पाप ( खूब शराब और सुंदरियों के साथ ) करने की जगह, जो धर्म द्वारा ही स्वीकृत है
मौत के बाद दोज़ख उन्हें - जो बिना धार्मिक परमीशन के, इस जनम में तथाकथित जन्नत ( खूब शराब और सुंदरियों को ) भोगने का प्रयत्न करते हैं ....
क्या करना चाहिए हमें ??
मौत के बाद दोज़ख उन्हें - जो बिना धार्मिक परमीशन के, इस जनम में तथाकथित जन्नत ( खूब शराब और सुंदरियों को ) भोगने का प्रयत्न करते हैं ....
क्या करना चाहिए हमें ??
सतीश जी आपके प्रश्न बिलकुल वाजिब है, मुझे तो यह भी समझ नहीं आता की स्वर्ग केवल पुरुषों के लिए क्यों?
ReplyDeleteapne liye to dojakh hi thek kya pata kal kisne dekha...
ReplyDeletehttp://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
जीवन के पहले और जीवन के बाद... धार्मिक सोच रखने वालों के लिए तो दोनो परिस्थियाँ बिल्कुल उल्टा है....पर इस जीवन में तो सही रहना चाहिए कम से कम वहाँ कष्ट तो नही मिलेगा......बढ़िया प्रसंग...
ReplyDeleteयावद् जिवेत् सुखम् जिवेत्
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
आभार आपका, मेरे सवाल को और विस्तार देने के लिये...
"मौत के बाद जन्नत - तथाकथित धार्मिक लोगों के लिए पाप ( खूब शराब और सुंदरियों के साथ ) करने की जगह, जो धर्म द्वारा ही स्वीकृत है
मौत के बाद दोज़ख उन्हें - जो बिना धार्मिक परमीशन के, इस जनम में तथाकथित जन्नत ( खूब शराब और सुंदरियों को ) भोगने का प्रयत्न करते हैं ....
क्या करना चाहिए हमें ??"
मेरा जवाब सीधा सादा होता है इस बारे में सामाजिक नियमों और नैतिकताओं के दायरे में रहते हुऐ आप को हर उस चीज का आनंद लेना चाहिये... जो प्रकृति प्रदत्त या मानव निर्मित है... बशर्ते आप उसे एफोर्ड कर सकें... यदि हर इंसान ऐसा ही माने... तरक्की का प्रयत्न न छोड़े... अपनी वर्तमान स्थिति को 'उस' के द्वारा तय 'नियति' मान कर संतुष्ट न रहे... तो आदमी की कौम और उसकी दुनिया और बेहतर होगी... आज तक के जितने भी बेहतरी के प्रयास हुऐ हैं वह इसी मानसिकता के लोगों ने किये हैं...
एक और बात जो इस तरीके से निकलेगी, वह यह है कि ऐसी दुनिया में सोच-समझ से परे 'उस' के लिये कोई स्पेस शायद नहीं होगा!
एक अनुरोध - कम से कम एक ढंग का अंग्रेजी ब्लाग जरूर पढ़िए।
ReplyDeleteजन्नत जन्नत ही है या दोजख
ReplyDeleteसच्चे अच्छे मन से विचारिए तो सही।
अद्भुत लेख! आपको साधुवाद और बधाई.
ReplyDeleteटिपण्णी मैंने यहाँ पोस्ट करने चाही थी मगर हो वह प्रवीण जी की पोस्ट पर गई ! उनकी इस बात से सहमत हूँ कि स्वर्ग नरग सब यही है ! अच्छे-बुरे कर्मो का फल देर-सबेर सब यही मिलता है ! जन्नत और दोजख के फंडे तो पंडित-मुल्लाओं ( ओसामा ) ने मूर्ख और भोले भाले लोगो को गुमराह करने के लिए बनाए अपने फायदे के लिए, अपने फितूर को शांत करने के लिए !
ReplyDeleteबहुत ही ज़ोरदार बात कही है आपने सक्सेना साहब। क्या कहना!
ReplyDeleteसतीश जी, बेहद उम्दा पोस्ट है... और आपका सवाल भी वाजिब है...
ReplyDeleteजन्नत की हक़ीक़त क्या है...???
इस दुनिया में मर्दों के लिए चार औरतों का इंतज़ाम तो है ही, साथ ही जन्नत में भी 72 हूरें और पीने के लिए जन्नती शराब मिलेगी...यानि अय्याशी का पूरा इंतज़ाम...
जैसे जन्नत न हुई अय्याशी का अड्डा हो गया...
जो जन्नत में मरने के बाद मिलेगी वह अगर यहीं हासिल कर लें तो ----
ReplyDeleteमुश्किल मे डाल दिया आपने सतीश भाई.ये जन्नत और दोजख सब यंही है मेरे हिसाब से.जैसी करनी वैसी भरनी,बचपन से सुनते आ रहे हैं.
ReplyDeleteप्रश्न:-क्या करना चाहिए हमें ??
ReplyDeleteउत्तर:- ब्लागिंग क्योंकि यह निरापद है, कोई डर नहीं.
:)
सतीश जी , हमें तो एक ही बात समझ में आई ।
ReplyDeleteज़हन्नुम का रास्ता ज़न्नत से होकर है। :)
कंही मधुशाला और मयखाना ये दोनों जन्नत तो नहीं। बहुत ही अच्छी बात कही है फिरदौश जी ने ।
ReplyDeleteस्वर्ग या नरक दोनों ही इस पृथ्वी पर ही हैं, निर्भर करता है तो सिर्फ मनुष्य के कर्मो के ऊपर। दुनिया कितनी आगे निकल चुकी हैं मगर ये मुल्ला और पंडित अभी भी लोगो को गुमराह करने पर तुले हुए हैं।
सक्सेना जी आपका धन्यवाद् जो इतने अच्छी पोस्ट ले कर के आये हैं।
सतीश भाई,
ReplyDeleteकिसी धोखे में मत रहिए...ये जन्नत के साथ आपने जो फोटो लगाई है वो दरअसल में जहन्नुम की शो-विंडो है...एक बार कस्टमर झांसे में आ तो जाए, निपटा तो अंदर जहन्नुम की आग़ से जाएगा...
कुछ टंटों की वजह से नियमित कमेंट नहीं कर पा रहा...कारण अपनी कल की पोस्ट में स्पष्ट करने वाला हूं...
जय हिंद...
जब हम माँ की गोद में नवजात होते हैं, तो लगता है की सारी दुनिया में बस यही है. जब थोडा बड़े होते हैं, तो अपने घर को समझते हैं की जो यहाँ है वही सारी दुनिया में होगा. जब और बड़े होते हैं तो अपने शहर जैसी पूरी दुनिया लगती है.....तो मरने के बाद क्या होगा क्या हम इस जीवन में उसकी कल्पना कर सकते हैं?
ReplyDeleteSach hai..swarg me milne wali 'suvidhayen,' aanand" sab purushonke liye...!
ReplyDeleteसतीश जी..ओशो ने इस विषय पर एक बड़ी अच्छी बात कही है कि हर वो महात्मा जो उपदेश देता है कि सारा मोह त्याग दो तो तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी, दरसल स्वर्ग के मोह से तो मुक्त हुआ ही नहीं, इसलिए वह ढ़ोंगी है...
ReplyDeleteरही बात अच्छे और बुरे कर्मों की ..और हमें क्या करना चाहिए... क्यों अच्छे काम करने वाले दुःख भोगते हैं, जबकि बुरे काम करने वाले वाले एंज्वाय करते हैं..इस बारे में उनका कहना है कि अच्छे और बुरे कामों का निर्णय तुम्हारा अपना है और ये सोचकर लिया गया है कि इसके परिणाम क्या हो सकते हैं... तो एक तरफ तुम अच्छे काम का पुण्य भी भोगना चाहते हो और दूसरी तरफ बुरे काम करने वाले पापियों के सुख की भी कामना करते हो. वो बेचारे तो पहले ही पाप के बोझ से दबे हैं और अगर ऐसे लोग नरक में जाते हैं तो उनको पाप के बोझ के साथ सुख भी पा लेने दो... पुण्यात्माओं को इसकी पर्वाह होनी भी नहीं चाहिये..अगर वह सच्चे अर्थों में निर्लिप्त और निर्मोह के साथ कर्म कर रहा है तो...
http://samvedanakeswar.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html
बात जरा लम्बी खिंच सकती है लेकिन कहना तो पड़ेगा ही. सबसे पहले तो यह कि 'उसकी' मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता. फिर जब सभी कुछ उसकी ही निर्धारित गति से सम्भव है तो यह जन्नत-दोजख में इंसान ही क्यों पिसे. जहाँ अच्छाई है वहां 'उसकी' कृपा, जहाँ बुराई आई तो उसके लिए शैतान ज़िम्मेदार. यानी एक पक्ष ऐसा है जहाँ बिना मर्जी के पत्ता हिल जाता है.
ReplyDeleteस्वर्ग में सिर्फ हूरें ही नहीं, शौकीन लोगों के लिए गिलमा की भी व्यवस्था है. ये कमसिन, खूबसूरत लडके होंगे जो शौक़ रखने वाले नेक जन्नतियों की खिदमत में पेश किए जाएँगे. महिलाओं के लिए भी व्यवस्था है. उन्हें मलाइका से लुत्फ़अन्दोज़ होने के इन्तिज़मात किए गए हैं. हाँ यह भी कहा गया है कि जो नेक जन्नती औरतें हैं, उन्हें उनके शहरों का साथ मिलेगा. अब कोई औरत इस दुनिया ३५-५० सालों तक उस मर्द को भुगतने के बाद अगर वहां भी उसी के पल्ले बांधी जाए तो यह जन्नत होगी या जहन्नुम?
बचा जहन्नुम, वहां तो वो सब कुछ है जो नाज़ी जेलों या भारतीय पुलिस के टार्चर रूम में हो सकता है.
किसी बुज़ुर्ग उस्ताद शायर ने कहा था-
"इंसान को गुमराह किया शैतां ने
शैतान को गुमराह किया है किस ने!"
एक शेर और याद आ गया-
"नाहक हम मजबूरों पर यह तोहमत है मुख्तारी की
चाहे हैं सो आप करे हैं, हम को अबस बदनाम किया"
यह भ्रम बना हुआ है । हो सकता हो जनमानस को आकर्षित करने के लिये इसका सहारा लिया गया हो । ज्ञानीजन तो स्वयं में प्रसन्न रहते हैं ।
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